(राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)
सुरक्षित
अपील संख्या 438/2010
(जिला मंच बरेली द्वितीय द्वारा परिवाद सं0 85/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 15/02/2010 के विरूद्ध)
1- यूनियन आफ इंडिया द्वारा सचिव, रेल मंत्रालय, रेल भवन नई दिल्ली।
2- महाप्रबंधक, पूर्वोत्तर सीमा रेलवे, मुख्य कार्यालय, मालीगॉव गुहाटी, (असम)।
3- मुख्य दावा अधिकारी, उत्तर रेलवे बड़ौदा हाउस , नई दिल्ली।
…अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
1- सुरेन्द्र पाल सिंह पुत्र श्री मेघ सिंह।
2- श्रीमती प्रीति पुत्री सुरेन्द्र पाल सिंह पत्नी श्री सर्वेन्द्र सिंह।
निवासीगण- 296-कुंवर पुर निकट अजय कन्या इण्टर कालेज बरेली।
.........प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
समक्ष:
1. मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठा0 न्यायिक सदस्य।
2. मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री पी0पी0 श्रीवास्तव।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री ए0के0 मिश्रा।
दिनांक : 02-01-2015
मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठा0 न्यायिक सदस्य द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
अपीलार्थी ने प्रस्तुत अपील विद्वान जिला मंच द्वितीय, बरेली द्वारा परिवाद सं0 85/2005 सुरेन्द्र पाल सिंह बनाम सचिव, रेल मंत्रालय में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 15/02/2010 के विरूद्ध प्रस्तुत की है, जिसमें कि विद्वान जिला पीठ ने निम्नलिखित निर्णय/आदेश पारित किया है:-
‘’ परिवादीगण सुरेन्द्र पाल सिंह पुत्र श्री मेघ सिंह तथा श्रीमती प्रीति पुत्री ने सुरेन्द्र पालस सिंह पत्नी श्री सवेन्द्र सिंह चौहान ने यह परिवाद विपक्षीगण सचिव, रेल मंत्रालय, भारत सरकार, रेल भवन, नई दिल्ली तथा महाप्रबंधक, पूर्वोत्तर सीमा रेलवे, मुख्य कार्यालय मालीगॉव गुहाटी -781012 (असम) एवं मुख्य दावा अधिकारी, उत्तर रेलवे, बड़ौदा हाऊस, नई दिल्ली के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादीगण को 65,000/ रूपये परिवाद योजित करने की तिथि दिनांक 10/03/2005 से भुगतान
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की तिथि तक 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज के साथ अदा करें। इसके अलावा विपक्षीगण परिवादीगण को वाद व्यय में 3000/ रूपये का भुगतान करें। आदेश का अनुपालन एक माह के अंदर किया जायेगा।‘’
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने हापुड़ से गुहाटी जाने हेतु अपने स्वयं का एवं अपनी पुत्री श्रीमती प्रीति का दिनांक 26/08/2004 का ट्रेन नं0 5610 (अवध-आसाम) एक्सप्रेस से दो बर्थों का आरक्षण कराया जिस पर परिवादी व उसकी पुत्री को उक्त गाड़ी के शयनयान कोच सं0 एस-8 में बर्थ सं0 44 व 44 एल0बी0 आरक्षित की गई जिनका टिकट सं0 17810583 पी.एन.आर. संख्या 240-5110502 था। वादी ने उपरोक्त निर्धारित तिथि पर यात्रा शुरू की, यात्रा के दौरान दिनांक 28/08/2004 की रात्रि में लगभग 3:00 बजे से 4:15 बजे तक पूर्वोत्तर सीमा रेलवे के बरपेटा स्टेशन से रंगिया स्टेशन के बीच चलती ट्रेन में 6-7 लुटेरों ने उक्त गाड़ी के स्लीपर शयनयान कोच सं0 एस-8 में हथियारों के बल पर यात्रियों के साथ जिसमें वादीगण भी शामिल थे, आतंकित करके जबरन लूटपाट की। अन्य यात्रियों के साथ वादी व उसकी पुत्री श्रीमती प्रीति से हजारों रूपये के मूल्यवान जेवर, नकदी व वस्तुएं आदि लूटकर ले गये और लुटेरे रंगिया स्टेशन आने से कुछ पूर्व गाड़ी रोककर लूटपाट करके उतर कर चले गए। परिवादी की पुत्री श्रीमती प्रीति का जेवर व रूपया भी परिवादी का ही था जो उसने अपनी पुत्री को दिया था। उपरोक्त कोच में लुटेरे जिस समय घुसे उस समय सभी यात्री सो रहे थे, तथा लुटेरों ने लगभग सवा घण्टें तक लूटपाद की। लूटपाट के समय कोच में कोई अटेंडेंट नहीं था और न ही ट्रेन एस्कॉर्ट का कोई सुरक्षा कर्मचारी उपस्थित था, रेल प्रशासन का यह दायित्व था कि वह यात्रा के दौरान ट्रेन में यात्रियों की सुरक्षा करना सुनिश्चित करे लेकिन विपक्षीगण द्वारा ऐसा नहीं किया। उपरोक्त घटना से घटित होने के बाद उक्त गाड़ी के रंगिया स्टेशन पहुंचने पर परिवादीगण ने उक्त यात्रियों के साथ रंगिया जी0आर0पी0एस0 असम जी0आर0पी0 व स्टेशन अधीक्षक, रंगिया को उक्त लूटपाट की घटना से अवगत कराया तथा लुटेरों को गिरफ्तार करवाने व प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने की प्रार्थना की लेकिन विपक्षी के कर्मचारियो ने कोई सहयोग नहीं किया। उक्त घटना में लूटे गये सामान का विवरण अंकित कराने के लिए उनसे निर्धारित प्रारूप उपलब्ध कराने की मांग की जो वादीगण को नहीं दिया गया। वादीगण ने सादे कागज पर घटना की संक्षिप्त जानकारी लिखित रूप में रंगिया स्टेशन के जी0आर0पी0एस0 के आफीसर इंचार्ज को दे दी और उनके निर्देशानुसार परिवादीगण का लूटा गया माल आदि अन्य सहयात्रियों
