Chandra Prakash Pandey filed a consumer case on 31 Mar 2021 against Tata Moters finence ltd in the Unnao Consumer Court. The case no is cc/13/2014 and the judgment uploaded on 03 Apr 2021.
परिवाद दाखिल करने की तिथि 17-01-2014
बहस सुनने की तिथि 01-03-2021
निर्णय घोषित करने की तिथि 31-03-2021
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उन्नाव।
उपभोक्ता परिवाद संख्या 13 सन 2014
पीठासीन अधिकारी
1 श्री दामोदर सिंह अध्यक्ष
2 श्री बसन्त कुमार जैन सदस्य
3 सुश्री नैना अग्रवाल सदस्या
चन्द्र प्रकाष पाण्डेय आयु करीब 48 वर्ष पुत्र श्री षिव नरायन पाण्डेय निवासी ग्राम व पोस्ट रैथाना, परगना हड़हा तहसील व जिला उन्नाव (उ0प्र0) परिवादी
बनाम
1 टाटा मोटर्स फाइनेन्स लिमिटेड, रजिस्टर्ड कार्यालय, नानावती महालय, तीसरा माहला 18 होमी मोदी स्ट्रीट, मुम्बई 400001 जरिए प्रबन्ध निदेषक।
2 एम0जी0एस0 आटो फैब प्राइवेट लिमिटेड लखनऊ बाईपास चैराहा षिव नगर शहर व जिला उन्नाव जरिए प्रबन्धक। विपक्षीगण
निर्णय
प्रस्तुत उपभोक्ता परिवाद को परिवादी चन्द्र प्रकाष पाण्डे ने विपक्षी टाटा मोटर्स फाइनेंस लिमिटेड व एक अन्य के विरूद्ध प्रस्तुत करते हुए कथन किया है कि विपक्षीगण से वाहन संख्या-यू0पी0 35 एच0 5715 के बावत नो ड्यूज प्रमाण पत्र दिलाया जाय तथा जो अधिक धनराषि विपक्षी ने वसूल लिया है उसे वापस दिलायी जाय। इसके अतिरिक्त परिवादी को विभिन्न प्रकार की क्षतिपूर्ति भी विपक्षीगण से दिलायी जाय।
2 संक्षेप में परिवादी का कथन है कि परिवादी ने अपनी जीविकोपार्जन के लिए एक टाटा डी0आई0 207, वाहन रजिस्टेषन संख्या -यू0पी0 35 एच0 5715 को 3,85,000 रूपये का ऋण लिया था। ऋण लेने के पश्चात विपक्षी संख्या-2 से गाड़ी की चेचिस प्राप्त किया था। विपक्षीगण द्वारा ऋण की धनराषि का वितरण उनके अनुसार दिनांक 13-10-2009 को इस शर्त पर किया गया था कि, चॅूकि परिवादी ने एक टाटा मैजिक स्वयं के नाम आर्यावर्त ग्रामीण बैंक से फाइनेंस लेकर तथा संयुक्त हिन्दु परिवार के रूप में रहते हुए एक टाटा पिकप 207 अपने भाई के लिए विपक्षीगण से फाइनेंस लेकर क्रय की थी। प्रत्येक हालतो में समय से किष्त का भुगतान कर रहा था। उक्त ऋण की किष्त जनवरी, 2010 से प्रारम्भ होकर आगे तीन वर्षो में ऋण की अदायगी विपक्षी संख्या-1 द्वारा प्राप्त की जायेगी। परिवादी द्वारा गाड़ी को विपक्षी संख्या-2 के यहां से उठाने के बाद उसकी बाडी, कमानी व अन्य शो-केष आदि बनवाने में लगभग 80,000 रूपये खर्च हुआ। परिवादी ने अपने निजी कोष से 1,81,000 रूपये तथा ऋण से प्राप्त 3,85,000 रूपये खर्च करके वाहन को सही कराया। परिवादी ने विपक्षी द्वारा मौखिक रूप से बताने के अनुसार ऋण की किष्तें निम्नवत जमा किया।
क्रम सं0 रसीद संख्या धनराषि दिनांक
02516 11,000 28-09-2009
2 02523 55,000 29-09-2009
3 02537 35,000 12-10-2009
4 113369 15088 28-01-2010
5 145188 14,960 26-02-2010
6 145945 14,960 15-03-2010
7 171480 14,960 31-03-2010
8 171971 14,960 30-04-2010
9 010389 14,960 31-05-2010
10 056100 14,960 29-06-2010
11 078623 14,960 31-07-2010
12 152756 14,960 15-09-2010
13 197569 14,960 29-10-2010
14 232755 14,960 29-11-2010
15 042738 14,960 30-12-2010
16 056235 14,960 31-01-2011
