राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, लखनऊ उ0प्र0
अपील संख्या- 2613/2006 सुरक्षित
(जिला उपभोक्ता फोरम, उन्नाव द्वारा परिवाद सं0 46/2004 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 09-01-2006 के विरूद्ध)
अशोक लीलैण्ड फाइनेंस लिमिटेड, द्वारा लीगल इक्जीक्यूटिव उमेश कुमार दिवेदी आफिस- 113/120, स्वरूपनगर, कानपुर।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
सुरेश कुमार पुत्र श्री शिव शंकर, निवासी- मकान नं0- 379, मोहल्ला- सिंगरौली, तहसील एण्ड जिला- उन्नाव। .प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्य।
माननीय श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थिति : श्री बृजेन्द्र चौधरी, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थिति : कोई नहीं।
दिनांक-06-02-2017
माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्य, द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता फोरम, , उन्नाव द्वारा परिवाद सं0 46/2004 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 09-01-2006 के विरूद्ध योजित की गई है, जिसमें जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है:-
परिवाद एक तरफा मय खर्चा स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण 1 ता 3 को निर्देश दिया जाता है कि वे परिवादी से अधिक ली गई धनराशि अंकन रूपया 6,285-00 मय ब्याज 18 प्रति�शत प्रति�वर्ष परिवादी को अदा करें। विपक्षी सं0-4 आर0टी0ओ0 फीस के रूप में अधिक ली गई धनराशि अंकन रूपया 450-00 परिवादी को मय ब्याज 18 प्रति�शत प्रति�वर्ष भुगतान करें। सभी विपक्षीगण परिवादी को आर्थिक व मानसिक क्षति� के लिए अंकन रूपया 20,000-00 व वाद व्यय के रूप में अंकन रूपया 1,000-00 भुगतान करें।
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार से है कि परिवादी ने मेसर्स लीलैण्ड फाइनेंस कम्पनी से अंकन 28,000-00 रूपया 14 प्रति�शत वार्षिक ब्याज दर पर फाइनेंसकराकर दिनांक 20-02-2001 को मेसर्स उन्नाव मोटर्स शेखपुर, उन्नाव से एक बजाज मोटर सइकिल जिसकी बाजारी कीमत अंकन 33,827-00 रूपये थी, खरीदी जिसका इंजन नम्बर डी0एफ0एम0 बी0जी0एच0 22631 एवं चेसिस नं0- डी0एफ0एफ0बी0जी0एच027322 था। परिवादी को प्रारम्भ में अंकन रूपया 30,000-00 की फाइनेंस स्वीकृत होना विपक्षीगण द्वारा बताया गया एवं 14 प्रति�शत वार्षिक ब्याज की दर से 24 माह की ऋण की किश्तें बताई गई। परिवादी को प्रत्येक माह किश्त
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के 1632-00 रूपये अदा करने थे। एक किश्त नकद मोटर साइकिल लेने के समय ही परिवादी से ली गई। शेष 23 चेके परिवादी से विपक्षी सं0-3 शाखा प्रबन्धक, मेसर्स अशोक लीलैण्ड फाइनेंस लि0 12 आवास विकास कालोनी शहर व जिला उन्नाव ने ले ली थी। परिवादी ने मोटर साइकिल खरीदते समय अंकन रूपया 9,000-00 मेसर्स उन्नाव मोटर्स शेखपुर उन्नाव को नकद दिया था, जिसमें 1950-00 रूपये आर0टी0ओ0 के 495-00 रूपये व बीमे के 632-00 रूपये एक एडवॉस किश्त के रूप में शामिल था। विपक्षी सं0-4 श्री अंनिल चौरसिया प्रोपराइटर उन्नाव मोटर्स शेखपुर, उन्नाव ने जब आर0टी0ओ0 का रजिस्ट्रेशन सर्टीफिकेट दिया, जिसमें रजिस्ट्रेशन फीस केवल 1500-00 रूपये लिखी थी। इस प्रकार विपक्षी सं0-4 ने 450-00 रूपये आर0टी0ओ0 खर्चा के रूप में अधिक लिया। यद्धिप विपक्षी सं0-1 मेसर्स अशोक लीलैण्ड फाइनेंस लि0 द्वारा प्रारम्भ में अंकन रूपया 30,000-00 ऋण स्वीकृत करने की बात की गई थी, परन्तु कम्पनी ने बाद में बताया कि आपका ऋण 28,000-00 रूपये का ही स्वीकृत हुआ है, जिसमें 14 प्रति�शत ब्याज की दर से 1494-00 रूपये प्रति� माह की किश्त बनती थी, जिसे विपक्षी सं0-1 ता 3 द्वारा आखिरी में समायोजित करने के लिए कहा गया। इस प्रकार विपक्षी सं0-3 हर माह 1632-00 रूप्ये प्रति� माह की किश्त परिवादी के खाता संख्या-18827 बैंक आफ बड़ौदा उन्नाव से आहरित करता रहा। परिवादी ने विपक्षी सं0-4 को अंकन 2,000-00 रूपये नकद भी अदा किये जो शेष विपक्षीसं0-4 का परिवादी पर निकल रहा था। परिवादी के यह कहने पर कि किश्त का अधिक रूपया भर लिया गया है, जिस पर विपक्षीगण ने आश्वासन दिया कि अन्त में जब पूरा पैसा जमा करके खाता बन्द करेगे तब जो पैसा अधिक लिया गया है, उसे समायोजित कर दिया जायेगा। परिवादी