राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-323/2016
(सुरक्षित)
1. Mukul Dev s/o Jitantra Nath Gupta
r/o 109, Ravindra Garden sector – E, Aliganj,
District.-Lucknow, U.P. Pin. 226024
2. Prachi Gupta, w/o Mr. Mukul Dev
r/o 109, Ravindra Garden sector – E, Aliganj,
District.-Lucknow, U.P. Pin. 226024
....................परिवादीगण
बनाम
1. Supertech Ltd. Through its Managing Director
Supertech House, B-28-29, SECTOR 58,
Noida Goutambudh Nagar, U.P.
2. The Branch Manager, H.D.F.C. Bank, Second Floor, Hindustan Times House, 25, Ashok Marg, Lucknow.226001
...................विपक्षीगण
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री अनिल कुमार मिश्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी सं01 की ओर से उपस्थित : श्री ए0के0 श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी सं02 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 29-04-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह परिवाद परिवादीगण मुकुल देव और प्राची गुप्ता ने धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत विपक्षीगण सुपरटेक लि0 और ब्रांच मैनेजर, एच0डी0एफ0सी0 बैंक
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के विरूद्ध राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है:-
A. Direct to the opposite parties to provide the physical possession of fully finished flat/Unite No. RD190C90001/Flat # 0001 in C9 Tower at Eco Village-2 situated at GH-01, SECTOR-16 B Greater Noida area about 1010 Sq.ft.
B. Direct the opposite parties to pay interest @ 24% on the amount deposited by the complaint with effect from the respective dates of deposit amount Rs. 1927294/- till the date of possession, along with the damages stipulated in the agreement date.
C. Direct the opposite parties to pay a sum of Rs.5,00,000/- (rupees five laces only) as damages for committing deficiency in service.
D. Direct the opposite parties to pay an amount Rs. 25,000/- per month payable with effect from July 2014 till the physical delivery of possession of flat.
E. Direct the opposite parties to pay the difference in the cost of escalation which shall be incurred at the time of the execution of the registered sale deed.
F. The opposite party No. 2 may be directed to
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postpone the payment of installments till date of possession and payment of installments start on previous payment schedule without charging any interest.
G. This Hon’ble Commission may graciously be pleased to award separate compensation and damages to the complaint for the loss and on convenience caused to them by the deficiency in service coupled with unfair trade practice committed by the opposite parties.
H. Direct the opposite parties to pay appropriate punitive/exemplary damages on account of mental agony, harassment and trauma under went by the complaints.
I. Direct the opposite parties not to charge any service tax in pursuance of finance act, 2010.
J. Allow the complaint and direct the opposite parties to pay a sum of Rs. 50,000/- towards cost of the case.
K. Any other which this Hon’ble State Commission may deem fit and proper in the circumstances of the case may also be passed.