विपक्षीगण द्वारा संविदा का उल्लंघन करके दिनांक 19-2-2011 को 08-10 लाठी डन्डो से लैस आपराधिक वृति के लोगों के साथ वाहन छीन लिया। परिवादी द्वारा पूॅछे जाने पर विपक्षी ने बताया कि उनके ऊपर 55,930 रूपये बकाया है जिसे परिवादी द्वारा जमा किया गया। परिवादी को दो रसीदें एक 47,930 रूपये की तथा दूसरी रसीद 8,000 रूपये की दी गयी। विपक्षीगण ने गलत तरीके से वाहन छीना है। वाहन छीनने के पश्चात वाहन में से कुछ सामान जो लगभग 48,000 रूपये के थे, को विपक्षी ने गायब कर दिया। विपक्षी ने किष्तो की वापसी के सम्बन्ध में कान्ट्रेक्ट डिटेल दिनांक 08-5-2012 को विपक्षी ने प्रदान किया जिसके अनुसार दिनांक 15-5-2012 को कुल बकाये की धनराषि 35,730 रूपये जमा कर दिया। परिवादी ने विपक्षी से बार बार नो ड्यूज प्रमाण पत्र मंागा परन्तु विपक्षीगण ने नो ड्यूज प्रमाण पत्र नही दिया। दिनांक 06-12-2012 को परिवादी को एक नोटिस प्राप्त हुई कि उसके ऊपर 17,110 रूपये बकाया है जिसे परिवादी ने 14-12-2012 को जमा कर दिया। इसके बावजूद भी विपक्षी ने नो ड्यूज प्रमाण पत्र नही दिया। विपक्षी ने गलत किष्ते बनायी थी जिसके कारण परिवादी का अधिक पैसा जमा हो गया है। विपक्षी द्वारा नो ड्यूज प्रमाण पत्र निर्गत न किए जाने के कारण तथा अधिक पैसा वसूल कर लिए जाने के कारण परिवादी बीमार हुआ और उसी के फलस्वरूप परिवाद दायर करने की आवष्यकता उत्पन्न हुई।
3 विपक्षी संख्या-1 ने अपने लिखित कथन अभिलेख संख्या- 43 में परिवादी के कथनो को इंकार किया गया और यह कहा गया कि इसी परिवादी ने एक अन्य वाहन आर्यावर्त ग्रामीण बैंक से ऋण प्राप्त कर खरीदा है। इस प्रकार परिवादी दो वाहनो का स्वामी है। वह किसी भी प्रकार से उपभोक्ता की श्रेणी में नही आता है। इसलिए इस परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार इस जिला उपभोक्ता फोरम को नही है। परिवादी ने 3,85,000 रूपये की धनराषि इस विपक्षी से ऋण के रूप में प्राप्त किया है। नियमानुसार जब तक फाइनेंस कम्पनी का पैसा वापस प्राप्त नही हो जाता है तब तक वाहन का स्वामी फाइनेंसर ही होता है। ऐसे फाइनेंस किए गए वाहन का पुनः कब्जा फाइनेंसर नियमानुसार प्राप्त कर सकता है। परिवादी ने दिनांक 19-02-2011 को मात्र 47,930 रूपये रसीद संख्या- एसी0 096322 से जमा किया है। फाइनेंसर नियमानुसार धनराषि वसूल करने का अधिकारी है। इस विपक्षी ने अपने लिखित कथन में परिवादी द्वारा कथित जबरन वाहन छीनने के तथ्य से भी इंकार किया गया है। किसी भी प्रकार से कथित वाहन छीनने के बाद के तथ्य से भी इंकार किया गया है। विपक्षी के एकाउन्ट बुक के अनुसार दिनांक 14-02-2014 तक रूपये 32,313/- परिवादी पर अब भी बकाया है। अतः उपभोक्ता परिवाद संधारण योग्य न होने के कारण निरस्त किए जाने योग्य है।
4 विपक्षी संख्या-2 मे0 एम0जी0एस0 आटो फैब प्रा0 लि0 ने अपने लिखित कथन अभिलेख संख्या- 45 में परिवादी के कथनो को पूर्णरूप से इंकार किया है और यह कहा है कि यह विपक्षी मे0 टाटा मोटर्स लि0 के छोटे एवं बड़े व्यापारिक वाहनो का अधिकृत डीलर मात्र है। वह किसी भी प्रकार से फाइनेंस का काम नही करते है। इस विपक्षी संख्या-2 द्वारा फाइनेंस किए गए वाहनो का पुनः कब्जा प्राप्ति का कार्य भी नही करते है। उन्नाव में मात्र डेमो कार्यालय है। परिवादी के वाहन का अस्थायी पंजीयन यू0पी0 35 एच0 5715 एक व्यापारिक वाहन है। कन्टैªक्ट डिटेल्स में भी व्यापारिक वाहन भी पंजीकृत