राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ
परिवाद संख्या-22/2012
सुरक्षित
अनिल शर्मा पुत्र श्री जी0एन0 शर्मा निवासी-203एम. Regalia Heigsts शिप्रा सनसिटी इन्दिरापुरम गाजियाबाद उ0 प्र0 पिन 201010
बनाम
सुपरटेक लिमिटेड प्रधान कार्यालय सुपरटेक House, B-28-29, सेक्टर- 58 नोयडा यू0 पी0 द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर।
समक्ष:-
- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
- मा0 श्री बाल कुमारी, सदस्य।
विद्वान अधिवक्ता परिवादी : श्री बी0 के0 उपाध्याय।
विद्वान अधिवक्ता विपक्षी : श्री सर्वेश कुमार शर्मा के सहयोगी
श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय।
दिनांक:07.07.2017
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित।
निर्णय
प्रस्तुत परिवाद परिवादी अनिल शर्मा ने विपक्षी के विरूद्ध केप टाउन नोयडा सेक्टर -74 में परिवादी के पक्ष में बुक किये गये प्रश्नगत फ्लैट के निरस्तीकरण दिनांकित 24.11.2011 को वापस लेने, बिल्डिंग का निर्माण कार्य तत्काल प्रारम्भ करने, उसे फ्लैट का आवंटन पत्र जारी किये जाने, तथा परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि पर फ्लैट पर कब्जा प्रदान किये जाने कि तिथि तक 18 प्रतिशत ब्याज लगाते हुए फ्लैट के मूल्य से उक्त धनराशि को घटाकर शेष धनराशि जमा करा कर विक्रय पत्र निष्पादित कराने के अनुतोष, इसके अतिरिक्त वाद व्यय तथा मानसिक एवं शारीरिक उत्पीड़न के संदर्भ में रूपया 2,00.000.00 क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु योजित किया है।
-2-
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी के कथनानुसार विपक्षी कंपनी द्वारा सेक्टर 74 नोयडा में केप टाउन योजना के अन्तर्गत दिनांक 21.08.2010 को परिवादी से रूपया 50,000.00 प्राप्तकर के विपक्षी द्वारा फ्लैट सं0 आरओ26सीसी11201 परिवादी के नाम बुक किया गया। यह फ्लैट बिल्डिंग के 12वें मंजिल पर स्थित था तथा इसका क्षेत्रफल 2385 वर्गफुट था। फ्लैट का मूल्य रूपया 63,20,000.00 निर्धारित था। उक्त बुकिंग के आधार पर फ्ल्ैाट की संपूर्ण धनराशि का 10 प्रतिशत अदा कर देने पर विपक्षी द्वारा आवंटन पत्र प्रदान करना था जिससे उक्त फ्लैट की शेष धनराशि ऋण लेकर अदा की जा सके। प्रचार प्रसार के आधार पर बिल्डिंग का निर्माण 2 वर्ष के अन्दर करना था। परिवादी ने बुकिंग के समय से ही फ्लेक्सी पेमेंट प्लान के अन्तर्गत भुगतान हेतु आफर दिया था। विपक्षी को फ्लैट के संपूर्ण मूल्य का 10 प्रतिशत टोकन मनी जमा करनी थी। यह टोकन मनी रूपया 6,32,000.00 हुआ, लेकिन विपक्षी ने दिनांक 26.10.2011 तक परिवादी से रूपया 7,35,000.00 जमा करवा कर आवंटन पत्र प्रदान नहीं किया। आवंटन पत्र के अभाव में बैंकसे ऋण नहीं मिल सकता था। आवंटन पत्र प्रदान करने का दायित्व विपक्षी का था। जिस बिल्डिंग में फ्लैट बुक है उसकी नींव परिवाद योजित किये जाने के समय तक खोदी गयी थी तथा निर्माण कार्य नहीं किया गया। प्रश्नगत बिल्डिंग जिसमें परिवादी का फ्लैट बुक है का लेआउट बिल्डिंग प्लान बिना परिवादी को सूचित किये जनवरी 2011, अप्रैल 2011 एवं अगस्त 2011 में परिवर्तित कर दिया। दिनांक 29.08.2011 को परिवादी ने एक पत्र विपक्षी के कार्यालय में प्राप्त कराया। परिवादी द्वारा पत्र प्रस्तुत करने के पश्चात फ्लैट के बिल्डिंग लेआउट के परिर्वतन के सम्बन्ध में परिवादी को सूचना नहीं दी गयी जबकि बिल्डिंग प्लान संशोधन के आधार पर विपक्षी के फ्लैट संख्या परिवर्तित होने की जानकारी परिवादी को प्राप्त हुई। माह नवम्बर 2011 के अंतिम सप्ताह में विपक्षी के कारपोरेट आफिस में परिवादी गया तथा एलाटमेन्ट लेटर की मांग की तो विपक्षी के कारपोरेट आफिस ने दिनांक 24.11.2011 को फ्लैट का निरस्तीकरण पत्र प्राप्त कराया। इस पत्र में विपक्षी द्वारा 5 अगस्त 2011, 5
