Devendra kishore mandawat filed a consumer case on 09 Oct 2015 against Sur Sansaar Electronics, Owner in the Kota Consumer Court. The case no is CC/450/2008 and the judgment uploaded on 09 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच, झालावाड,केम्प कोटा (राज)।
पीठासीन अधिकारी:-श्री नन्दलाल षर्मा,अध्यक्ष व श्री महावीर तंवर सदस्य।
प्रकरण संख्या-450/2008
देवेन्द्र किषोर मण्डावत पुत्र श्री बक्सुराम मण्डावत,निवासी-बालापुरा कुन्हाडी, लक्की मिल के पास, कोटा।
-परिवादी।
बनाम
सुर सन्सार इलेक्ट्राॅनिक्स, 124 षोपिंग सेंटर, कोटा जर्ये प्रोपराइटर/मैनेजर।
-विपक्षी।
परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थिति-
1 श्री परवेज आलम,अधिवक्ता ओर से परिवादी।
2 श्री षैलेश जैन,अधिवक्ता ओर से विपक्षी।
निर्णय दिनांक 09.10.2015
यह पत्रावली जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच, कोटा में पेष की गई तथा निस्तारण हेतु जिला मंच झालावाड केम्प कोटा को प्राप्त हुई है।
प्रस्तुत परिवाद ब्च् ।बज 1986 की धारा 12 के तहत परिवादी ने दिनांक 01.10.2008 को इन अभिवचनों के साथ प्रस्तुत किया है कि परिवादी ने विपक्षी की दूकान से एक मोबाईल सेट माॅडल नोकिया 6233 जिसका प्डप् नम्बर 354827021350713 तथा बिल टिन नंबर 08172906288 दिनांक 11-06-2008 के जरिये 7,000/-रूपये में एक वर्श की वारण्टी/गारण्टी के साथ क्रय किया था। मोबाईल को उपयोग में लेने पर अनेकों खराबी आने लगीं जैसे मोबाईल चलते चलते बन्द हो जाना ,आवाज सही नहीं आना,बन्द होने के बाद चालू नहीं होना। विपक्षी को षिकायत की तो बतायी गई षिकायत ठीक करने के लिए मोबाईल रख लिया और जब दो दिन बाद लेने गया और इस्तेमाल किया तो उसमें पूर्ववत् खराबियाँ मौजूद थीं। इस प्रकार परिवादी बार बार विपक्षी के यहाँ जाता रहा लेकिन मोबाईल ठीक नहीं हो पाया। परिवादी ने मोबाईल बदलने के लिए कहा तो विपक्षी ने अभद्रता की। इस प्रकार विपक्षी ने दोशपूर्ण मोबाईल विक्रय करके सेवामें कमी की है। परिवादी ने विपक्षी से मोबाईल
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ठीक करवाने अथवा ठीक नहीं होने पर नया मोबाईल अन्यथा उसका मूल्य मय क्षतिपूर्ति के दिलाये जाने का अनुतोश चाहा है।
विपक्षी ने परिवाद का जवाब यह दिया है कि परिवादी को मोबाईल सेट विक्रय किया गया था लेकिन वह षिकायत लेकर कभी उनके षोरूम पर नहीं आया। उत्पाद में दोश उत्पन्न होने पर उनको दुरूस्त करने के लिए सर्विस सेण्टर कम्पनी ने खोल रखे हैं जहाँ पर परिवादी को षिकायत करनी थी। परिवादी ने अधिकृत सर्विस सेण्टर को पक्षकार नहीं बनाया है। विपक्षी ने कोई सेवामें कमी नहीं की है। परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने की प्रार्थना की है।
परिवाद के समर्थन में परिवादी ने स्वयं का षपथ पत्र तथा प्रलेखीय साक्ष्य में म्ग.1 लगायत म्ग.2 दस्तावेज प्रस्तुत किये हैं तथा विपक्षी-1 ने जवाब के समर्थन में कोई षपथपत्र प्रस्तुत नहीं किया न ही अपने जवाब को सत्यापित किया है।
उपरोक्त अभिवचनों के आधार पर बिन्दुवार निर्णय निम्न प्रकार है:-
1 क्या परिवादी विपक्षीगण का उपभोक्ता है ?