है। परिवादी ने मे0 टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 लखनऊ से 3,85,000 रूपये का व्यापारिक लोन प्राप्त किया है। परिवादी अपने वाहन को जरिए चालक संचालित करता है तथा उसे लाभ कमाता है। इसलिए व्यवसायिक वाहन होने के कारण परिवाद पोषणीय नही है। इसी के साथ साथ जो शर्ते परिवादी एवं इस विपक्षी के बीच संविदा में तय है उसके अनुसार सभी विवादो की सुनवाई का क्षेत्राधिकार माध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा-8 के अनुसार किया जायेगा। इस आधार पर भी इस जिला उपभोक्ता फोरम को सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नही है। परिवादी ने स्वयं ही विपक्षी संख्या-2 से सम्पर्क कर वाहन खरीदने की इच्छा जताई तब इस विपक्षी ने उसे सम्पूर्ण विवरण बताया। परिवादी ने दिनांक 29-09-2009 को जो प्रष्नगत वाहन इस विपक्षी से खरीदा है उसका मूल्य 4,27,260 रूपये है। परिवादी का लोन कम हाइपोथिकेषन कम गारन्टी अनुबन्ध के तहत है जिसका फाइनेंस अनुबन्ध संख्या- 5000454796 है। फाइनेंस की शर्तो के अनुसार 03 वर्ष के अन्दर 35 किष्तो में सभी मासिक किष्तें परिवादी द्वारा फाइनेंसर को अदा करनी है। प्रत्येक माह की किष्त 02 तारीख को देय है। इस लोन की पूर्णता दिनांक 02-09-2012 को होगी। प्रथम किष्त 02-11-2009 से प्रारम्भ होगी उसके पष्चात 34 किष्तों की मासिक देयता 14,960 रूपये है। परिवादी ने 69,500 रूपये की धनराषि मार्जिन मनी के रूप में 03 अलग अलग तिथियो में जमा किया है। परिवादी स्वयं ही जानबूझकर अनुबन्ध की शर्तो का उल्लंघन करता रहा है। उसने किष्ते नियमानुसार जमा नही किया है। समय से किष्त जमा न होने के कारण लेट चार्जेज, डिले चार्जेज, अनादृत चार्जेज व अन्य चार्जेज भी वसूल करने का विपक्षी अधिकारी है। परिवादी के ऊपर दिनांक 19-2-2011 को रूपये 47,923 एवं डिले चार्जेज आदि का बकाया है जिसके अन्तर्गत परिवादी ने रसीद संख्या-ई0पी0/ए0सी0 96322, दिनांकित 19-02-2011 को रूपये 47,820/- अदा किया। परिवादी द्वारा कथित दिनांक 19-2-2011 को इस विपक्षी ने कोई वाहन नही खींचा है। यह विपक्षी किसी वाहन का पुनः कब्जा लेने का कार्य भी नही करता है। परिवादी ने लोन की प्रथम किष्त, द्वितीय किष्त तथा तृतीय किष्त समय से जमा नही किया। इसलिए शुरूवात में ही उनके ऊपर 45,008 रूपये बकाया हो गया था। परिवादी किष्त की धनराषि देने में जानबूझकर देरी कर रहे है। परिवादी को लिखित रूप से कान्ट्रैक्ट डिटेल्स तत्काल ही प्रदान किया गया था। परिवादी ने अपने परिवाद में उक्त तथ्य को गलत तरीके से वर्णित किया है। परिवादी को दिनांक 06-12-2012 को सुलह के लिए लखनऊ बुलाया गया था। उसके सन्दर्भ में परिवादी लखनऊ गया अथवा नही गया इसके सम्बन्ध में इस विपक्षी को कोई जानकारी नही है। नो ड्यूज प्रमाण पत्र जारी करने का कार्य इस विपक्षी का नही है बल्कि वह फाइनेंसर विपक्षी संख्या-1 का है। अतः विषेष
हर्जाना के साथ परिवाद निरस्त किए जाने योग्य है।
5 सुना तथा साक्ष्य का अवलोकन किया।