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परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि उन्हें भवन की आवश्यकता थी। अत: विपक्षी संख्या-1 के विज्ञापन से प्रभावित होकर उनकी योजना ईको विलेज-2 यूनिट नं0 RD190C90001, जो नोएडा में थी, में एक फ्लैट क्रय करने हेतु उन्होंने विपक्षी संख्या-1 से सम्पर्क किया तब विपक्षी संख्या-1 के अधिकारी ने लेआउट प्लान और स्थल पर हो रहे निर्माण को दिखाते हुए उन्हें आश्वासन दिया कि निर्माण समय के अन्दर पूरा कर लिया जायेगा और कब्जा तुरन्त ग्राहक को निश्चित समय के अन्दर पूर्ण भुगतान होने पर दे दिया जायेगा।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि विपक्षी संख्या-1 ने यह भी बताया कि उसकी प्रश्नगत योजना विपक्षी संख्या-2 एच0डी0एफ0सी0 बैंक से एप्रूव है। विपक्षी संख्या-2 फ्लैट के लिए आर्थिक सहायता बिना किसी equilateral mortgage के देगा। इस बात की पुष्टि विपक्षी संख्या-2 एच0डी0एफ0सी0 बैंक ने भी की। तब परिवादीगण ने विपक्षीगण की बातों पर विश्वास करते हुए विपक्षी संख्या-1 की उपरोक्त योजना में flat/Unit No. RD190C90001/Flat # 0001 टावर C9 के आवंटन हेतु आवेदन पत्र दिया और पंजीकरण कराया। फ्लैट का क्षेत्रफल 1010 वर्ग फीट था और मूल्य 20,99,790/-रू0 था। परिवाद पत्र के अनुसार रजिस्ट्रेशन और एलाटमेन्ट के बाद फ्लैट का मूल्य एलाटमेन्ट लेटर के साथ संलग्न पेमेन्ट शिड्यूल के अनुसार अदा किया जाना था और एलाटमेन्ट लेटर में यह अंकित था कि फ्लैट का कब्जा आवंटी
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को 30 महीने में दिया जायेगा, परन्तु यह अवधि अप्रत्याशित परिस्थितियों में 06 महीने के लिए बढ़ायी जा सकती है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि एलाटमेन्ट लेटर की शर्तों के अनुसर परिवादीगण ने दिनांक 30.04.2010 को 2,09,979/-रू0 विपक्षी संख्या-1 के यहॉं जमा किया और विपक्षी संख्या-2 से लोन के लिए सलाह ली। उसके बाद परिवादी एवं दोनों विपक्षीगण के बीच लोन के सम्बन्ध में करार पत्र निष्पादित किया गया और लोन की धनराशि विपक्षी संख्या-2 ने सीधा पेमेन्ट शिड्यूल के अनुसार विपक्षी संख्या-1 के एकाउण्ट में अन्तरित किया। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण ने दिनांक 30.04.2010 को बुकिंग एमाउण्ट 1,90,000/-रू0 जमा किया है और उसके बाद विभिन्न तिथियों में कुल 19,27,294/-रू0 विपक्षी संख्या-1 के यहॉं जमा किया है। परिवाद पत्र के अनुसार विपक्षी संख्या-1 ने विलम्ब के भुगतान हेतु ब्याज भी लिया है, परन्तु 36 महीने के बाद जब परिवादीगण ने विपक्षी संख्या-1 से सम्पर्क किया और उनसे कम्प्लीशन सर्टीफिकेट अन्तिम डिमाण्ड के साथ देने को कहा तो विपक्षी संख्या-1 ने बताया कि अभी फिनिशिंग वर्क चल रहा है कुछ कारण वश निर्माण पूरा नहीं किया जा सका है। इसके साथ ही विपक्षी संख्या-1 ने आश्वासन दिया कि बहुत जल्द ही कार्य पूरा कर लिया जायेगा और अन्तिम किश्त हेतु डिमाण्ड लेटर भेजा जायेगा।
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परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि एलाटमेन्ट लेटर के अनुसार परिवादीगण ने फ्लैट की पूरी किश्त लगभग जमा कर दिया है। अन्तिम किश्त का भुगतान ही शेष है। फिर भी विपक्षी संख्या-1 ने निर्माण कार्य पूरा नहीं किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि जब परिवादी मौके पर गये तो निर्माण उसी स्थिति में पाया जो एलाटमेन्ट के समय था। फ्लैट में निर्माण का कोई कार्य नहीं हो रहा था और स्थानीय लोगों से पूछने पर पता चला कि लम्बे समय से वहॉं पर निर्माण कार्य नहीं हो रहा है। तब परिवादीगण ने विपक्षी संख्या-1 से सम्पर्क करने का प्रयास किया, परन्तु सम्पर्क नहीं हो पाया। उन्होंने विपक्षी संख्या-1 को अनेकों पत्र भेजे, परन्तु उसका कोई उत्तर नहीं दिया गया। अन्त में विवश होकर परिवादीगण ने परिवाद राज्य आयोग के समक्ष विपक्षीगण के विरूद्ध प्रस्तुत किया है और उपरोक्त अनुतोष चाहा है।
विपक्षी संख्या-1 की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर परिवाद का विरोध किया गया है और कहा गया है कि परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है।
