राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या:-1464/2016
(जिला फोरम, दि्वतीय आगरा द्धारा परिवाद सं0-246/2011 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 10.6.2016 के विरूद्ध)
H.D.F.C. Ergo General Insurance Company Ltd. Through its Manager, 20, Ratan Square, Vidhan Sabha Marg, Lucknow.
........... Appellant/ Opp. Party
Versus
Suresh Chandra, S/o Sri Ram Kishan, R/o Village Bhaupur, Khairagarh, District-Agra.
…….. Respondent/ Complainant
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री मनोज कुमार दुबे
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : श्री रामगोपाल
दिनांक 18.3.2020
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-246/2011 सुरेश चन्द्र बनाम एच0डी0एफ0सी0 जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड में जिला फोरम, दि्वतीय आगरा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 10.6.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
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“परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को यह आदेशित किया जाता है कि वह वाहन का बीमित घोषित मूल्य (आई0डी0बी0) 430000.00 रू0 (चार लाख तीस हजार रूपया) मय 07 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज परिवाद दायर करने की तिथि से वास्तविक अदायगी तक एक माह के अन्दर परिवादी को अदा करे। इसके अतिरिक्त मानसिक कष्ट वेदना एवं वाद व्यय के लिये 5000.00 (पॉच हजार रूपया) परिवादी को विपक्षी एक माह के अन्दर अदा करें।"
जिला फोरम के निर्णय व आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री मनोज कुमार दुबे और प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री रामगोपाल उपस्थित आये हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
उभय पक्ष की ओर से लिखित तर्क भी प्रस्तुत किया गया है। मैंने उभय पक्ष की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
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अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने दिनांक 15.4.2010 को ट्रैक्टर फार्म ट्रैक क्रय किया, जिसका बीमा 4,30,000.00 रू0 मूल्य पर अपीलार्थी विपक्षी की बीमा कम्पनी से दिनांक 22.4.2010 से 21.4.2011 तक की अवधि हेतु कराया। उसके बाद दिनांक 22.4.2010 को ही ट्रैक्टर में प्रेशर चाटी लगवाने के लिए ड्राइवर पप्पू ट्रैक्टर लेकर प्रत्यर्थी/परिवादी के साथ रिंकू मिस्त्री के पास सोलंकी पेट्रोल पम्प के पास जौरा रोड, मुरैना मध्य प्रदेश गया। मिस्त्री ने ट्रैक्टर में प्रेशर चाटी लगवाने के लिए 37,000.00 रू0 तय किया और 17,000.00 रू0 बतौर एडवांस लिया तथा ट्रैक्टर को अपने पास मय चाबी के खड़ा करा लिया तथा ट्रैक्टर दिनांक 24.4.2010 को तैयार कर प्रत्यर्थी/परिवादी को देने को कहा। तब प्रत्यर्थी/परिवादी ट्रैक्टर उक्त मिस्त्री के यहॉ छोड़कर चला आया और जब दिनांक 22.4.2010 को ट्रैक्टर लेने रिंकू मिस्त्री के पास मुरैना पहुंचा तो मिस्त्री ने बताया कि ट्रैक्टर चोरी हो गया है। तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने ट्रैक्टर की खोजबीन की परन्तु कोई जानकारी नहीं मिली। अत: मजबूर होकर उसने थाना सिविल लाइंस मुरैना में दिनांक 25.4.2010 को घटना की सूचना दी और डाक द्वारा दिनांक 27.4.2010 को बीमा कम्पनी
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एच0डी0एफ0सी0 जनरल इंश्योरेंस एग्रो, नई दिल्ली को सूचना भेजी।
परिवाद पत्र के अनुसार थाना प्रभारी सिविल लाइन मुरैना ने प्रत्यर्थी/परिवादी का प्रार्थना पत्र लेकर कहा कि पहले जॉच करेंगे तब मुकदमा कायम करेंगे। अत: थाना सिविल लाइन मुरैना में दिनांक 11.5.2010 को अपराध पंजीकृत किया गया और पुलिस द्वारा विवेचना की गई, परन्तु ट्रैक्टर बरामद नहीं हुआ।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने उसका बीमा दावा गलत तौर पर इस आधार पर निरस्त कर दिया है कि उसने बीमा कम्पनी को चोरी की तुरन्त सूचना नहीं दी है। अत: अपीलार्थी बीमा कम्पनी की सेवा से क्षुब्ध होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी विपक्षी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर यह कहा गया है कि अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने मै0 सुरक्षा इण्टर प्राइजेज नई दिल्ली को जॉच हेतु नियुक्त किया था जिन्होंने जॉच में यह पाया है कि वाहन चोरी होने के 23 दिन बाद दिनांक 17.5.2010 को बीमा कम्पनी को सूचित किया गया है जो बीमा पालिसी की शर्त सं0-1 का उल्लंघन है। लिखित कथन में विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से यह भी कहा गया है कि वाहन
