( सुरक्षित )
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :378/2022
(जिला उपभोक्ता आयोग, सम्भल द्वारा परिवाद संख्या-82/2018 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 26-03-2022 के विरूद्ध)
मंजू सिंह पत्नी इन्द्रपाल सिंह निवासी-ए-1/153, एच0आई0जी0, रामगंगा विहार, फेज-1, जिला मुरादाबाद।
बनाम्
सिन्डीकेट बैंक द्वारा शाखा प्रबन्धक, शाखा कार्यालय चन्दौसी, जिला सम्भल।
समक्ष :-
1-मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री एस0 पी0 पाण्डेय।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
दिनांक : 11-11-2022
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवाद संख्या-82/2018 मन्जू सिंह बनाम सिंडीकेट बैंक में जिला उपभोक्ता आयोग, सम्भल द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 26-03- 2022 के विरूद्ध यह अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत की गयी है।
‘’विद्धान जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
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‘’परिवाद संख्या-82 सन् 2018 एकपक्षीय रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी सिंडीकेट बैंक शाखा चन्दौसी के प्रबन्धक को आदेशित किया जाता है कि वह विकास नकद प्रमाण पत्र संख्या-202518, दिनांक 05-03-1992 के अन्तर्गत देय परिपक्वता धनराशि 17,677/-रू0 उस पर परिवाद संस्थन की तिथि से वास्तविक अदायगी तक मय 09 प्रतिशत ब्याज सहित अंदर दो माह अदा करें।
परिवादिनी अपना आधार कार्ड व पैन कार्ड पत्रावली में दाखिल करें तथा इस आशय की अन्डरटेकिंग प्रस्तुत करें कि किसी वास्तविक हकदार मंजू लता द्वारा विकास नकद प्रमाण पत्र का दावा करने की स्थिति में वह उसके अन्तर्गत देय सम्पूर्ण धनराशि बैंक को वापिस करेगी।‘’
जिला आयोग के आक्षेपित निर्णय व आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद की परिवादिनी की ओर से यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि परिवादिनी ने अपने बचत उद्देश्यों की पूर्ति हेतु वर्ष 1994 के जुलाई माह में विपक्षी से एक कैश विकास प्रमाण पत्र क्रय किया। विपक्षी द्वारा जारी कैश विकास प्रमाण पत्र पर स्वीकृति की तिथि 05-03-1992 जारी की तिथि 02-07-1994 अवधि 36 महीने, ब्याज दर 13 प्रतिशत परिपक्वता की धनराशि 17,677/-रू0 परिपक्वता की तारीख दिनांक 05-03-1995 आदि विवरण अंकित है। परिवादिनी के निवास पर वर्ष 1995 में आयकर विभाग का अन्वेषण हुआ था जिसमें अनेकों दस्तावेजों के साथ उक्त सावधि जमा रसीद भी आयकर विभाग के अधिकारियों द्वारा अपने कब्जे में ले ली गयी। वर्ष 2015 में आयकर विभाग में संबंधित उक्त मामले का निस्तारण हुआ जिसके अनुक्रम में परिवादी को वर्ष 2017 में उक्त साविध जमा रसीद वापस प्राप्त करायी गयी। परिवादी ने उक्त जमा रसीद की मूल प्रति विपक्षी के कार्यालय में इस आशय के साथ जमा करायी कि परिवादिनी की सावधि जमा रसीद में
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वर्णित धनराशि ब्याज सहित वापस की जावेगी तो विपक्षी के शाखा प्रबन्धक द्वारा परिवादिनी को अवगत कराया गया कि चूँकि प्रश्नगत सावधि जमा रसीद श्रीमती मंजूलता के नाम से जारी की गयी है जब कि परिवादिनी द्वारा वर्तमान में मंजू सिंह अपने नाम के आगे अंकित किया गया है इसलिए परिवादिनी मूल सावधि जमा रसीद के साथ एक शपथ पत्र विपक्षी कार्यालय को उपलबध करावे, साथ ही पासबुक की छायाप्रति भी संलग्न करें, तदोपरान्त जाचोंपरान्त परिवादिनी को समस्त धनराशि अदा की जावेगी। परिवादिनी, विपक्षी के कार्यालय में अनेकों बार गई और अनुरोध किया कि पूर्व में चन्दौसी में वह निवास करती थी और परिवादिनी की शादी हो चुकी है तथा परिवादिनी का नाम श्रीमती मंजूलता पत्नी इन्द्रपाल सिंह था लेकिन शादी के उपरान्त परिवादिनी ने अपना नाम परिवर्तित करते हुए मंजूलता के स्थान पर मंजू सिंह कर लिया है और इस आशय का परिवादिनी द्वारा शपथ पत्र भी प्रस्तुत किया जा चुका है, फिर भी विपक्षी द्वारा धनराशि अदा नहीं की गयी जो कि विपक्षी की सेवा में कमी है अत: विवश होकर परिवादिनी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष योजित किया है।
विपक्षी पर नोटिस की तामीला माने जाने के बाद भी विपक्षी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया, अत: जिला आयोग द्वारा आदेश दिनांक 24-03-2021 के द्वारा परिवाद की कार्यवाही विपक्षी के विरूद्ध एकपक्षीय रूप से संचालित की गयी।
विद्धान जिला आयोग ने परिवादिनी को सुनकर तथा पत्रावली पर उपलब्ध प्रपत्रों का परिशीलन करने के उपरान्त अपने निष्कर्ष में यह मत व्यक्त किया है कि परिवादिनी एकपक्षीय रूप से यह साबित करने में सफल
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रही है कि विपक्षी बैंक द्वारा विकास नकद प्रमाण पत्र 202518 परिवादिनी के पूर्व नाम मंजूलता के नाम से ही जारी किया गया था ऐसे में विपक्षी द्वारा विकास नकद प्रमाण पत्र के अन्तर्गत देय परिपक्वता धनराशि 17,677/-रू0 अदा न किया जाना विपक्षी की सेवा में कमी है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री एस0 पी0 पाण्डेय उपस्थित। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
अपील त्रुटिपूर्ण है। कार्यालय द्वारा इंगित त्रुटियों का निवारण अपीलार्थी द्वारा पर्याप्त अवसर दिये जाने के बाद भी नहीं किया गया है अत: अपील त्रुटिपूर्ण होने के आधार पर भी निरस्त किये जाने योग्य हैं।
मेरे द्वारा अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता को गुणदोष पर भी सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।
पत्रावली के अवलोकन से यह विदित होता है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों का गहनतापूर्वक विश्लेषण करने के उपरान्त विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया है जिसमें हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है। तदनुसार अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
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आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
प्रदीप मिश्रा , आशु0 कोर्ट नं0-1