लिखित कथन में विपक्षी संख्या-1 की ओर से कहा गया है कि परिवादीगण वर्तमान परिवाद के माध्यम से एलाटमेन्ट का विशिष्ट अनुपालन चाहते हैं और गलत कथन के साथ परिवाद प्रस्तुत किया है।
लिखित कथन में विपक्षी संख्या-1 की ओर से कहा गया है
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कि यदि एलाटमेन्ट करार का उल्लंघन हुआ है तो परिवादीगण एलाटमेन्ट करार को तोड़ सकते हैं, परन्तु उन्होंने एलाटमेन्ट करार को तोड़ना नहीं चाहा है और करार का विशिष्ट अनुपालन और क्षतिपूर्ति वर्तमान परिवाद के माध्यम से चाही है। अत: परिवाद ग्राह्य नहीं है।
लिखित कथन में विपक्षी संख्या-1 की ओर से कहा गया है कि परिवादीगण ने परिवाद एग्रीमेन्ट कम एलाटमेन्ट लेटर के अनुसार भुगतान से बचने के लिए प्रस्तुत किया है।
लिखित कथन में विपक्षी संख्या-1 की ओर से यह भी कहा गया है कि वर्तमान परिवाद में तथ्य और विधि के जटिल प्रश्न निहित हैं, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग द्वारा निर्णीत नहीं किये जा सकते हैं।
लिखित कथन में विपक्षी संख्या-1 की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवादीगण को आवंटित यूनिट के मूल्य 20,99,790/-रू0 में दूसरी सुविधाओं के चार्जेज शामिल नहीं हैं।
लिखित कथन में विपक्षी संख्या-1 की ओर से यह भी कहा गया है कि निर्माण कार्य पूरा हो चुका है और कम्प्लीशन सर्टीफिकेट के लिए आवेदन पत्र सक्षम अधिकारी के समक्ष दिया गया है। विपक्षी संख्या-1, परिवादीगण को उनके द्वारा अवशेष धनराशि का भुगतान करने पर कब्जा देने को तैयार हैं।
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लिखित कथन में विपक्षी संख्या-1 की ओर से कहा गया है कि परिवादीगण के जिम्मा अवशेष धनराशि 7,25,783/-रू0 है।
लिखित कथन में विपक्षी संख्या-1 की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवाद राज्य आयोग के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है। परिवादीगण ने फ्लैट की पूरी कीमत अदा नहीं की है।
विपक्षी संख्या-2 की ओर से भी लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि परिवादीगण ने विपक्षी संख्या-2 से 17,84,000/-रू0 का ऋण प्रश्नगत फ्लैट की खरीद हेतु प्राप्त किया है तथा उसके सम्बन्ध में करार पत्र निष्पादित किया है। फ्लैट के निर्माण की स्थिति के आधार पर लोन की उपरोक्त धनराशि विपक्षी संख्या-2 द्वारा अवमुक्त की गयी है। उसके बाद परिवादीगण ने पूरक लोन एग्रीमेन्ट दिनांक 31.07.2013, 41,661/-रू0 हेतु निष्पादित किया है। अत: 41,661/-रू0 की और ऋण धनराशि परिवादीगण को स्वीकृत की गयी है। इस प्रकार परिवादीगण को स्वीकृत ऋण की कुल धनराशि 18,25,661/-रू0 है, जिसे एलाटमेन्ट लेटर के अनुसार विपक्षी संख्या-1 को बैंक द्वारा दिया गया है।
लिखित कथन में विपक्षी संख्या-2 की ओर से कहा गया है कि ऋण की किश्तों की अदायगी हेतु परिवादीगण उत्तरदायी हैं। परिवाद विपक्षी संख्या-2 के विरूद्ध गलत तौर पर प्रस्तुत किया गया है।
परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में परिवादीगण की ओर से
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परिवादी मुकुल देव का शपथ पत्र संलग्नकों सहित प्रस्तुत किया गया है। विपक्षी संख्या-1 की ओर से संगीत कुमार, सीनियर एक्जीक्यूटिव का शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है। विपक्षी संख्या-2 की ओर से विकास श्रीवास्तव, मैनेजर लीगल का शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
परिवाद की अन्तिम सुनवाई की तिथि पर परिवादीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अनिल कुमार मिश्रा और विपक्षी संख्या-1 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री ए0के0 श्रीवास्तव उपस्थित आये हैं। विपक्षी संख्या-2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