अंकन रूपया 1632-00 के हिसाब से विपक्षीगण को किश्त अदा करता रहा तथा दिनांक 30-12-2002 को फाइनल सेटिलमेंट में विपक्षीगण ने परिवादी पर रूपया 3,626-46 पैसे बाकी बताया, जिसका भुगतान परिवादी ने विपक्षी सं0-3 को करके रसीद प्राप्त कर ली। विपक्षीगण ने 1494-00 रूप्ये के स्थान पर 1632-00 रूपये प्रति माह की 24 किश्ते कम्पनी ने आहरित कर परिवादी से 3,312-00 रूपये अधिक ले लिया इसके अलावा ब्याज की दर भी 14 प्रतिशत वार्षिक के बजाए 19.94 प्रतिशत वार्षिक लगायी गई। दिनांक 04-06-2003 को जब परिवादी नोडयूज सर्टीफिकेट व अपनी चेके तथा अपनी चाभी एवं कम्पनी पर निकलने वाला 3,312-00 रूपया लेने पहुंचा तो विपक्षी सं0-3 ने कम्पनी का एक कप्यूटराइज्ड पर्चा देकर कहा कि परिवादी पर 2,201-00 रूपया अभी बकाया है, इसलिए कम्पनी द्वारा नोडयूज
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सर्टीफिकेट चेकें व चाभी आदि देने से इंकार कर दिया, तदोपरान्त दिनांक 04-06-2003 को परिवादी ने रूपया 2,201-00 जमा किया। इस प्रकार परिवादी ने पुन: दिनांक 14-07-2003 को 772 रूपये जमा किये, लेकिन परिवादी की गाड़ी की चाभी च चेकें तथा अधिक लिया गया 3,312-00 विपक्षीसं0-3 ने वापस नहीं किया। नोड्यूज सर्टीफिकेट तो कम्पनी ने प्रदान कर दिया,परन्तु अन्य चीजें वापस नहीं की गई। विपक्षी सं0-1 ता 3 द्वारा परिवादी से पुन: रूपया 2,178-49 पैसा बाकी बताकर मांगा जा रहा है, जिसे प्राप्त करने का विपक्षीगण को कोई कानूनन अधिकार नहीं है। अत: यह परिवाद योजित किया गया।
जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष प्रतिवादी सं0-1 ता 3 उपस्थित आये और अपना प्रार्थना-पत्र इस आशय का प्रस्तुत किया कि उभय पक्ष के मध्य मध्यस्थ द्वारा विवाद निस्तारण का अनुबन्ध है। अत: परिवाद की कार्यवाही स्टे कर दी जाय। हमारे विचार में धारा-3 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के परिप्रेक्ष्य में उक्त प्राविधान होते हुए भी प्रस्तुत कार्यवाही पोषणीय है। ऐसी परिस्थिति में प्रार्थना पत्र कागज सं0-07 अर्थहीन है एवं तदानुसार खारिज समझा जायेगा।
प्रतिवादी सं0-4 पर तामीला पर्याप्त है, उनके द्वारा भी जवाब व साक्ष्य के लिए प्रार्थना पत्र देकर अवसर चाहा है, परन्तु किसी भी विपक्षीगण ने पर्याप्त समय दिये जाने के बावजूद कोई प्रतिवाद पत्र दाखिल नही किया। अत: प्रकरण एक तरफा चला।
इस सम्बन्ध में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री बृजेन्द्र चौधरी, को सुना गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। अपील आधार का भी अवलोकन किया गया।
अपील आधार में यह कहा गया है कि परिवादी ने तय शुदा रकम 722-00 दिनांक 14-07-2003 को दे दिया, इसके बाद एन.ओ.सी. अन्य कागजात के साथ वादी को दे दिया गया और खाता उसका बन्द कर दिया गया। चाभी वगैरहा का मामला लम्बित नहीं है। वादी ने भ्रम में फैला दिया कि फाइनेंस कम्पनी ने ज्यादा ब्याज 3312-00 रूपये ले लिया है, क्योंकि फाइनेंस कम्पनी ने 30,000-00 रूपये के स्थान पर केवल 28,000-00 रूपये का ऋण दिया था। अपील आधार में कहा गया है कि ब्याज की रकम कम नहीं की गई थी और फाइनेंस कम्पनी ने 19.94 प्रतिशत ब्याज 14 प्रतिशत ब्याज के स्थान पर लिया था। हायर परचेज एग्रीमेंट में 30,000-00 रूपये पर ब्याज के रूप में 9150-00 रूपये दो साल में चार्ज की शर्त लिखी गई
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थी। परिवादी ने जो एग्रीमेंट दिनांक 26-02-2001 को हस्ताक्षर किया था और 30,000-00 रूपये के लिए हस्ताक्षर किया था न कि 28,000-00 रूपये के लिए।
केस के तथ्यों परिस्थतियों को देखते हुए एवं अपील आधार को देखते हुए यह स्पष्ट है कि 14 प्रतिशत के स्थान पर 19.94 प्रतिशत ब्याज फाइनेंस कम्पनी के द्वारा लिया गय है, जो उचित नहीं है और केस के तथ्यों परिस्थतियों में यह पाते हैं कि जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है, वह विधि सम्मत् है, उसमें हस्तक्षेप किये जाने की कोई गुंजाइश नहीं है। अपीलकर्ता की अपील खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
अपीलकर्ता की अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वयं वहन करेंगे।
(आर0सी0 चौधरी) (गोवर्द्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
आर.सी.वर्मा, आशु.
कोर्ट नं0-3