Uttar Pradesh

StateCommission

A/1131/2019

Ghaziabad Development Authority - Complainant(s)

Versus

Sunil Kumar Nigam - Opp.Party(s)

Rishab Raj & Piyush Mani Tripathi

01 Sep 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1131/2019
( Date of Filing : 20 Sep 2019 )
(Arisen out of Order Dated 09/08/2019 in Case No. C/683/1999 of District Ghaziabad)
 
1. Ghaziabad Development Authority
Ghaziabad Through its Secretary
...........Appellant(s)
Versus
1. Sunil Kumar Nigam
S/O Dr. Suraj Narayan Nigam R/O RDC 146 Raj Nagar Distt. Ghaziabad
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 01 Sep 2022
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।

अपील संख्‍या- 1131/2019

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्‍या- 683/1999 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 09-08-2019 के विरूद्ध)

 

गाजियाबाद डेवलपमेंट अथारिटी गाजियाबाद द्वारा सेक्रेटरी।

                                             .अपीलार्थी 

बनाम

सुनील कुमार निगम, पुत्र डा० सूरज नरायण निगम, निवासी- RDC-146 राज नगर, जिला गाजियाबाद।

                                                              -प्रत्‍यर्थी     

समक्ष  :-

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य

उपस्थिति :

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित-  विद्वान अधिवक्‍ता श्री पीयूषमणि त्रिपाठी

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित-  विद्वान अधिवक्‍ता श्री अखिलेश त्रिवेदी

 

दिनांक : 01-09-2022

 

मा0 सदस्‍य श्री सुशील कुमार, द्वारा उदघोषित

 निर्णय

       प्रस्‍तुत अपील, अपीलार्थी गाजियाबाद डेवलपमेंट अथारिटी द्वारा विद्वान जिला आयोग गाजियाबाद, द्वारा परिवाद संख्‍या- 683/99 सुनील कुमार निगम बनाम गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 09-08-2019 के विरूद्ध इस आयोग के समक्ष योजित की गयी है।

    प्रस्‍तुत अपील विलम्‍ब माफी प्रार्थना पत्र के साथ प्रस्‍तुत की गयी है। देरी माफी प्रार्थना पत्र के समर्थन में अपीलार्थी द्वारा शपथ-पत्र प्रस्‍तुत किया गया है जिस पर विचार करते हुए विलम्‍ब माफी प्रार्थना पत्र स्‍वीकार किया जाता है और अपील प्रस्‍तुत करने में हुए विलम्‍ब को क्षमा किया जाता है।   

2

     विद्वान जिला आयोग द्वारा परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया गया है:-

        "परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार किया जाता है। परिवादी को आदेशित किया जाता है कि वह अंकन 63,180/-रू० 06 प्रतिशत ब्‍याज सहित 30 दिन के अन्‍दर विपक्षी के यहॉं जमा कराए और उसके पश्‍चात 30 दिन के अन्‍दर विपक्षी सेल डीड की कार्यवाही परिवादी के पक्ष में क्रियान्वित करें। विपक्षी मानसिक, शारीरिक क्षतिपूर्ति के मद में 5000/-रू० और वाद व्‍यय की मद में 2000/-रू० भी 60 दिन के अन्‍दर परिवादी को अदा करें।"

      इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि जिला उपभोक्‍ता आयोग ने क्षेत्राधिकार विहीन निर्णय पारित किया है क्‍योंकि कब्‍जा प्राप्‍त करने के पश्‍चात परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है।

       परिवादी स्‍वयं डिफाल्‍टर रहा है। परिवादी पर 14,07,705/-रू० बकाया है, जबकि जिला उपभोक्‍ता आयोग ने अवैधानिक तथा मनमाने रूप से यह आदेश दिया है कि परिवादी द्वारा केवल, 63,180/-रू० जमा किया जाए। किसी भी प्राधिकरण की सम्‍पत्ति का मूल्‍य जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा निर्धारित नहीं किया जा सकता है।