6 पक्षो ने अपने अपने कथन के समर्थन में अभिलेखीय साक्ष्य भी प्रस्तुत किए है। परिवादी ने अभिलेख संख्या-6 के रूप में कान्ट्रैक्ट डिटेल्स का विवरण प्रस्तुत किया है जिसमें दिनांक 08-5-2012 की स्थिति बतायी गयी है। इसमें इनवायस की तारीख 29-9-2009 अंकित है। प्रथम किष्त दिनांक 02-11-2009 से प्रारम्भ होगी तथा अन्तिम किष्त 02-09-2012 को पूर्ण होगी। कुल 35 किष्तें 03 वर्ष की अवधि हेतु अंकित की गयी है। इसी अवधि के अन्तर्गत सम्पूर्ण अदायगी परिवादी को करनी है। अभिलेख संख्या- 7, 8 एवं 9/1 लगायत 9/4 रीपेमेंट से सम्बन्धित अभिलेख है। अभिलेख संख्या-10 परिवादी द्वारा दिनांक 28-09-2009 को 11,000 रूपये जमा किया गया। अभिलेख संख्या-11 द्वारा परिवादी ने 55,000 रूपये दिनांक 29-9-2009 को जमा किया तथा अभिलेख संख्या- 12 के माध्यम से 3500 रूपये दिनांक 12-10-2009 को जमा किया। इसके अतिरिक्त अभिलेख संख्या-13 लगायत 32 विभिन्न तिथियों पर परिवादी द्वारा जमा किए गए धनराषि का विवरण है। अभिलेख संख्या- 33 श्री श्याम कुमार राय एडवोकेट द्वारा परिवादी को भेजा गया नोटिस दिनांकित 06-12-2012 की छाया प्रतिलिपि है जिसमें सुलह हेतु परिवादी को लखनऊ बुलाया गया है। अभिलेख संख्या- 35 लगायत 37 परिवादी के मेडिकल से सम्बन्धित अभिलेख है। इसके अतिरिक्त परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में शपथ पत्र भी प्रस्तुत किया है। विपक्षीगण ने भी अपने अपने कथन के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किए है।
7 विपक्षी संख्या-2 के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी ने प्रष्नगत वाहन को अपनी जीविका चलाने के लिए यह वाहन नही खरीदा है बल्कि ड्राइवर के माध्यम से चलवाकर लाभ पैदा करता है, इस आधार पर कोई उपभोक्ता विवाद नही है। इस सम्बन्ध में कोई भी साक्ष्य पत्रावली पर उपलब्ध नही है जिससे यह स्पष्ट हो सके कि परिवादी ने ड्राइवर रखकर लाभ कमाने के उद्देष्य से वाहन खरीदा है। परिवादी के पास एक अन्य छोटा वाहन पहले से उपलब्ध है। अतः उससे कोई लाभ कमाने का उद्देष्य स्पष्ट नही हो रहा है।
8 जहां तक परिवादी के वाहन का पंजीयन व्यवसायिक वाहन के रूप में पंजीकृत है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-2 (डी) के अन्तर्गत यदि कोई व्यक्ति अपनी जीविका चलाने के लिए कोई व्यवसाय करता है तब ऐसा व्यवसाय उपभोक्ता की श्रेणी में ही आता है। परिवादी का वाहन अत्यन्त छोटा है। मात्र व्यवसायिक रूप में पंजीकरण से यह परिवाद उपभोक्ता की परिधि से बाहर नही होगा।
9 विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने एक तर्क यह भी प्रस्तुत किया कि इस प्रकरण में जब संविदा पक्षो के बीच हुई थी उसी में लिखा हुआ था कि किसी प्रकार के विवाद होने पर माध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम के प्रावधान के अनुसार ही विवाद का निस्तारण होगा। अभी तक आर्बीट्रेषन एवार्ड पारित नही हुआ है। मात्र संविदा में इस तथ्य को लिख देने से उपभोक्ता फोरम/आयोग का क्षेत्राधिकार बाधित नही होगा।
10 परिवादी ने अपने परिवाद में यह कथन किया है कि दिनांक 19-02-2011 को विपक्षीगण के 08-10 आपराधिक प्रवृति के लोग आये और परिवादी से उसका वाहन जबरन छीन लिया। परिवादी को यह तथ्य साबित करना होगा कि वास्तव में विपक्षीगण के आपराधिक प्रवृति के लोग आये थे। विपक्षी संख्या-2 ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह वाहन को पुनः अपने कब्जे में नही लेता है। विपक्षी संख्या-1 ने अपने लिखित कथन में इस तथ्य से इंकार किया है। परिवादी ने ऐसा कोई सारवान साक्ष्य नही पेष किया है जिससे स्पष्ट हो सके कि विपक्षीगण ने जबरन उसका वाहन छीन लिया है। इस