मैंने परिवादीगण एवं विपक्षी संख्या-1 के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है। मैंने परिवादीगण की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
एलाटमेन्ट लेटर दिनांक 05.10.2010 को निष्पादित किया गया है। एलाटमेन्ट लेटर के अनुसार समय से भुगतान होने पर तीस मास में कब्जा दिया जाना था, परन्तु अपरिहार्य कारणों से यह अवधि अधिकतम 06 माह बढ़ाई जा सकती थी। परिवादीगण को आवंटित फ्लैट का निर्माण पूर्ण कर कब्जा निश्चित समय में नहीं दिया गया है, यह तथ्य भी निर्विवाद है।
एलाटमेन्ट लेटर के अनुसार विपक्षी संख्या-1 कब्जा अन्तरण में विलम्ब होने पर 5/-रू0 प्रति वर्ग फिट प्रतिमास की दर से
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क्षतिपूर्ति परिवादीगण को देने हेतु उत्तरदायी है। परिवादीगण को आवंटित फ्लैट का क्षेत्रफल 1010 वर्ग फिट है। अत: परिवादीगण 5050/-रू0 मासिक क्षतिपूर्ति कब्जा देने में विलम्ब हेतु विपक्षी संख्या-1 से दिनांक 05.10.2013 से पाने के अधिकारी हैं। निर्माण में इतने लम्बे विलम्ब का विपक्षी संख्या-1 ने सन्तोषजनक कारण नहीं दर्शित किया है। यह मानने हेतु उचित आधार नहीं है कि निर्माण में इतना विलम्ब विपक्षी संख्या-1 के नियंत्रण से बाहर परिस्थितियों के कारण हुआ है।
विपक्षी संख्या-1 के अनुसार अब निर्माण कार्य पूरा हो चुका है और कम्प्लीशन सर्टीफिकेट हेतु आवेदन पत्र सक्षम अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया जा चुका है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों पर विचार कर उचित प्रतीत होता है कि विपक्षी संख्या-1 को तीन मास के अन्दर आवंटित फ्लैट का निर्माण पूर्ण कर आवंटन करार के अनुसार अवशेष धनराशि प्राप्त कर आवंटित फ्लैट पर परिवादीगण को कब्जा देने हेतु आदेशित किया जाये तथा कब्जा प्राप्त करने की तिथि तक दिनांक 05.10.2013 से 5050/-रू0 मासिक प्रतिकर कब्जा में विलम्ब हेतु परिवादीगण को विपक्षी संख्या-1 से दिलाया जाये। यदि इस अवधि में विपक्षी संख्या-1 निर्माण पूर्ण कर परिवादीगण को फ्लैट का कब्जा देने में असफल रहता है तब परिवादीगण को तीन मास की अवधि समाप्त होने के बाद की प्रथम तिथि से कब्जा पाने तक उनकी सम्पूर्ण जमा धनराशि 19,27,294/-रू0 पर 10 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज विलम्ब
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हेतु क्षतिपूर्ति के रूप में विपक्षी संख्या-1 से दिलाया जाये।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लखनऊ डेवलपमेन्ट अथॉरिटी बनाम एम0के0 गुप्ता 1994 (1) S.C.C. 243 के वाद में प्रतिपादित सिद्धान्त के अनुसार परिवादीगण, विपक्षीगण की सेवा के उपभोक्ता हैं और परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत ग्राह्य है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है और विपक्षी संख्या-1 को आदेशित किया जाता है कि प्रश्नगत फ्लैट का निर्माण तीन मास के अन्दर पूरा कर आवंटन करार के अनुसार अवशेष धनराशि परिवादीगण से प्राप्त कर परिवादीगण को फ्लैट का कब्जा प्रदान करे एवं आवश्यक अभिलेख निष्पादित करे तथा दिनांक 05.10.2013 से कब्जा हस्तगत करने की तिथि तक परिवादीगण को 5050/-रू0 प्रतिमास की दर से कब्जा अन्तरण में विलम्ब हेतु क्षतिपूर्ति अदा करे। यदि इस तीन मास की अवधि में निर्माण पूर्ण कर कब्जा देने में विपक्षी संख्या-1 असफल रहता है तो वह कब्जा में विलम्ब हेतु परिवादीगण की सम्पूर्ण जमा धनराशि पर 10 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज परिवादीगण को उपरोक्त तीन मास पूरे होने की तिथि के बाद की पहली तिथि से कब्जा प्रदान करने की तिथि तक क्षतिपूर्ति के रूप में अदा करेगा।
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विपक्षी संख्या-1, परिवादीगण को दस हजार रूपया वाद व्यय भी देगा।
कब्जा विलम्ब हेतु क्षतिपूर्ति की उपरोक्त धनराशि परिवादीगण के जिम्मा अवशेष धनराशि में समायोजित की जा सकती है।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1