(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-258/2011
विशाल कुमार पुत्र प्रेम बाबू, निवासी 76/502 कुली बाजार बादशाही नाका कानपुर सिटी
बनाम
टी.वी. सुन्दरम इंगर एण्ड सन्स लिमिटेड स्थित टी-10 साइट नं0-2 पंकी इण्डस्ट्रियल एरिया पंकी कानपुर सिटी तथा अन्य
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री ओ.पी. श्रीवास्तव।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री एस.के. वर्मा।
दिनांक : 31.01.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-559/2006, विशाल कुमार बनाम टी.वी. सुन्दरम इंगर एण्ड सन्स लि0 तथा अन्य में विद्वान जिला आयोग, कानपुर नगर द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 30.12.2010 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री ओ.पी. श्रीवास्तव तथा प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री एस.के. वर्मा को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. विद्वान जिला आयोग ने परिवाद इस आधार पर खारिज किया है कि परिवादी ने दुर्घटनाग्रस्त वाहन की मरम्मत की सूचना मिलने के बावजूद उसने स्वंय वाहन को प्राप्त नहीं किया, इसलिए वाहन को प्राप्त न करने के लिए वह स्वंय दोषी है।
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3. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी द्वारा वाहन संख्या-यू.पी. 78 एन. 9069 दिनांक 12.12.2001 को दुर्घटनाग्रस्त होने के पश्चात दिनांक 15.12.2001 को मरम्मत के लिए सुपुर्द किया गया। मरम्मत में एक या डेढ़ माह का समय लगना बताया गया, परन्तु विपक्षीगण किसी-न-किसी समान की कमी का बहाना बताकर मरम्मत को टालते रहे और कभी भी वाहन को उपलब्ध नहीं कराया। लीगल नोटिस देने के बावजूद भी वाहन उपलब्ध नहीं कराया गया, इसलिए अंकन 4 लाख रूपये की क्षतिपूर्ति के लिए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
4. विपक्षीगण का कथन है कि दिनांक 14.12.2001 को वाहन को वर्कशाप में लाया गया था, जिसमें मरम्मत का अधिक कार्य था। परिवादी को कुल व्यय बता दिया गया था। वाद समयावधि से बाधित है। मरम्मत के खर्चें में से अभी भी अंकन 37,548/-रू0 परिवादी पर बकाया हैं।
5. पक्षकारों की बहस सुनने के पश्चात विद्वान जिला आयोग द्वारा दिये गये निष्कर्ष का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है।
6. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि विपक्षीगण को वाहन दिनांक 14.12.2001 को उपलब्ध कराया गया। मरम्मत का खर्च दिनांक 15.12.2001 को लेटर पैड पर उपलब्ध कराया गया, परन्तु यह वाहन नोटिस देने के बावजूद भी परिवादी को सुपुर्द नहीं किया गया।
7. प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि दिनांक 1.7.2005 को ही परिवादी को पत्र प्रेषित किया गया था कि
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वाहन की मरम्मत हो चुकी है, वह आकर अपना वाहर प्राप्ल कर ले। यह पत्र पत्रावली पर दस्तावेज सं0-29 पर उपलब्ध है, इस पत्र के विवरण के अनुसार मार्च 2005 में वाहन की मरम्मत करने का उल्लेख इस तथ्य को साबित करता है कि स्वंय प्रत्यर्थीगण द्वारा समय पर वाहन उपलब्ध नहीं कराया गया, इसलिए विद्वान जिला आयोग का यह निष्कर्ष साक्ष्य के विपरीत है कि वाहन को वापस लेने स्वंय परिवादी द्वारा लापरवाही बरती गयी। परिवादी द्वारा इस पत्र पर जो उल्लेख किया गया है, इसमें स्पष्ट कथन किया गया है कि वाहन दिनांक 14.12.2001 से खड़ा हुआ है, जिसकी मरम्मत अब यानी मार्च 2005 में की गयी है, इसलिए आर.टी.ओ. से विवाद के निस्तारण के बाद वाहन को प्राप्त किया जाएगा। चूंकि वाहन प्रत्यर्थीगण के गैराज में कई वर्ष तक खड़ा रहा, इसलिए शुल्क संबंधी विवाद परिवादी के विरूद्ध हमेशा बना रहा। अत: इस टिप्पणी का तात्पर्य यह नहीं है कि परिवादी द्वारा वाहन प्राप्त करने में कोई लापरवाही बरती गयी। यह टिप्पणी केवल यह जाहिर करती है कि विपक्षीगण ने समय पर वाहन उपलब्ध नहीं कराया, इसलिए टैक्स संबंधी विवाद आर.टी.ओ. के समक्ष मौजूद है, उसका निस्तारण कराया जाएगा। उसका निस्तारण भी इसलिए कराने के लिए कहा गया कि स्वंय प्रत्यर्थीगण ने वाहन गैराज में खड़ा कर लिया और समय पर मरम्मत कर वापस नहीं लौटाया। अत: विद्वान जिला आयोग द्वारा दिया गया निष्कर्ष अपास्त होने योग्य है।
8. अब इस बिन्दु पर विचार किया जाता है कि परिवादी क्षतिपूर्ति की किस राशि को प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
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9. परिवाद के विवरण के अनुसार परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में वाहन को क्रय करने की किसी तिथि का उल्लेख नहीं किया है। यह भी उल्लेख नहीं है कि यह वाहन किस कीमत का था और कितना उपयोग किया जा चुका था। केवल यह उल्लेख है कि वाहन दिनांक 12.12.2001 को दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसे मरम्मत कर समय पर वापस नहीं लौटाया गया। इस प्रकार लगभग साढ़े 3 वर्ष वर्ष (42 माह) वाहन विपक्षीगण के गैराज में पड़ा रहा। परिवादी द्वारा उस दौरान ड्राइवर की तंख्वाह दी गयी तथा ऋण राशि अंकन 14,500/-रू0 प्रतिमाह भुगतान की गयी। इस प्रकार संयुक्त रूप से अंकन 4 लाख रूपये की क्षति की मांग की गयी है, इस मद में परिवादी 42 × 14,500 = 6,09,000/-रू0 प्राप्त करने के लिए अधिकृत है और मानसिक प्रताड़ना की मद में अंकन 20,000/-रू0 एवं परिवाद व्यय के रूप में अंकन 5,000/-रू0 भी प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। यद्यपि ड्राइवर को इस अवधि में वेतन दिया गया है और ड्राइवर को वेतन देना परिवादी के स्तर से की गयी कार्यवाही है, उसके लिए इस पीठ द्वारा कोई प्रतिकर नहीं दिलाया जा सकता। इस पीठ द्वारा उस राशि का प्रतिकर दिलाया जा सकता है, जिसका भुगतान परिवादी द्वारा किया गया है। तदनुसार प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
10. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 30.12.2010 अपास्त किया जाता है तथा परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को
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आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को अंकन 6,09,000/-रू0 (छ: लाख नौ हजार रूपये) का भुगतान 45 दिन के अन्दर किया जाए।
मानसिक प्रताड़ना की मद में अंकन 20,000/-रू0 (बीस हजार रूपये) तथा परिवाद व्यय के रूप में अंकन 5,000/-रू0 (पांच हजार रूपये) भी उपरोक्त अवधि में अदा किये जाए।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3