राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या:-843/2018
(जिला फोरम, गाजियाबाद द्धारा परिवाद सं0-92/2014 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 07.12.2017 के विरूद्ध)
Naresh Kumar Sharma, S/o Late Sri Shivchara Das, R/o B-13, Patel Nagar Second, P.S. Shighani Gate, Ghaziabad.
.......... Appellant/ Complainant
Versus
M/s Tata AIG General Insurance Company Ltd. through Manager, Office 301-308, Third Floor Agarwal Properties, Mall Plot No. 2 Road No.44 Near M-2K Cinema Rani Bagh Preetampura, New Delhi-34.
…….. Respondent/ Opp. Party
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री प्रतुल श्रीवास्तव
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : कोई नहीं
दिनांक :-05-11-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-92/2014 नरेश कुमार शर्मा बनाम मैसर्स टाटा ए0आई0जी0 जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड में जिला फोरम, गाजियाबाद द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 07.12.2017 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
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आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादी ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री प्रतुल श्रीवास्तव उपस्थित आये है। प्रत्यर्थी को नोटिस रजिस्टर्ड डाक से भेजी गयी है, जो अदम तामील वापस नहीं आयी है। अत: 30 दिन की अवधि पूरी होने पर नोटिस का तामीला पर्याप्त माना गया है, फिर भी प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है। अत: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुनकर अपील का निस्तारण किया जा रहा है।
मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षी के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि अपीलार्थी/परिवादी का ट्रक सं0-एच0आर0 63 ए-1069 प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से बीमित था और बीमा अवधि में ही दिनांक 22.4.2013 को 5.00 बजे अज्ञात चोरों द्वारा राजू गैराज बाजवा कम्पाउण्ड, यू0पी0 बार्डर, थाना साहिबाबाद, जिला गाजियाबाद से चोरी कर लिया गया। उसके बाद अपीलार्थी/परिवादी ने चोरी की रिपोट थाना साहिबाबाद में दर्ज करायी, जिस पर अ0सं0-552/2014 दिनांक 24.4.2013 को पंजीकृत
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किया गया, परन्तु पुलिस ने बाद विवेचना अंतिम रिपोर्ट प्रेषित किया और ट्रक बरामद नहीं हुआ। पुलिस द्वारा प्रेषित अंतिम रिपोर्ट मजिस्ट्रेट ने आदेश दिनांक 10.7.2013 के द्वारा स्वीकार कर ली। तब अपीलार्थी/परिवादी ने अंतिम रिपोर्ट और मजिस्ट्रेट के आदेश की प्रति के साथ वाहन के अभिलेखों सहित बीमा कम्पनी के समक्ष क्लेम हेतु प्रस्तुत किया, तो प्रत्यर्थी/विपक्षी के कर्मचारियों ने क्लेम से सम्बन्धित कागजात लेने से इंकार किया और कहा कि यह सभी कागजात सर्वेयर को प्राप्त करा देना। उसके बाद दिनांक 23.9.2013 को प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी का रेपुडिएशन पत्र अपीलार्थी/परिवादी को प्राप्त हुआ, जिसमें अपीलार्थी/परिवादी का बीमा दावा इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि वाहन का केबिन लॉक नहीं किया गया था। अपीलार्थी/परिवादी ने रैपुडिएशन का जवाब प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को दिया, फिर भी प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने पत्र दिनांक 28.11.2013 के द्वारा अपीलार्थी/परिवादी का क्लेम देने से इंकार कर दिया। तब विवश होकर अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षी ने लिखित कथन प्रस्तुत कर कहा है कि अपीलार्थी/परिवादी ने बीमा पालिसी की शर्तों का पालन नहीं किया है। लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी ने कहा है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी ने विकास कुमार एण्ड एसोसिएट कार्यालय बी-42 द्वितीय तल शंकर गार्डन विकासपुरी नई दिल्ली को सर्वेयर नियुक्त