     परिवादी का परिवाद-पत्र जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा दिनांक-        27-09-2011 को खारिज किया गया था। पुर्नविलोकन आवेदन पत्र भी दिनांक 02-07-2013 को खारिज किया जा चुका था। परिवादी द्वारा तथ्‍यों को छिपाते हुए अपील संख्‍या-2083/2013 इस आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी और एकतरफा आदेश प्राप्‍त कर लिया गया। जिला उपभोक्‍ता आयोग ने इस तथ्‍य पर विचार नहीं किया कि भूखण्‍ड का अनुमानित मूल्‍य 7,05,000/-रू० था जबकि जिला उपभोक्‍ता आयोग का क्षेत्राधिकार उस समय केवल 5,00,000/रू० तक था। इसलिए जिला उपभोक्‍ता आयोग को आर्थिक आधार पर इस परिवाद

 

3

 

को सुनने का क्षेत्राधिकार प्राप्‍त नहीं था। अत: उपरोक्‍त वर्णित आधारों पर जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्‍त होने योग्‍य है।

      अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी प्राधिकरण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता पीयूषमणि त्रिपाठी उपस्थित हुए। प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री अखिलेश त्रिवेदी उपस्थित हुए।

     हमने उभय-पक्षकारों के विद्वान अधिवक्‍ताद्व्‍य के तर्क को सुना और पत्रावली का सम्‍यक रूप से परिशीलन किया।

     अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा प्रथम आपत्ति यह की गयी है कि परिवादी को जो भूखण्‍ड आवंटित किया गया है उसकी कीमत 7,05,000/-रू० थी जबकि वर्ष 1999 में जिला उपभोक्‍ता आयोग को 5,00,000/-रू० तक मूल्‍य के विवाद का निस्‍तारण करने का ही क्षेत्राधिकार प्राप्‍त था। परिवाद पत्र के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादी ने परिवाद पत्र में प्‍लाट संख्‍या- बी- 200 स्‍कवायर मीटर का उल्‍लेख किया है परन्‍तु इस प्‍लाट की कीमत का उल्‍लेख नहीं किया है। बाद में इस प्‍लाट को परिवर्तित करने का अनुरोध किया गया तब उसे एक एच०आई०जी० डूपलैक्‍स आवंटित कराया गया जिसकी कुल कीमत 7,05,000/-रू० थी। इस प्रकार अनुमानित 7,0,5000/-रू० की कीमत वाले प्‍लाट के सम्‍बन्‍ध में उत्‍पन्‍न विवाद के निस्‍तारण के लिए उपभोक्‍ता परिवाद वर्ष 1999 में जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख संधारणीय नहीं था क्‍योंकि तत्‍समय जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग का आर्थिक क्षेत्राधिकार केवल पांच लाख रूपये तक ही सीमित था।

      प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा एक अतिरिक्‍त उत्‍तर यह दिया गया कि जिला उपभोक्‍ता आयोग को पूर्ण अधिकार है कि वह प्राधिकरण को निर्देश जारी करे कि अंकन 14,07,705/-रू० के स्‍थान पर आदेशित राशि अंकन 63,180/-रू० जमा कराए। परन्‍तु यह उत्‍तर एवं तर्क इस आधार पर संधारणीय

4

 

नहीं है कि जिला उपभोक्‍ता आयोग ने इस बिन्‍दु पर कोई विचार नहीं किया कि 63,180/-रू० किस तिथि से बकाया है और उस तिथि से प्राधिकरण की मांग करने तक ब्‍याज तथा पैनल ब्‍याज के रूप में कितनी राशि देय हो चुकी है। 

      अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह भी बहस की गयी कि परिवादी स्‍वयं डिफाल्‍टर रहा है इसलिए उपभोक्‍ता परिवाद संधारणीय नहीं है। स्‍वयं निर्णय के अवलोकन से यह जाहिर होता है कि जिला उपभोक्‍ता आयोग ने