सम्बन्ध में कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट, कोई षिकायती प्रार्थना पत्र अथवा जिलाधिकारी या ए0आर0टी0ओ0 कार्यालय को दिया गया किसी प्रार्थना पत्र की नकल भी प्रस्तुत नही है। अतः मात्र काल्पनिक आधार पर यह नही माना जायेगा कि विपक्षीगण ने जबरन बल प्रयोग करते हुए वाहन को खींचा है। परिवादी ने अपने परिवाद में यह भी वर्णित किया है कि विपक्षीगण ने वाहन छीनने के पश्चात उसमें से 48,000 रूपये के सामान को निकाल लिया है परन्तु इस सम्बन्ध में भी ऐसा कोई सुसंगत अभिलेख नही है जिससे परिवादी के कथनो पर विष्वास किया जाय।
11 यह सिद्धान्त सुप्रतिष्ठित है कि जब तक फाइनेंसर का सम्पूर्ण पैसा उसे वापस न मिल जाय तब तक उक्त वाहन का वास्तविक स्वामी फाइनेंसर ही रहेगा। फाइनेंसर को ऐसे वाहन को जिसका कि भुगतान सही ढंग से न किया जा रहा हो को पुनः कब्जा प्राप्ति का अधिकार नियमानुसार उपलब्ध है परन्तु यह जबरदस्ती अथवा बल पूर्वक नही होना चाहिए।
12 इसी सम्बन्ध में निर्णीत वाद सीटी कार्प मारूती फाइनेंस लिमिटेड बनाम विजय लक्ष्मी, रिवीजन पिटीषन संख्या-737 सन 2005 में निर्णीत दिनांक 27 जुलाई, 2007 का अवलोकन किया गया। इस निर्णीत वाद में माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया कि किसी सभ्य समाज में जबरदस्ती या बल पूर्वक वाहन को छीनना उचित नही है।
13 अभी हाल ही में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा मे0 मैग्मा फाइनेंस फिन कार्प बनाम राजेष कुमार तिवारी, सिविल अपील नम्बर- 5622/2019 में निर्णय दिनांक 01 अक्टूबर, 2020 को यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया कि यदि ऋणी द्वारा ऋण की किष्ते अदा करने में चूक करता है और फाइनेंसर वाहन को पुनः अपने कब्जे में ले लेता है तब फाइनेंसर द्वारा सेवा में कोई कमी नही की जाती है। इस निर्णीत वाद में यह भी सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया कि जहां फाइनेंसर द्वारा ऋण उपलब्ध कराया जाता है तथा उस ऋण के अधीन कोई व्यक्ति वाहन खरीदता है तब वहां वाहन का स्वामित्व फाइनेंसर के पास ही बना रहेगा। इस निर्णीत वाद में मे0 मैग्मा फाइनेंस फिन कार्प में तथ्य इस प्रकार से है कि मे0 मैग्मा फिन कार्प फाइनेंस से राजेष कुमार तिवारी ने एक ऋण संविदा दिनांक 02 अगस्त, 2002 के अन्तर्गत फाइनेंस कराकर महेन्द्रा मार्सल वाहन रजिस्ट्रेषन संख्या-यू0पी0 35 टी 3363 को क्रय करने के लिए ऋण लिया था। वाहन का कुल मूल्य 4,21,121 रूपये था उनमें से 1,06,121 रूपये को राजेष कुमार तिवारी ने सीधे वाहन के डीलर को दिया तथा शेष धनराषि 3,15,000 रूपये का ऋण फाइनेंसर से कराया। मे0 मैग्मा फिन कार्प फाइनेंस कम्पनी को 35 किष्तो में ऋण की धनराषि राजेष कुमार तिवारी द्वारा अदा की जानी थी। परिवादी राजेष कुमार तिवारी ने ऋण की किष्तो को समय से अदा नही किया। इसलिए फाइनेंसर द्वारा प्रष्नगत वाहन को दिनांक 14 जुलाई, 2003 को पुनः अपने कब्जे में ले लिया। इसके विरूद्ध राजेष कुमार तिवारी ने जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में परिवाद दायर किया तथा माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा राजेष कुमार तिवारी के पक्ष में ही निर्णय हुआ। माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के निर्णय के विरूद्ध फाइनेंसर मे0 मैग्मा फिन कार्प ने माननीय उच्चतम न्यायालय में अपील प्रस्तुत किया। उस अपील में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया कि यदि ऋणी समय से किष्तो का भुगतान नही करता है तब फाइनेंसर को पूरा अधिकार होगा कि वह वाहन को पुनः अपने कब्जे में ले ले। यदि ऋणदाता फाइनेंसर वाहन को अपने कब्जे में लेता है तब उसे सेवा में कोई कमी नही मानी जायेगी।
