Uttar Pradesh

StateCommission

A/1072/2015

Naimuddin - Complainant(s)

Versus

Tata AIG general Insurance Co. - Opp.Party(s)

Isarhussain

02 Aug 2016

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1072/2015
(Arisen out of Order Dated 11/05/2015 in Case No. C/77/2013 of District Agra-II)
 
1. Naimuddin
Agra
...........Appellant(s)
Versus
1. Tata AIG general Insurance Co.
Agra
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 02 Aug 2016
Final Order / Judgement

सुरक्षि‍त

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

 

                                                                                     अपील संख्‍या 1072/2015

 

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, आगरा  द्धितीय  द्वारा परिवाद संख्‍या-77/2013 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 11-05-2015 के विरूद्ध)

 

नैमुद्दीन पुत्र श्री गुलाउद्दीन निवासी 21/17 घटिया मामू भन्‍जा, मन्‍टोला, आगरा।

  अपीलार्थी/परिवादी

 

बनाम

1. टाटा ए०आई०जी० जनरल इंश्‍योरेंश कम्‍पनी लि0 लोकल आफिस, 37/1, बाईपास रोड, एन.एच.2 अपोजिट भगवान सिनेमा, आगरा।

2. टाटा ए०आई०जी० जनरल इंश्‍योरेंश कम्‍पनी लि0  301-308, तृतीय तल अग्रवाल प्रस्‍टीज माल प्‍लाट नं 2 रोड नं. 44, नियर एम 2 के सिनेमा, रानी बाग पीतमपुरा न्‍यू दिल्‍ली।

3. टाटा ए०आई०जी० जनरल इंश्‍योरेंश कम्‍पनी लि0 रजिस्‍टर्ड आफिस, पेनिन्‍सुला कारपोरेट पार्क, पीरमल टावर नवॉं तल जी०के० मार्ग, लोअर  पारेल मुम्‍बई-400013

                                                                                                                                                                                  प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण

समक्ष:-

 माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित    : विद्वान अधिवक्‍ता श्री इसार हुसैन।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित      : विद्वान अधिवक्‍ता श्री निशान्‍त शुक्‍ला।

 

दिनांक:...20-06-2017

   

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

                                                                                                   निर्णय

 

          परिवाद संख्‍या 77 सन् 2013 नैमुद्दीन बनाम टाटा ए०आई०जी० जनरल इंश्‍योरेंश कम्‍पनी लिमिटेड आदि जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, द्धितीय आगरा ने निर्णय और आदेश दिनांक 11-05-2015 के द्वारा निरस्‍त कर दिया

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है।  अत: क्षुब्‍ध होकर यह अपील उपरोक्‍त परिवाद के परिवादी, नैमुद्दीन की ओर से धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

       अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री इशार हुसैन और प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री निशांत शुक्‍ला उपस्थित आए।

     अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त और सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि‍ उपरोक्‍त परिवाद अपीलार्थी/परिवादी ने जिला फोरम के समक्ष प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्‍तुत कि‍या है कि‍ वह मोटर साइकि‍ल संख्‍या यू0पी0 80 बी बी 2688 का स्‍वामी था और उसकी यह मोटर साइकि‍ल विपक्षीगण की टाटा ए०आई०जी० जनरल इंश्‍योरेंश कम्‍पनी लि0 से दिनांक        02-03-2011 से दिनांक 01-03-2012 तक की अवधि के लिए बीमित थी। इस बीच दिनांक 15-02-2012 को उसकी यह मोटर साइकि‍ल आगरा होटल थाना रकाबगंज, आगरा से चोरी हो गयी जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट उसने दिनांक 16-02-2012 को पुलिस थाने में दर्ज कराया जिस पर अपराध संख्‍या 75/2012 अन्‍तर्गत धारा 379 आई०पी०सी० पंजीकृत कि‍या गया और पुलिस ने विवेचना की तथा विवेचना के बाद पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट ए०सी०जे०एम० न्‍यायालय में प्रस्‍तुत कि‍या जो दिनांक 03-06-2012 को स्‍वीकार कर ली गयी।

     परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि‍ उसने चोरी की सूचना विपक्षीगण की बीमा कंपनी को दिया तब दिनांक 16-06-2012 को विपक्षी टाटा ए०आई०जी० द्वारा अधिकृत प्रिज्‍म इंश्‍योरेंश कंसलटेन्‍ट के पत्र द्वारा अभिलेखों की मांग की गयी जिसे अपीलार्थी/परिवादी ने प्रस्‍तुत कर दिया। परन्‍तु विपक्षी बीमा कंपनी ने पत्र दिनांक 12-11-2012   के   द्वारा

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अपीलार्थी/परिवादी का दावा इस आधार पर निरस्‍त कर दिया कि‍ बीमा पालिसी की शर्तों का उल्‍लंघन कि‍या गया है।

     प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण की ओर से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्‍तुत कि‍या गया है जिसमें अपीलार्थी/परिवादी को प्रशनगत वाहन का स्‍वामी होना और प्रश्‍नगत वाहन का बीमित होना स्‍वीकार कि‍या गया है। परन्‍तु यह कहा गया है कि‍ अपीलार्थी/परिवादी ने चोरी की घटना की सूचना चोरी की तिथि से 110 दिन विलम्‍ब से बीमा कंपनी को दी है जो बीमा पालिसी की शर्त संख्‍या एक का उल्‍लंघन है। अत: अपीलार्थी/परिवादी बीमा कंपनी से कोई क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है।

     जिला फोरम ने उभय  पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍य पर विचार कर यह निष्‍कर्ष निकाला है कि‍ अपीलार्थी/परिवादी ने चोरी की सूचना बीमा कंपनी को 110 दिन विलम्‍ब से दिया है अत: उसने बीमा पालिसी की शर्त 1 का उल्‍लंघन कि‍या है। ऐसी स्थित में बीमा कंपनी ने उसका दावा खारिज कर सेवा में कोई कमी नहीं की है। तदनुसार जिला फोरम ने यह निष्‍कर्ष निकाला है कि‍ अपीलार्थी/परिवादी कोई क्‍लेम पाने का अधिकारी नहीं है। अत: जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा खारिज कर दिया है।

अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि‍ अपीलार्थी/परिवादी ने मोटर साइकि‍ल चोरी की घटना की सूचना तुरन्‍त पुलिस थाने में दर्ज कराया है और व‍ह इस भ्रम में था कि‍ बीमा कंपनी को चोरी प्रमाण के साथ सूचित कि‍या जाएगा। अत: उसने पुलिस द्वारा प्रेषित अंतिम रिपोर्ट मजिस्‍ट्रेट द्वारा स्‍वीकार कि‍ये जाने के पश्‍चात बीमा कंपनी को सूचना दी है। ऐसी स्थिति में बीमा कंपनी को सूचना विलम्‍ब से दिये जाने का पर्याप्‍त

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आधार है और बीमा कंपनी ने सूचना विलम्‍ब से दिये जाने के आधार पर अपीलार्थी/परिवादी का दावा निरस्‍त कर सेवा में त्रुटि की है। ऐसी स्थिति में जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद निरस्‍त कर गलती की है।

     प्रत्‍यर्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि‍ अपीलार्थी/परिवादी ने बीमा पालिसी की शर्त संख्‍या 1 का अनुपालन नहीं कि‍या है और उसने चोरी की सूचना तुरन्‍त बीमा कंपनी को न देकर 110 दिन विलम्‍ब से दिया है जो बीमा पालिसी की शर्त 1 का उल्‍लंघन है। अत: बीमा कंपनी ने अपीलार्थी/परिवादी का दावा अस्‍वीकार कर सेवा में कमी नहीं की है। ऐसी स्थिति में जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी का जो परिवाद अस्‍वीकार कि‍या है वह उचित और विधि सम्‍मत है।

     मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार कि‍या है।

     निर्विवाद रूप से बीमा पालिसी की शर्त संख्‍या 1 निम्‍न है :-

     In this instance Policy ‘Condition no-1 states that “ Notice shall be given in writing to the Company immediately upon the occurrence of any accidental loss or damage in the event of any claim and thereafter the insured shall give all                 such information and assistance as the Company shall require. 

Every letter claim writ summons and/or process or copy thereof shall be forwarded to the Company immediately on receipt by the insured.  Notice shall also be given in writing to the Company immedeately the insured shall have knowledge of any impending prosecution, inquest or fatal inquiry in respect of any occurrence which may give rise to a claim under this

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Policy. In case of theft or criminal act which may be the subject of a claim under this policy the insured shall give immediate notice to the police and co-operate with the Company in securing the conviction of the offender. “stands violated.”