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की खरीद इनवाइस सं0-174 जो प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रस्तुत किया है वह दिनांकित 22.9.2010 है जो वाहन चोरी होने के पॉच माह बाद जारी की गई है। लिखित कथन में अपीलार्थी विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से यह भी कहा गया है कि रिंकू मिस्त्री से मिलकर परिवादी ने झूठी कहानी बनायी है और गलत कथन के साथ परिवाद प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह माना है कि अपीलार्थी विपक्षी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा निरस्त कर सेवा में कमी की है। अत: परिवाद स्वीकार करते हुए जिला फोरम ने आक्षेपित आदेश पारित किया है जो ऊपर अंकित है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन चोरी से सम्बन्धित सूचना विलम्ब से बीमा कम्पनी को दिया है जो बीमा पालिसी की शर्त का उल्लंघन है। इसके अलावा प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन की जो इनवाइस सं0-174 दिनांकित 22.9.2010 प्रस्तुत किया है वह चोरी की घटना दिनांक 22.4.2010 के पॉच महीने बाद जारी की गयी है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने उचित और वैधानिक
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आधार पर निरस्त किया है। अपीलार्थी बीमा कम्पनी की सेवा में कोई कमी नहीं है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने गलत आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा निरस्त किया है जो बीमा कम्पनी की सेवा में कमी है। जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश उचित और विधि सम्मत है। किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
रेपुडिएशन लेटर दिनांक 18.3.2011 अपील का संलग्नक-1 है, जिसके अनुसार पर प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दो आधार पर निरस्त किया गया है। प्रथम यह कि बीमा कम्पनी को चोरी की घटना के 23 दिन बाद घटना की सूचना दी गई है जो बीमा पालिसी की शर्त सं0-1 का उल्लंघन है। दि्वतीय यह कि इनवाइस नं0-174 दिनांकित 22.9.2010 जो प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रस्तुत किया है वह चोरी की घटना के पॉच महीने बाद की है।
जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रश्नगत चोरी की घटना की रिपोर्ट दिनांक 25.4.2010 को थाना सिविल लाइंस मुरैना, मध्य प्रदेश में दर्ज करायी है। जिला फोरम के इस उल्लेख को बीमा कम्पनी ने चुनौती नहीं दिया है और न ही पुलिस में विलम्ब से सूचना दर्ज
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कराये जाने का कथन अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने रेपुडिएशन लेटर में किया है। परिवादी ने परिवाद पत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि अपीलार्थी विपक्षी बीमा कम्पनी को नई दिल्ली उसने ट्रैक्टर की चोरी की सूचना डाक के माध्यम से दिनांक 27.4.2010 को भेजी, जिसकी रसीद संलग्न है। जिला फोरम ने प्रस्तुत रसीद का अवलोकन कर उल्लेख किया है कि इस पर पोस्ट ऑफिस की मोहर और टिकट चस्पा है इसे Fake और False मानने हेतु उचित आधार नहीं है। अपीलार्थी विपक्षी ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि 23 दिन बाद जो सूचना उसे प्राप्त हुई है वह किस माध्यम से प्राप्त हुई है। दिनांक 27.4.2010 को डाक के माध्यम से दिल्ली सूचना अपीलार्थी विपक्षी को प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रेषित किया जाना यह दर्शाता है कि उसने बिना किसी विलम्ब के बीमा कम्पनी को सूचना भेजी है। डाक से उसके द्वारा सूचना प्रेषित किये जाने पर सूचना विलम्ब से बीमा कम्पनी को प्राप्त होने पर उसे उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। इसके अतिरिक्त उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि पुलिस में चोरी की सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी ने बिना विलम्ब के दर्ज करायी है। ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी को विलम्ब से सूचना देने के मात्र के आधार पर वास्तविक क्लेम को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। जैसा कि मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने ओम प्रकाश बनाम रिलायंस जनरल
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इंश्योरेंस कम्पनी व एक अन्य 2018 (1) CPR 907 (SC) और Civil Appeal No. 653 of 2020 Arising out of S.L.P.(C) No. 24370 of 2015 Gurshinder Singh Vs. Srhiram General Insurance Co. Ltd. & Anr. के निर्णयों में स्पष्ट रूप से कहा है। अपीलार्थी विपक्षी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित चोरी की घटना को फर्जी और बनावटी नहीं कहा है और न ऐसा प्रमाणित करने हेतु कोई उचित आधार दर्शित किया है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरांत मैं इस मत का हॅू कि प्रत्यर्थी/परिवादी के वास्तविक क्लेम को मात्र विलम्ब से सूचना के आधार पर बीमा कम्पनी द्वारा अस्वीकार किया जाना विधि सम्मत नहीं है।
जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रश्नगत ट्रैक्टर के सम्बन्ध में छ: अभिलेख प्रस्तुत किये हैं। जिसमें प्रथम अभिलेख 4,30,000.00 रू0 भुगतान की रसीद सं0-222 है जो निर्माता कम्पनी एस्कोर्ट के अधिकृत डीलर शक्ति मोटर्स आगरा द्वारा बिल नं0-174 के सापेक्ष जारी की गई है। दि्वतीय अभिलेख डिलीबरी रसीद है जिसमें शक्ति मोटर्स द्वारा दिनांक 15.4.2010 को प्रश्नगत ट्रैक्टर की डिलीबरी का उल्लेख है। जिसमें ट्रैक्टर का माडल, चैसिस नम्बर, इंजन नम्बर टायर नम्बर अंकित है। तृतीय अभिलेख ट्रैक्टर डिलीबरी चेक नं0-23866 है इसमें डीलरशिप कोड 1064, डिलीबरी की तिथि 15.4.2010 ट्रैक्टर क्रम सं0-टी
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215449 व माण्डल नं0-एफ0टी0 45 डी0बी0 का उल्लेख है। चतुर्थ अभिलेख शक्ति मोटर्स का जॉब कार्ड है जिसमें ट्रैक्टर का नाम पी0टी0 45 डी0बी0, टैक्टर नं0-2152499, इंजन नं0-2155200 तथा विक्रय तिथि 15.4.2010 अंकित है। पंचम अभिलेख बीमा पालिसी है जो अपीलार्थी विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा दिनांक 22.4.2010 से 21.4.2011 तक की अवधि के लिए जारी की गई है। इसमें ट्रैक्टर माण्डल एफ0 ए0 आर0 एम0 टी0 आर0 ए0 सी0 45 ट्रैक्टर, रजिस्ट्रेशन नं0- न्यू इंजन नं0-2152499 व चैसिस नम्बर 2155200 अंकित है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि जो इनवाइस सं0-174 दिनांकित 22.9.2010 बीमा कम्पनी ने प्रस्तुत किया है वह टैक्स इनवाइस है और इसके आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ट्रैक्टर खरीदे जाने को अविश्वसनीय और बनावटी नहीं कहा जा सकता है। स्वयं बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ट्रैक्टर क्रय किये जाने व उसकी डिलीबरी प्राप्त किये जाने के बाद उसका बीमा किया है और उपरोक्त संदर्भित अभिलेखों के आधार पर जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ट्रैक्टर क्रय किया जाना व प्राप्त किया जाना प्रमाणित माना है जो साक्ष्यों की सही विवेचना पर आधारित है। मैंने प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
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जिला फोरम ने उपरोक्त संदर्भित छ: अभिलेखों का अपने निर्णय में उल्लेख किया है और उसके आधार पर यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने ट्रैक्टर क्रय किया है और डिलीबरी प्राप्त की है, जिसका बीमा अपीलार्थी विपक्षी बीमा कम्पनी ने किया है। जिला फोरम ने विधि के अनुसार उपलब्ध साक्ष्यों की विवेचना कर यह निष्कर्ष अंकित किया है। अपीलार्थी विपक्षी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी के प्रश्नगत ट्रैक्टर का बीमा किया है यह उसे स्वीकार है उसने रेपुडिएशन लेटर में चोरी की कथित घटना को फर्जी और बनावटी नहीं कहा है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरांत मैं इस मत का हॅू कि बीमा कम्पनी द्वारा प्रस्तुत टैक्स इनवाइस दिनांक 22.9.2010 के आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी के विरूद्ध कोई प्रतिकूल अवधारणा बनाया जाना और उसके आधार पर बीमा दावा निरस्त किया जाना विधि सम्मत नहीं कहा जा सकता है।
उपरोक्ता सम्पूर्ण विवेचना एवं सम्पूर्ण तथ्यों व परिस्थितियों पर विचार करने के उपरांत मैं इस मत का हॅू कि अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार कर सेवा में कमी की है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार कर जो आदेश पारित किया है वह उचित है। जिला फोरम ने जो 07 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिया है और मानसिक कष्ट वेदना और
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वाद व्यय के मद में 5,000.00 रू0 प्रत्यर्थी/परिवादी को दिलाया है वह भी उचित है।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचता हॅू कि अपील बलरहित है और निरस्त किये जाने योग्य है। अत: अपील निरस्त की जाती है।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं बहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनिमय, 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज के साथ जिला फोरम को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
अन्तरिम आदेश के अनुपालन में जमा धनराशि व उस पर अर्जित ब्याज का निस्तारण भी जिला फोरम द्वारा विधि के अनुसार किया जायेगा।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-1