यह निर्देश दिया है कि परिवादी अंकन 63,180/-रू० मय 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से जमा करे। अत: इस आदेश से जाहिर होता है कि परिवादी स्‍वयं डिफाल्‍टर रहा है। उसके द्वारा भवन का वास्‍तविक मूल्‍य प्राधिकरण में जमा नहीं किया गया है इसलिए जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा अंकन 63,180/-रू० मय 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से जमा करने का आदेश दिया गया है। य‍द्यपि अपीलार्थी का कथन है कि परिवादी पर वर्तमान में 14,07,705/-रू० बकाया है। जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा अपने निर्णय में कहा है कि परिवादी को केवल 3,37,500/-रू० जमा करना था जबकि परिवादी ने 4,01,820/-रू० जमा कर दिया था। इस निष्‍कर्ष मात्र से कि प्राधिकरण का यह कथन असत्‍य है कि परिवादी  ने विलम्ब से किस्‍तों की राशि जमा की है, परन्‍तु जिला उपभोक्‍ता आयोग ने धनराशि जमा करने की तिथि के सम्‍बन्‍ध में कोई विचार नहीं किया है और परिवादी द्वारा कुल जमा राशि को उद्धरत करते हुए 63,180/-रू० अवशेष होना निर्धारित कर दिया है जो उचित नहीं है, जबकि परिवादी द्वारा जो राशि जमा की गयी है उसके योग के आधार पर अवशेष जमा राशि 63,180/-रू० जमा करने पर कुल मूल्‍य सात लाख से अधिक हो रहा था परन्‍तु इस बिन्‍दु में कोई विवाद नहीं है कि जिला आयोग को इस वाद के निस्‍तारण का कोई क्षेत्राधिकार प्राप्‍त नहीं था। इस बिन्‍दु पर भी विचार नहीं किया गया कि जिला आयोग ने दिनांक 09-08-2019 को 63,180/-रू० जमा करने का आदेश दिया

5

यानि यह धनराशि दिनांक 09-08-2019 के पश्‍चात जमा की गयी है या जमा होना है जबकि प्रथम पंजीयन राशि दिनांक 29-04-92 को जमा की गयी बाद में भवन परिवर्तित किया गया। दिनांक 28-08-96 तक 4,01,820/-रू० जमा कराए गये इसलिए उस समय भी यह राशि बकाया हो चुकी थी। इस राशि पर ब्‍याज तथा पैनल ब्‍याज की गणना की जानी चाहिए थी परन्‍तु जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा ब्‍याज और पैनल ब्‍याज के सम्‍बन्‍ध में कोई निष्‍कर्ष नहीं दिया गया और केवल इस अनुतोष की मांग की गयी कि परिवादी को अनुमति दी जाए कि वह

अनुमानित धनराशि 63,180/-रू० जमा करें। यथार्थ में जब परिवादी पर मकान की कीमत की राशि अवशेष है तब विपक्षी प्राधिकरण की सेवा में किसी प्रकार की कमी नहीं मानी जा सकती है। स्‍वयं के डिफाल्‍टर होते हुए परिवादी अवशेष राशि जमा करने का अनुरोध कर रहा है। यह तथ्‍य चीख-चीख कर कह रहा है कि परिवादी स्‍वयं डिफाल्‍टर है जबकि जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख प्राधिकरण द्वारा सेवा में कमी के आधर पर या अनुचित व्‍यापार प्रणाली अपनाने के आधार पर परिवाद प्रस्‍तुत किया जा सकता है। स्‍वयं के डिफाल्‍टर होते हुए डिफाल्‍टर राशि जमा करने की अनुमति मांगते हुए उपभोक्‍ता परिवाद प्रस्‍तुत करने का कोई वैधानिक औचित्‍य नहीं था। अत: स्‍पष्‍ट है कि विद्वान जिला आयोग द्वारा हर दृष्टि से क्षेत्राधिकार विहीन, मनमाना निर्णय पारित किया गया है जो अपास्‍त होने योग्‍य है।

                                   आदेश

      प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है और जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय और आदेश दिनांक- 09-08-2019 अपास्‍त किया जाता है। जिला उपभोक्‍ता आयोग को वाद को सुनने का क्षेत्राधिकार प्राप्‍त न होने के कारण तथा परिवादी के स्‍वयं डिफाल्‍टर होने के कारण विपक्षी प्राधिकरण के स्‍तर से सेवा में किसी प्रकार की कमी न करने के आधार पर परिवाद निरस्‍त किया जाता है।

6

 

     आशुलि‍पिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

    

 

(न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)                           (सुशील कुमार)

                                                                                 अध्‍यक्ष                                        सदस्‍य

 

 

कृष्‍णा–आशु0

कोर्ट नं0 1

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.