-3-
सितम्बर 2011 एवं 5.10.2011 को भुगतान हेतु नोटिस परिवादी को भेजना उल्लिखित है, किन्तु ऐसा कोई मांग पत्र विपक्षी द्वारा परिवादी को प्राप्त नहीं कराया गया। विपक्षी ने प्रश्नगत बिल्डिंग के निर्माण के संदर्भ में प्रचार प्रसार के अन्तर्गत बिल्डिंग का निर्माण 2 वर्ष में होना चाहिए था, किन्तु 29.02.2012 तक नींव की खुदाई के पश्चात बिल्डिंग का निर्माण कार्य प्रारम्भ नहीं किया गया। इस प्रकार विपक्षी अनुचित व्यापार प्रथा कारित करने तथा सेवा में कमी कारित करने का दोषी है।
विपक्षी ने यद्यपि प्राथमिक आपत्ति के रूप में अपनी आपत्ति प्रस्तुत की है, किन्तु वस्तुत: इस आपत्ति में विपक्षी ने परिवाद के संपूर्ण कथनों के संदर्भ में आपत्ति प्रस्तुत की है। विपक्षी के कथनानुसार प्रश्नगत वाद में जटिल प्रश्न निहित है जिनका निस्तारण उपभोक्ता मंच द्वारा संक्षिप्त विचारण किया जाना संभव नहीं है। परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार दिवानी न्यायालय का है। विपक्षी के कथनानुसार परिवादी द्वारा पक्षकारों के मध्य प्रश्नगत फ्लैट के क्रय के सम्बन्ध में निष्पादित किए गये इकरारनामे की शर्तों के अनुसार निर्धारित समय के अन्तर्गत किश्तों की धनराशि का भुगतान नहीं किया गया। परिवादी द्वारा शर्तों के अन्तर्गत भुगतान न करके चूक की गयी। अत: विपक्षी ने प्रश्नगत फ्लैट की बुकिंग अपने पत्र दिनांकित 24.11.2011 द्वारा निरस्त कर दी।
विपक्षी का यह भी कथन है कि इस आयोग को प्रस्तुत परिवाद की सुनवाई का आर्थिक क्षेत्राधिकार नहीं है, क्योंकि परिवादी द्वारा मांगे गये अनुतोष के आलोक में अनुतोष 1,00,00,000.00 से अधिक का चाहा गया है। विपक्षी का यह भी कथन है कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित की गयी शर्तों के अन्तर्गत किस्तों में भुगतान हेतु विपक्षी द्वारा आवंटन पत्र जारी किया जाना आवश्यक नहीं था। विपक्षी का यह भी कथन है कि मात्र आवेदन पत्र प्रस्तुत किये जाने के आधार पर परिवादी को उपभोक्ता नहीं माना जा सकता। साथ ही विपक्षी का यह भी कथन है कि परिवादी ने प्रश्नगत फ्लैट व्यावसायिक उपयोग हेतु क्रय किया है। इस आधार पर भी परिवादी उपभोक्ता नहीं है अत: परिवाद सुनने को क्षेत्राधिकार
-4-
उपभोक्ता मंच को प्राप्त नहीं है। परिवादी ने परिवाद के कथनों के समर्थन में अपना शपथ पत्र प्रस्तुत किया है। इसके अतिरिक्त परिवादी द्वारा विपक्षी को अदा की गयी धनराशि का विवरण तथा धनराशि जमा किये जाने की रसीदें दाखिल की गयी है। परिवादी ने विपक्षी को कथित रूप से उसके द्वारा प्रस्तुत पत्र दिनांक 27.08.2011 की फोटोप्रति संलग्नक-11 के रूप में लेआउट प्लान संलग्नक-12,13, 14 के रूप में, विपक्षी द्वारा फ्लैट की बुकिंग के निरस्तीकरण पत्र दिनांक 24.11.2011 की फोटोप्रति संलग्नक-15 के रूप में, परिवादी द्वारा विपक्षी को ई-मेल द्वारा भेजा पत्र दिनांक 24.11.2012 की फोटोप्रति संलग्नक-16 के रूप में, परिवादी द्वारा दी गयी लीगल नोटिस संलग्नक 17 के रूप में दाखिल की है। इसके अतिरिक्त परिवादी ने अतिरिक्त शपथपत्र दिनांकित 01.09.2014 प्रस्तुत किया है जिसके साथ उपरोक्त अभिलेखों के अतिरिक्त कथित निर्माण स्थल की फोटोप्रति संलग्नक के रूप में दाखिल की गयी है।
