जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
भारत गिरी पुत्र श्री सुरेन्द्र गिरी, निवासी- सनधन्ध हाउस, लेक रोड़, माउण्ट आबू, तहसील- आबूरोड़, जिला-सिरोही ।
- प्रार्थी
बनाम
1. टाटा मोटर्स लिमिटेड जरिए प्रबन्ध निदेषक, पिंपरी, पूना(महाराष्ट्र)
2. निधि कमल आॅटोमोबाईल्स प्रा.लि., महाराजा गार्डन रेस्टोरेन्ट के सामने, पर्बतपुरा बाईपास रोड़, अजमेर जरिए प्रबन्धक/ मालिक
3. निधि कमल आॅटोमोबाईल्स प्रा.लि., ग्राम रामस्या, पाली बायपास, तहसील व जिला-पाली जरिए प्रबन्धक/मालिक
- अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 254 /2012
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री विभौर गौड़, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री अनिल षर्मा , अधिवक्ता अप्रार्थी सं.1
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः- 02.12.2016
1. प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हंै कि उसके द्वारा दिनंाक 22.2.2011 को वाहन विंगर मोनोक प्लेटिनम अप्रार्थी संख्या 3 से क्रय किए गए वाहन संख्या आर.जे.24.टी.ए.1310 जो अप्रार्थी बीमा कम्पनी के यहां दिनांक 24.2.2011 से 23.2.2012 तक की अवधि के लिए बीमित था और उक्त वाहन टैक्सी प्रयोजनार्थ पंजीकरण होने के कारण अप्रार्थी संख्या 1 नियमानुसार एक्साईज राषि का रिफण्ड अप्रार्थी संख्या 3 के माध्यम से अप्रार्थी संख्या के समक्ष प्रस्तुत किया गया । जिसे अप्रार्थी संख्या 2 ने अपने पत्र दिनंाक 30.6.2011 से इस आधार पर निरस्त कर दिया कि क्लेम के दस्तावेजात अप्रार्थी को 180 दिन बाद प्राप्त हुए हंै । क्लेम रद्द किए जाने के बाद उसने अधिवक्ता के माध्यम से दिनंाक 12.1.2012 को नोटिस भी दिया । किन्तु अप्रार्थीगण ने क्लेम राषि अदा नहीं कर सेवा में कमी कारित की है । प्रार्थी ने परिवाद प्रस्तुत कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन में स्वयं का ष्षपथपत्र पेष किया है ।
2. अप्रार्थी संख्या 2 व 3 के विरूद्व क्रमषः दिनंाक 8.10.2012 व
5.12.2013 के एक पक्षीय कार्यवाही अमल में लाई गई ।
3. अप्रार्थी संख्या 1 ने जवाब परिवाद में प्रारम्भिक आपत्तियों में दर्षाया है कि प्रार्थी ने प्रष्नगत वाहन व्यावसायिक प्रयोजनार्थ क्रय किया है और स्वयं प्रार्थी की स्वीकारोक्ति है कि वह उक्त वाहन को टैक्सी के रूप में काम में लेता है । एक्साईज रिफण्ड की राषि न मिलने का आरोप लगाते हुए यह परिवाद प्रस्तुत किया है । इस प्रकार का परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत पोषणीय नहीं है । एक्साईज एक्ट के अनुसार एक्ससाईज ड्यूटी रिफण्ड के क्लेम हेतु वाहन के फाईनेन्स से वाहन क्रय किए जाने की स्थिति में फाईनेन्स के माध्यम से क्रय किए जाने की दिनंाक से 90 दिनो के भीतर दस्तावेजात सहित प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया जाना आवष्यक है । किन्तु प्रार्थी ने क्लेम हेतु आवेदन 180 दिन के बाद किया है , इसलिए प्रार्थी का क्लेम विधि अनुसार निरस्त किया गया है । पैरावाईज जवाब में भी इन्हीं तथ्यों का समावेष करते हुए विभिन्न न्यायिक दृष्टान्तों का हवाला देते हुए परिवाद निरस्त किए जाने की प्रार्थना की है । जवाब के समर्थन में एम.के. विपिन, मैनेजर(लाॅ) का षपथपत्र पेष किया है ।