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के साथ थाने में अलग से कागज पर दर्ज कर लिया गया जिसका इन्द्राज केस सं0 28/2004 धारा 395 आई0पी0सी0 के अंतर्गत किए जाने की सूचना स्वयं आफीसर इंचार्ज ,सी0आर0पी0एस0 रंगिया ने उल्लिखित कर परिवादीगण को दे दी। वाद का कारण माननीय फोरम के क्षेत्राधिकार में जहां विपक्षीगण के कार्यालय/कर्मचारी व रेलवे स्टेशन अंतर्गत थाना सुभाषनगर, बरेली स्थित है तथा बरेली स्टेशन जो परिवादी की आरक्षित यात्रा उपरोक्त के दौरान पड़ता है, में उत्पन्न हुआ है। अत: उपरोक्त माल व जेवर की कीमत व क्षतिपूर्ति आदि दिलाये जाने हेतुयह परिवाद योजित किया गया है।
विपक्षीगण/अपीलार्थीगण ने अपना लिखित कथन जिला पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया तथा जिसमें कहा कि परिवाद सत्यापित व हस्ताक्षरित नहीं है। परिवादीगण को विपक्षीगण के विरूद्ध वाद का कोई कारण उत्पन्न नहीं हुआ है। इस मामले का संबंध रंगिया रेलवे स्टेशन (आसाम) नार्थ फ्रन्टियर रेलवे से है जिसका कोई कार्यालय, बरेली में नहीं है अत: इस फोरम को इस केस को सुनने का निस्तारित करने का अधिकार नहीं है। मा0 फोरम को लूट/चोरी माल की पार्सल/सामान आदि के मामलों को निस्तारित करने का अधिकार नहीं है। यह मामले रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल की धारा 13 व 15 रेलवे एक्ट, 1989 से संबंधित है। यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-11 से बाधित है। यह वाद माल की लूट से संबंधित है लेकिन इसका मूल्य किसी अभिलेखीय साक्ष्य से साबित नहीं है। विपक्षीगण की सेवाओं में कोई कमी नहीं रही और विपक्षीगण के कारण वादीगण को कोई क्षति नहीं हुई है अन्य तथ्यों से इंकार नहीं। परिवादीगण ने यह परिवाद गलत तथ्यों पर प्रस्तुत किया है जो कि निरस्त होने योग्य है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री पी0पी0 श्रीवास्तव एवं प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री ए0के0 मिश्रा के तर्कों को सुना गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने यह तर्क किया कि प्रस्तुत प्रकरण में चूंकि चलती ट्रेन में 6-7 लुटेरों ने हथियार के बल पर लूटा था और आतंकित करके लूटपाट की थी। अत: यह घटना रेलवे अधिनियम की धारा 123 (सी) के अंतर्गत अनपेक्षित घटना की श्रेणी में आती है। अत: ऐसी परिस्थितियों में रेलवे अधिनियम 1989 की धारा 124 (A) के अंतर्गत अनपेक्षित घटनाओं के कारण क्षतिपूर्ति दिये जाने के प्राविधानों से अच्छादित है, जिसके लिए परिवादी/प्रत्यर्थी को रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 13 (1-ए) के अंतर्गत परिवाद रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए था क्योंकि उपरोक्त रेलवे क्लेम्स
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ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 15 के अंतर्गत किसी अन्य न्यायालय को श्रवण का क्षेत्राधिकार नहीं है। अत: प्रश्नगत निर्णय निरस्त किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने यह तर्क दिया कि विद्वान जिला मंच ने विधि अनुसार निर्णय/आदेश पारित किया है, जिसमें कि हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
प्रश्नगत निर्णय/आदेश तथा पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
इस संबंध में रेलवे एक्ट 1989 की धारा 124 तथा 124 (A) निम्नवत है:-