14 एक अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि परिवादी प्रथम किष्त किस तिथि से प्रारम्भ हो रही है। परिवादी ने अपने परिवाद में यह अंकित किया है कि उसकी
प्रथम किष्त जनवरी, 2010 से प्रारम्भ हुई थी। जबकि परिवादी ने लोन वर्ष 2009 में ही ले लिया था उसमें प्रथम किष्त की अदायगी की तिथि 02-11-2009 अंकित थी। परिवादी इस बात से पूर्णतया भिज्ञ था कि लोन लेने के अगले माह से ही किष्त प्रारम्भ हो जायेगी। लोन के अभिलेख निष्पादित करते समय ही उसमें लोन की अदायगी से सम्बन्धित नियत व शर्ते लिखी रहती है। अतः परिवादी अभिलेखीय साक्ष्य में वर्णित नियत एवं शर्तो को इंकार नही कर सकता। वह पूर्व में भी लोन लेकर वाहन खरीदा है। अतः परिवादी का यह कहना पूर्णतया गलत हो जाता है कि लोन की प्रथम किष्त जनवरी 2010 से प्रारम्भ हो जाती है।
15 परिवादी ने अपने परिवाद के पैरा 5 में विभिन्न तिथियो पर जमा किए गए धनराषि का विवरण, उनकी तिथियां तथा रसीद नम्बर का उल्लेख किया है जिनमें से क्रम संख्या-1 पर 11,000 रूपये की धनराषि दिनांक 28-9-2009 को, 55,000 रूपये की धनराषि दिनांक 29-9-2009 को तथा 35,000 रूपये की धनराषि 12-10-2009 को जमा करना कहा है। परिवादी के ही अभिलेख संख्या- 12 के अवलोकन से स्पष्ट हो रहा है कि दिनांक 12-10-2009 को रसीद संख्या- 2537 से मात्र 3,500 रूपये जमा किया गया है। इसी 3,500 रूपये को परिवादी ने 35,000 रूपये अपने परिवाद में अंकित किया है। इस प्रकार 31,500 रूपये का अन्तर प्रारम्भ में ही हो जाता है। यह तीनो वर्णित धनराषि वास्तव में ऋण की किष्त की नही है बल्कि मार्जिन मनी के रूप में परिवादी द्वारा जमा किया गया रूपया 69,500 है। अभिलेखीय साक्ष्यो से स्पष्ट है कि परिवादी ने पहली किष्त 28-01-2010 को जमा किया है जिसके अन्तर्गत 15,088 रूपये जमा किया है। उसके बाद 14,960 रूपये दूसरे, तीसरे, चैथे व पांचवे माह के वर्ष 2010 में जमा किया है। इस प्रकार परिवादी ने प्रारम्भ की 03 किष्ते दिनांक 02-11-2009 की दिनांक 02-12-2009 की तथा 03-01-2010 की समय से जमा नही किया है। इसके लिए वह स्वयं दोषी है इस पर लेट चार्जेज, डिले पेमेंट आदि की अदायगी की जिम्मेदारी परिवादी पर लागू हो जायेगा।
16 एक अन्य बिन्दु जिसे परिवादी ने उठाया है कि इस प्रकरण में विपक्षी की ओर से अधिकृत अधिवक्ता श्री श्याम कुमार राय ने एक नोटिस परिवादी को दिया था कि वे सुलह हेतु लखनऊ में उपस्थित हो। नोटिस में 17,110 रूपये का बकाया दिनांक 06-12-2012 अंकित है। परिवादी ने वह धनराषि दिनांक 14-12-2012 को जमा कर दिया। अब उसके ऊपर कोई अवषेष नही है। विपक्षी संख्या-1 फाइनेंसर ने परिवाद के पैरा- 10 में वर्णित कथित नोटिस के तथ्य को अपने लिखित कथन में इंकार कर दिया है। अतः ऐसी अवस्था में गुण दोष पर देखा जाना है कि क्या वास्तव में परिवादी ने नियमित तौर पर किष्तो का भुगतान करते हुए सम्पूर्ण अदायगी कर दिया है एवं नो ड्यूज पाने का अधिकारी हो गया?