विपक्षी ने अपनी आपत्ति के साथ संलग्नक-1 के रूप में परिवादी द्वारा प्रश्नगत फ्लैट की बुकिंग के संदर्भ में प्रस्तुत किये गये आवंटन पत्र की फोटोप्रति, विपक्षी द्वारा जारी किये गये निरस्तीकरण पत्र संलग्नक-2 के रूप में, प्रश्नगत फ्लैट की बुकिंग हेतु श्री राम विनय शाही द्वारा प्रस्तुत किये गये प्रार्थना पत्र की फोटोप्रति संलग्नक -3 के रूप में विपक्षी द्वारा प्रश्नगत फ्लैट की किस्तों के भुगतान के संदर्भ में परिवादी को कथित रूप से जारी मांगपत्र दिनांकित 28.10.2010, 01.02.2011, 05.03.2011, 04.04.2011, 08.05.2011, 03.06.2011, 05.07.2011, 05.08.2011, 05.09.2011, 17.10.2011 की फोटोप्रतियां दाखिल की गयी है।
हमने परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0 के0 उपाध्याय तथा विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता श्री सर्वेश कुमार शर्मा के सहयोगी श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय के तर्क को सुना तथा अभिलेखों का अवलोकन किया ।
-5-
विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने प्रस्तुत परिवाद की सुनवाई आयोग के क्षेत्राधिकार का विरोध किया है। अत: सर्वप्रथम इस बिन्दु का निस्तारण किया जाना न्यायसंगत होगा।
विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुतकिया गया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-17 के अन्तर्गत इस अयोग को 20 लाख रूपये से 1 करोड़ मूल्य की वस्तुओं, सेवा तथा क्षतिपूर्ति की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त है। 1 करोड़ से अधिक मूल्य के अनुतोष के संदर्भ में सुनवाई का क्षेत्राधिकार माननीय राष्ट्रीय आयोग का है। प्रश्नगत परिवाद के संदर्भ में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि विपक्षी ने निम्नलिखित अनुतोष हेतु परिवाद योजित किया है।
- विपक्षी को आदेश दिया जाये कि वह अपना जारी Cancellation Lettor दिनांक 24.11.2011 को वापस लेकर Cape Town नोयडा सेक्टर 74 की बुकिंग फ्लैट No-RO26cc11201 की बिल्डिंग का निर्माण तत्काल शुरू करें एवं आवंटन पत्र देवें ताकि बैंक से ऋण प्राप्त कर के शेष धनराशि अदा की जा सकें साथ ही साथ विपक्षी को निर्देश दिया जाय कि बुकिंग तिथि से 2 वर्ष के अन्दर उक्त फ्लैट्स का निर्माण पूर्ण कर मुझे कब्जा प्रदान करें।
- यह कि विपक्षी के त्रुटि को देखते हुए मेरे जमा 7,35,000.00 रूपयेपर आवंटन प्रमाण पत्र जारी करने एवं कब्जा प्रदान करने की तिथि तक 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिलवाया जाय तथा बिल्डिंग का निर्माण पूर्ण हो जाने पर मेरे आवंटित फ्लैट पर कब्जा प्रदान करने के बाद फ्लैट के मूल्य 63,20,000.00 रूपये से उक्त जमा 7,35,000.00 रूपये एवं उपरोक्तानुसार ब्याज घटा कर शेष धनराशि जमा करवा कर विपक्षी उक्त फ्लैट का विक्रय मेरे पक्ष में निष्पादित करें।
-6-
- यह कि विपक्षी से वाद व्यय व अधिवक्ता फीस के मद में 50,000.00 रूपये एवं मानसिक, शारीरिक कष्ट के रूप में 2,00,000.00 रूपये मुझे दिलवाया जाय।
- यह कि विपक्षी की त्रुटि को देखते हुए तथा उपरोक्तानुसार अपनी सेवा में कमी को छिपाते हुए गलत ढंग से Cancellation Lettor जारी करने के आधार पर विपक्षी से पयूनिटीव डैमेजेज 10,00,000.00 रूपया दिलवाया जाय।
विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि जहॉं तक परिवादी द्वारा चाहे गये प्रथम अनुतोष का प्रश्न है, क्योंकि प्रश्नगत फ्लैट जिसके संदर्भ में बुकिंग अभिकथित है तथा जिसके संदर्भ में जारी किये गये निरस्तीकरण पत्र को निरस्त किये जाने का अनुतोष चाहा गया है का आवंटन दिनांक 11.04.2012 को श्री राम विनय शाही के पक्ष में रूपया 98, 76,429.00 में किया जा चुका है। परिवादी ने 2 लाख रूपया क्षतिपूर्ति के रूप में तथा रूपया 50,000.00 वाद व्यय के रूप में दिलाने का अनुतोष मांगा है। इसके अतिरिक्त दण्डात्मक क्षतिपूर्ति के रूप में रूपया 10 लाख दिलाये जाने का अनुतोष चाहा है। इस प्रकार परिवादी द्वारा वांछित अनुतोषों का मूल्यांकन 1,11,26,429.00 आ रहा है जो इस आयोग के आर्थिक क्षेत्राधिकार से बाहर है।
इस संदर्भ में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने सतीश कुमार पाण्डेय व अन्य बनाम यूनिटेक इंडिया लिमिटेड वैल्यूम-3 15 सीपीसी पेज 440 के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दियेगये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया।
र्निविवादित रूप से इस आयोग का क्षेत्राधिकार 20 लाख से 1 करोड़ तक के मूल्यांकन के अनुतोष तक ही सीमित है, किन्तु उल्लेखनीय है कि मूल्यांकन का आंकलन परिवाद योजित किये जाने की तिथि पर ही किया जाना होगा। विपक्षी ने प्रश्नगत फ्लैट का श्री राम विनय शाही के पक्ष में आवंटन दिनांक 11.04.2012 को किया जाना बताया है तथा इस संदर्भ में अपनी आपत्ति के साथ अभिलेख संलग्नक -3 के रूप में प्रस्तुत किया है जबकि प्रस्तुत परिवाद दिनांक
-7-
14.03.2012 को योजित किया गया है। ऐसी परिस्थिति में मूल्यांकन के आंकलन के संदर्भ में विपक्षी द्वारा प्रस्तुत किया गया यह अभिलेख महत्वहीन है। यह तथ्य र्निविवादित है कि प्रश्नगत फ्लैट की बुकिंग परिवादी के पक्ष में विपक्षी द्वारा रूपया 63,20,000.00 में की गयी थी। अत: प्रश्नगत परिवाद के संदर्भ में प्रश्नगत फ्लैट का यह मूल्य ही स्वीकार किया जायेगा। यदि परिवादी द्वारा मांगे अन्य अनुतोषों पर विचार किया जाए तो सभी अनुतोषों का मूल्यांकन सम्मिलित रूप से 1 करोड़ रूपये से कम होगा। ऐसी परिस्थिति में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है कि प्रस्तुत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार इस आयोग को प्राप्त नहीं है।
विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने प्रश्नगत फ्लैट व्यावसायिक उपयोग हेतु क्रय किया है स्वयं परिवादी के कथनानुसार प्रश्नगत फ्लैट का आवंटन उसके पक्ष में नहीं किया गया है। मात्र आवंटत हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने के आधार पर एवं व्यावसायिक उपयोग हेतु प्रश्नगत फ्लैट क्रय किये जाने के कारण परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1) (डी) के अन्तर्गत उपभोक्ता नहीं माना जा सकता।
इस संदर्भ में विपक्षी के द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किश्त गया कि परिवादी ने प्रश्नगत फ्लैट की बुकिंग हेतु प्रस्तुत किये गये अपने आवेदन पत्र में अपना पता 203 एम रिगैजा हाईट्स इंदिरा पुरम, गाजियाबाद प्रदर्शित किया है। विपक्षी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने इंदिरा पुरम गाजियाबाद स्थित मकान का स्वामी होने के बावजूद प्रश्नगत फ्लैट मात्र व्यावसायिक उपयोग हेतु क्रय किया है।
मात्र इस आधार परकि परिवादी ने प्रश्नगत गत फ्लैट बुक कराते समय अपना पता 203 एम. रगैजा इन्दिरापुरम, गाजियाबाद प्रदर्शित किया है प्रश्नगत फ्लैट व्यावसायिक प्रयोग हेतु क्रय किया जाना नहीं माना जा सकता। विपक्षी की ओर से इस संदर्भ में कोई विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी जिससे यह
