(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2157/2002
डॉ0 राम बचन पुत्र विजय नारायण तिवारी
बनाम
सूर्यनाथ तिवारी (मृतक)
प्रतिस्थापित विधिक उत्तराधिकारी
- रमाकान्त तिवारी
- उमाकान्त तिवारी
- शिवाकान्त तिवारी
- शशीकांत तिवारी } पुत्र सूर्यनाथ तिवारी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री अनिल कुमार मिश्रा, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री कुमार संभव, विद्धान अधिवक्ता
दिनांक :11.01.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-13/1999, सूर्यनाथ तिवारी (मृतक) द्वारा विधिक उत्तराधिकारी बनाम डा0 रामवचन में विद्वान जिला आयोग, आजमगढ़ द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 25.07.2002 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री अनिल कुमार मिश्रा एवं प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री कुमार संभव के तर्क को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया।
2. जिला उपभोक्ता मंच ने परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलार्थी को आदेशित किया है कि मरीज के इलाज में लापरवाही बरतने के कारण अंकन 40,500/-रू0 की राशि को अदा करने का आदेश दिया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार दिनांक 24.01.1998 का दायां पैर में चोट लगने के कारण अपीलार्थी के अस्पताल में एक्सरे कराया गया, जहां हड्डी टूटी होना पाया गया। डॉक्टर द्वारा सलाह दी गयी कि रोड डालकर प्लास्टर करना होगा। परिवादी 15 से 20 दिन तक विपक्षी के अस्पताल में रहा और विपक्षी की सलाह पर 21 दिन की दवा लेकर घर चला आया, परंतु दर्द कम नहीं हुआ और जो पाइप पैर में डाला गया वह धसने लगा। विपक्षी के पास आया और दिखाया कि समय पर ठीक हो जायेगा, बैसाखी के सहारे चला करो, परंतु कुछ दिन बाद पाईप ऊपर आ गया। विपक्षी द्वारा हैमरिंग करके पाइप को अंदर कर दिया गया, परंतु याची को कोई आराम नहीं हुआ और तब डॉक्टर द्वारा बताया गया कि पाईप ठीक साइज का नहीं है, इसलिए दुबारा ऑपरेशन करके दूसरा राड डालने के लिए दिनांक 07.04.1998 को भर्ती कराया और ऑपरेशन करके घर भेज दिया, परंतु कोई आराम नहीं हुआ। पुन: डॉक्टर को दिखाया गया, जिनके द्वारा कहा गया कि पाईप फिर भी ठीक साइज का नहीं पड़ा है और हड्डियों के बीच काफी अंतर हो गया है। याची लगातार दवाईयां खाता रहा, परंतु ठीक नहीं हुआ और घुटना ऊपर से घूमने लगा। दिनांक 10.10.1998 को विपक्षी डॉक्टर द्वारा कहा गया कि कहीं दूसरी जगह दिखा लो तब याची सुलतानपुर गया और वहां अपना इलाज कराया। इस प्रकार याची 9 माह तक शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा झेलता रहा।
4. परिवाद में वर्णित तथ्यों का खण्डन करने के लिए अपीलार्थी को अवसर प्रदान किया गया, परंतु जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष इन तथ्यों का कोई खण्डन अपीलार्थी द्वारा नहीं किया गया। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में वर्णित तथ्यों को सशपथ साबित किया है, जिसके आधार पर यह पाया गया कि परिवादी ने यद्यपि 75,000/-रू0 इलाज खर्च होना बताया है, परंतु केवल 20,000/-रू0 की राशि खर्च होने का सबूत पत्रावली पर नहीं है। अत: इस राशि के अलावा 20,000/-रू0 मानसिक प्रताड़ना के मद में अदा करने के लिए आदेशित किया गया है।
5. अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि उनके स्तर से इलाज में कोई लापरवाही नहीं बरती गयी, परंतु चूंकि परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में एक बार नहीं अपितु तीन बार इलाज के लिए विपक्षी डॉक्टर के यहां जाने का कथन किया है। इस तथ्य का कोई खण्डन अवसर होने के बावजूद अपीलार्थी द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष नहीं किया गया है। अत: अखण्डनीय साक्ष्य के आधार पर दिया गया निर्णय विधिसम्मत है। इस निर्णय को परिवर्तित करने का कोई आधार नहीं है।
आदेश
अपील खारिज की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 3