राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-242/2012
(जिला उपभोक्ता फोरम, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्या-332/2009 में पारित निर्णय दिनांक 06.01.2012 के विरूद्ध)
1.यूनियन आफ इंडिया (द्वारा सीनियर सुपरिटेन्डेन्ट आफ पोस्ट आफिस
गोरखपर) डिपार्टमेन्ट आफ पोस्ट्स एण्ड टेलीग्राफ गोरखपुर।
2.पोस्ट मास्टर, पोस्ट आफिस सहुवा कोल, शिवपुर, जिला गोरखपुर।
......अपीलार्थीगण@विपक्षीगण
बनाम
तरूणेन्द्र ओझा पुत्र श्री परम हंस निवासी ग्राम असवनपार पोस्ट
सहुवाकोल, शिवपुर जिला गोरखपुर। .......प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री श्रीकृष्ण पाठक, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री अम्बरीश कौशल, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 22.09.2021
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या 332/09 तरूणेन्द्र ओझा बनाम यूनियन आफ इंडिया व एक अन्य में पारित निर्णय/आदेश दि. 06.01.2012 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी को आदेशित किया गया है कि बीमित धन एक लाख रूपये का भुगतान एक माह के अंदर किया जाए। मानसिक कष्ट के मद में रू. 500/- तथा कुल वाद व्यय के मद में रू. 500/- अदा करने का भी आदेश दिया गया है।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी की पत्नी श्रीमती ममता देवी ने विपक्षीगण के विभाग से एक लाख रूपये का डाक जीवन बीमा दिनांक 13.03.07 को करवाया। पालिसी की दूसरी किश्त दिनांक 12.04.200 का जमा की गई थी। बीमाधारक का देहान्त दिनांक 14.04.03
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को हो गया। बीमा धन की मांग की गई, परन्तु विपक्षीगण ने बीमा धन अदा नहीं किया तब दिनांक 22.07.09 को रजिस्टर डाक से कानूनी नोटिस भेजी गई।
3. विपक्षीगण का कथन है कि दिनांक 13.03.07 को मेडिकल परीक्षण नहीं कराया गया था। बीमा प्रस्ताव कार्यालय द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था और प्रस्ताव निरस्तीकरण की सूचना मृतक को भेज दी गई थी, इसलिए परिवादी अनुतोष प्राप्त करने के लिए अधिकृत नहीं है, क्योंकि संविदा पूर्ण नहीं हुई है।
4. दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता मंच द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि परिवादी की पत्नी की ओर से दिनांक 13.03.2007 को प्रथम किश्त जमा की गई और विपक्षी की ओर से दिनांक 25.08.2009 को यह सूचित किया गया कि प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया था। चूंकि मृतक की ओर से दो किश्तें अदा की गई हैं और उसके पश्चात मृत्यु हुई है, इसलिए विपक्षी बीमित धन अदा करने के लिए बाध्य है।
5. इस निर्णय व आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय विधि विरूद्ध है। जिला उपभोक्ता मंच ने तथ्यों एवं साक्ष्य के विपरीत निर्णय पारित किया है, क्योंकि पक्षकारों के मध्य संविदा कभी भी पूर्ण नहीं हुई। बीमा पालिसी जारी नहीं की गई, इसलिए कोई क्लेम देय नहीं हुआ।
6. दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना। प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली का अवलोकन किया गया।
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7. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि बीमा प्रस्ताव स्वीकार करने से पहले प्रस्तावक की मृत्यु होने पर संविदा पूर्ण नहीं हुआ, इसलिए कोई बीमा क्लेम देय नहीं है, अत: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से अपने तर्क के समर्थन में नजीर 1(2011) सीपीजी 60 (एनसी) लाइफ इंश्योरेंस जरेन्स कारपोरेशन आफ इंडिया बनाम भूमिबेन एम.मोदी एवं अन्य प्रस्तुत की गई है, जिसमें व्यवस्था दी गई है कि पालिसी जारी करने से पहले प्रस्तावक की मृत्यु होने पर संविदा पूर्ण नहीं होता। यदि प्रस्ताव भरने एवं स्वीकार करने के मध्य मृत्यु हो जाती है तब प्रस्ताव विफल हो जाता है।