4. प्रार्थी पक्ष का तर्क रहा है कि उसके द्वारा क्रयषुदा वाहन का पंजीकरण करने के बाद एक्साईज राषि के रिफण्ड का क्लेम अप्रार्थी संख्या 3 अर्थात कम्पनी के डीलर के माध्यम से अप्रार्थी संख्या 2 अर्थात अजमेर स्थित डीलर के समक्ष प्रस्तुत किया गया था जो उनके द्वारा अप्रार्थी संख्या 1 निर्माता को दिया जाना था । अप्रार्थी संख्या 1 ने अपने पत्र दिनंाक 30.6.2011 के द्वारा जो क्लेम निरस्त करते हुए इस बाबत् क्लेम पत्र को 180 दिन बाद प्राप्त होने के आधार पर अस्वीकार किया है , वह गलत है । प्रार्थी को ऐसी लिखित षर्त द्वारा पूर्व में कहीं सूचित नहीं किया गया था जबकि प्रार्थी द्वारा उक्त क्लेम अप्रार्थी के समक्ष तुरन्त प्रस्तुत कर दिया गया था । फलतः अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य व आचरण उपभोक्ता के प्रति सेवाओं में कमी का परिचायक हे । वांछित अनुतोष दिलाया जाकर पवरिवाद स्वीकार किया जाना चाहिए ।
5. अप्रार्थी संख्या 1 की ओर से लिखित बहस के साथ साथ मौखिक बहस भी की गई है व तर्क प्रस्तुत किया गया है कि अप्रार्थी कम्पनी को किसी अन्य डीलर अप्रार्थी पक्षकार के किसी व्यक्तिगत व स्वतन्त्र कृत्य के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता । 2009;1द्धब्च्श्र 295;छब्द्ध डंतनजप न्कलवह स्जक टे छंहमदकमतं च्तंेींक ैपदही पर अवलम्ब लेते हुए खण्डन में यह भी प्रारम्भिक आपत्ति ली गई कि प्रार्थी अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता । नजीर त्मअपेपवद च्मजपजपवद छवण्1765ध्2007 डमतं प्दकनेजतपमे टे डवतकमद ब्वदेजतनमजपवद पर अवलम्ब लिया गया है । नजीर 1;2011द्धब्च्श्र 264;छब्द्ध जोगेन्द्र सिंह बनाम चोलामण्डलम उद्वरत करते हुए प्रार्थी को वाहन के वाणिज्यिक उद्देष्य से प्राप्त किए जाने पर उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आना बताया । ;1997द्ध 1 ैब्ब् 131 ब्ीममउं म्दहपदममतपदह ैमतअपबमे टे त्ंरंद ैपदही जिसमें यह सिद्वान्त प्रतिपादित किया गया है कि स्वःरोजगार के लिए वस्तु का उपयोग साक्ष्य का विषय है तथा इस तथ्य को सिद्व करने का भार प्रार्थी पर है । प्प्प्;2009द्धब्च्श्र 30;छब्द्ध ।ेेपेजंदज ब्वउउपेेपवदमत ;ब्मदजतंस म्गबपेमद्ध टे त्ंरमेी ठींजजप ंदक व्ते उद्वरत करते हुए तर्क प्रस्तुत किया है कि प्रार्थी ने उक्त वाहन टैक्सी उद्देष्य के लिए क्रय किया है एवं टैक्सी रिफण्ड की राषि नहीं मिलने का आरोप लगाते हुए परिवाद प्रस्तुत किया है । अतः मंच के समक्ष एक्साईज रिफण्ड बाबत् परिवाद कानूनन पोषणीय नहीं है । उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आने बाबत माननीय मध्यप्रदेष स्टेट कमिषन, भोपाल पीठ द्वारा प्रथम अपील संख्या 543/2009 मैसर्स लक्ष्मी मोटर्स एवं अन्य बनाम पुरूजीत खरे विनिष्चय पर अवलम्ब लिया गया है । यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि उक्त वाहन फाईनेन्स सुविधा प्राप्त कर क्रय किया है तथा