17 इस प्रकरण में परिवाद में यह कथन किया गया है कि इस परिवादी से वास्तविक धनराषि से अधिक विपक्षी ने 1,81,100 रूपये की धनराषि वसूल कर लिया है। वह उस धनराषि को विपक्षी से मय ब्याज पाने का अधिकारी है। इसके प्रतिकूल में विपक्षी संख्या-2 द्वारा अपने लिखित कथन में यह कहा गया है कि प्रष्नगत वाहन के ऊपर फाइनेंसर का मासिक किष्तो का रूपये 750/-एवं ओवर ड्यू चार्जेज 32,452 रूपये 83 पैसे अब भी बकाया है। विपक्षी संख्या-1 ने अपने लिखित कथन के पैरा- 16 में कथन इस प्रकार किया कि एकाउन्ट बुक के अनुसार दिनांक 14-2-2014 तक इस परिवादी के ऊपर 32,313 रूपये बकाया है।
18 अतः यह निर्धारित किया जाना है कि क्या परिवादी से वास्तविक धनराषि से अधिक की वसूली विपक्षीगण ने कर लिया है अथवा अब भी परिवादी के ऊपर बकाया बना हआ है ? अतः इस प्रकरण में वित्तीय लेनदेन की गणना (एकाउन्टिंग) का प्रष्न स्पष्ट रूप से अन्तर्निहित हो जाता है। यह देखा जाना है कि क्या उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग को ऐसे वित्तीय लेनदेन की गणना (एकाउन्टिग) से सम्बन्धित परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त है अथवा नही। इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध निर्णीत वाद आर0 सेथुरमन बनाम मैनेजर इण्डियन ओवरसीज बैंक, ।। (1996) सी0पी0जे0 58 में माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया कि एकाउन्ट्स से सम्बन्धित मामलो की सुनवाई उपभोक्ता फोरम द्वारा सम्भव नही है। परिवादी ने सम्पूर्ण ऋण का भुगतान कर दिया या नही अथवा उससे अधिक धनराषि ले ली गयी है। इस तथ्य का निर्धारण दीवानी न्यायालय द्वारा ही किया जा सकता है। इस निर्णीत वाद में तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी आर0सेथु रमन दवाइयो का विनिर्माता था। उसने विपक्षीगण से कई ऋण सुविधाये प्राप्त की थी। इस हेतु उसने अपनी सम्पत्ति से सम्बन्धित दस्तावेज बैंक में जमा कर दिया। परिवादी की दवा बनाने वाली कम्पनी सिक हो गयी अर्थात वह ठीक से काम नही कर रही थी। विपक्षीगण ने सिक यूनिट को पुनः स्थापित कराने के लिए विपक्षीगण से सम्पर्क किया और विपक्षीगण ने इस सम्बन्ध में आष्वासन दिया था परन्तु कोई धनराषि नही दिया था। विपक्षी संख्या-1 बैंक की अनुमति से परिवादी ने जमीन 9,00,000 रूपये में विक्रय करके ऋण का भुगतान किया। परिवादी की मूल षिकायत यह थी कि विपक्षी संख्या-1 ने 37,500 रूपये की धनराषि ब्याज के रूप में अधिक ले लिया है, उसे वापस दिलाया जाय। इसी सन्दर्भ का प्रस्तुत किए गए परिवाद के अन्तर्गत माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया कि यह एकाउन्ट से सम्बन्धित विवाद है। परिवादी को कितना धनराषि विपक्षी से वापस होना है तथा विपक्षी संख्या-1 ने कितना अधिक लिया है इसका निर्धारण सिविल कोर्ट द्वारा ही किया जा सकता है। अपील में माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के आदेष की सम्पुष्टि करते हुए निगरानी निरस्त कर दिया गया। माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा निम्न आदेष पारित है कि
The forum constituted under the consumer protection Act is not the proper Forum for taking accounts and deciding the amount due to any of the parties that is to be done only by the regular civil court of competent jurisdiction
19 एक अन्य निर्णीत वाद विषाल रोडवेज बनाम इकोनामिक ट्रेडर्स (गुजरात) लिमिटेड, ।।। (1998) सी0पी0जे0 9 में तथ्य इस प्रकार है कि मूल परिवाद के परिवादी मे0 इकोनामिक ट्रेडर्स (गुजरात) लि0 आयल इंजन एवं उसके पार्ट्स बनाकर पूरे देष में उनकी बिक्री करता था। विपक्षी विषाल रोडवेज द्वारा उक्त इकोनामिक ट्रेडर्स के माल लेकर देष के विभिन्न स्थानो में पहुॅचाया जाता था। विषाल रोडवेज द्वारा उसके बदले में भुगतान लिया जाता था। परिवादी का यह कथन है कि उसने 20,900 रूपये धनराषि का अधिक भुगतान कर दिया है जिसे वह विपक्षी विषाल रोडवेज से वापस पाने का अधिकारी है। विपक्षी का कथन था कि अनुबन्ध की शर्तो के अनुसार धन वापस किए जाने का कोई औचित्य नही है। राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा परिवाद में उल्लिखित विपक्षी विषाल रोडवेज को आदेषित किया गया कि 20,900 रूपये की धनराषि मय ब्याज परिवादी को वापस करे। उक्त निर्णय के विरूद्ध विषाल रोडवेज ने प्रथम अपील माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में प्रस्तुत किया। माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया कि इस प्रकरण में मुख्य रूप से सेटलमेंट का प्रष्न अन्तर्निहित है। अतः ऐसा प्रकरण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की परिधि के अन्तर्गत नही आता है। उपभोक्ता फोरम ऐसे मामलो की सुनवाई नही कर सकता है और उपभोक्ता फोरम के क्षेत्राधिकार के बाहर है। माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा निम्न मत व्यक्त किया गया है किः-
The allegations made in the complaint did not spell out a case of hiring of service and suffering from deficiency. Rather it disclosed a case relating to settlement of accounts. The complaint did not fall within the ambit of s.2 (1) (c) and (e) of the consumer Protection Act 1986. Civil Suit was the proper remedy to recover the amount paid in excess. The District Forum and the state commission had no jurisdiction to entertain the complaint which was beyond the scope of the consumer Protection Act.
