राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-340/2019
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता आयोग, इटावा द्वारा परिवाद संख्या 62/2018 में पारित आदेश दिनांक 19.11.2018 के विरूद्ध)
दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0, द्वारा एक्जीक्यूटिव इंजीनियर, इलैक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन डिवीजन II जिला- इटावा
........................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
सुरेश चन्द्र यादव पुत्र श्री लाला राम यादव निवासी मण्डी रोड, भरथना, इटावा, यू0पी0
...................प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री इसार हुसैन,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री उमेश कुमार शर्मा,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 14.12.2021
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील अपीलार्थी दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 द्वारा इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, इटावा द्वारा परिवाद संख्या-62/2018 सुरेश चन्द्र यादव बनाम दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 19.11.2018 के विरूद्ध योजित की गयी।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग ने उपरोक्त परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''अत: प्रस्तुत परिवाद यथा-विरचित, उपरोक्त विपक्षी के विरूद्ध एक पक्षीय, बिना वाद व्यय के, आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है और तद्नुसार विपक्षी बिजली विभाग को यह आदेश दिया जाता है कि वह दिनांक 21.05.2017 को स्थापित नये मीटर
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की मीटर रीडिंग के तीन माह की औसत मीटर रीडिंग के आधार पर परिवादी को पिछले माहों का बकाया बिजली बिल, यदि कोई हो तो, उसे तैयार कर अगले दो माह में सर्व करे और दिनांक 21.05.2017 के उपरान्त नये स्थपित मीटर की रीडिंग के आधार पर नियमानुसार समय समय पर परिवर्तित घरेलू विद्युत दर से हिसाब से, बिजली बिल बनाकर दो माह के अन्दर अद्यतन उसे सर्व करे और उसमें बीच-बीच में परिवादी के द्वारा जमा की गयी धनराशि को समायोजित करें और उससे एकमुश्त नया मीटर स्थापित करने का खर्च-मुव0 एक हजार उससे वसूल करें और उपरोक्त बकाया समस्त बिजली बिल, यदि कोई हो, की धनराशि को परिवादी को आगामी छ: माह में तीन बराबर किश्तों में जमा करे और इस बीच, परिवादी का उक्त घरेलू विद्युत कनेक्शन को विपक्षी बिजली विभाग किसी प्रकार विच्छेदित, डिसटर्व और परेशान न करे। परिवादी के विरूद्ध निर्गत डिमाण्ड नोटिस दिनांक 07.02.2018 और उसमें निहित धनराशि मु0 82,037.00रू0 विवादित और एक तरफा एवं निरस्त समझी जावे।
उभय पक्ष अपना अपना वाद-व्यय स्वयं वहन करेगें।
निर्णय की एक-एक प्रति पक्षकारों को नि:शुल्क उपलब्ध करायी जावे।''
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन उपस्थित हैं। प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार शर्मा उपस्थित हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी का घरेलू विद्युत कनेक्शन दो किलोवाट का कनेक्शन संख्या-260060 है, जिसका खाता संख्या-4846382000 है। प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसके द्वारा उक्त विद्युत कनेक्शन का उपभोग करते हुए उसका नियमित बिल जमा किया गया है। विद्युत के
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अप डाउन के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी के उक्त विद्युत कनेक्शन का मीटर जल गया, जिसकी कई बार सूचना उसके द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी बिजली विभाग को दी गयी तथा दिनांक 21.05.2017 को बिजली विभाग के कर्मचारी उसके परिसर में आये और उसका पुराना मीटर संख्या-10883202 उतार कर ले गये और नया मीटर संख्या-72107723 लगा दिया, परन्तु पुराने मीटर को प्रत्यर्थी/परिवादी या उसके पुत्र के सामने सील नहीं किया गया और न ही सम्बन्धित अधिकारियों ने उसके समक्ष उस पर किसी के कोई हस्ताक्षर ही कराये, न ही स्वयं ही हस्ताक्षर किये एवं मात्र उसके पुत्र अभिषेक का हस्ताक्षर करा लिया और कहा कि इसकी जांच दिनांक 23.05.2017 को प्रयोगशाला में होगी, आपकी उपस्थिति अनिवार्य है, अत: प्रत्यर्थी/परिवादी दिनांक 23.05.2017 को अपने जले हुए मीटर की जांच के लिए कार्यालय में उपस्थित हुआ, परन्तु वहॉं विद्युत विभाग का कोई कर्मचारी उपस्थित नहीं था और न कोई संतोषजनक जवाब दिया गया।
