राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
पुनरीक्षण संख्या-82/2013
1. यूनिट ट्रस्ट आफ इंडिया, गुलाब भवन, न्यू दिल्ली द्वारा मैनेजर।
2. मैनेजर, यूनिट ट्रस्ट आफ इंडिया, विन्ध्यवासिनी गोरखपुर।
3.कर्वे कंप्यूटर शेयर प्रा0लि0, गोरखपुर द्वारा मैनेजर।
4. कर्वे कंसलटेन्ट्स प्रा0लि0, एम0जी0 मार्ग, लखनऊ।
.......पुनरीक्षणकर्ता
बनाम्
सुषमा श्रीवास्तव पत्नी डा0 उमेश चंद्र श्रीवास्तव न्यू आवास विकास
कालोनी, साउथ बेतिया हाथा, गोरखपुर। ........प्रत्यर्थी
समक्ष:-
1. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री अब्दुल मोईन के सहयोगी श्री उमेश
कुमार श्रीवास्तव, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :कोई नहीं।
दिनांक 28.11.2017
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत निगरानी जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम गोरखपुर द्वारा 8/02 में पारित जारी रिकवरी सर्टिफिकेट के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने एक परिवाद जिला मंच के समक्ष इस आशय का प्रस्तुत किया कि उसके द्वारा विपक्षी/अपीलार्थी से यूलिप पालिसी के अंतर्गत यूनिट्स क्रय किए थे, जिनकी परिपक्वता अवधि दि. 01.01.98 थी, परन्तु विपक्षी की लापरवाही से उसके द्वारा भुगतान के चेक किसी अन्य व्यक्ति ने ले लिया और दुबारा जो चेक भेजे गए वे दि. 05.03.99 को उसे भुगतान हुआ। इस प्रकार उसे दि. 01.01.98 से 05.03.99 तक के ब्याज की हानि हुई। परिवादी ने मूल धनराशि रू. 85781.76 पैसे पर 18 प्रतिशत ब्याज की दर से रू. 18228/- की धनराशि की मांग की। जिला मंच ने अपने निर्णय दि. 05.10.2001 के अंतर्गत निम्न आदेश पारित किया है:-
'' यह परिवाद इस निर्देश के साथ स्वीकार किया जाता है कि परिवादिनी को विपक्षी संख्या 02 रू. 18228.50 तथा उस पर दिनांक 30.04.1999 से 9 प्रतिशत ब्याज
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तथा 500/- रू0 वाद व्यय के भुगतान करें। विपक्षी संख्या 01 के विरूद्ध परिवाद निरस्त किया जाता है।''
पीठ ने निगरानीकर्ता के विद्वान अधिवक्ता की बहस को सुना एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों व साक्ष्यों का भलीभांति परिशीलन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
स्पष्टत: जिला मंच ने रू. 18228.50 पैसे की जो धनराशि भुगतान हेतु आदेशित की वह 18 प्रतिशत ब्याज से आगणित थी जैसाकि परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में अंकित किया था। जिला मंच ने इस आदेश के विरूद्ध अपीलार्थी ने राज्य आयोग के समक्ष अपील दायर की और अपील में राज्य आयोग ने निम्न आदेश पारित किया:-
" No Compensation other than interest at the rate of 12% in payable to any of the complainants.
The interest to be applied in at the rate of 12% from date of maturity of each of the payments in each of the complaints which are to be made by UTI to the compliments therein,
Where the rate of interest awarded by the DCF in the judgment are already lower than 12% and the complainant have not come up in appeal, the interest awarded by DCF shall be paid alongwith maturity amount.
All the Payments shall be made within three months from today and the interest shall be calculated up to date of payment. "
निगरानीकर्ता का कथन है कि उनके द्वारा दि. 01.01.98 से 05.03.99 तक का ब्याज की गणना कर राज्य आयोग के आदेश के अनुसार 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के आधार पर कर रू. 12070.55 पैसे का भुगतान डिमांड ड्राफ्ट दिनांकित 24.11.2006 द्वारा कर दिया है। निगरानीकर्ता का कथन है कि जिला मंच ने पूरी धनराशि का रिकवरी सर्टिफिकेट जारी कर दिया, जबकि अपीलीय न्यायालय के आदेश के अनुसार उसके द्वारा भुगतान किया जा चुका है। पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि निगरानीकर्ता ने जो रू. 12070.55 पैसे का भुगतान किया है वह दि. 01.01.98 से 05.03.99 की अवधि का था, जबकि उसके द्वारा भुगतान दि. 24.11.06 को किया गया है। इस प्रकार अभी तक उसके द्वारा भुगतान की तिथि तक के ब्याज का भुगतान नहीं किया गया है। चूंकि जिला मंच ने पूरी धनराशि का रिकवरी सर्टिफिकेट जारी किया गया है जो कि राज्य आयोग के आदेश के क्रम में विधिसम्मत नहीं है, अत: जिला मंच द्वारा यह समीचीन
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होगा कि वह जारी रिकवरी सर्टिफिकेट को वापस मंगाए और पुन: राज्य आयोग के अपीलीय आदेश दि. 24.05.06 द्वारा दिए गए आदेश के क्रम में ब्याज का आगणन कर निगरानीकर्ता से परिवादी को भुगतान कराना सुनिश्चित करे। अत: पुनरीक्षण आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत पुनरीक्षण आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा जिला मंच का आदेश दि. 05.10.2001 निरस्त किया जाता है। जिला मंच को निर्देशित किया जाता है कि जारी रिकवरी सर्टिफिकेट को वापस लेकर राज्य आयोग द्वारा निर्णीत अपीलीय आदेश दि. 24.05.2006 के अनुसार ब्याज की गणना कर परिवादी को भुगतान कराया जाना सुनिश्चित करें।
पक्षकार अपना व्यय भार स्वयं वहन करेंगे।
निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध कराई जाए।
(राज कमल गुप्ता) (महेश चन्द) पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-5