राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-२४३१/१९९७
(जिला मंच, मेरठ द्वारा परिवाद सं0-४६८/१९९६ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ११-११-१९९७ के विरूद्ध)
१. सहारा इण्डिया म्युचुअल बेनीफिट कम्पनी लि0 (a Company registered under the Company Act 1956) रजिस्टर्ड कार्यालय १-कपूरथला कॉम्प्लेक्स, अलीगंज, लखनऊ द्वारा अधिकृत हस्ताक्षरी।
२. सेक्टर आफिस सहारा इण्डिया, २६१ शिवाजी रोड, मेरठ।
३. आशीष मिश्रा सेक्टर मैनेजर, सहारा इण्डिया।
..................... अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम्
सुरेश कुमार पुत्र श्री सोहन लाल, ३११, नगला बट्टू मेरठ।
.................... प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित :- श्री आलोक कुमार श्रीवास्तव विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री एम0एच0 खान विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : ०९-०३-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, मेरठ द्वारा परिवाद सं0-४६८/१९९६ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ११-११-१९९७ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार उसने अपीलार्थीगण के यहॉं २५,०००/- रू० दिनांक ०५-११-१९९३ को फिक्स डिपोजिट में जमा कराये थे। परिपक्वता तिथि ०२ वर्ष के उपरान्त दिनांक ०५-११-१९९५ थी। परिपक्वता तिथि पर ३२,९२०/- रू० का भुगतान अपीलार्थीगण द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को किया जाना था। प्रत्यर्थी के कथनानुसार दिनांक ०६-११-१९९३ को अपीलार्थीगण की ओर से श्री आशीष
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मिश्रा मैनेजर परिवादी की दुकान पर आये और कहा कि कम्पनी की औपचारिकताओं हेतु कुछ कागजातों पर हस्ताक्षर कराने हैं और उनके कहने पर परिवादी ने हस्ताक्षर कर दिये। कुछ दिन बाद वह विपक्षी के यहॉं गया तो ज्ञात हुआ कि आशीष मिश्रा का लखनऊ तबादला हो गया है। अपीलार्थीगण द्वारा उसे यह बताया गया कि उसको भुगतान दिनांक १०-११-१९९५ को कर दिया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थीगण के यहॉं चक्कर लगाता रहा किन्तु उसे कोई भुगतान नहीं किया गया। दिनांक २२-११-१९९६ को प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थीगण को नोटिस भी दी, किन्तु कोई उत्तर नहीं मिला। अत: कथित एफ0डी0आर0 की परिपक्वता धनराशि ३२,९२०/- रू० की मय ब्याज अदायगी तथा क्षतिपूर्ति हेतु परिवाद जिला मंच के समक्ष परिवादी द्वारा योजित किया गया।
अपीलार्थी सं0-१ ने जिला मंच के समक्ष उपस्थित होकर प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया, जिसके अनुसार अपीलार्थीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादी को भुगतान १०-११-१९९५ को कर दिया गया है, उसकी कोई धनराशि बकाया नहीं है। इस सन्दर्भ में परिवादी ने एडवाइस नोट पर हस्ताक्षर करके भी दिये थे।
विद्वान जिला मंच ने अपीलार्थीगण द्वारा अपने कथन के समर्थन में कोई साक्ष्य प्रस्तुत किया जाना न पाते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद स्वीकार किया तथा प्रश्नगत निर्णय द्वारा अपीलार्थीगण को निर्देशित किया कि वे प्रत्यर्थी/परिवादी को ३२,९२०/- रू० का भुगतान १८ प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ एक माह के अन्दर करें। ब्याज की गणना ०६-११-१९९५ से भुगतान की तिथि तक की जायेगी। इसके अतिरिक्त विपक्षीगण को ५००/- रू० वाद व्यय के रूप में परिवादी को अदा करने हेतु भी निर्देशित किया गया। इस निर्णय से क्षुब्ध होकर अपीलार्थीगण द्वारा प्रस्तुत अपील योजित की गयी है।
हमने अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक कुमार श्रीवास्तव तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एम0एच0 खान के तर्क विस्तार से सुने तथा पत्रावली का अवलोकन किया।
अपीलार्थीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत मामले में जिला मंच ने दिनांक २०-०५-१९९७ को परिवाद की कार्यवाही एक पक्षीय किए जाने हेतु
