(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1927/2010
(जिला आयोग, बिजनौर द्वारा परिवाद संख्या-231/2009 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14.10.2010 के विरूद्ध)
डा0 बागेश कुमार, एम.बी.बी.एस.,एम.डी. (पैथोलोजी), के.के. मेमोरियल डायग्नोस्टिक लैब, जजी रोड, सिविल लाइन्स, बिजनौर, (यू.पी.)।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
श्रीमती सुनीता पत्नी श्री गजराम सिंह, निवानिसी बब्ली कालोनी, बिजनौर, यू.पी.।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री विकास अग्रवाल की सहायक
सुश्री पलक सहाय गुप्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री प्रतीक सक्सेना।
दिनांक: 12.09.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-231/2009, श्रीमती सुनीता बनाम डा0 बागेश कुमार में विद्वान जिला आयोग, बिजनौर द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14.10.2010 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. इस निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला आयोग ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए विपक्षी को आदेशित किया है कि वह परिवादिनी को अंकन 2,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति और इलाज में खर्च राशि के लिए अंकन 50,000/-रू0 तथा परिवाद व्यय के रूप में अंकन 10,000/-रू0 अदा करने के लिए आदेशित किया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादिनी ने दिनांक 16.3.2009 को डा0 अजय शर्मा को दिखाया उनकी सलाह पर परिवादिनी ने विपक्षी की लैब पर कुछ टेस्ट के लिए खून का नमूना विपक्षी को दिया। विपक्षी द्वारा दिनांक 16.3.2009 को रिपोर्ट उपलब्ध करा दी गई, इस रिपोर्ट के आधार पर ई.एस.आर. 46 आया और एलिसा फार ट्यूबर क्लोसिस एंटी बॉडी इन्डेक्स 1.35 पाजिटिव आया। डा0 अजय शर्मा द्वारा इस रिपार्ट को देखकर खाने के लिए दवाएं दी, जिनके खाने से परिवादिनी को अत्यधिक तकलीफ हुई, इसके बाद परिवादिनी ने दिनांक 28.3.2009 को टी.बी. हॉस्पिटल, बिजनौर में दिखाया। इन डा0 द्वारा दी गई दवाओं के खाने से भी परिवादिनी का स्वास्थ्य लगातार गिरता रहा, इसके बाद पुन: डा0 अजय शर्मा को दिखाया तब उनके द्वारा किसी अन्य लैब से टेस्ट कराने की सलाह दी गई तब परिवादिनी ने दिनांक 30.3.2009 को अपने खून का नमूना बिजनौर स्थित एक लैब को दिया, उक्त लैब वालों ने रैलीगेयर एस.आर.एल. गुड़गांव (हरियाणा) से रिपोर्ट मंगाई, जो दिनांक 31.3.2009 को प्राप्त हुई, इस रिपोर्ट में ई.एस.आर. की मात्रा 41 एवं एलिसा फार ट्यूबर क्लोसिस 0.77 निगेटिव आया, जबकि विपक्षी की लैब रिपोर्ट में यह पाजिटिव था। इस प्रकार विपक्षी की लैब ने आधुनिक उपकरणों के अभाव में रिपोर्ट तैयार की और तदनुसार लापरवाही बरती गई। विपक्षी द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर वह मृत्यु से बची है, जबकि इस बीच जौलीग्राट अस्पताल देहरादून डा0 निजम कौल देहरादून, डा0 मलय शर्मा मेरठ, डा0 राजेश कपूर आनन्द हॉस्पिटल तथा डा0 आर.के. कौल देहरादून एवं डा0 गिरीश त्यागी मेरठ के यहां से इलाज कराया।
4. विपक्षी का कथन है कि दिनांक 16.3.2009 को परिवादिनी के खून की जांच की गई थी और सही रिपोर्ट तैयार की गई थी। जांच रिपोर्ट में कोई त्रुटि नहीं थी। इस रिपोर्ट के आधार पर परिवादिनी के डा0 ने टी.बी. का इलाज शुरू कर दिया, जबकि यह जांच किसी एक बीमारी (टी.बी.) के लिए नहीं थी, बल्कि कई अन्य बीमारियों में भी पॉजिटिव आ सकती है। रिपोर्ट में नोट में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि उक्त अन्य बीमारियों में से एक बीमारी स्टेराइड है, जिस बीमारी से परिवादिनी वर्ष 1992 से ग्रसित है और उक्त बीमारी की जांच आर.ए. फैक्टर पाजिटिव होती है। परिवादिनी द्वारा हिमालयन इंस्टीट्यूट हॉस्पिटल के पर्चे में तीन माह पहले से इस बीमारी के बारे में लिखा है, जबकि विपक्षी द्वारा 14 दिन पहले जांच की गई, उनके द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई है। लैब रिपोर्ट पूर्णत: सावधानी के साथ तथा गुणवत्ता से तैयार की गई है।
5. विद्वान जिला आयोग ने विपक्षी, डा0 बागेश द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट एवं गुड़गांव, हरियाणा स्थित लैब की रिपोर्ट में भिन्नता होने के कारण क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया है।
6. अपील के ज्ञापन तथा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों का सार यह है कि कोई विशेषज्ञ रिपोर्ट अपीलार्थी डा0 की लापरवाही के संबंध में प्रस्तुत नहीं की गई और असत्य शिकायत अपीलार्थी के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है। विद्वान जिला आयोग ने एकतरफा साक्ष्य पर विचार किया है और सरसरी तौर पर अपना निर्णय पारित किया है। दो रिर्पोटों में भिन्नता के आधार पर अपीलार्थी को गलत रिपोर्ट तैयार करने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि दूसरी रिपोर्ट भी गलत हो सकती है।
7. पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत अभिवचनों, अधिवक्ताओं की बहस तथा निर्णय के अवलोकन के पश्चात इस अपील के विनिश्चय के लिए प्रथम विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या डा0 विपक्षी द्वारा अपनी लैब में रिपोर्ट तैयार की गई, वह लापरवाही से तैयार की गई है ?
