जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-316/2009
वेद मित्र पुत्र स्व0 राम कीरत षुक्ला निवासी मकान नं0 723-ए मोहल्ला-अब्बूसराय, थाना कैण्ट, जिला फैजाबाद (उ0प्र0) 224001 .............. परिवादी
बनाम
1. टाटा ए आई जी, लाइफ इन्ष्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड मेहरान्त प्लाजा प्रथम तल दर्षन इन्क्लेव सिविल लाइन्स, षाखा फैजाबाद द्वारा प्रबन्धक।
2. टाटा ए आई जी, लाइफ इन्ष्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड यूनिट, 302 बिल्डिंग नं0 4 इन्फिनिटी आई टी पार्क फिल्म सिटी रोड दिन्दोषी, मलाड (पूर्व) मुम्बई 40009
............. विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 23.05.2015
उद्घोषित द्वारा: श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य।
निर्णय
परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी की पत्नी राम संवारी जिनकी आयु लगभग 50 वर्श थी ने दिनांक 28.03.2008 को विपक्षी संख्या 2 से कम्पनी के एजेन्ट द्वारा बतायी गयी हेल्थ प्रोटेक्टर जीवन बीमा पालिसी ली, जिसकी संख्या सी-008348298 तथा प्रथम किष्त रुपये 12,000/- थी का भुगतान विपक्षीगण के पक्ष में कर दिया, जिसकी रसीद संख्या 642272 है और परिवादी उसमें नामिनी है। परिवादी की पत्नी को आष्वासन दिया गया था कि पालिसी बाण्ड षीघ्र आ जायेगा मगर पालिसी बाण्ड नहीं मिला। पालिसी की सभी औपचारिकतायें पूरी करायी गयी थीं। दुर्भाग्य से उक्त पालिसी के लिये जाने के छः माह बाद परिवादी की पत्नी की मृत्यु दिनांक 21.09.2008 को हो गयी। जिससे परिवादी सदमे में आ गया और ठीक होने पर विपक्षीगण के समक्ष पत्नी द्वारा ली गयी पालिसी का मेडिकल क्लेम प्रस्तुत किया मगर विपक्षी संख्या 2 ने परिवादी का क्लेम यह कह कर निरस्त कर दिया कि परिवादी की पत्नी को पालिसी लेने के पूर्व से कैंसर था, और रुपये 3/- का चेक संख्या 298344 दिनांकित 16.06.2009/ 24.06.2009 एच डी एफ सी बैंक का बना कर भेज दिया। विपक्षीगण ने परिवादी को अतिरिक्त धनराषि देने के बजाय बीमा पालिसी में जमा की गयी प्रीमियम की धनराषि रुपये 12,000/- भी मनगढ़ंत बीमारी का आरोप लगा कर हड़प ली, जब कि बीमा कराते समय परिवादी की पत्नी को कोई बीमारी नहीं थी और मेडिकल चेकअप के बाद ही पालिसी दी गयी थी। विपक्षीगण के डाक्टर ने कोई स्पश्ट रिपोट भी नहीं दी है जिसकी पूरी जिम्मेदारी विपक्षीगण की है। बीमा लिये जाने के बाद से परिवादी की पत्नी की मृत्यु के बाद तक भी विपक्षीगण ने बीमा पालिसी परिवादी को नहीं दी है। विपक्षीगण द्वारा रुपये 12,000/- की प्रीमियम ले कर रुपये 3/- का क्लेम देना विपक्षीगण की लापरवाही को प्रदर्षित करता है। परिवादी का मूल धन हड़प लेने से परिवादी को घोर मानसिक यंत्रणा झेलनी पड़ी है। बीमा कम्पनियों के अनुचित प्रलोभन व त्रुटिपूर्ण सेवा से विष्वास भी समाप्त हो गया है। परिवादी को विपक्षगण के कृत्य से रुपये 87,000/- की क्षति हुई है। परिवादी को विपक्षीगण से रुपये 87,000/- क्षतिपूर्ति, ब्याज तथा परिवाद व्यय दिलाया जाय।
विपक्षीगण ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा परिवादी के परिवाद के तथ्यों एवं कथनों से इन्कार किया है तथा परिवादी के परिवाद को मनगढ़ंत और फर्जी बताया है और कहा है कि परिवादी का परिवाद खारिज किया जाय और विपक्षीगण को रुपये 10,000/- कीमत दिलायी जाय। विपक्षीगण ने परिवादी की पत्नी द्वारा पालिसी लिया जाना स्वीकार किया है। किन्तु परिवादी की पत्नी ने अपनी बीमारी को बीमा लेते समय छिपाया था और इसकी सूचना विपक्षीगण को नहीं दी थी। जिसकी सूचना विपक्षीगण ने परिवादी को दिनांक 24.06.2009 को दी थी कि हमें खेद है कि हम आपका क्लेम पास नहीं कर पा रहे हैं। बीमा की नियम व षर्तों के आधार पर परिवादी को बीमा क्लेम नहीं दिया जा सकता क्यों कि पालिसी नल एवं वायड है। इसलिये परिवादी का परिवाद खरिज किये जाने योग्य है। परिवादी स्वछ हाथों से फोरम के समक्ष नहीं आया है। परिवादिनी बीमा लेने के पूर्व