फाईनेन्स के मामले में परिवाद फाईनेन्सर की अनुमति से भी पेष किया जा सकता है जबकि प्रार्थी ने अपने परिवाद में कहीं भी यह अभिकथित नहीं किया है कि उसने फाईनेन्सर की अनुमति से परिवाद प्रस्तुत किया जा रहा है । विनिष्चय प्प्प्;2006द्धब्च्श्र 247;छब्द्ध त्ंउकमेी स्ंींतं टे डंहउं स्मंेपदह पर अवलम्ब लिया गया है । उनका प्रमुख तर्क रहा है कि प्रार्थी ने अप्रार्थी संख्या 2 को एक्साईज रिफण्ड के लिए दस्तावेजात 90 दिन के भीतर देने चाहिए थे, जो नहीं देकर 190 दिन के बाद भिजवाए गए है । अतः एक्साईज रिफण्ड विधि अनुसार निष्पादित किया गया है ।
6. हमने परस्पर तर्क सुन लिए हंै एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों के साथ साथ प्रस्तुत विनिष्चयों में प्रतिपादित न्यायिक दृष्टान्तों का भी ध्यानपूर्वक अवलोकन कर लिया है ।
7. प्रार्थी के उपभोक्ता श्रेणी में नहीं आने बाबत् उठाई गई आपत्ति व प्रस्तुत नजीरों में प्रतिपादित सिद्वान्तों के अनुसार उक्त मामलो में प्रष्नगत वाहन का टैक्सी के रूप में परिचालान किया जा रहा था व इस संबंध में मागे गए क्लेम को ध्यान में रखते हुए ही उक्त नजीरों में वाहन का वाणिज्यिक प्रयोजनार्थ चलाने का तथ्य सामने आने पर प्रार्थी को उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना गया था । हस्तगत मामले में प्रार्थी ने स्वीकृत रूप से प्रष्नगत वाहन को टैक्सी प्रयोजनार्थ पंजीकृत कराया है किन्तु उसके द्वारा एक्साईज राषि के रिफण्ड बाबत् क्लेम को उठाया गया है व इस बाबत् जो उसकी ओर से उपरोक्त नजीर प्रस्तुत हुई है, में प्रतिपादित सिद्वान्त को ध्यान में रखते हुए हमारे समक्ष मामला हूबहू चस्पा होती है तथा उसके द्वारा उठाया गया विवाद बिन्दु इस मंच के विचारणीय है । जो अन्य विनिष्चय उपभोक्ता के संदर्भ में प्रस्तुत हुए हंै, वं इन्हीं विवेचनों के प्रकाष में तथ्यों की भिन्नता में अप्रार्थी के लिए सहायक नहीं है । मुख्य मुद्दा प्रार्थी का वाहन के पंजीकरण के बाद एक्साईज रिफण्ड का है जो उसके अनुसार उसके द्वारा प्रस्तुत किए जाने पर अप्रार्थी संख्या 3 के माध्यम से अप्रार्थी संख्या 2 के समक्ष प्रस्तुत किए हैं तथा अप्रार्थी संख्या 2 डीलर के द्वारा उक्त क्लेम निर्माता अर्थात अप्रार्थी संख्या 1 को प्रस्तुत करने से संबंधित है । हस्तगत मामले में प्रार्थी ने वाहन दिनांक 20.2.2011 को अप्रार्थी संख्या 3 से कराया गया है तथा दिनांक 28.2.2011 को इसका पंजीकरण करवाया है । उसके अनुसार पंजीकरण प्रमाण पत्र की प्रति प्राप्त कर एक्साईज रिफण्ड हेतु अप्रार्थी संख्या 3 के समक्ष प्रस्तुत किया गया है जो उसके माध्यम से अप्रार्थी संख्या 2 के समक्ष प्रस्तुत किया जाना अभिकथित है । प्रार्थी ने अपने सम्पूर्ण परिवाद अथवा प्रस्तुत किए गए अभिलेखों में तिथि का उल्लेख नहीं किया है जिस तिथि को उसने सर्वप्रथम पंजीकरण के बाद अप्रार्थी संख्या 3 के समक्ष उसे प्रस्तुत किया है । हम यदि उसके द्वारा सर्वप्रथम उक्त रिफण्ड हेतु प्रस्तुत क्लेम की तिथि का पंजीकरण प्रमाण पत्र की प्रति दिनंाक 28.2.2011 प्राप्त करना मानते हंै तो इस तिथि से 180 