8. विद्वान जिला आयोग ने गुड़गांव स्थित लैब की रिपोर्ट में भिन्नता होने के कारण यह निष्कर्ष दिया है कि अपीलार्थी डा0 द्वारा लापरवाही से रिपोर्ट तैयार की गई, परन्तु इस बिन्दु पर कोई विचार नहीं किया कि गुड़गांव स्थित लैब की रिपोर्ट में भी किसी प्रकार की त्रुटि हो सकती है, जब विद्वान जिला आयोग के समक्ष दो रिपोर्ट मौजूद थी तब इस तथ्य की पुष्टि करने के लिए कौन सी रिपोर्ट सही है, एक तृतीय लैब की रिपोर्ट मंगाई जानी चाहिए थी। तृतीय लैब की रिपोर्ट आने के पश्चात ही यह तथ्य साबित हो सकता था कि अपीलार्थी डा0 द्वारा जो रिपोर्ट तैयार की गई है, वह लापरवाही से तैयार की गई है और अपीलार्थी डा0 की लैब में समुचित उपकरण नहीं थे, जिनके आधार पर सही रिपोर्ट तैयार हो सकती थी। डा0 बागेश द्वारा तैयार की गई पैथोलोजिकल रिपोर्ट दस्तावेज सं0-26 पर मौजूद है, इस रिपोर्ट में ई.एस.आर. 46 दर्शाया गया है। ई.एस.आर. 46 दर्शित करने का तात्पर्य यह नहीं है कि मरीज ट्यूबर क्लोसिस (टी.बी.) की बीमारी से ग्रसित है। यह परीक्षण बॉडी में अन्य किसी बीमारी को चेक करने के लिए भी किया जाता है, जो किसी प्रकार के इन्फेक्शन, ट्यूमर या अन्य किसी बीमारी से हो सकता है, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कम करती है। ये सभी तर्क अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा दिए गए हैं। लिखित कथन में भी यह उल्लेख है कि इ.एस.आर. के क्रमांक का आशय केवल टी.बी. की बीमारी नहीं है। विद्वान अधिवक्ता द्वारा ई.एस.आर. टेस्ट के संबंध में जो तर्क प्रस्तुत किए गए हैं, इन तथ्यों की पुष्टि मेडिकल लिटरेचल से होती है, जिसके अनुसार ई.एस.आर. उच्च लेवल तथा निम्न लेवल में हो सकता है। उच्च लेवल में होने पर कैन्सर के किटाणुओं में बढ़ोत्तरी होती है और निम्न लेवल में रक्तचाप की अनियमित्ता, ह्दय घात, किडनी तथा लीवर की समस्या उत्पन्न हो सकती हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि ई.एस.आर. का सीधा संबंध टी.बी. की बीमारी से नहीं है, इसलिए यदि डा0 अजय शर्मा द्वारा इस रिपोर्ट को देखकर टी.बी. की बीमारी का इलाज किया गया है, तब इसके लिए अपीलार्थी/विपक्षी उत्तरदायी नहीं है। द्वितीय रिपोर्ट विशेष रूप से एलिसा फार ट्यूबर क्लोसिस की जांच के लिए तैयार की गई है, इसलिए द्वितीय रिपोर्ट का पहली रिपोर्ट से कोई तुलनात्मक अध्ययन नहीं हो सकता। विद्वान जिला आयोग द्वारा दोनों रिपोर्टों की तुलना करते हुए अपीलार्थी को लापरवाही के लिए दोषी मानने का निष्कर्ष अवैध रूप से पारित किया है, जो अपास्त होने और प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
9. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14.10.2010 अपास्त किया जाता है तथा परिवाद खारिज किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2