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आदेश पारित किया। तदोपरान्त दिनांक १५-०७-१९९७ को अपीलार्थीगण की ओर से एक पक्षीय आदेश को निरस्त करने हेतु प्रार्थना पत्र जिला मंच क समक्ष प्रस्तुत किया गया। विद्वान जिला मंच ने एक पक्षीय सुनवाई हेतु पारित आदेश को निरस्त कर दिया। दिनांक १५-०७-१९९७ को परिवादी द्वारा शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया, किन्तु विद्वान जिला मंच ने प्रतिवादी की साक्ष्य हेतु कोई तिथि न नियत करके बहस हेतु तिथि नियत कर दी तथा दिनांक ११-११-१९९७ को निर्णय पारित कर दिया। अपीलार्थीगण की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि मात्र इस आधार पर कि मूल फिक्स डिपोजिट प्रमाण पत्र प्रत्यर्थी/परिवादी के पास है, प्रत्यर्थी को परिपक्ता धनराशि की अदायगी न होना नहीं माना जा सकता। प्रत्यर्थी/परिवादी ने सेटलमेण्ट फार्म पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके द्वारा उसने ३२९२०/- रू० प्राप्त करना स्वीकार किया। विद्वान जिला मंच ने पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेख का उचित परिशीलन न करके गलत निष्कर्ष निकालते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है।
अपील की सुनवाई के मध्य अपीलार्थीगण की ओर से सेटलमेण्ट फार्म की फोटोप्रति अपील के साथ कागज सं0-१८ दाखिल की गयी है। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिपक्वता धनराशि ३२,९२०/- रू० प्राप्त करके इस अभिलेख पर हस्ताक्षर किए थे, अत: प्रत्यर्थी/परिवादी का यह कथन स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि कथित एफ0डी0आर0 की परिपक्वता धनराशि ३२,९२०/- रू० प्रत्यर्थी/परिवादी को प्राप्त नहीं करायी गयी।
उल्लेखनीय है कि स्वयं अपीलार्थी यह स्वीकार करता है कि दिनांक १५-०७-१९९७ को अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र पर पारित आदेशानुसार विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत मामले की एक पक्षीय सुनवाई हेतु पारित आदेश दिनांकित २०-०५-१९९७ को निरस्त कर दिया। दिनांक १५-०७-१९९७ को प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपनी साक्ष्य प्रस्तुत की गयी तथा इस मामले में प्रश्नगत निर्णय दिनांक ११-११-१९९७ को पारित किया गया। अपीलार्थी की साक्ष्य हेतु कोई तिथि नियत नहीं की गयी, बल्कि बहस हेतु तिथि नियत कर दी गयी। दिनांक १५-०७-१९९७ को अपीलार्थी की साक्ष्य स्वीकार की गयी थी और
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उसके उपरान्त बहस हेतु तिथि नियत की गयी थी, किन्तु निर्णय दिनांक ११-११-१९७ को पारित किया गया। अपीलार्थीगण बहस की तिथि पर भी अपनी साक्ष्य प्रस्तुत कर सकते थे। अपीलार्थीगण का यह कथन नहीं है कि बहस की तिथि पर अपीलार्थीगण द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया, किन्तु उनकी साक्ष्य विद्वान जिला मंच द्वारा स्वीकार नहीं की गयी। दिनांक १५-०७-१९९७ के लगभग ०४ माह के उपरान्त प्रश्नगत मामले में निर्णय पारित किया गया। अपीलार्थीगण यदि चाहते तो अपनी साक्ष्य विद्वान जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत कर सकते थे। जिला मंच के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत न करने का कोई उचित स्पष्टीकरण अपीलार्थीगण द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया, जबकि प्रत्यर्थी/परिवादी को भुगतान से सम्बन्धित साक्ष्य (सेटलमेण्ट फार्म) निर्विवाद रूप से अपीलार्थीगण के पास उपलब्ध रही होगी।
यह भी उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत परिवाद योजित किए जाने से पूर्व प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थीग्ाण को नोटिस भेजी थी, जिसमें यह तथ्य उल्लिखित किया गया था कि प्रश्नगत एफ0डी0आर0 की परिपक्वता धनराशि उसे प्राप्त नहीं करायी गयी है, किन्तु इस नोटिस का कोई उत्तर प्रत्यर्थी/परिवादी को नहीं भेजा गया। यदि वास्तव में परिपक्वता धनराशि का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी को प्राप्त कराया गया होता तो स्वाभाविक रूप से उस भुगतान के तथ्य को उल्लिखित करते हुए नोटिस का जवाब अपीलार्थीगण की ओर से प्रेषित किया जाता। विद्वान जिला मंच के समक्ष प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रत्युत्तर शपथ पत्र भी प्रस्तुत किया गया, जिसकी प्रति स्वयं अपीलार्थीगण ने अपील के साथ दाखिल की है, जिसमें परिवादी द्वारा यह तथ्य उल्लिखित किया गया है कि परिपक्वता की धनराशि की कथित अदायगी के सम्बन्ध में अपीलार्थीगण ने किसी रजिस्टर में उसके हस्ताक्षर नहीं कराये हैं। अपीलार्थीगण के नियमानुसार २०,०००/- रू० से अधिक का भुगतान अपीलार्थीगण द्वारा चेक के माध्यम से ही किया जाता है। प्रत्यर्थी/परिवादी के सगे भाई की एफ0डी0आर0 का भुगतान २०,०००/- रू० से अधिक का चेक के माध्यम से ही उसे प्राप्त कराया गया था। इस शपथ पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादी ने यह भी कहा है कि अपीलार्थीगण के यहॉं यह नियम है कि