-8-
निष्कर्ष निकाला जा सके कि वस्तुत: परिवादी ने प्रश्नगत फ्लैट व्यवसायिक उपयोग हेतु क्रय किया है।
जहॉंतक प्रश्नगत फ्लैट के आवंटनका प्रश्न है यह तथ्य र्निविवादित है कि फ्लैट की बुकिंग परिवादी के पक्ष में विपक्षी द्वारा की गयी है बुकिंग के अन्तर्गत् बुकिंगकर्ता का नाम प्रश्नगत फ्लैट का मूल्य, उसका क्षेत्रफल तथा फ्लैट का विवरण अंकित किया गया है। ऐसी परिस्थ्िति में मात्र औपचारिक आवंटन पत्र जारी न किया जाना विशेष महत्व का नहीं माना जा सकता। यह तथ्य र्निविवादित है कि परिवादी ने प्रश्नगत फ्लैट की बुकिंग के संदर्भ में कुल रूपया 7,35,000.00 विपक्षी को प्राप्त कराया है। ऐसी परिस्थ्िति में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है कि परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनिमय की धारा 2 (1) (डी) के अन्तर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता।
अब महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि विपक्षी द्वारा कोई अनुचित व्यापार प्रथा कारित की गयी तथा सेवा में कमी की गयी। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि प्रश्नगत फ्लैट की बुकिंग के समय फ्लैट के मूल्य के भुगतान सम्बन्धित किस्तों की अदायगी के विवरण से परिवादी को अवगत कराया गया था स्वयं परिवादी ने किस्तों की अदायगी के विवरण की जानकारी से इनकार नहीं किया है। विपक्षी ने उक्त विवरण सम्बन्धित अभिलेख आपत्ति के साथ संलग्नक-1 पृष्ठ सं0 19 के रूप में दाखिल किया है। इस विवरण के अनुसार बुकिंग के समय कुल रूपया 6,48,307.00 परिवादी को अदा करने थे। बुकिंग के पश्चात 75 दिन के अन्दर परिवादी को 19,44,420.00 अदा करने थे, किन्तु स्वीकृत रूप से परिवादी द्वारा दिनांक 26.10.2011 तक कुल रूपया 7,35,000.00 अदा किये गये परिवादी ने परिवाद योजित किये जाने से पूर्व विधिक नोटिस विपक्षी को प्रेषित किया है। इस नोटिस में भी परिवादी द्वारा स्वयं यह स्वीकार किया गया है कि परिवादी द्वारा फ्लेक्सी पेमेंट प्लान के अन्तर्गत भुगतान किया जाना स्वीकार किया गया था। इस प्लान के अन्तर्गत् बुकिंग के समय क्रय फ्लैट के मूल्य का
-9-
10 प्रतिशत अदा किया जाना था और बुकिंग के उपरान्त 60 दिन के अन्दर फ्लैट के मूल्य का 40 प्रतिशत अदा किया जाना था। स्वयं परिवादी का यह कथन है कि फ्लैट का मूल्य 63,20,000.00 रूपया और कुल 7,35,000.00 रूपया परिवादी द्वारा भुगतान किया गया। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि परिवादी ने पक्षकारों के मध्य निर्धारित शर्तों के अन्तर्गत प्रश्नगत फ्लैट की किस्तों का निर्धारित अवधि में भुगतान नहीं किया गया।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि बुकिंग के समय फ्लैट के मूल्य के 10 प्रतिशत का भुगतान किये जाने के उपरान्त फ्लैट का आवंटन पत्र विपक्षी को जारी करना था। विपक्षी द्वारा आवंटन पत्र जारी किये जाने के आधार पर ही बैंक से परिवादी को ऋण प्राप्त हो सकता था, किन्तु विपक्षी ने आवंटन पत्र जारी नहीं किया जिससे परिवादी बैंक से ऋण प्राप्त नहीं कर सका अत: स्वयं विपक्षी द्वारा सेवा में त्रुटि की गयी है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि निरस्तीकरण पत्र दिनांकित 24.11.2011 में जारी किये गये मांग पत्रों का उल्लेख किया है, किन्तु कोई कथित मांग पत्र परिवादी को प्रेषित नहीं किया गया।