बीमा पालिसी की शर्त को पढ़ने से यह आभास होता है कि‍ एक्‍सीडेंटल लास या क्षति घटित होने पर बीमा कंपनी के समक्ष कि‍सी दावे के स्थिति में तुरन्‍त लिखित नोटिस बीमा कंपनी को दी जाएगी और चोरी अथवा कि‍सी आपराधिक  घटना जो बीमा दावा का विषय हो सकता है के सम्‍बन्‍ध में पुलिस को तुरन्‍त सूचना दी जाएगी। अत: बीमा पालिसी की उपरोक्‍त शर्त पढ़ने से यह भ्रम उत्‍पन्‍न होता  है कि‍ चोरी की घटना होने पर पुलिस को सूचना उपरोक्‍त शर्त के अनुसार देना है। मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायाल की मा0 संविधान पीठ ने जनरल एश्‍योरेंस सोसाइटी बनाम चन्‍दमूली जैन A.I.R. 1966 S.C. 1644 के वाद में स्‍पष्‍ट रूप से कहा है कि, “In a contract of insurance there is a requirement of uberrima fides i.e., good faith on the part of the assured and the contract is likely to be construed contra proferentem that is against the company in case of ambiguity or doubt.”

यूनाइटेड इंडिया इंश्‍योरेंस कम्‍पनी बनाम पुष्‍पालया प्रिंटर्स (2004) 3 S.C.C. 694 में भी मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने कहा है कि, “It is also settled position in law that if there is any ambiguity or a term is capable of two possible interpretations one beneficial to the insured should be accepted consistent with the purpose for which the policy is taken, namely, to cover the risk on the happening of certain event.”

 

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मा0 राष्‍ट्रीय आयोग ने बजाज एलायंज जनरल इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लि0 बनाम अब्‍दुल सत्‍तार व एक अन्‍य 2016 (1) C.P.R. 541 N.C. के वाद में बीमा पालिसी के समान शब्‍दावली वाले नोटिस क्‍लाज पर विचार कर निम्‍न मत व्‍यक्‍त किया है:-

            “On reading of the above, it is clear that in the event of the theft of the vehicle, only requirement on the part of the insured was to intimate the police immediately and cooperate in securing the conviction of the offender.”

     चोरी की घटना दिनांक 15-12-2012 की बतायी गयी है और पुलिस थाना में रिपोर्ट दिनांक 16-02-2012 को अपीलार्थी द्वारा दर्ज करायी गयी है, यह निर्विवाद है। अत: यह स्‍पष्‍ट है कि‍ अपीलार्थी ने घटना की सूचना पुलिस को पालिसी के उपरो‍क्‍त नोटिस क्‍लाज के अनुसार तुरन्‍त दी है और पालिसी की शर्त का पालन कि‍या है।

     बीमा पालिसी के नोटिस क्‍लाज की शब्‍दावली भ्रमपूर्ण है और इसे पढ़ने से यही भ्रम होता  है कि‍ चोरी की दशा में तुरन्‍त सूचना पुलिस को देनी है। अत: माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के उपरोक्‍त निर्णयों में प्रतिपादित सिद्धांत के आधार पर इस नोटिस क्‍लाज का वही अर्थ माना जाएगा जो बीमित के पक्ष में है। अत: चोरी की तुरन्‍त सूचना पुलिस को दिये जाने पर बीमा कंपनी को विलम्‍ब से सूचना दिये जाने के मात्र आधार पर दावा बीमा निरस्‍त नहीं कि‍या जा सकता है। माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने भी नेशनल इंश्‍योरेंश कम्‍पनी बनाम कुलवन्‍त सिंह 2014 (4) सी०पी०जे० 62 के वाद में यह माना है कि‍ यदि पुलिस को तत्‍काल सूचना दी गयी है तो बीमा कंपनी

 

 

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को विलम्‍ब से सूचना दिये जाने के आधार पर बीमा दावा नकारा नहीं जा सकता है।

     उल्‍लेखनीय है कि‍ आई०आर० डी० ए० के सर्कुलर दिनांक 20-09-2011 में भी कहा गया है कि‍ वास्‍तविक व सदभाविक बीमा दावा को मात्र विलम्‍ब के आधार पर अस्‍वीकार नहीं कि‍या जाएगा।

