Madhya Pradesh

Gwalior

CC/57/2015

DILIP SHIVHARE - Complainant(s)

Versus

TATA MOTERS FINANCE LTD. - Opp.Party(s)

DIPENDRA PANDEY

06 Feb 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER FORUM GWALIOR
FINAL ORDER
 
Complaint Case No. CC/57/2015
 
1. DILIP SHIVHARE
SHUBASH NAGAR, CHAR SHAHAR KA NAKA, HAJEERA
GWALIOR
Madhya Pradesh
...........Complainant(s)
Versus
1. TATA MOTERS FINANCE LTD.
45-A, ALAKNANDA TOWER, CITY CENTER
GWALIOR
Madhya Pradesh
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
  Smt.Abha Mishra PRESIDING MEMBER
  Dr.Mridula Singh MEMBER
 
For the Complainant:DIPENDRA PANDEY, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

   परिवादी की ओर से अधिवक्ता श्री  दीपेन्द्र पाण्डे उपस्थित।
                  परिवाद की ग्राह्यता के संबंध में परिवादी के तर्क सुने।
                  प्रकरण का अवलोकन किया गया।
                  परिवादी के अभिवचानुसार वह अपने परिवार का मुखिया होने के कारण जीविका व भरण पोषण हेतु ट्र्कों का संचालन करता है। उसके द्वारा अनावेदक जो कि एक वित्तीय संस्थान है, से दो ट्र्क कय कर वित्तीय सहायता पृथक पृथक अनुबंध क्रमांक 5000842285 दिनांक 6.2.2011 ट्र्क क्रमांक एम0पी0-07- एच0बी 2519 के लिए  एवं 50001114547 दिनांक 17.12.2012 ट्र्क क्रमांक एम0पी0-07-एच0बी0-3624 के लिए निष्पादित कर प्राप्त की थी। परिवादी द्वारा नियमित किश्तों का भुगतान किया जा रहा था किन्तु राष्ट्र्ीय राजमार्ग के क्षतिग्रस्त हो जाने तथा राज मार्ग पर बारिश के कारण जाम लग जाने से वाहनों का संचालन नहीं हो सका एवं व्यवसायिक स्थितयां ट्रृांसपोर्ट व्यवसाय के प्रतिपूर्ण हो गयी थी जिस कारण परिवादी नियमित किश्तों का भुगतान नहंी कर सका। अनावेदक द्वारा परिवादी के वाहनेां को जबरन असामाजिक तथ्वों की सहायता से छीन लिया गया एवं 20,000रू व 36 प्रतिशत ब्याज लगाकर वाहनों को 8-10 दिन बाद छोडा गया जिस कारण भी परिवादी की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी परिवादी ने अनावेदक से निवेदन भी किया कि उसे वाहनों का संचालन सुचारू रूपसे करने दिया जावे किन्तु अनावेदक द्वारा घण्टों  वाहनेां को रोके रखने से परिवादी को भारी क्षति उठानी पडी। अनावेदक द्वारा नियमित किश्तों की अदा गी गयी राशि में से कनेक्शन एजेंसी चार्जेज की जमा राशि में से निकाल ली गयी तथा अलग अलग मद में समायोजित कर ली गयी तथा किश्त राशि कम कर उस पर 36 प्रतिशत ब्याज लगाया गया जिस पर से परिवादी ने आपत्ति भी की किन्तु परिवादी को मांग के बावजूद अनुबंध की प्रमाणित प्रतिलिपि नहीं दी गयी। अनावेदक द्वारा परिवादी से अवैध वसूली के तौर पर 3,75,000रू के लगभग मांग की जा रही है तथा उसके वाहनेां को जबरन छिनाने का प्रयास किया जाता है जब कि परिवादी संपूर्ण ऋण भुगतान करने को तत्पर है। अनावेदक का उक्त कृत्य अनुचित व्यापार व्यवहार एवं सेवा में कमी की परिधि में आता है। इसलिए परिवादी ने अनावेदक से अनुबंधों की प्रमाणित प्रति दिलाए जाने ऋण खातों में से अवैधानिक राशि निकालकर अन्य मदों में समायोजित लगभग राशि 80576रू वापस ऋण खाते में जमा कराई जाने तथा  अन्य क्षति राशि की प्राप्ति हेतु प्रस्तुत किया है। 
