( मौखिक )
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :865/2022
- महेश कुमार।
- जुगेश कुमार।
(पुत्रगण श्री भीकम सिंह निवासीगण ग्राम बिसावर तहसील सादाबाद, जनपद हाथरस।
अपीलार्थीगण/परिवादीगण
1-शाखा प्रबन्धक, सिन्डिकेट बैंक शाखा बिसावर, तहसील सादाबाद, जनपद हाथरस-281306
समक्ष :-
1-मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2-मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री ओ0पी0 दुवैल।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
दिनांक : 11-01-2023
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवाद संख्या-09/2017 महेश कुमार व अन्य बनाम शाखा प्रबन्धक, सिन्डीकेट बैंक में जिला उपभोक्ता आयोग, हाथरस द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 25-01-2022 के विरूद्ध यह अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय एवं आदेश के द्वारा विद्धान जिला आयोग द्वारा परिवादी का परिवाद स्वयय खण्डित किया गया है।
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जिला आयोग के आक्षेपित निर्णय व आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादीगण की ओर से यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री ओ0पी0 दुवैल उपस्थित आए। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षित सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने घुंघुरू उद्योग चलाने के लिए 9,00,000/-रू0 का ऋण विपक्षी बैंक से लिया था। विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी का पक्का मकान बंधक के रूप में रखा था। उक्त मकान की कीमत परिवादी के अनुसार 12,00,000/-रू0 निर्धारित की गयी थी। उभयपक्ष के मध्य यह संविदा थी कि विपक्षी बैंक ऋण की अदायगी न हो पाने की दशा में प्रश्नगत बंधक मकान को विक्रय करके ऋण की धनराशि वसूल कर लेगी तथा शेष धनराशि परिवादीगण को वापस कर देगी। परिवादी के अनुसार घुंघुरू उद्योग का व्यवसाय सफल न हो पाने के कारण परिवादीगण ऋण की अदायगी विपक्षी बैंक को समय से नहीं कर सके तथा उनपर ऋण की धनराशि बकाया हो गयी जिसका विवरण परिवाद के प्रस्तर 4 में दिया गया है।
विपक्षी के अनुसार ऋण की धनराशि मय ब्याज दिनांक 01-02-2017 को रू0 10,21,413.34 पैसे परिवादीगण पर बकाया हो गयी थी।
परिवादीगण द्वारा यह भी कथन किया गया कि बंधक मकान जिसकी कीमत रू0 12,00,000/- है विपक्षी बैंक उसे विक्रय करके शेष धनराशि परिवादी को विपक्षी बैंक वापस कर दें किन्तु विपक्षी बैंक ने कोई कार्यवाही नहीं की, जिस कारण परिवादीगण द्वारा यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
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विपक्षी बैंक की ओर से अपने प्रतिवाद पत्र में परिवादी द्वारा घुंघुरू उद्योग हेतु ऋण लिया जाना स्वीकार किया गया एवं यह कहा गया कि ऋण की अदायगी न होने के कारण बैंक द्वारा धनराशि वसूली हेतु कार्यवाही की जा रही है जिसमें सरफ्रेसाई एक्ट के अन्तर्गत भी कार्यवाही सम्मिलित है। विपक्षी बैंक द्वारा कोई ऐसा कार्य नहीं किया गया है जो कि नियम विरूद्ध हो। अत: इस आधार पर परिवाद को निरस्त किये जाने की याचना उनके द्वारा की गयी है।
जिला आयोग द्वारा परिवादी का परिवाद इन आधारों पर निरस्त किया गया है कि विपक्षी बैंक बंधक रखे गये मकान की नीलामी करने के लिए विधि अनुसार कार्यवाही कर रहा है। विपक्षी बैंक द्वारा विधि अनुसार बंधक रखे गये भवन की नीलामी की कार्यवाही की जा रही है। इस प्रकार बैंक द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है इस आधार पर परिवाद निरस्त किया गया है जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
अपील में मुख्य रूप से यह कथन किया गया है कि प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि की मूल भावना एवं प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों के विपरीत है तथा परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत किये गये साक्ष्य का अवलोकन किये बिना जिला आयोग द्वारा प्रश्गनत निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है।
