जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण अजमेर
षम्भूसिंह सिंह षेखावत पुत्र श्री लादूसिंह षेखावत, जाति- राजपूत, निवासी- 172,ढोढसर हाउस,षिवाजी काॅलोनी, सुभाषनगर, अजमेर ।
प्रार्थी
बनाम
1. प्रबन्धक, टाटा मोटर्स लिमिटेड मार्फत फलक एजेन्सीज, माधव द्वार के पीछे, आदर्ष नगर, अजमेर-305008
2. . प्रबन्धक, टाटा मोटर्स लिमिटेड, कारगो मोटर्स, ग्राउण्ड फलोर, ग्राम सेंदरिया, राष्ट्रीय राजमार्ग सं.8, परबतपुरा बाईपास, जयपुर रोड, अजमेर ।
अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 136/2011
समक्ष
1. गौतम प्रकाष षर्मा अध्यक्ष
2. विजेन्द्र कुमार मेहता सदस्य
3. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
उपस्थिति
1.श्री भंवर सिंह गौड,अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री अनिल षर्मा, अधिवक्ता अप्रार्थी
मंच द्वारा :ः- आदेष:ः- दिनांकः-19.02.2015
1. यह परिवाद प्रार्थी को अप्रार्थीगण टाटा मोटर्स की ओर से दिनंाक 1.7.2010 को एक पत्र भेज कर रू. 7442/- की मांग की है, के संबंध में लाया गया है । प्रार्थी का कथन है कि उसके द्वारा अप्रार्थी टाटा मोटर्स से एक वित्तीय ऋण दिनांक 23.2.2006 को प्राप्त किया तथा उक्त ऋण का भुगतान दिनंाक 31.1.2011 तक प्रतिमाह रू. 5825/- मासिक किष्त से करना तय हुआ था । आगे कथन किया है कि प्रार्थी ने इस ऋण की मासिक किष्तों की अदायगी नियमित रूप से की है इसके उपरान्त भी अप्रार्थीगण ने प्रार्थी को दिनंाक 1.7.2010 को एक पत्र भेज कर रू. 6387/- मूल राषि तथा रू. 1055/- ब्याज के कुल रू. 7442/- की मांग की है । किन्तु प्रार्थी को उपलब्ध कराए गए ऋण करार के अनुसार प्रार्थी के हस्ताक्षरषुदा खाली चैक अप्रार्थी ने बतौर अमानत लिए थे तथा किष्त देय होने पर उक्त खाली चेक को भर कर प्रार्थी के खाते से राषि प्राप्त की जा रही थी लेकिन अप्रार्थीगण ने माह- जून, 2010 की किष्त के संबंध में चैक प्रार्थी के खाते में प्रस्तुत नहीं किया और ना ही इस राषि हेतु प्रार्थी को सूचित किया जबकि उस वक्त प्रार्थी के खाते में प्रर्याप्त राषि उपलब्ध थी । इस तरह से स्वयं अप्रार्थीगण के पक्ष में उपेक्षा एवं लापरवाही रही है । अतः अब अप्रार्थीगण मांग की गई राषि रू. 7442/- प्राप्त नहीं कर सकते एवं यही अनुतोष परिवाद में चाहा है ।
2. अप्रार्थीगण की ओर से जवाब पेष हुआ । जवाब में प्रारम्भिक आपत्तिया ली गई एवं मदवार जवाब में स्पष्ट किया कि अप्रार्थीगण द्वारा कोई भी खाली चैक अमानत के तौर पर नहीं लिए थे तथा मासिक किष्त जमा कराने का दायित्व प्रार्थी का था किन्तु प्रार्थी ने न तो उक्त किष्त जमा कराई और ना ही इस राषि का कोई चैक अप्रार्थी को दिया । अतः उक्त राषि जो उस पर बनने वाले ब्याज आदि की मांग प्रार्थी से की है वह सही है एवं इस ऋण के संबंध में हुए अनुबन्ध की ष्षर्तो के अनुरूप है एवं परिवाद खारिज होने योग्य दर्षाया ।
3. हमने पक्षकारान की बहस सुनी एवं पत्रावली का अनुषीलन किया ।