     इस स्‍तर पर माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा ओरियण्‍टल इंश्‍योरेंश कम्‍पनी लि0 बनाम प्रवेश चड्ढा जिविक अपील नम्‍बर 6739/2010 निर्णय तिथि 17-08-2010 के वाद में दिये गये निर्णय का उल्‍लेख आवश्‍यक है जिसमें बीमा पालिसी के नोटिस क्‍लाज के सम्‍बन्‍ध में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने निम्‍न मत व्‍य‍क्‍त किया है:-


"On account of delayed intimation, the appellant was deprived of its legitimate right to get an inquiry conducted into the alleged theft of vehicle and make an endeavour to recover the same.             

……………………………………In our view, the appellant cannot be saddled with the liability to pay compensation to the respondent despite the fact that he had not complied with the terms of the policy"

      उल्‍लेखनीय है कि‍ प्रवेश चड्ढा के उपरोक्‍त वाद की पालिसी के समय प्रचलित नोटिस क्‍लाज को आई०आर०डी०ए० ने दिनांक 01-07-2012 को संशोधित कर दिया है और यह संशोधित नोटिस क्‍लाज जैसा कि‍ ऊपर अं‍कि‍त है अब वर्तमान में प्रभावी है। वर्तमान नोटिस क्‍लाज प्रवेश चड्ढा के नोटिस क्‍लाज से भिन्‍न है।

     उपरोक्‍त सम्‍पूर्ण विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हॅूं कि‍ वर्तमान बीमा पालिसी के ऊपर अं‍कि‍त नोटिस क्‍लाज के आधार पर बीमा कम्‍पनी को

 

 

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विलम्‍ब से सू‍चना दिये जाने के मात्र आधार पर दावा बीमा निरस्‍त कि‍या जाना विधि एवं न्‍याय के सिद्धान्‍त के विरूद्ध है।

     अपीलार्थी द्वारा मोटस साइकि‍ल की कथित चोरी की घटना को बीमा कंपनी ने बनावटी या फर्जी नहीं बताया है और न ऐसा पुलिस विवेचना में पाया गया है।

     उपरोक्‍त सम्‍पूर्ण विवेचना एवं सम्‍पूर्ण तथ्‍यों, साक्ष्‍यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्‍त मैं इस मत का हॅूं कि‍ प्रत्‍यर्थी बीमा कम्‍पनी ने अपीलार्थी का बीमा दावा निरस्‍त कर गलती की है और सेवा में त्रुटि की है। अत: जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद निरस्‍त कर गलती है।

     प्रश्‍नगत मोटस साइकि‍ल का बीमित मूल्‍य 25,404/- रूपये है। अत: अपील स्‍वीकार करते हुये जिला फोरम का आक्षेपित निर्णय व आदेश अपास्‍त कर परिवाद स्‍वीकार कि‍या जाना और अपीलार्थी/परिवादी को प्रत्‍यर्थी बीमा कंपनी से उपरोक्‍त बीमित धनराशि दिलाया जाना उचित एवं आवश्‍यक है।

     बीमित धनराशि पर परिवाद प्रस्‍तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 6 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्‍याज दिया जाना भी उचित है। अपीलार्थी/परिवादी को वाद व्‍यय दिलाया जाना भी उचित है।

     उपरोक्‍त निष्‍कर्षों के आधार पर अपील स्‍वीकार की जाती है और जिला फोरम का आक्षेपित निर्णय व आदेश अपास्‍त कि‍या जाता है तथा परिवाद स्‍वीकार करते हुये प्रत्‍यर्थी बीमा कंपनी को आदेशित कि‍या जाता है कि‍ वह अपीलार्थी/परिवादी को उपरोक्‍त बीमित  बीमित धनराशि 25, 404/-

 

 

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रूपये परिवाद प्रस्‍तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 6 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्‍याज सहित अदा करें।

     प्रत्‍यर्थी बीमा कम्‍पनी अपीलार्थी/परिवादी को 10,000/- रूपया (दस हजार रूपया) वाद व्‍यय भी अदा करेगी। 

      

              

 

 

             (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)                     

                              अध्‍यक्ष                                                                

            

 

 

कृष्‍णा, आशु0

कोर्ट 01

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT

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