परिवादी का परिवाद,षपथ-पत्र तथा प्रस्तुत दस्तावेजात के आधार पर परिवादी विपक्षीगण का उपभोक्ता है।
2 क्या विपक्षीगण ने सेवामें कमी की है ?
उभयपक्षों को सुना गया, पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रार्थी ने निवेदन किया है कि अप्रार्थीण ने जोड़ी आॅफर योजना निकाली थी जिसके तहत एक मोबाइल हैण्ड सेट तथा वाॅकी टाॅकी कनेक्षन घर पर स्थापित करने का प्रचार प्रसार किया गया। अप्रार्थी-2 ने वाॅकी टाॅकी कनेक्षन घर पर स्थापित कर दिया लेकिन मोबाईल हैण्ड सेट नहीं दिया और अन्त में वाॅकी टाॅकी भी बन्द कर दिया और आज तक हैण्ड सेट उपलब्ध नहीं कराया है इसलिए सेवादोश है। अप्रार्थी-2 ने कोई जवाब पेष नहीं किया इसलिए
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अप्रार्थी-2 के खिलाफ दिनंाक 05-09-2011 को एकपक्षीय कार्यवाही अमल में लायी गई तथा अप्रार्थी-1 ने जवाब को समय चाहा, कई बार अन्तिम मौके दिये उसके बाद भी जवाब पेष नहीं किया तो दिनंाक 08-01-2014 को 200/-रूपये काॅस्ट पर और दिनंाक 11-02-2011 को 300/-रूपये की काॅस्ट पर मौका दिया फिर भी जवाब पेष नहीं किया तो अप्रार्थी-1 का भी जवाब बन्द कर दिया गया। अप्रार्थी-1 ने निवेदन किया है कि प्रार्थी और अप्रार्थी-2 के मध्य कोई अनुबन्ध हुआ हो तो उसका ज्ञान अप्रार्थी-1 को नहीं है। उसके कृत्य के लिए वह स्वयं जिम्मेदार है। 3,560/-रूपये की कच्ची रसीद है उसका कोई महत्व नहीं है। हमने न तो जोडी आॅफर योजना निकाली और न ही ऐसा कोई वायदा किया इसलिए अप्रार्थी-1 का कोई सेवादोश नहीं है। अप्रार्थी-2 अपने अनुबन्धानुसार जिम्मेदार है।
उपरोक्तानुसार बहस सुनने और पत्रावली के अवलोकन से स्पश्ट है कि परिवाद के अनुसार अप्रार्थीगण ने स्थानीय स्तर पर जोडी आॅफर योजना निकाली। योजना के अनुसार एक मोबाईल हैण्ड सेट और घर पर वाॅकी टाॅकी सेट स्थापित करना था। दोनों की काॅलिंग फ्री थी इसलिए प्रार्थी ने अप्रार्थी-2 से इस योजना का लाभ लेने के लिए 3,560/-रूपये जमा कर दिये और एक कच्ची रसीद अप्रार्थी के प्रतिनिधि दीपक ने जारी की। यद्यपि अप्रार्थीगण का यह तर्क है कि दीपक नाम का कोई व्यक्ति हमारा प्रतिनिधि नहीं है, इन्होंने यदि कोई रसीद जारी की हो तो वे ही जिम्मेदार हैं, प्रार्थी साबित करे लेकिन दीपक नाम के व्यक्ति ने दिनांक 03-11-2006 को यह कच्ची रसीद जारी की है उसमें जोडी आॅफर योजना का भी अंकन है और मोबाईल हैण्ड सेण्ट का भी अंकन है। मोबाईल हैण्ड सेण्ट स्टाॅक में होने के बाद दे दिया जायेगा लेकिन प्रार्थी को वह हैण्डसेट आज तक नहीं दिया न ही पक्की रसीद दी। ऐसी स्थिति में प्रार्थी ने अप्रार्थी की वाॅकी टाॅकी योजना के तहत घर पर स्थापित किया गया सेट भी वापिस कर दिया। इसके अलावा दिनंाक 14-10-2006, 08-11-2006, 27-10-2006 व 27-11-2006 के बिल और बिलों की चुकाई राषि का प्रमाण भी पत्रावली में उपलब्ध है। तत्पष्चात् मजबूर होकर प्रार्थी ने अपने घर की वाॅकी टाॅकी योजना बन्द करवा दी। इस हेतु प्रार्थी ने दिनांक 12-12-2006 को प्रार्थना पत्र पेष किया जिसकी प्रति पत्रावली में संलग्न है।