8. प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि मेडिकल परीक्षण कराने के लिए कभी भी नहीं कहा गया। प्रस्तावक का दायित्व मेडिकल परीक्षण कराने का नहीं था। द्वितीय किश्त की भी रसीद जारी की जा चुकी थी। द्वितीय रसीद पर जो शब्द अंकित किए गए, स्वयं प्रत्यर्थी की ओर से प्रस्तुत की गई लिखित बहस के विवरण के अनुसार स्पष्ट रूप से अंकित किया गया है कि बीमा प्रस्ताव की स्वीकृति चीफ पोस्ट मास्टर जनरल द्वारा की जाएगी और यदि इस मध्य प्रस्तावक की मृत्यु हो जाती है तब विभाग कोई दायित्व ग्रहण नहीं करेगा, अत: द्वितीय किश्त की रसीद जारी हो जाने के बावजूद बीमा प्रस्ताव स्वीकार किया जाना अभी तक अवशेष था, परन्तु प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से नजीर एल.आई.सी. आफ इंडिया बनाम मेसर्स वी. जीता 3(1995)सीपीजे 1 (एन.सी) प्रस्तुत की गई है। इस केस के तथ्यों के अनुसार प्रस्ताव प्राप्त होने के पश्चात बीमा कंपनी द्वारा पालिसी जारी नहीं की गई तब बीमा कंपनी यह दावा नहीं कर सकती कि प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया गया। उपरोक्त नजीर में दी गई व्यवस्था
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के आलोक में कहा जा सकता है कि बीमा कंपनी द्वारा अपने दायित्व का सही अनुपालन नहीं किया गया, इसलिए उसे अब यह बचाव लेने का अधिकार प्राप्त नहीं है कि बीमा प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया।
9. एक अन्य नजीर एलआईसी बनाम रक्षणा देवी 4(2005)सीपीजे 214(एन.सी) में व्यवस्था दी गई है कि यदि प्रस्ताव स्वीकार करने में अनावश्यक देरी की जाती है और देरी का कोई कारण नहीं दिया जाता तब पालिसी उसी दिन से प्रारंभ मानी जाएगी जिस दिन को प्राप्त की गई है। प्रस्तुत केस में भी प्रथम किश्त जारी करने के पश्चात द्वितीय किश्त प्राप्त की जा चुकी थी। इंश्योरेंस रेगुलेशन 2002 के नियम-6 में व्यवस्था है कि बीमाकर्ता द्वारा प्रस्ताव को स्वीकार करने की कार्यवाही तेजी के साथ की जाएगी और उनके द्वारा लिया गया निर्णय एक युक्तियुक्त समय के अंतर्गत जो 15 दिन से ज्यादा नहीं होगा, प्रस्तावक को सूचित किया जाएगा, जबकि प्रस्तुत केस में लम्बी अवधि हो चुकी थी।
10. अत: जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय विधिसम्मत है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से इसी पीठ द्वारा अपील संख्या 2662/2002 में पारित निर्णय दिनांक 01.02.2021 की प्रमाणित प्रतिलिपि प्रस्तुत की गई, जिसमें व्यवस्था दी गई थी कि यदि बीमा संविदा पूर्ण रूप से निष्पादित नहीं हुआ है तब बीमा कंपनी बीमित धन अदा करने के लिए बाध्य नहीं है। उपरोक्त केस के तथ्य प्रस्तुत केस के तथ्य से पूर्णत: भिन्न हैं। उपरोक्त केस में दिनांक 19.12.1960 को ऊपर प्रस्ताव भरा गया था तथा 11.01.1961 को प्रेषित किया गया था। दिनांक 16.01.1961 को बीमित व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी थी, इसलिए प्रस्ताव स्वीकार करने का कोई अवसर बीमा कंपनी के पास नहीं था, जबकि प्रस्तुत केस में प्रथम
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किश्त की अदायगी करने के पश्चात प्रस्तावक द्वारा द्वितीय किश्त की अदायगी भी की गई है। लम्बी अवधि तक भी विपक्षी द्वारा बीमा पालिसी जारी नहीं की गई, अत: उनके स्तर से सेवा में गंभीर कमी गई है, अत: जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय में किसी प्रकार का हस्तक्षेप अपेक्षित प्रतीत नहीं होता। तदनुसार अपील खारिज होने योग्य है।
आदेश
अपील खारिज की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की
वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-2