4. प्रार्थी ने परिवाद में वर्णितानुसार ऋण सुविध प्राप्त की एवं उक्त ऋण की अदायगी रू. 5825/- मासिक किष्त से करना तय हुआ , तथ्य निर्विवाद है । प्रार्थी का यही कथन है कि अप्रार्थीगण ने प्रार्थी से हस्ताक्षरषुदा खाली चैक बतौर अमानत के लिए थे एवं किष्त देय होने पर अप्रार्थीगण उक्त चैक द्वारा प्रार्थी के खाते से राषि वसूली करनी थी जो अप्रार्थीगण द्वारा बराबर वसूल की जा रही है किन्तु जून, 2010 के लिए स्वयं अप्रार्थी ने ही चैक भर कर नहीं दिया । अतः इस संबंध में प्रार्थी का कोई दोष नहीं है बल्कि अप्रार्थी की ही लापरवाही है एवं अब अप्रार्थी यह राषि प्रार्थी से प्राप्त नहीं कर सकते । अतः हमारे समक्ष निर्णय हेतु यही बिन्दु है कि क्या इकरार की षर्त अनुसार अप्रार्थीगण ने प्रार्थी से हस्ताक्षरषुदा खाली चैक बतौर अमानत प्राप्त किए एवं जून, 2010 की किष्त हेतु स्वयं अप्रार्थीगण ने ही चैक प्रार्थी के खाते में वसूली हेतु प्रस्तुत नहीं किया एवं क्या अब अप्रार्थीगण यह राषि प्रापत करने के अधिकारी नहीं है ?
5. प्रार्थी की ओर से इस ऋण के संबंध में जो अनुबन्ध हुआ उसमें प्रार्थी अप्रार्थीगण को खाली हस्ताक्षरषुदा चैक देगा, का वणर्न हो, प्रार्थी की ओर से नहीं दर्षाया गया है । अप्रार्थीगण ने प्रार्थी के इस कथन को अस्वीकार किया है एवं दर्षाया है कि किष्तों की समय पर अदायगी का दायित्व प्रार्थी का ही थ एवं अप्रार्थी ने प्रार्थी से कोई खाली चैक अमानत के तौर पर नहीं लिए थे । निर्विवाद रूप से प्रार्थी द्वारा जून,2010 की किष्त पत्र दिनंाक 1.7.2010 जो प्रार्थी को भेजा गया तब तक अदा नहीं की थी । हमारे विनम्र मत में प्रार्थी का यह कथन उसकी ओर से सिद्व नहीं हुआ है कि प्रार्थी ने कोई खाली चेक हस्ताक्षरुदा अप्रार्थीगण को दिए हो । इस संबंध में प्रार्थी की ओर से स्वयं के कथनों के अलावा कोई साक्ष्य पेष नहीं हुई है एवं अप्रार्थी ने प्रार्थी के इस कथन को गलत होना दर्षाया है । प्रार्थी द्वारा जून, 2010 की किष्त जमा नहीं करवाई गई है एवं उसी किष्त एवं ब्याज आदि की मांग पत्र दिनांक 1.7.2010 से की गई है । प्रार्थी का यह कथन कि अप्रार्थीगण द्वारा चेक प्रस्तुत नहीं किए अतः अब अप्रार्थीगण यह राषि प्राप्त नहीं कर सकते , हमारे विनम्र मत में स्वीकार होने योग्य नहीं है क्योंकि प्रथमतः प्रार्थी द्वारा अप्रार्थीगण को खाली हस्ताक्षरयुक्त चेक दिए हो , यह तथ्य सिद्व नहीं हुआ है इसके अतिरिक्त प्रार्थी इस पत्र से जून, 2010 की किष्त की राषि दोबारा वसूल कर रहा हो ऐसा भी नहीं पाया गया है । अतः प्रार्थी का यह कथन कि अप्रार्थीगण अब जून, 2010 की किष्त प्राप्त नहीं कर सकता , स्वीकार होने योग्य नहीं है एवं कायम किए गए निर्णय बिन्दु का निर्णय इसी अनुरूप किया जाता है । प्रार्थी का यह परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं है । अतः आदेष है कि
-ःः आदेष:ः-
6. प्रार्थी का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
(विजेन्द्र कुमार मेहता) (श्रीमती ज्योति डोसी) (गौतम प्रकाष षर्मा)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
7. आदेष दिनांक 19.02.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
सदस्य सदस्या अध्यक्ष