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किया था, जिन्होंने जॉच की तो अपीलार्थी/परिवादी के कर्मचारी प्रमिल ने ब्यान दिया कि दिनांक 21.4.2013 की रात में वह प्रश्नगत वाहन में सोया हुआ था। सुबह दिनांक 22.4.2013 को जब वह लैट्रीन चला गया। इसी बीच वाहन चोरी हो गया, उसने गाड़ी लॉक नहीं की थी। लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि एक दूसरे वकतव्य के अनुसार डीजल टैंक की चाबी से केबिन लॉक किया गया था, परन्तु दोनों कथन विरोधाभाषी है। अत: अपीलार्थी/परिवादी क्लेम पाने का अधिकारी नहीं है। अपीलार्थी/परिवादी की लापरवाही से वाहन चोरी हुआ है, जो बीमा पालिसी की शर्त नं0-5 का उल्लंघन है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह माना है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा अपीलार्थी/परिवादी का बीमा दावा रेपुडिएट किये जाने हेतु उचित आधार है। अत: जिला फोरम ने आक्षेपित आदेश के द्वारा परिवाद निरस्त कर दिया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय तथ्य और विधि के विरूद्ध है। चोरी की प्रश्नगत दुर्घटना के समय ट्रक गैराज पर खड़ा था और केबिन लॉक कर ड्राइवर सौंच के लिए गया था। अत: यह कहना उचित नहीं है कि ट्रक की सुरक्षा हेतु पर्याप्त सावधानी नहीं बरती गयी है। प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपीलार्थी/परिवादी का बीमा दावा
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निरस्त करने का जो आधार बताया है वह उचित और विधि सम्मत नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय दोषपूर्ण है। अत: निरस्त कर परिवाद स्वीकार किया जाना आवश्यक है।
मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के लिखित कथन एवं रेपुडिएशन पत्र दिनांक 23.9.2013 और पत्र दिनांक 23.9.2013 से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपीलार्थी/परिवादी का बीमा दावा मात्र इस आधार पर निरस्त किया है कि ट्रक की सुरक्षा हेतु पर्याप्त सावधानी नहीं बरती गई है और ट्रक को अन-अटैंडेण्ट उसका केबिन लॉक किए बिना छोड़ा गया था। सर्वेयर को अपीलार्थी/परिवादी के कर्मचारी प्रमिल ने ब्यान दिया है कि वह विवादित वाहन में रात में सोया था और सुबह को वह लैट्रीन होने गया तभी वाहन चोरी हुआ है उसने गाड़ी लॉक नहीं की थी, जबकि सर्वेयर के समक्ष यह भी कथन किया गया है कि डीजल टैंक की चाबी से ट्रक के केबिन को लॉक किया गया था, इसके साथ ही उल्लेखनीय है कि ट्रक गैराज में खड़ा किया गया था। अत: सुबह 5.00 बजे ट्रक को गैराज में छोड़कर चालक या अन्य कर्मचारी के लैट्रीन जाने से यह नहीं कहा जा सकता है कि ट्रक की सुरक्षा हेतु पर्याप्त उपाय नहीं किये गये है।
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मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा महाबीर सिंह बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड व एक अन्य 2018 (1) सी.पी.आर. एन.सी. के वाद में दिये गये निर्णय के आधार पर बीमा कम्पनी द्वारा कथित उपरोक्त आधार पर बीमा दावा पूर्ण रूप से अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। वाहन को गैराज में छोड़कर वाहन की सुरक्षा में पर्याप्त सावधानी न बरते जाने का कथन बीमा पालिसी का फण्डामेंटल ब्रीच नहीं कहा जा सकता है। अत: मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अमलेंदु साहू बनाम ओरियण्टल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड 11 (2010) सी.पी.जे. 9 (एस.सी.) के निर्णय में प्रतिपादित सिद्धांत के आधार पर अपीलार्थी/परिवादी का बीमा दावा नान स्टैडर्ड बेसिस पर बीमित धनराशि से 25 प्रतिशत की कटौती कर तय किया जाना उचित है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर मैं इस मत का हॅू कि प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपीलार्थी/परिवादी का बीमा दावा पूर्ण रूप से रेपुडिएट कर सेवा में कमी की है और जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर गलती की है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त करते हुए प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह अपीलार्थी/परिवादी के प्रश्नगत वाहन की बीमित धनराशि से 25 प्रतिशत की कटौती कर शेष 75 प्रतिशत
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धनराशि का भुगतान अपीलार्थी/परिवादी को दो मास के अन्दर करें। यदि दो मास के अन्दर आदेशित धनराशि का भुगतान प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी अपीलार्थी/परिवादी को करने में असफल रहती है, तो वह आदेशित धनराशि पर इस निर्णय की तिथि से 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से अपीलार्थी/परिवादी को ब्याज भी अदा करेगी।
अपील में उभय पक्ष अपना अपना वाद व्यय स्वयं बहन करेगें।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-1