जहॉं तक निरस्तीकरण पत्र से पूर्व प्रेषित मांगपत्रों का प्रश्न है यद्यपि विपक्षी का यह कथन है कि सभी मांगपत्र परिवादी को प्रेषित किये गये, किन्तु उल्लेखनीय है कि पक्षकारों के मध्य भुगतान के संदर्भ में निर्धारित शर्तों के अन्तर्गत परिवादी को किस्तों का निर्धारित अवधि में भुगतान करना था तथा यह तथ्य परिवादी की जानकारी में था। ऐसी परिस्थिति में निरस्तीकरण से पूर्व मांग पत्र प्रस्तुत किया जाना विशेष महत्व का नहीं माना जा सकता। जहॉं तक बुकिंग की धनराशि की अदायगी के पश्चात विपक्षी द्वारा प्रश्नगत फ्लैट के संदर्भ में आवंटन पत्र जारी किये जाने का प्रश्न है। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि पक्षकारों के मध्य ऐसा कोई इकरारनामा निष्पादित नहीं किया गया था कि किस्तों के भुगतान हेतु विपक्षी द्वारा परिवादी के पक्ष में आवंटन पत्र जारी किया जाना आवश्यक है। इस संदर्भ में विपक्षी के विद्वान
-10-
अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने फ्लैट के मूल्य के भुगतान सम्बन्धित शर्तों के वास्तविक तथ्यों को छुपाते हुए प्रस्तुत परिवाद योजित किया है विपक्षी के कथनानुसार पक्षकारों के मध्य निर्धारित शर्तों के अन्तर्गत किस्तों की अदायगी परिवादी को ऋण स्वीकृत पर आश्रित नहीं थी । इस संदर्भ में प्रश्नगत फ्लैट की बुकिंग हेतु परिवादी द्वारा प्रस्तुत आवेदन पत्र की फोटोप्रति जिसे आपत्ति के साथ संलग्नक-1 के रूप में दाखिल किया गया है, कि ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया गया। शर्त संख्या 5 (1) के अनुसार –
5.1 The purchaser as his/her discretion and cost may avail housing loan from bank/financial institution. The company shall under no circumstances be held responsible for non sanction of the loan to the purchaser for whatsoever reason. The payments of installments to the company shall not be linked to the housing loan availed/to be availed by the purchaser.
विपक्षी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत प्रकरण के संदर्भ में प्रश्नगत फ्लैट का औपचारिक आवंटन महत्वहीन है, क्योंकि र्निवादित रूप से प्रश्नगत फ्लैट की बुकिंग परिवादी के पक्ष में की गयी थी और बुकिंग में फ्लैट नं0 फ्लैट का क्षेत्रफल, किस्तों की धनराशि अदायगी की निर्धारित अवधि सभी का विवरण प्रदर्शित था। परिवादी ने परिवाद में यह स्पष्ट नहीं किया है कि किस बैंक में परिवादी ने ऋण हेतु आवेदन किया और किन अभिलेखों के अभाव में उसे बैंक द्वारा ऋण स्वीकार नहीं किया गया।
विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क में बल प्रतीत होता है कि परिवादी के पक्ष में की गयी बुकिंग में फ्लैट संख्या, किस योजना के अन्तर्गत फ्लैट बुक किया गया फ्लैट का निर्धारित क्षेत्रफल, प्रतिफल की धनराशि, किस्तों की धनराशि, किश्तों की अदायगी की निर्धारित अवधि सभी स्पष्ट है। परिवादी द्वारा इस संदर्भ में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी है कि किस बैंक में परिवादी ने ऋण हेतु आवेदन किया और उसके द्वारा किया गया आवेदन किन अभिलेखों
-11-