कैंसर से पीडि़त थी जिसे उसने अपने बीमा आवेदन पत्र मंे छिपाया था। परिवादिनी ने दिनांक 08-05-2008 को कुछ प्रपत्र बीमा कम्पनी को भेजे थे उसके आधार पर पालिसी दिनांक 04-06-2008 को जारी की गयी थी। इसलिये परिवादिनी का बीमा दिनांक 04.06.2008 से प्रभावी होता है। डा0 बी0ए0 खान (होम्योपैथिक) ने कम्पनी मंे अपने साक्षात्कार में कहा था कि जांच में तृतीय स्टेज का कैंसर पाया था जो पिछले पांच वर्शों से था। परिवादिनी ने उपचार दिनांक 14 अप्रैल 2009 मंे षुरु किया और उसके होम्योपैथिक अस्पताल के पर्चे दिनांक 14-04-2008 में मरीज में कैंसर के लक्षण से स्पश्ट होता है। मरीज का नाम व पता बीमित के राषन कार्ड के नाम व पते से मेल खाता हैै। जिसे डाक्टर ने दिनांक 25.05.2008 से उपचार किया था जिसे परिवादिनी ने सामान्य संषोधन फार्म मंे भर कर भेजा था। जिसे परिवादिनी बताना नहीं चाहती थी मगर बाद में पूछे गये प्रष्नोें के उत्तर में परिवादिनी ने उक्त फार्म भर कर भेजा था। बीमा आवेदन फार्म और सामान्य संषोधन फार्म के हस्ताक्षरों में साम्यता है। परिवादिनी इन तथ्यों को छिपाना चाहती थी मगर छिपा नहीं सकी। परिवादिनी ने स्वीकार किया है कि सन 2005 में उसने मायो मेडिकल सेन्टर में दिखाया था जहां उसका इलाज ‘‘पिइतवपकए चवसलच ंदक ेीम नदकमत ूमदजए जवजंस ंइकवउपदंस ीलेजमतमबजवउल ूपजी इपसंजमतंस ेंसचपदहववचीमतमबजवउल’’ बीमा के लिये आवेदन के समय इस तथ्य को परिवादिनी ने नहीं बताया था। उत्तरदातागण ने परिवादिनी के क्लेम को अच्छी तरह जंाचा व परखा है उसके बाद बीमा दावा को खारिज किया है। इसीलिये परिवादी को मात्र बीमा की धनराषि मात्र रुपये 3/- दी गयी है। परिवादी के आरोप निराधार व असत्य हैं उपरोक्त तथ्यों के आधार पर परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता की बहस को सुना। विपक्षीगण की ओर से बहस के लिये कोई उपस्थित नहीं हुआ। विपक्षीगण को बहस के लिये समय दिया गया मगर निर्णय के पूर्व तक विपक्षीगण की ओर से किसी ने बहस नहीं की। अतः परिवाद का निर्णय गुण दोश के आधार पर पत्रावली का भली भंाति परिषीलन के बाद किया। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन मंे बीमा प्रीमियम जमा किये जाने की रसीद दिनांक 28.03.2008 की छाया प्रति, विपक्षीगण के पत्र दिनांक 24.06.2009 की छाया प्रति, बीमा क्लेम की एडवांस डिस्चार्ज एण्ड रिसिप्ट आफ टोटल पेमेंट आफ क्लेम के फार्म की छाया प्रति, बीमा क्लेम के चेक दिनांक 16-06-2009 रुपये 3/- की छाया प्रति, परिवादी की पत्नी के मृत्यु प्रमाण पत्र की छाया प्रति, परिवादी का साक्ष्य में षपथ पत्र तथा परिवादी ने अपनी लिखित बहस दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। विपक्षीगण बीमा कम्पनी ने अपने पक्ष के समर्थन मंे अपना लिखित कथन तथा राजेष धाने मैनेजर लीगल का षपथ पत्र दाखिल किया है जो षामिल पत्रावली है। परिवादी एवं विपक्षीगण द्वारा दाखिल प्रपत्रों से प्रमाणित है कि परिवादी की पत्नी का बीमा विपक्षीगण ने किया था। विपक्षीगण ने अपने लिखित कथन मंे परिवादी पर आरोप लगाया है कि परिवादी की पत्नी ने अपनी बीमारी को छिपा कर बीमा लिया था। लेकिन परिवादी ने विपक्षी बीमा कम्पनी के इस आरोप का कोई उत्तर अपने साक्ष्य या लिखित बहस मंे नहीं दिया या बताया है और न ही स्वस्थ होने का कोई प्रमाण दाखिल किया है। विपक्षीगण ने परिवादिनी के इलाज किये जाने वाले डाक्टर का नाम भी बताया है तथा जिस अस्पताल में परिवादिनी ने इलाज कराया है उस अस्पताल का नाम भी बताया है, किन्तु परिवादी ने विपक्षीगण के इस कथन के विरोध में कुछ भी नहीं कहा है और न ही ऐसा कोई साक्ष्य दाखिल किया है कि परिवादिनी स्वस्थ थी और बीमा लेने के पूर्व उसे कैंसर नहीं था। परिवादी का परिवाद साक्ष्य के अभाव में प्रमाणित नहीं है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में असफल रहा है। विपक्षीगण ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 23.05.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष