Uttar Pradesh

StateCommission

A/2014/283

Union Of India - Complainant(s)

Versus

Syed Muvuddin Rizvi - Opp.Party(s)

Prem Prakash Srivastava

10 Feb 2014

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2014/283
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Union Of India
a
 
BEFORE: 
 HON'ABLE MR. JUSTICE Virendra Singh PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

                      राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0 लखनऊ।

                                                          (सुरक्षित)

                          अपील सं0-२८३/२०१४

(जिला मंच प्रथम आगरा द्वारा परिवाद सं0-१०८/२००९ में पारित आदेश दिनांक १०/०१/२०१४ के विरूद्ध)

  1. यूनियन आफ इंडिया द्वारा सचिव रेल मंत्रालय भारत सरकार रेलभवन नई दिल्‍ली।
  2. महाप्रबन्‍धक, नार्थ सेन्‍ट्रल रेलवे सूबेदारगंज इलाहाबाद।
  3. मण्‍डलीय रेल प्रबन्‍धक, नार्थ सेन्‍ट्रल रेलवे आगरा कैंट आगरा।

                                           अपीलार्थीगण/विपक्षीगण

                        बनाम

सैयद मुवुद्दीन रिजवी (एस0एम0 रिजवी) पुत्र श्री सैयद सनीरूद्दीन रिजवी निवासी अमीर हसन तोप खाना नाई की मण्‍डी थाना नाई की मण्‍डी आगरा।                                                                प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

1 मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठासीन न्‍यायिक सदस्‍य।

2 मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री पीपी श्रीवास्‍तव अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित: कोई नहीं।

दिनांक: 01/01/2015

            मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठासीन न्‍यायिक सदस्‍य  द्वारा उद्घोषित।

                             निर्णय

     प्रस्‍तुत अपील अपीलार्थी ने विद्वान जिला मंच प्रथम आगरा द्वारा परिवाद सं0-१०८/२००९ सैयद मुवुद्दीन रिजवी बनाम यूनियन आफ इंडिया में पारित आदेश दिनांक १०/०१/२०१४ के विरूद्ध प्रस्‍तुत की है जिसमें विद्वान जिला मंच ने निम्‍न आदेश पारित किया है:-

     ‘’ परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध संयुक्‍त व पृथक रूप से अंकन ४००००/-रू0 मय ६ प्रतिशत ब्‍याज के साथ परिवाद योजित करने की तिथि से वा‍स्‍तविक वसूली तक स्‍वीकार किया जाता है। इसके अतिरिक्‍त परिवादी विपक्षीगण से मानसिक कष्‍ट के लिए क्षतिूपर्ति मु0 २०००/-रू0 एवं वाद व्‍यय के रूप में मु0 २०००/-रू0 भी पाने का अधिकारी है।

विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे उपरोक्‍त धनराशि निर्णय की तिथि से एक माह के अन्‍दर चैक/ड्राफ्ट के माध्‍यम से जिला फोरम में जमा करे।’’

     संक्षेप में कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी दिनांक ३०/०५/२००७ को पश्चिम एक्सप्रेस गाड़ी सं0-२९२५ से ए0सी0 थ्री टीयर में टिकट सं0-४७१८३३७५ से रतलाम से दिल्‍ली यात्रा कर रहा था । यात्रा के दौरान उज्‍जैन और बीना स्‍टेशन के मध्‍य उसका वीआईपी सूटकेश जो लोहे की चेन से सीट के नीचे ताले से बन्‍द था, जिसमें

 

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 कपड़े, एटीएम चेकबुक, पासबुक नकद २९०००/-रू0 होटल बिल व अन्‍य महत्‍वपूर्ण कागजात रखे हुए थे, जिसे किसी ने जंजीर काट कर चुरा लिया। ललितपुर स्‍टेशन के करीब परिवादी को चोरी की जानकारी हुई, उसने अपना सूटकेश डिब्‍बे में तलाशा, परन्‍तु नहीं मिला। कोच में टीटीई अथवा कण्‍डक्‍टर नहीं था और न कोच के दरवाजे बन्‍द थे, इसलिए चोरी हुई। कण्‍डक्‍टर या टीटीई का यह कर्तव्‍य था कि वह अनाधिकृत  व्‍यक्तिों का डिब्‍बे में प्रवेश रोके। उस समय डियूटी पर कण्‍डक्‍टर/टीटीई आर0के0 दुबे थे। कण्‍डक्‍टर/टीटीई की लापरवाही तथा रेलवे की सेवा में कमी के कारण घटना हुई क्‍योंकि उस समय न तो टीटीई/कण्‍डक्‍टर मौजूद था और न कोई सुरक्षाकर्मी थे।

     ललितपुर में परिवादी टीटीई से मिला और चोरी की लिखित रिपोर्ट प्रस्‍तुत की, जिसे आर0के0 दुबे कण्‍डक्‍टर को दिया था और चीफ क्‍लेम अधिकारी को भी शिकायत की गयी, परन्‍तु कोई कार्यवाही नहीं हुई। परिवादी का लगभग ४५०००/-रू0 का नुकसान हुआ जिससे उसे मानसिक क्षति हुई। इसलिए विपक्षीगण क्षतिपूर्ति देने के लिए उत्‍तरदायी हैं। इसलिए परिवाद योजित किया गया है।

     विपक्षीगण की ओर से अपने प्रतिवाद पत्र में कहा गया है कि फोरम को श्रवण का क्षेत्राधिकार नहीं है, क्‍योंकि रिजर्व टिकट परिवादी ने उज्‍जैन  में क्रय किया था, जो पश्चिम रेलवे में पड़ता है। उसने रतलाम से यात्रा शुरू की थी, घटना उज्‍जैन और बीना के मध्‍य हुई। घटना की जानकारी परिवादी ने ललितपुर में दी जो झांसी में पड़ता है। परिवादी रेलवे  क्‍लेम ट्रिब्‍यूनल की धारा १३ व १५ से बाधित है तथा परिवाद में कुसंयोजन का दोष व्‍याप्‍त है। परिवादी ने यह अभिकथित किया है कि सूटकेश की चोरी चैन काटकर हुई, उसकी आवाज सुनकर परिवादी का न जागना घटना पर प्रश्‍नचिन्‍ह लगाता है, क्‍योंकि ए0सी0 कोच में शान्ति रहती है, परिवादी ने सूटकेश के अन्‍दर की वस्‍तुओं के बारे में रेलवे कर्मचारीगण को सूचित नहीं किया था। उक्‍त  सामान बुक नहीं कराया गया था । इसलिए रेलवे प्रशासन किसी क्षतिपूर्ति के लिए उत्‍तरदायी नहीं है। परिवादी उपभोक्‍ता नहीं है। इसलिए परिवादी किसी अनुतोष का हकदार नहीं है।

     अपीलार्थीगण की ओर से श्री पी0पी0 श्रीवास्‍तव के तर्कों को सुना गया।  पत्रावली का परिशीलन किया गया। 

     अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि यदि परिवादी/प्रत्‍यर्थी का कोई सामान चोरी हो गया है तो ऐसी दशा में रेलवे प्रशासन को जिम्‍मेदार नहीं ठहराया जा सकता है क्‍योंकि इसमें रेलवे प्रशासन की कोई लापरवाही नहीं है और परिवादी को अपने सामान की सुरक्षा स्‍वयं करनी चाहिए थी।

     प्रश्‍नगत निर्णय एवं पत्रावली में उपलब्‍ध अभिलेखों का अवलोकन किया गया।

 

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मा0 राष्‍ट्रीय आयोग ने यूनियन आफ इंडिया बनाम संजीव दिलसुखराज देव एवं अन्‍य २००३ सीटीजे १९६ (सीपी) (एनसीडीआरसी)में निम्‍नानुसार अवधारित किया है “ A major responsibility cast on the TTE in addition to examining.

The tickets is that of ensuring that no intruders enter the reserved compartments…………This is certainly a gross dereliction of duty which resulted in deficiency in service to the Respondents.