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सारी पत्रावली को देखने के बाद अप्रार्थीगण का कृत्य लापरवाही व सेवामें त्रुटि का स्पश्ट रूप से परिलक्षित होता है। जैसाकि प्रथमतः अप्रार्थी-2 प्रारंभ से अन्त तक उपस्थित नहीं हुए, नोटिस का जवाब नहीं दिया,अप्रार्थी-1 यद्यपि उपस्थित हो गये लेकिन अन्तिम अवसर दिये जाने पर एक बार 200/-रूपये, एक बार 300/-रूपये की काॅस्ट पर मौका दिये जाने के उपरान्त भी अप्रार्थी-1 उपस्थित नहीं हुआ और एक प्रार्थना पत्र दिनंाक 10-06-2011 को पेष किया उसमें लिखा है कि मोबाईल नंबर, हैण्डसेट नंबर और उपभोक्ता नंबर बतायेंगे तभी जवाब दिया जा सकेगा। यह कितना गुमराह करने वाला प्रार्थना पत्र है कि जब अप्रार्थी-2 ने प्रार्थी को हैण्ड सेट दिया ही नहीं तो मजबूर उपभोक्ता मोबाईल नंबर हैण्डसेट नंबर कहाँ से बता दे, ऐसी स्थिति में अब यदि अप्रार्थी-2 या अप्रार्थी-1 यह आधार लेते हैं कि दीपक ने जो कच्ची रसीद दी है,वह उनसे संबंधित नहीं है,यदि यह रसीद संबंधित नहीं है तो फिर चार महीने के बिल किस आधार पर जारी किये हैं। यदि परिवादी उपभोक्ता नहीं होता तो चार महीने के बिल किस आधार पर जारी होते तो इस स्तर पर प्रथमतः मंच में उपस्थित नहीं हुए, जवाब नहीं दिया । प्रार्थी को मोबाइल हैण्ड सेट उपलब्ध नहीं कराया, 3,560/-रूपये की रसीद नहीं दी, कच्ची रसीद देकर यह बचाव लेना चाहा कि दीपक नाम के व्यक्ति को हम नहीं जानते, यह कृत्य अप्रार्थीगण का किसी प्रकार से षोभनीय नहीं कहा जा सकता है, अतः इस कृत्य को प्रार्थी पूर्णतया प्रमाणित कर पाया है कि विपक्षीगण ने सेवामें दोश किया है और अनुबन्ध के मुताबिक अनुबन्ध की पालना नहीं की है।
3 अनुतोश ?
प्रार्थी का परिवाद संयुक्तः व पृथक-पृथकतः स्वीकार किये जाने योग्य पाया जाता है।
आदेष
परिणामतः परिवादी का परिवाद खिलाफ अप्रार्थीगण संयुक्तः व पृथक पृथकतः स्वीकार किया जाकर आदेष दिया जाता है:-
1 अप्रार्थीगण प्रार्थी को उसके द्वारा जमा करायी गई 3,560/-रूपये की राषि अदा करें।
2 अप्रार्थीगण प्रार्थी को 1,000/-रूपये परिवाद व्यय व 1,000/-रूपये मानसिक क्षति के प्रदान करें।
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3 अप्रार्थीगण निर्णय की दिनंाक से 9ः वार्शिक ब्याज दर से ताअदाएगी सम्पूर्ण भुगतान पर ब्याज अदा करें।
4 अप्रार्थीगण आदेष की पालना निर्णय दिनांक से दो माह में करें।
(महावीर तंवर) (नन्द लाल षर्मा)
सदस्य अध्यक्ष
निर्णय आज दिनंाक 09/12/2014 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
(महावीर तंवर) (नन्द लाल षर्मा)
सदस्य अध्यक्ष
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