124. Extent of liability.- When in the course of working a railway, an accident occurs, being either a collision between train of which one is a train carrying passengers or the derailment of or other accident to a train or any part of a train carrying passengers, then whether or not there has been any wrongful act, neglect or default on the part of the railway administration such as would entitle a passenger who has been injured or the suffered a loss to maintain an action and recover damages in respect thereof, the railway administration shall, notwithstanding anything contained in any other law, be liable to pay compensation to such extent as may be prescribed and to that extent only for loss occasioned by the death of a passenger dying as a result of such accident, and for personal injury and loss, destruction, damage or deterioration of goods owned by the passenger and accompanying him in his compartment or on the train, sustained as a result of such accident.
Explanation- For the puposes of this section ‘’passenger” includes a railway servant on duty.
124A . Compensation on account of untoward incident. – When in the course of working a railway an untoward incident occurs, then whether or not there has been any wrongful act, neglect or default on the part of the railway administration such as would entitle a passenger who has been injured or the dependant of a passenger who has been killed to maintain an action and recover damages in respect thereof, the railway administration shall, notwithstanding anything contained in any other law, be liable to pay compensation to such extent as may be prescribed and to that extent only for loss occasioned by the death of, or injury to, a passenger as a result of such untoward incident:
Provided that no compensation shall be payable under this section by the railway administration if the passenger dies or suffers injury due to-
- suicide or attempted suicide by him;
- self-inflicted injury;
- his own criminal act;
- any act committed by him in a state of intoxication or insanity;
- any natural cause or disease or medical or surgical treatment unless such treatment becomes necessary due to injury caused by the said untoward incident.
Explanation . For the purposes of this section, ‘’passenger” includes-
- a railway servant on duty; and
- a person who has purchased a valid ticket for travelling by a train carrying passengers, on any date or a valid platform ticket and becomes a victim of an untoward incident.]
प्रस्तुत प्रकरण में परिवादीगण/ प्रत्यर्थीगण को चलती ट्रेन में 6-7 लुटेरों के द्वारा लूटा गया है जो कि रेलवे एक्ट की धारा 123 (सी) (2) के अंतर्गत आकस्िमक दुर्घटना की श्रेणी में आता है और इसके लिए क्षतिपूर्ति हेतु रेलवे एक्ट 1989 की धारा 124 (A) के अंतर्गत क्षतिपूर्ति दिलाये जाने का प्राविधान है। रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 13 (1-A) के अंतर्गत ऐसे प्रकरण को जो कि रेलवे एक्ट 1989 की धारा 124 (A) के अंतर्गत आते हैं उसे श्रवण किये जाने का अधिकार रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल को हैं, किसी अन्य न्यायालय को उपरोक्त अधिनियम
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की धारा 15 के अंतर्गत श्रवण का क्षेत्राधिकार नहीं है। अत: ऐसे परिस्थितियों में विद्वान जिला मंच द्वारा पारित किया गया निर्णय/आदेश के श्रवण का क्षेत्राधिकार न होने के कारण निरस्त किये जाने योग्य है। तद्नुसार अपील स्वीकार किये जाने योग्य है ।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला मंच बरेली द्वितीय द्वारा परिवाद सं0 85/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 15/02/2010 निरस्त किया जाता है। परिवादी अपने परिवाद/प्रत्यावेदन को रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 13 (1-A) के अंतर्गत प्रस्तुत कर सकता है, जो कि वर्णित परिस्थितियों में काल बाधित नहीं माना जायेगा।
उभय पक्ष अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध कराई जाय।
(अशोक कुमार चौधरी)
पीठा0 सदस्य
(बाल कुमारी)
सुभाष चन्द्र आशु0 कोर्ट नं0 3 सदस्य