प्रत्यर्थी/परिवादी को बाद में एक नोटिस अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत विभाग द्वारा मन गढ़ंत तरीके से भेजी गयी, जिसमें उस मीटर की चेकिंग दिनांक 28.07.2017 को प्रयोगशाला में दिखलायी गयी और उसमें गलत तरीके से मीटर की बाडी टूटी हुई दिखलाकर धारा-135 विद्युत अधिनियम के अन्तर्गत प्राथमिकी दर्ज कर और राजस्व निर्धारित करने का निर्देश दिया गया, जबकि दिनांक 28.07.2017 को मीटर जांच की कोई सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी या उसके परिवारीजन को नहीं दी गयी।
प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का संयोजन कभी विच्छेदित नहीं हुआ और न ही उसके विरूद्ध कभी कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट अंकित करायी गयी। प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत विभाग द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का मीटर जला हुआ पाया गया था और नियमानुसार केवल नये मीटर लगाने की कीमत ही उससे वसूल की जा सकती थी। प्रत्यर्थी/परिवादी का
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कथन है कि उसे बिना किसी वैधानिक आधार पर डिमाण्ड नोटिस भेजी गयी है, जो अपीलार्थी/विपक्षी बिजली विभाग की सेवा में कमी है। अत: क्षुब्ध होकर प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख परिवाद योजित किया गया।
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से उचित तामील के पश्चात् भी कोई उपस्थित नहीं हुआ और न ही कोई प्रतिवाद पत्र या साक्ष्य ही प्रस्तुत किया गया। अत: जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी बिजली विभाग के विरूद्ध एकतरफा कार्यवाही करने के आदेश दिये गये।
जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रत्यर्थी/परिवादी के अभिकथन एवं प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा उपलब्ध कराये गये प्रपत्र/साक्ष्य शपथ पत्र पर विचार करने के उपरान्त अपीलार्थी/विपक्षी की सेवा में कमी मानते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया है तदोपरान्त आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत विभाग की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन द्वारा कथन किया गया कि वास्तव में प्रस्तुत प्रकरण में उपभोक्ता परिवाद दाखिल किया जाना अनुचित है तथा यह कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा एकपक्षीय निर्णय अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत विभाग के विरूद्ध दिया गया, जो पूर्णत: अनुचित है। अपने उपरोक्त कथन के समर्थन में अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत विभाग के विद्वान अधिवक्ता द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यू0पी0 पावर कारपोरेशन लि0 आदि बनाम अनीस अहमद III (2013) CPJ 1 (SC) में पारित निर्णय को सन्दर्भित किया गया तथा उपरोक्त निर्णय के प्रस्तर 47 (ii) को उद्धरित किया, जो निम्नवत् है:-
“A “complaint” against the assessment made by assessing officer under Section 126 or against the offences committed under Sections 135 to 140 of the
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Electricity Act, 2003 is not maintainable before a
Consumer Forum.”
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार शर्मा द्वारा कथन किया गया कि प्रस्तुत प्रकरण में प्रत्यर्थी/परिवादी/उपभोक्ता के विरूद्ध बिजली चोरी से सम्बन्धित कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट किसी पुलिस स्टेशन पर अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत विभाग द्वारा नहीं दाखिल की गयी और न ही विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 135 के तहत ही कोर्इ कार्यवाही की गयी तथा मात्र अन्तर्गत धारा 135 के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की संस्तुति किया जाना उपभोक्ता परिवाद को प्रस्तुत किये जाने में बाधक नहीं हो सकता।
सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा समस्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए तथा विरचित करते हुए जो निर्णय पारित किया गया है, वह पूर्णत: विधिक एवं उचित है, अतएव प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1