के आधार पर बैंक द्वारा स्वीकार नहीं किया गया। मामले की परिस्थितियों के अन्तर्गत औपचारिक आवंटन पत्र हमारे विचार से विशेष महत्व का नहीं माना जा सकता। साथ ही परिवादी ने परिवाद के अभिकथनों में भी स्पष्ट नहीं किया है कि ऋण की प्राप्ति हेतु क्या प्रयास किया गया और क्यों प्रयास सफल नहीं हो पाया। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि विपक्षी ने शेष धनराशि जमा करने हेतु परिवादी को पर्याप्त अवसर प्रदान नहीं किया। इस संदर्भ में उनके द्वारा R.N.A. Builders (N.G.) Vs. Dharampal Kuldeep Singh Vol-1 (2017) CPJ 623 (NC) के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा संदर्भित उपरोक्त निर्णय का हमने अवलोकन किया। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा निर्णीत उपरोक्त मामले के तथ्य प्रस्तुत मामले के तथ्य से भिन्न है। प्रस्तुत वाद में परिवादी द्वारा यह अभिकथित नहीं किया गया है विपक्षी ने प्रश्नगत फ्लैट के क्रय मूल्य की शेष धनराशि अदा करने हेतु परिवादी को पर्याप्त अवसर प्रदान नहीं किया, बल्कि परिवादी का यह कथन है कि आवंटन पत्र प्राप्तन कराये जाने के कारण परिवादी बैंक से ऋण प्राप्त नहीं कर सका। जहॉंतक प्रश्नगत फ्लैट के क्रय मूल्य की शेष धनराशि की अदायगी का प्रश्न है बुकिंग के समय निष्पादित शर्तों में यह स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि उसकी जानकारी स्वयं परिवादी स्वीकार करता है कि कितनी धनराशि कब तक जमा की जानी है। ऐसी परिस्थ्ितियों में परिवादी विद्वान अधिवक्ता द्वारा संदर्भित उपरोक्त निर्णय का लाभ प्रस्तुत परिवाद के संदर्भ में परिवादी को प्रदान नहीं किया जा सकता।
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में हमारे विचार से परिवादी द्वारा पक्षकारों के मध्य प्रश्नगत फ्लैट मूल्य के भुगतान हेतु निर्धारित शर्तों के अन्तर्गत किस्तों की अदायगी नहीं की गयी। परिवादी द्वारा किस्तों की अदायगी में चूक की गयी है अत: परिवादी का यह कथन स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है कि विपक्षी ने बिना किसी उपर्युक्त आधार के प्रश्नगत फ्लैट की बुकिंग निरस्त कर दी। जहॉं तक
-12-
प्रश्नगत फ्लैट के संदर्भ में लेआउट प्लान के परिवर्तन का प्रश्न है उल्लेखनीय है कि स्वयं परिवादी ने जिस फ्लैट की बुकिंग अभिकथित की है उसी फ्लैट के संदर्भ में अनुतोष भी चाहा है किसी अन्य फ्लैट नंबर के संदर्भ में अनुतोष नहीं चाहा है।
विपक्षी ने परिवादी के इन अभिकथनों से इनकार किया है। ऐसी स्थिति में इस संदर्भ में परिवादी का अभिकथन स्वीकार किये जाने योग्य नहीं माना जा सकता।
यद्यपि परिवादी का अभिकथन स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है कि विपक्षी ने बिना किसी तर्कसंगत आधार के प्रश्नगत फ्लैट की बुकिंग निरस्त कर दी, किन्तु उल्लेखनीय है कि निरस्तीकरण पत्र दिनांकित 24.11.2011 द्वारा विपक्षी ने परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि को भी जब्त कर लिया है, जबकि पक्षकारों के मध्य निर्धारित शर्तों में परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि को जब्त किये जाने सम्बन्धित कोई शर्त उल्लिखित नहीं है।
ऐसी परिस्थिति में जमा की गयी धनराशि मय ब्याज परिवादी को वापस करया जाना न्यायोचित होगा। इस संदर्भ में परिवाद आंशिकरूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि रूपया 7,35,000.00 निर्णयकी तिथि से एक माह के अन्दर परिवादी को अदा करे, इस धनराशि पर परिवाद योजित किये जाने की तिथि से संपूर्ण धनराशि की अदायगी तक परिवादी 10 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज पाने का अधिकारी होगा।
इस निर्णय की सत्य प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी) (बाल कुमारी )
पीठासीन सदस्य सदस्य
माला श्रीवास्तव, आशुलिपिक कोर्ट-2