The price difference between the unreserved ticket and a reserved ticket is quite high and the traveling public who buy a reserved ticket would expect that they can enjoy the train journey with a certain minimum amount of security and safety.

……..One has to presume that passenger would take reasonable care of his luggage. But, he cannot be expected to take measures against intruders getting easily into reserved compartments and running away with goods, when the railway administration is charged with the responsibility to prevent such unauthorized entry. We have entered the 21st century and we cannot carry on our daily life in the same age old fashion with bearing brunt of indifferent service provided by public authorities like Railways.  People expect in the 21st century a modicum of efficient and reliable service, which provides at least safety of person and property while traveling in reserved compartments.” This view has been reaffirmed in the case of G.M. South Central Railway Vs.  Dr. R.V. Kumar & Anr., 2005 CTJ 862 (CP) (NCDRC).

In our view, there is a clear deficiency of service on the part of the Petitioners in allowing the unauthorized persons to enter the reserved compartment and stealing the attaché of the Respondent.

In view of the aforesaid decisions of this Commission, there is no reason for s or interfere with the order of the State Commission in revisional jurisdiction under Section 21 (b) of the Consumer.

Union Of India Vs Sanjiv Dilsukhrai Dave (N.C.) 2003 (51) ALR 40 (Consumer) में आधारित किया है।

उपरोक्‍त उद्धृत निर्णय के पैरा 10 व 11 इस प्रकार हैं  :-

 Para10. As regards the issue of negligence of the Railway Administration, a list of duties prescribed by Railway Administration ‘’TTE for Sleeper Coaches” is brought on record. Of these duties prescribed at Sl. Nos. 4,14,16 and 17 are very relevant. These read as follows:

“4. He shall check the tickets of the passengers in the coach, guide them to their berths/seats and prevent unauthorized persons from the coach. He shall in particular ensure that persons holding platform tickets, who came to see off or receive passengers do not enter the coach.

4

14. He shall ensure that the doors of the coach are kept latched when the train is on the move and open them up for passengers as and when required.

16. He shall ensure that the end doors of vestibules trains are kept locked between 22.00 and 6.00 hrs. to prevent outsiders entering the coach.

17. He shall remain vigilant particularly during night time and ensure that intruders, beggars, hawkers and unauthorized persons do not enter the coach.”

Para11. The above duties clearly show that there is a responsibility cast on the TTE attached to the second class sleeper coach to be very vigilant about anyone other than the reserved tickets holders entering the compartment, to such an extent that he is required to prevent even a relation of the passenger holding a platform ticket who comes to see off a passenger from entering a coach. The TTE is particularly required to take special care in the night as brought out in Sl. Nos. 16 and 17. Sl. No 14 clearly casts a responsibility on him to ensure that the doors of the coach are kept latched when the train is on the move.

मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने यूनियन आफ इंडिया एवं अन्‍य बनाम मनोज पाठक द्वितीय (१९९६) सीपीजे ३१ (एनसी) में यह अवधारित किया है कि “It is not in dispute that the complainant had hired services of Railway Administration for consideration and if there is any negligence or deficiency in service on the part of the Railway Administration, then it is a consumer dispute

within the scope and ambit of section 2 (1) (d) of the Act. The complainant was entitled to be carried safely in the train upto its destination in the reserved compartment. However, if any person enters into any reserved compartment unauthorisedly, then besides being liable for criminal prosecution, he can be removed from the railway compartment by any railway servant or by any of the person whom such railway servant may call to his aid [see section 147 (2) of the Railways Act, 1989]. The Railway Administration neglected in checking reserved railway

 

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compartment and then failed to remove them forcibly for which they are duly empowered by the statute.”

G.M., Eastern Railway and another V. Smt. Malti Gupta (1999) iii CPJ 573  में यह अवधारित किया है कि:-where theft of three suitcases from the reserved sleeper coach occurred, the State Commission held that is a clear case of dereliction of duties resulting into theft of personal baggages of the three passengers due to negligence on the part of the Railway Administration and its servants.