              प्रकरण की ग्राह्यता पर विचार किया गया।
              परिवादी स्वयं के अभिवचनानुसार ही वह ट्र्ांसपोर्टर है तथा उसके द्वारा वाहनों का संचालन किया जाता है तथा उसके द्वारा अनावेदक से दो ट्र्क क्रय कर वित्तीय सहायता प्राप्त की गयी है। परिवादी का यद्यपि यह अभिवचन है कि वह परिवार का मुखिया होने के कारण उक्त वाहनों का संचालन कर जीविका व भरण पोषण करता है किन्तु परिवादी का कहीं ऐसा कोई स्पष्ट अभिवचन नहीं है कि उसके द्वारा पूर्णतः स्वरोजगार के आशय से एक मात्र जीविकोपार्जन के लिए वाहन का संचालन किया जाता है जो अत्यधिक लाभ अर्जन के उद्येश्य से नहीं है। परिवादी द्वारा दो ट्र्कों का संचालन किया जाना स्वीकार किया जाना स्वीकार किया गया है जो मात्र जीविकोपार्जन के लिए कतई माने जाने योग्य नहीं है। इस प्रकार परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (1) (डी) (2) के तहत उपभोक्ता की परिधि में ही नहीं आता है। 
              यहां यह उल्लेख किया जाना भी उचित होगा कि परिवादी स्वयं के अनुसार उसके द्वारा अनावेदक से निष्पादित अनुबंधों के तहत वित्तीय सहायता प्राप्त की गयी है। परिवादी द्वारा कहीं यह स्पष्ट अभिवचन नहीं किया गया कि उसके द्वारा कुल कितनी राशि का ऋण प्राप्त किया गया था, कितनी किश्तों का भुगतान किया जा चुका है तथा कितना भुगतान अवशेष है। परिवादी के अनुसार अनावेदक द्वारा उससे 3,75,000रू की अवैध राशि की मांग की जा रही है किन्तु परिवादी ने अनावेदक के ऐसे किसी मांग पत्र को पेश नहीं किया है जिससे उक्त कथन की प्रथम दृष्ट्या पुष्टि होती हो तथा परिवादी ने  अनावेदक के विरूद्ध 3,75,000रू की राशि के संबंध में कोई सहायता भी नहीं चाही है। परिवादी ने यह परिवाद प्रस्तुत करने के पूर्व अनावेदक को कभी कोई आपत्ति करते हुए सूचना जारी की हो ऐसा कोई दस्तावेज प्रकरण में पेश नहीं है जो प्रदर्श सी-13 का दस्तोवज पेश किया गया है वह अनावेदक को भेजा जाना एवं अनावेदक को प्राप्त होना ही दर्शित नहीं होता है तथा परिवादी के अनुसार अनावेदक द्वारा उसके वाहनों को छिनाने का प्रयास किया जाता है इस प्रकार परिवादी द्वारा मात्र संभावनाओं के आधार पर ही यह परिवाद प्रस्तुत कर दिया जाना भी प्रथम दृष्ट्या दर्शित होता है इस प्रकार परिवादी को परिवाद प्रस्तुती के लिए कोई वाद कारण उत्पन्न होना भी स्पष्टतः दर्शित नहीं होता है। किन्तु परिवादी का उपभोक्ता होना ही प्रमाणित न होने से उपरोक्त बिन्दु पर निष्कर्ष दिया जाना उचित नहीं पाया जाता है। 

                    अतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद परिवादी का उपभेाक्ता होना प्रथम दृष्ट्या प्रमाणित नहीं पाते हुए निरस्त किया जाता है। प्रकरण सांख्यिकीय प्रयोजन हेतु पंजीबद्ध हो। आदेश की प्रतिलिपि परिवादी को निःशुल्क दी जावे। परिणाम दर्ज कर प्रकरण अभिलेखागार में जमा हो। 
                         आदेश मैने लिखाया
डाॅ मृदुला ंिसंह   
                          श्रीमती आभा मिश्रा
   सदस्य                        सदस्य            

 
 
[ Smt.Abha Mishra]
PRESIDING MEMBER
 
[ Dr.Mridula Singh]
MEMBER

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