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एफ0डी0आर0 के पीछे टिकट लगाकर हस्ताक्षर कराकर भुगतान किया जाता है। यदि एफ0डी0आर0 खो जाती है तो ०५/- रू० के स्टाम्प पर नोटरी से लिखवाकर अपीलार्थीगण लेते हैं कि जमाकर्ता की एफ0डी0आर0 खो गयी है, भुगतान किया जाय। जबकि प्रश्नगत मामले में मूल एफ0डी0आर0 निर्विवाद रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी के पास है। अपील के आधारों में अपीलार्थीगण द्वारा यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि प्रश्नगत मामले में प्रत्यर्थी/परिवादी की मूल एफ0डी0आर0 पर भुगतान प्राप्ति के हस्ताक्षर उससे क्यों नहीं प्राप्त किए गये। साथ ही यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि किस प्रकार से प्रत्यर्थी/परिवादी को परिपक्वता धनराशि का भुगतान किया गया। मु० २०,०००/- रू० से अधिक धनराशि होने के बाबजूद चेक के माध्यम से प्रश्नगत धनराशि का भुगतान क्यों नहीं किया गया। यदि प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रश्नगत धनराशि का भुगतान किया गया होता तब स्वाभाविक रूप से इस भुगतान के सम्बन्ध में अपीलार्थीगण द्वारा अनुरक्षित किसी अभिलेख में इस तथ्य का उल्लेख अवश्य किया जाता, किन्तु ऐसा कोई अभिलेख अपीलार्थीगण की ओर से प्रस्तुत नहीं किया गया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी का यह स्पष्ट कथन है कि अपीलार्थीगण के प्रबन्धक श्री आशीष मिश्रा ने कार्यालय की औपचारिकताओं की पूर्ति के सम्बन्ध में बिना प्रत्यर्थी/परिवादी को स्पष्ट किए कुछ अभिलेखों पर उससे हस्ताक्षर कराये थे। ऐसी परिस्िथति में मात्र सेटलमेण्ट फार्म पर प्रत्यर्थी/परिवादी के कथित हस्ताक्षरों के आधार पर परिपक्वता धनराशि का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी को किया जाना नहीं माना जा सकता। हमारे विचार से विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत परिवाद को स्वीकार करके कोई त्रुटि नहीं की है, किन्तु विद्वान जिला मंच ने परिपक्वता की तिथि पर देय सम्पूर्ण धनराशि की अदायगी तक १८ प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से किए जाने हेतु निर्देशित किया है, जबकि स्वयं परिवादी के कथनानुसार २५,०००/- रू० की धनराशि उसने फिक्स डिपोजिट में ०२ वर्ष के लिए जमा की थी और परिपक्वता पर उसे ३२,९२०/- रू० प्राप्त होना था। ऐसी परिस्थिति में पक्षकारों के मध्य हुई संविदा के आलोक में लगभग १५ प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण ब्याज की अदायगी का अनुबन्ध माना जा सकता है। अत: १८ प्रतिशत वार्षिक
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की दर से साधारण ब्याज की अदायगी हेतु निर्देशित किया जाना न्यायोचित नहीं होगा। हमारे विचार से पक्षकारों के मध्यम निष्पादित संविदा के आलोक में १५ प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण ब्याज की अदायगी हेतु आदेशित किया जाना न्यायोचित होगा। तद्नुसार यह अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला मंच, मेरठ द्वारा परिवाद सं0-४६८/१९९६ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ११-११-१९९७ मात्र इस सीमा तक संशोधित किया जाता है कि परिपक्वता की धनराशि ३२,९२०/- रू० पर जिला मंच द्वारा आदेशित १८ प्रतिशत वार्षिक ब्याज के स्थान पर १५ प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण ब्याज देय होगा। शेष आदेश की यथावत पुष्टि की जाती है।
अपीलीय व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(महेश चन्द)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-५.