राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१७६५/२०१३
(जिला मंच, फैजाबाद द्वारा परिवाद सं0-२७५/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २४-०४-२०१३ के विरूद्ध)
१. दी इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कं0लि0, ३४, नेहरू प्लेस, नई दिल्ली – ११००१९.
२. दी इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कं0लि0, ८/२/१९, रकाबगंज, सिविल लाइन्स, फैजाबाद – २२०४००१. द्वारा दी वाइस प्रेसीडेण्ट, दी इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कं0लि0, ३४, नेहरू प्लेस, नई दिल्ली – ११००१९.
.............अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम
सूर्य प्रसाद पुत्र श्री मकरी प्रसाद, निवासी ग्राम मोहन लाल पुर, पो0-मगहर, कोतवाली थाना-खलीलाबाद, जिला-सन्त कबीर नगर, उत्तर प्रदेश।
............ प्रत्यर्थी/प्रत्यर्थी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री विक्रम सोनी विद्वान अधिवक्ता द्वारा
अधिकृत श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री रजनीश राय विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- ३०-०५-२०१९.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, फैजाबाद द्वारा परिवाद सं0-२७५/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २४-०४-२०१३ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार परिवादी ने एक बोलेरो जीप महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा, पंजीकरण सं0-यू0पी0 ५८ टी ०४८७, ऋण लेकर दिनांक ३०-११-२००६ को निजी उपयोग के लिए सरदार मोटर्स गोरखपुर से खरीदी जिसका बीमा अपीलार्थी बीमा कम्पनी से कराया गया जो दिनांक ३०-११-२००६ से २९-११-२००७ तक प्रभावी था। परिवादी के वाहन का पंजीकरण टैक्सी हेतु हुआ किन्तु परिवादी वाहन
-२-
का उपयोग व्यक्तिगत प्रयोग में करता था, वाहन टैक्सी में नहीं चलता था। परिवादी का प्रश्नगत वाहन परिवादी के मित्र सुनील कुमार के आवास विकास कालोनी, कटरा बस्ती में दरवाजे पर दिनांक १४-११-२००७ को खड़ा था तथा उसी के बगल में सुनील कुमार की बोलेरो जीप भी खड़ी थी। दोनों वाह दिनांक १५-११-२००७ को अज्ञात चोरों द्वारा सुबह ०४ से ०६ बजे के बीच चोरी कर लिए गये जिसकी सूचना तत्कल बीमा कम्पनी को दी गई तथा दिनांक १६-११-२००७ को स्थानीय थाना कोतवाली में चोरी गये वाहनों के सम्बन्ध में सूचना दी गयी जो अपराध संख्या-१५१५/२००७ अं0धा0 ३८० में पंजीकृत हुई। पुलिस द्वारा विवेचना की गई। विवेचना में चोरी की घटना की पुष्टि की गई तथा पुलिस द्वारा अन्तिम आख्या प्रेषित की गई। यह अन्तिम आख्या सम्बन्धित न्यायालय द्वारा स्वीकार की गई। अपीलार्थी बीमा कम्पनी को प्रथम सूचना रिपोर्ट एवं अन्तिम आख्या की स्वीकृति रिपोर्ट की प्रमाणित प्रतिलिपि प्रेषित की गई किन्तु बीमा कम्पनी द्वारा बीमा दावे का भुगतान नहीं किया गया। अत: परिवादी ने अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस दिनांक २५-०६-२००९ को भिजवाई। उसके बाबजूद अपीलार्थीगण ने परिवादी का क्लेम नहीं दिया तथा दिनांक ३०-०७-२००९ को ‘’ नो क्लेम ‘’ का एक पत्र परिवादी को मिला। अत: परिवाद जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी की ओर से प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। अपीलार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रश्नगत वाहन का बीमित होना स्वीकार किया किन्तु अपीलार्थी के कथनानुसार परिवादी के वाहन का उपयोग बीमा पालिसी की शर्तों के विपरीत कथित चोरी की घटना के समय किया जा रहा था। परिवादी का वाहन प्राइवेट वाहन के रूप में बीमित था किन्तु परिवादी के वाहन का उपयोग व्यावसायिक प्रयोजन में किया जा रहा था। इस प्रकार बीमा पालिसी की शर्तों का उल्लंघन अभिकथित करते हुए बीमा दावा स्वीकार नहीं किया गया।
जिला मंच द्वारा नॉन स्टेण्डर्ड आधार पर बीमित धनराशि की ७५ प्रतिशत धनराशि का भुगतान स्वीकार करते हुए प्रश्नगत निर्णय द्वारा अपीलार्थी बीमा कम्पनी को आदेशित किया कि वह परिवादी को बीमित वाहन के क्लेम के रूप में ४,००,०००/-
-३-
रू० ०६ प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज के साथ परिवाद दाखिल करने की तिथि से ता अदायगी आदेश की दिनांक से ३० दिन के अन्दर अदा करे। निर्धारित अवधि में भुगतान न करने की दशा में ब्याज की दर ०७ प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज के साथ अदा करनी होगी।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गई।
हमने अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता श्री विक्रम सोनी द्वारा अधिकृत अधिवक्ता श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय तथा प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री रजनीश राय के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया। प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से लिखित तर्क भी प्रस्तुत किया गया, उसका भी हमने अवलोकन किया।
उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत निर्णय दिनांकित २४-०४-२०१३ की प्रमाणित प्रतिलिपि अपीलार्थी को दिनांक ०१-०५-२०१३ को प्राप्त हुई, जिसके विरूद्ध दिनांक ०६-०८-२०१३ को प्रस्तुत अपील योजित की गई। इस प्रकार यह अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-१५ के अन्तर्गत निर्धारित समय सीमा के बाद लगभग ०२ माह से अधिक विलम्ब से योजित की गई। विलम्ब को क्षमा किए जाने हेतु अपीलार्थी की ओर से प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया। प्रार्थना पत्र के समर्थन में श्री अशोक कुमार अवस्थी जो अपीलार्थी के अधिवक्ता श्री विक्रम सोनी के लिपिक के रूप में कार्यरत हैं, का शपथ पत्र संलग्न किया गया है। शपथ पत्र में यह अभिकथित किया गया है कि दिनांक ०१-०५-२०१३ को प्रश्नगत निर्णय की सत्य प्रति प्राप्त करने के उपरान्त निर्णय कम्पनी के हैड आफिस को विधिक राय हेतु भेजा गया जहॉं से अगस्त २०१३ के प्रथम सप्ताह में राय प्राप्त हुई। तदोपरान्त श्री विक्रम सोनी एडवोकेट की नियुक्ति की गई जिन्होंने अपील तैयार करके योजित की। श्री अशोक कुमार अवस्थी अपीलार्थी बीमा कम्पनी में कार्यरत कोई कर्मचारी अथवा अधिकारी नहीं है। अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब का उनके द्वारा प्रस्तुत किया गया स्पष्टीकरण पर्याप्त एवं सन्तोषजनक नहीं माना जा सकता। अत: अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब का स्पष्टीकरण सन्तोषजनक न पाते हुए अपील कालबाधित होने के आधार पर निरस्त किए जाने योग्य है।
-४-
जहॉं तक गुणदोष के आधार पर अपील के निस्तारण का प्रश्न है, यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रश्नगत वाहन कथित चोरी की घटना के समय अपीलार्थी बीमा कम्पनी से बीमित था। प्रत्यर्थी/परिवादी ने चोरी की कथित घटना के तत्काल बाद प्रथम सूचना रिपोर्ट सम्बन्धित थने में दर्ज कराई तथा बीमा कम्पनी को भी चोरी की घटना के सन्दर्भ में सूचना प्रेषित की। पुलिस द्वारा की गई विवेचना में चोरी की घटना की पुष्टि की गई तथा विवेचना के उपरान्त अन्तिम आख्या प्रेषित की गई। यह अन्तिम आख्या मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट, बस्ती द्वारा स्वीकार की गई। अपीलार्थी द्वारा बीमा दावा मात्र इस आधार पर अस्वीकार किया गया कि कथित घटना के समय प्रश्नगत वाहन का उपयोग व्यावसायिक प्रयोजन हेतु किया जा रहा था जबकि प्रश्नगत वाहन निजी उपयोग हेतु बीमित था। अत: बीमा पालिसी की शर्तों का उल्लंघन अभिकथित किया गया।
उल्लेखनीय है कि नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम नितिन खण्डेलवाल, (२००९) १ सुप्रीम कोर्ट केसेज (क्रि.) १२७ के मामले में मा0 उच्चतम न्यायलाय द्वारा यह निर्णीत किया गया कि चोरी के मामलों में बीमा पालिसी की शर्तों का उल्लंघन महत्पूर्ण नहीं माना जा सकता तथा इस आधार पर बीमा दावा निरस्त नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त अमलेन्दु साहू बनाम ओरियण्टल इंश्योरेंस कं0 लि0 (२०१०) टी0ए0सी0 ३७४ (एस0सी0) के मामले में मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा इस आधार पर बीमा अस्वीकार किया जाना वैध नहीं माना।
प्रस्तुत प्रकरण में जिला मंच द्वारा बीमित धनराशि की ७५ प्रतिशत धनराशि के नॉन स्टेण्डर्ड आधार पर भुगतान किए जाने हेतु आदेशित किया गया है। प्रश्नगत निर्णय हमारे विचार से त्रुटिपूर्ण नहीं है। अपील में बल नहीं है। अपील तद्नुसार निरस्त किए जाने योग्य है।
जिला मंच द्वारा प्रश्नगत निर्णय में कोई वाद व्यय बीमाधारक/प्रत्यर्थी/परिवादी को नहीं दिलाया गया जबकि बीमा दावा अस्वीकार करके अपीलार्थी बीमा कम्पनी द्वारा सेवा में त्रुटि की गई। प्रश्नगत निर्णय मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये निर्णयों पर आधारित होने के बाबजूद तथा अपील के आधारों में ऐसा कोई आधार प्रस्तुत न किए
-५-
जाने के बाबजूद कि मा0 उच्चतम न्यायालय के उपरोक्त सन्दर्भित निर्णय प्रस्तुत प्रकरण के सन्दर्भ में क्यों प्रभावी नहीं हैं, बीमा कम्पनी द्वारा अपील योजित की गई है। ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से प्रत्यर्थी/परिवादी को ५,०००/- रू० अपील व्यय के रूप में दिलाया जाना न्यायोचित होगा।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। जिला मंच, फैजाबाद द्वारा परिवाद सं0-२७५/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २४-०४-२०१३ की पुष्टि की जाती है।
अपीलार्थीगण को निर्देशित किया जाता है कि वे निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त होने की तिथि से एक माह के अन्दर प्रत्यर्थी/परिवादी को अपील व्यय के रूप में ५,०००/- रू० का भुगतान किया जाना सुनिश्चित करें।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(गोवर्द्धन यादव)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-२.