अपील पर उपस्थित विद्धान अधिवक्ता को सुना एवं अभिलेख का परिशीलन किया।
उभयपक्ष के मध्य यह करार हुआ था कि यदि परिवादीगण ऋण की अदायगी नहीं कर पाते हैं तो ऋण की अदायगी उक्त मकान को विक्रय करके की जावेगी जिसकी मालियत 12,00,000/-रू0 निर्धारित की गयी थी। अत: विपक्षी बैंक केवल मकान को विक्रय करने के अधिकारी है। अत: प्रश्नगत
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निर्णय एवं आदेश इस आधार पर अपास्त किये जाने योग्य है कि जिला आयोग द्वारा परिवादीगण के उक्त कथन को अनदेखा करते हुए परिवादी का परिवाद निरस्त किया गया है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री ओ0 पी0 दुवैल उपस्थित। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
अपीलार्थी/परिवादीगण के विद्धान अधिवक्ता को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध प्रपत्रों एवं जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।
पत्रावली के परिशीलन से यह विदित होता है कि अपीलार्थी/परिवादी ने विपक्षी बैंक से ऋण लेकर घुंघुरू उद्योग शुरू किया तथा परिवादीगण द्वारा ऋण की धनराशि अदा नहीं की गयी और परिवादीगण डिफाल्टर होना भी स्वीकार करते हैं।
उभयपक्ष को यह तथ्य भी स्वीकार है कि प्रश्गनत मकान विपक्षी बैंक द्वारा दिये गये ऋण के एवज में बंधक रखा गया था अत: विपक्षी बैंक को ऋण के संबंध में हुई संविदा के अनुसार ऋण की वूसली अपीलार्थी/परिवादीगण से करने का पूरा अधिकार है। अपीलार्थी की ओर से ऋण की शर्तों को इस पीठ के समक्ष नहीं रखा गया है। प्रश्गनत निर्णय के अवलोकन से भी यह स्पष्ट होता है कि इस ऋण की संविदा के उपबंधों को जिला आयोग के समक्ष भी प्रस्तुत नहीं किया गया है जिसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि विपक्षी बैंक संविदा के विपरीत जाकर कोई कार्यवाही कर रहा है।
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उक्त संविदा के उपबंधों को प्रस्तुत किये जाने के अभाव में भी सामान्य रूप से यह अवधारणा की जा सकती है कि ऋण की अदायगी न किये जाने पर बंधक रखे गये मकान को विक्रय करने का अधिकार विपक्षी बैंक को है इसके अन्तर्गत ऋण की संविदा के अन्तर्गत जो भी प्रक्रिया ऋण की वसूली हेतु अपनाई गया है वह न्यायोचित प्रतीत होती है।
परिवादीगण द्वारा विपक्षी बैंक से की गयी उक्त संविदा की शर्तो को इस उपभोक्ता न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया है जिससे यह साबित हो सके कि किस प्रकार संविदा के विपरीत जाकर विपक्षी बैंक द्वारा त्रुटि कारित की गयी है और किस प्रकार विपक्षी बैंक द्वारा सेवा में कमी की गयी है।
विपक्षी बैंक द्वारा अपीलार्थी/परिवादीगण को धारा-13(2) सरफ्रेसाई एक्ट के अन्तर्गत नोटिस दिया जाना तथा नोटिस की प्रतिलिपि अभिलेख पर है, लिखा गया है। यद्धपि उक्त अधिनियम के अन्तर्गत अधिकरण के समक्ष कार्यवाही प्रारम्भ किया जाना विपक्षी बैंक द्वारा साबित नहीं किया है किन्तु विपक्षी बैंक को यह अधिकार है कि वह अपीलार्थी/परिवादीगण से दिये गये ऋण की वसूली नियमानुसार करें। तदनुसार अपीलार्थी/परिवादीगण द्वारा यह साबित न कर पाने के कारण कि विपक्षी बैंक द्वारा किस प्रकार सेवा में कमी की गयी है प्रश्नगत अपील निरस्त किये जाने योग्य है तथा जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि करते हुए परिवादी का परिवाद भी निरस्त किये जाने योग्य है।
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आदेश
अपील निरस्त की जाती है। जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है तथा परिवादी का परिवाद भी निरस्त किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
प्रदीप मिश्रा , आशु0 कोर्ट नं0-1