राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-304/2024
पंजाब नेशनल बैंक, शाखा पचबस जिला बस्ती द्वारा सीनियर ब्रांच मैनेजर व अन्य
बनाम
सूर्य प्रताप सिंह पुत्र स्व0 रामराज सिंह, ग्राम लजघटा, पोस्ट अमारी बाजार, जिला बस्ती व अन्य
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थीगण के अधिवक्ता : श्री एस0एम0 बाजपेई
प्रत्यर्थीगण के अधिवक्ता : कोई नहीं।
दिनांक :- 07.3.2024
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थीगण/पंजाब नेशनल बैंक द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-41 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बस्ती द्वारा परिवाद सं0-396/2020 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 16.01.2024 के विरूद्ध योजित की गई है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवादी के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विस्तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को एकपक्षीय रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
"प्रस्तुत परिवाद परिवादिनी के पक्ष में तथा विपक्षीगण के विरूद्ध एकपक्षीय निर्णीत किया जाता है।
विपक्षीगण को निर्देश दिया जाता है कि इस निर्णय के पारित होने के 60 दिन के अन्दर परिवादी के के0सी0सी0 ऋण मु0 1,00,000.00 रू0 का सरकार के ऋण मोचन योजना के अन्तर्गत मोचन करे।
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विपक्षीगण को यह भी निर्देश दिया जाता है कि परिवादी को विपक्षी के उक्त कृत्य से हुए मानसिक, शारीरिक पीड़ा व आर्थिक क्षति की क्षतिपूर्ति मु0 50,000. 00 रू0 (पचास हजार रूपये) एवं अधिवक्ता शुल्क के रूप में मु0 20,000.00 रु0 (बीस हजार रूपये) व वाद व्यय हेतु मु0 5,000.00 रू0 (पाँच हजार रूपये) उक्त अवधि के अन्तर्गत परिवादी को भुगतान करे।"
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से प्रस्तुत अपील योजित की गई है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कृषि कार्य को और उन्नतिशील बनाने हेतु के0सी0सी0 ऋण के संदर्भ में अपीलार्थी/विपक्षी बैंक से संपर्क किया जिसके अनुक्रम में शाखा प्रबन्धक द्वारा अपने अनुचर दिलीप मिश्र के माध्यम से के0सी0सी0 ऋण हेतु खतौनी देकर आवश्यक प्रपत्र को तैयार कराया गया जिसमें प्रत्यर्थी/परिवादी को हिस्सा के आधार का प्रपत्र तैयार कराकर दिनांक 10.12.2008 को प्रत्यर्थी/परिवादी के के0सी0सी0 ऋण खाता सं0 2482008800007632 में रू0 97,297.00 अन्तरण हुआ। प्रत्यर्थी/परिवादी ने उक्त के0सी0सी0 ऋण से कार्य पूरा न होने के कारण उसकी क्षमता अर्थात ऋण धनराशि को और बढ़ाने का प्रस्ताव बैंक को दिया तत्पश्चात बैंक अधिवक्ता के माध्यम से दूसरा ऋण प्रपत्र तैयार किया गया तथा पुराने के0सी0सी0 पत्रावली में परिवादी का अंश 1/2 भाग अंकित था जबकि प्रत्यर्थी/परिवादी की खतौनी के अनुसार अंश 1/4 ही है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने अंश 1/4 का प्रपत्र बैंक अधिवक्ता के माध्यम से तैयार कराकर बैंक में
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प्रस्तुत किया। परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी के के0सी0सी0 ऋण की बढोत्तरी नहीं हुई।
उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से ऋण माफी योजना लागू हुई जिसमे प्रत्यर्थी/परिवादी का दिनांक 29.08.2017 को रू0 1,00,000.00 का ऋण माफ हो गया। प्रत्यर्थी/परिवादी को दिनांक 31.12.2017 को यह ज्ञात हुआ कि उक्त ऋण माफी की धनराशि पुनः प्रत्यर्थी/परिवादी के ऋण खाते में वापस होकर पुनः बैंक का ऋणी हो गया जबकि अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने ऋण के माफी के प्रारम्भ में ही नये प्रपत्र बैंक के अधिवक्ता के माध्यम से तैयार कराया था जिसे अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने बिना कारण बताये उक्त प्रपत्र को वापस कर दिया। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा विभिन्न तिथियों पर जिला कृषि अधिकारी को पत्र प्रेषित किये गये तथा दिनांक 24.04.2019 को बैंक पत्र प्रेषित किया तथा ऑनलाइन शिकायत किया जिसके अनुक्रम में जिला कृषि अधिकारी ने बैंक को पत्र प्रेषित कर अवगत कराया कि के0सी0सी0 धारक का सम्पूर्ण अंश तहसील अभिलेख के अनुसार 1.2551 हेक्टेयर है जबकि बैंक द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को अपात्र घोषित किया गया है जांच कर पात्रता निर्धारित कर ऋण माफी योजना का लाभ देने का निर्देश दिया गया। जिला कृषि अधिकारी के पत्र के आलोक में बैंक द्वारा जिला कृषि अधिकारी को प्रत्र प्रेषित कर बैंक द्वारा कहा गया कि परिवादी का ऋण हिस्सा अधिक होने के कारण उक्त ऋण माफी की धनराशि पुनः ऋण खाते में वापस कर दिया गया तथा बैक द्वारा जिला कृषि अधिकारी को मामले को निपटाने का आग्रह किया गया। इस प्रकार प्रत्यर्थी/परिवादी बैंक तथा कृषि विभाग का चक्कर लगाता रहा, परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। अन्ततः परिवादी ने विवश होकर दिनांक
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28.08.2020 को अपीलार्थी/विपक्षीगण को विधिक नोटिस प्रेषित किया परन्तु कोई कार्यवाही न होने पर परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख संस्थित किया गया।
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से कोई प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया और न ही कोई उपस्थित हुआ, अत्एव विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से अग्रसारित की गई।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्य और विधि के विरूद्ध है।
यह भी कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी के अभिकथनों पर विश्वास करते हुए जो एकपक्षीय निर्णय/आदेश पारित किया गया है, वह अनुचित है।
यह भी कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रत्यर्थी के कब्जे वाली भूमि से सम्बन्धित आवश्यक दस्तावेजों का अवलोकन किए बिना जो निर्णय/आदेश पारित किया है, वह अनुचित है और अपास्त किये जाने योग्य है। यह भी कथन किया गया कि अपीलार्थी को जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख साक्ष्य एवं सुनवाई का समुचित अवसर प्राप्त नहीं हुआ है।
यह भी कथन किया गया कि परिवाद अत्यधिक कालबाधित है एवं बिना किसी दस्तावेजी साक्ष्य से प्रमाणित किये हुए प्रस्तुत किया गया है, जोकि निरस्त होने योग्य है। यह भी कथन किया गया कि अपीलार्थी द्वारा किसी प्रकार की सेवा में कमी नहीं की गई है।
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अपीलार्थी के अधिवक्ता द्वारा अपील को स्वीकार कर जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित एकपक्षीय निर्णय/आदेश को अपास्त किये जाने की प्रार्थना की गई।
मेरे द्वारा अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता को विस्तार से सुना तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
मेरे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के कथनों को सुनने के पश्चात तथा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो निष्कर्ष अपने निर्णय में अंकित किया गया है, वह पूर्णत: उचित एवं विधि सम्मत है, उसमें किसी प्रकार कोई अवैधानिकता अथवा विधिक त्रुटि अपीलीय स्तर पर नहीं पायी गई, तद्नुसार प्रस्तुत अपील पोषणीयता के बिन्दु एवं अंगीकरण के स्तर पर ही निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील को योजित करते समय यदि कोई धनराशि अपीलार्थी द्वारा जमा की गयी हो, तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
हरीश सिंह
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,कोर्ट नं0-1