20 ऊपर वर्णित दोनों निर्णीत वादो के अवलोकन से यह स्पष्ट हो रहा है कि प्रस्तुत प्रकरण में पूर्ण रूप से एक महत्वपूर्ण बिन्दु वित्तीय लेनदेन की गणना (एकाउन्टिंग्स) से सम्बन्धित विवाद है। अतः ऊपर वर्णित इस सम्बन्ध में दोनो निर्णीत वाद वर्तमान उपभोक्ता परिवाद के प्रकरण में ससम्मान लागू होता है। इस जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम द्वारा वित्तीय लेनदेन की गणना (एकाउन्टिंग) नही की जा सकती है कि किस पक्षकार का कितना अधिक ले लिया गया अथवा किस पक्षकार का अभी कितना बकाया है। इसलिए वित्तीय गणना की सुनवाई का क्षेत्राधिकार इस जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग को नही है।
21 जहां तक अनापत्ति प्रमाण पत्र के निर्गत कराये जाने का प्रष्न है परिवादी का कथन है कि उसका 1,81,100 रूपये विपक्षी संख्या-1 के पास अधिक जमा हो गया है। इसके विपरीत विपक्षी संख्या-1 टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 का कथन है कि परिवादी ने सम्पूर्ण धनराषि जो ऋण के रूप में लिया था वह जमा नही किया है। अभी भी परिवादी पर 32,313/-रूपये दिनांक 14-02-2014 को बकाया है। अतः जब तक विपक्षी संख्या-1 का सम्पूर्ण पैसा सही ढंग से न मिल जाय अथवा जब तक अधिक धनराषि परिवादी को वापस न हो जाय तब तक अनापत्ति प्रमाण पत्र निर्गत कराये जाने का कोई भी आदेष पारित नही किया जा सकता है।
22 अतः ऐसी अवस्था में यही उचित है कि पहले परिवादी अपने द्वारा लिए गए ऋण के लेनदेन की गणना (एकाउन्टिंग) को विपक्षी के समक्ष सही कराये। उसके पश्चात ही अनापत्ति प्रमाण पत्र निर्गत किये जाने हेतु आदेष हो सकेगा। तदनुसार परिवाद अंषतः स्वीकार किए जाने योग्य है। इस सम्बन्ध में परिवादी किसी भी प्रकार से अन्य क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी नही है।
आदेश
अतः उपभोक्ता परिवाद संख्या- 13 सन 2014 चन्द्र प्रकाष पाण्डे बनाम टाटा मोटर्स फाइनेंस लिमिटेड एवं एक अन्य एतद्द्वारा आंषिक रूप से स्वीकार किया जाता है। परिवादी आज की तिथि से 30 दिन के अन्दर अपने फाइनेंसर विपक्षी संख्या-1 टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 के समक्ष वित्तीय लेनदेन (एकाउन्टिंग) की गणना सुनिष्चित करायें। तत्पष्चात उसके 30 दिन के अन्दर विपक्षी संख्या-1 द्वारा वित्तीय लेनदेन की गणना समुचित रूप से सुनिष्चित होने के पश्चात विपक्षी संख्या-1 द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र परिवादी के वाहन संख्या-यू0पी0 35 एच0 5715 का निर्गत किया जाय। पक्षकार परिवाद व्यय स्वयं वहन करेगें।
(नैना अग्रवाल) (बसंत कुमार जैन) (दामोदर सिंह)
सदस्या सदस्य अध्यक्ष,
दिनांक 31-03-2021 जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग,
उन्नाव।
आज हमारे द्वारा उपरोक्त निर्णय खुले आयोग में हस्ताक्षरित एवं दिनांकित करके सुनाया गया।
(नैना अग्रवाल) (बसंत कुमार जैन) (दामोदर सिंह)
सदस्या सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग,
उन्नाव।
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