दिन की गणना की जानी अपेक्षित है । विवाद अप्राथी जिसके अनुसार उसके अप्रार्थी संख्या 1 निर्माता के पत्र दिनंाक 30.6.2011 से उत्पन्न हुआ है जिसके अनुसार अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा दी गई सूचना को 180 दिन के अन्दर अन्दर नहीं देना मानते हुए क्लेम को खारिज किया है । इसका कारण बताया गया है कि प्रष्नगत वाहन का सर्वप्रथम निर्माता अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा दिनंाक 22.12.2010 को बिल बनाया गया था तथा तत्पष्चात् यह वाहन अप्रार्थी संख्या 2 को दिनांक 30.11.2010 को बेचा गया । अप्रार्थी संख्या 2 के द्वारा वाहन की बिक्री दिनांक 22.10.2011 के जरिए प्रार्थी को की गई । प्रार्थी द्वारा यह वाहन दिनंाक 28.2.2011 को टैक्सी के रूप में रजिस्टर्ड किया गया । क्लेम दस्तावेजात उनके द्वारा अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा दिनांक 20.6.2011 को प्राप्त किए गए । इस पत्र के द्वारा दिनंाक 21.4.2011 को 180 दिन की अवधि समाप्त हो जाने की स्थिति में किसी प्रकार का रिफण्ड नहीं दिए जाने कारण बताया गया व समस्त दस्तावेजात पुनः अप्रार्थी संख्या 2 को भेज दिए गए है। इस प्रकार यदि उपरोक्त खारिज किए जाने पत्र का समग्र विवचेन कर निष्कर्ष निकाले तो निर्माता ने डीलर को प्रष्नगत वाहन दिनांक 22.10.2010 को बेचा और उक्त निर्माता ने वह वाहन अप्रार्थी संख्या 2 डीलर को दिनांक 30.11.2010 को पुनः बेचा और प्रार्थी को यह वाहन दिनांक 22.2.2011 को विक्रय किया गया । इस प्रकार दिनंाक 22.2.2011 से 180 दिनों की गणना अमल में लाई जाएगी न कि इसके पूर्व की तिथि से । यदि डीलर ने निर्माण से इस प्रष्नगत वाहन को प्रार्थी को बेचा जाने से पूर्व खरीद किया है तो इसमें प्रार्थी का कोई दोष नहीं है तथा उसके मामले में 180 दिवस की गणना दिनाक 30.11.2010 से नहीं मानी जाकर दिनंाक 22.2.2011 से मानी जाएगी । यदि 22.2.2011 से 180 दिवस की गणना की जाए तो यह तिथि दिनंाक 21.8.2011 तक होती है । फलतः निर्माता अप्रार्थी संख्या 1 ने जो 180 दिन की गणना की है, वह किसी भी प्रकार से उचित नहीं मानी जा सकती । ऐसा करते हुए उन्हांेने अनुचित व्यापार व्यवहार व सेवा में कमी का परिचय दिया है । मंच की राय में प्रार्थी का परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य है एवं आदेष है कि
:ः- आदेष:ः-
8. (1) प्रार्थी अप्रार्थीगण से संयुक्त रूप से व पृथक पृथक रूप से दिनांक 30.6.2011 के पत्र से मांगी गई एक्साईज की राषि प्राप्त करने का अधिकारी होगा ।
(2) प्रार्थी अप्रार्थी अप्रार्थीगण से संयुक्त रूप से व पृथक पृथक रूप से ं मानसिक क्षतिपूर्ति पेटे रू. 10,000/- व परिवाद व्यय के पेटे रू. 5000 /-भी प्राप्त करने के अधिकारी होगा ।
(3) क्रम संख्या 1 लगायत 2 में वर्णित राषि अप्रार्थीगण से संयुक्त रूप से व पृथक पृथक रूप प्रार्थी को इस आदेष से दो माह की अवधि में अदा करें अथवा आदेषित राषि डिमाण्ड ड््राफट से प्रार्थी के पते पर रजिस्टर्ड डाक से भिजवावें ।
आदेष दिनांक 02.12.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष