सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
(जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, सोनभद्र द्वारा परिवाद संख्या 39 सन 2015 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 05.08.2016 के विरूद्ध)
अपील संख्या 2698 सन 2016
इलाहाबाद बैंक, शाखा पुरना पो0 अमिलौधा, तहसील घोरावल, जनपद सोनभद्र।
.......अपीलार्थी/प्रत्यर्थी
-बनाम-
सूर्यकांत मिश्रा पुत्र स्व0 रविन्द्रनाथ मिश्र निवासी सेमरा खुर्द, कम्हरिया पो0 परसौना, तहसील घोरावल, जिला सोनभद्र ।
. .........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 डा0 आभा गुप्ता, सदस्य ।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री अवधेश शुक्ला।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - कोई नहीं ।
दिनांक:- 22-02-22
मा0 डा0 आभा गुप्ता, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, इलाहाबाद बैंक, शाखा पुरना पो0 अमिलौधा, तहसील घोरावल, जनपद सोनभद्र द्वारा द्वारा इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, सोनभद्र द्वारा परिवाद संख्या 39 सन 2015 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 05.08.2016 के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में, वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी एक कृषक है उसने कृषि विकास हेतु विपक्षी बैंक से जरिए किसान क्रेडिट कार्ड एक लाख रू0 का ऋण लिया था जिसकी अदायगी उसने दिनांक 16.06.2006 को मु0 23000.00 दिनांक 16.02.2008 को मु0 20,000.00 एवं दिनांक 29.06.2010 को मु0 50,000.00 रू0 जमा करके की, जिसकी जमा की रसीदें उसके पास हैं। परिवादी द्वारा कुछ अन्य धनराशि भी जमा की गयी, जिसकी जमा रसीदें उसे मिल नहीं पा रही हैं। परिवादी का कथन है कि विपक्षी बैंक द्वारा उसके विरूद्ध 58,628.00 रू0 अभी भी बकाया जाहिर किया जा रहा है, जिसकी वसूली हेतु बैंक द्वारा आर0सी0 जारी कर दी गयी है । परिवादी ने बैंक में जाकर एकाउण्ट स्टेटमेंट प्राप्त किया तो उसे ज्ञात हुआ कि बैंक ने परिवादी द्वारा दिनांक 16.06.2006 को जमा किए गए मु0 23000.00 दिनांक 16.02.2008 को जमा किए गए मु0 20,000.00 को स्टेटमेंट आफ एकाउण्ट में जमा नहीं दर्शाया है। परिवादी का यह भी कथन है कि सरकार द्वारा वर्ष 1997 से वर्ष 2007 के बीच किसानों द्वारा लिए गए ऋणों को पूरी तरह माफ करने का निर्देश संबंधित बैंकों को दिया है। परिवादी को यही जानकारी रही कि उक्त योजना व निर्देश के अन्तर्गत उसका अवशेष ऋण बैंक द्वारा माफ कर दिया गया है, जिसके कारण यह परिवाद, परिवादी द्वारा योजित किया गया ।
विपक्षी की ओर से अपना वादोत्तर प्रस्तुत कर उल्लिखित किया गया कि परिवादी द्वारा दिनांक 16.06.2006 को मु0 23000.00 दिनांक 18.02.2008 को मु0 20,000.00 जमा से संबंधित रसीदें बैंक में प्रस्तुत नहीं की गयी है, जिसके कारण समाधान नहीं हो सका है। जमा रसीद न दिखाने के कारण यही माना जाएगा कि परिवादी झूठी एवं मनगढंत कहानी बता रहा है। विपक्षी द्वारा यह भी उल्लिखित किया गया कि प्रस्तुत परिवाद कालबाधित है तथा जिला आयोग को परिवाद की सुनवाई का अधिकार प्राप्त नहीं है।
विद्वान जिला मंच ने उभय पक्ष के साक्ष्य एवं अभिवचनों के आधार पर यह अवधारित करते हुए कि परिवादी द्वारा दिनांक 16.06.2006 को मु0 23000.00 दिनांक 16.02.2008 को मु0 20,000.00 जमा करने की रसीदों की फोटो प्रतियां आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी हैं जिसका उल्लेख अपीलार्थी बैंक द्वारा दिए गए स्टेटमेंट आफ एकाउण्ट, जो दिनांक 01.01.2001 से 29.09.2010 तक का है, में नहीं किया गया है । जमा धनराशि का इन्द्राज किस कारण नहीं किया गया है, इस तथ्य का विपक्षी बैंक द्वारा कोई कारण नहीं बताया गया है, निम्न आदेश पारित किया :-
'' परिवादी का परिवाद विपक्षी बैंक के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी बैंक को आदेश दिया जाता है कि वह परिवादी से मु0 7000.00 रू0 प्राप्त करके नोडयूज प्रमाण पत्र जारी करें तथा ब्याज को माफ किया जाता है। ब्याज की वसूली न की जावे। वाद परिस्थितियों को देखते हुए वाद व्यय पक्षकार सवयं अपना-अपना वहन करेंगे। उपरोक्त आदेश का पालन एक माह में किया जावे। ''
उक्त निर्णय से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत अपील इलाहाबाद बैंक द्वारा योजित की गयी है।
अपील के आधारों में कहा गया है कि जिला आयोग का निर्णय साक्ष्य एवं विधि के विरूद्ध है और दोषपूर्ण है। अपील स्वीकार कर जिला आयोग का निर्णय व आदेश समाप्त करते हुए परिवाद निरस्त किया जाए ।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला आयोग का निर्णय व आदेश उचित है। अपील बलरहित है और निरस्त किए जाने योग्य है।
हमने के तर्क विस्तारपूर्वक सुने एवं पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों का सम्यक अवलोकन किया।
पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्य एवं अभिलेख का भलीभांति परिशीलन करने के पश्चात हम यह पाते हैं कि अपीलार्थी बैंक ने परिवादी द्वारा दिनांक 16.06.2006 को मु0 23000.00 दिनांक 16.02.2008 को मु0 20,000.00 जमा की गयी धनराशि का इन्द्राज ऋण खाते में नहीं किया है। उक्त धन को जमा करने की रसीदों की प्रति प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपने परिवाद में जिला आयोग के समक्ष दाखिल की गयी हैं। बैंक का यह कथन असत्य प्रतीत होता है कि परिवादी द्वारा उक्त जमा धन की रसीदों को बैंक में दाखिल नहीं किया गया । धन जमा करने की रसीद बैक द्वारा ही जारी की गयी है, अत: उनके द्वारा जमा धन का ऋण खाते में समायोजन न करके स्वयं की सेवा में कमी की गयी है। बैंक का यह तर्क स्वीकार योग्य नहीं है कि परिवाद कालबाधित योजित किया गया है क्योंकि बैंक द्वारा आर0सी0 जारी करने पर परिवादी को स्थिति की जानकारी हुयी और उसके द्वारा समयान्तर्गत कार्यवाही की गयी। विद्वान जिला आयोग द्वारा ब्याज को माफ करने का आदेश बैंक की सेवा में कमी के दृष्टिगत पारित किया गया है। इसके अतिरिक्त प्रस्तुत परिवाद सेवा में कमी से संबंधित है, अत: इसकी सुनवाई का अधिकार जिला आयोग को प्राप्त है।
समस्त तथ्यों के परिशीलन के उपरांत हमारे विचार से जिला मंच द्वारा साक्ष्यों की पूर्ण विवेचना करते हुए प्रश्नगत परिवाद में विवेच्य निर्णय पारित किया है, जो कि विधिसम्मत है एवं उसमें हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
तद्नुसार, प्रस्तुत अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेगें।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (डा0 आभा गुप्ता)
सदस्य सदस्य
सुबोल श्रीवास्तव
(पी0ए0(कोर्ट नं0-3)