     यूनियर आफ इंडिया बनाम शोभा अग्रवाल Revision Petition No 602/2013 (N.C) decided on 22 July 2013 में यह अवधारित किया है:-

Para8. Undisputedly, the complainant and her daughter were travelling in a reserved coach and it was the duty of the TTE to ensure that no intruders entered the reserved compartment. Since apparently there was a failure on the part of the TTE to prevent entry of unauthorized person in the coach during the night, the Fora below where right in

holding the petitioner liable for deficiency in service to the respondent in this regard. So far as the applicability of section 15  of the Railway Claims Tribunal Act, 1987 is concerned, we cannot agree with the contention of learned counsel because this section bars jurisdiction of the other courts only “in relation to the matters referred to in sub-sections (1) and (1A) of section 13”. Section 13 is reproduced thus:-

          “13. Jurisdiction, powers and authority of Claims Tribunal – (1) The Claims

Tribunal shall exercise, on and from the appointed day, all such          jurisdiction, powers and authority as were exercisable immediately before that day by any Civil Court or a Claims Commissioner appointed under the provisions of Railway Act,-

  1. relating to the responsibility of the railway administrations as carriers under chapter VII of the Railways Act in respect of claims for-
  2.  
  1. compensation for loss, destruction, damages, deterioration or non-delivery of animals or good entrusted to a railway administration for carriage by railway;
  2. compensation payable under Sec. 82-A of the Railway Act or the rules made there under; and
  1.      in respect of the claims for refund of fares or part thereof or for

     refund of any freight paid in respect of animals or goods entrusted

    to a railway administration to be carried by railway.

          [(1-A) The Claims Tribunal shall also exercise, on and from the date of  

          Commencement of the provisions of Sec.124-A of the Railways Act,1989

          (24 of 1989), all such jurisdiction, powers and authority as were

          exercisable immediately before that date by any Civil Court in respect of

          claims for compensation now payable by the Railway Administration under

 Sec.124-A of the said Act or the Rules made thereunder.]

(2)  The provision of the [Railways Act, 1989] and the rules made

 thereunder shall, so far as may be, be applicable for inquiring into or

determining any claims by the Claims Tribunal under this Act.”

Para 9.        Plain reading of section 13 indicates that the case of the respondent does not fall under any of the categories mentioned in the section. In view of this, the jurisdiction of the consumer Fora cannot be barred by virtue of the provisions of section 15.

     इस रिवीजन के विरूद्ध यूनियन आफ इंडिया ने मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय में एक SLP to appeal (Civil)/2014  (सी ७६१/२०१४) यूनियन आफ इंडिया बनाम

शोभा अग्रवाल प्रस्‍तुत की है जिसे कि मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने अपने आदेश दिनांक ३०/०१/२०१४ को स्‍पेशल लीव पेटीशन खारिज कर दी है।

     प्रस्‍तुत प्रकरण में रेलवे कन्‍डक्‍टर का यह दायित्‍व था कि वह अधिकृत व्‍यक्तियों को डिब्‍बे में प्रवेश करने से रोकता, किन्‍तु परिचालक द्वारा निर्धारित सावधानी व सुरक्षा नहीं बरती गयी। अत: ऐसी दशा में प्रश्‍नगत आदेश विधि अनुसार पारित कियागयाहै जिसमें हस्‍तक्षेप करने की कोई आवश्‍यकता नहीं है। तदनुसार अपील निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

                     आदेश

     अपील निरस्‍त की जाती है। विद्वान जिला मंच प्रथम आगरा द्वारा परिवाद सं0-१०८/२००९ सैयद मुवुद्दीन रिजवी बनाम यूनियन आफ इंडिया में पारित आदेश दिनांक १०/०१/२०१४ की पुष्टि की जाती है।

 

 

 

 

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उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।                                                                                                                                                                                                                  

     उभयपक्ष को इस निर्णय की प्रति नियमानुसार नि:शुल्‍क उपलब्‍ध करायी जाए।

 

(अशोक कुमार चौधरी)                               (बाल कुमारी)

   पीठा0सदस्‍य                                      सदस्‍य

सत्‍येन्‍द्र कोर्ट0 3

 
 
[HON'ABLE MR. JUSTICE Virendra Singh]
PRESIDENT

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