Shiv Kumar filed a consumer case on 13 Oct 2020 against Sunil Kumar in the Bahraich Consumer Court. The case no is MA/33/2020 and the judgment uploaded on 13 Oct 2020.
पुकार पर पत्रावली पेश हुई। अंगीकरण के प्रश्न पर सुनवाई हेतु परिवादी अधिवक्ता तैयार है। अतः प्रकीर्ण संख्या-33/2020 निरस्त किया जाता है।
अंगीकरण के प्रश्न पर परिवादी के योग्य अधिवक्ता को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया गया।
परिवाद कथनानुसार दिनांक 1-1-2020 को विपक्षी द्वारा अपना दो बीघा खेत के बेचने का प्रस्ताव परिवादी को देने पर परिवादी प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, परिवादी के अतिशीध्र बैनामा करने के अनुरोध पर विपक्षी द्वारा दिनांक 6/7-1-2020 को कुल 510000/-रू0 भूमि की पूरी कीमत परिवादी को अदा कर दिया और परिवादी ने दिनांक 23-1-2020 को बैनामा करने का वचन दिया। दिनांक 15-1-2020 को परिवादी ने अपनी पत्नी के नाम वही जमीन रजिस्ट्री कर दिया। परिवादी ने कई बार विपक्षी से अपना रू0 वापस मांगा तब विपक्षी द्वारा परिवादी को बैंक आफ बड़ौदा का बैकर्स चेक सख्या-000003 दिनांकित 18-7-2020 मु0-510000/- का दिया जो बैंक में प्रस्तुत करने पर अनादृत हो गया। परिवादी द्वारा चेक की धनराशि 18 प्रतिशत व्याज की दर से एवं शारीरिक, मानसिक व वाद व्यय के रूप में 110000/-रू0 दिलाये जाने हेतु परिवाद संस्थित किया गया है।
परिवादी के योग्य अधिवक्ता द्वारा निर्णयज विधि आस्था डवलेपर्स एण्ड कोलोनाइजर्स एण्ड अदर्स प्रति दामोदर सिंहा प्अ (2016) सी पी जे 61 (एन.सी.) का संदर्भ देते हुये यह तर्क दिया गया कि उक्त विधि व्यवस्था में जमीन के ही मामले में 500000/-रू0 का चेक अनादृत होने पर परिवादी को उपभोक्ता मानते हुये क्षतिपूर्ति दिलायी गयी थी।
परिवादी के योग्य अधिवक्ता द्वारा उक्त संदर्भित निर्णयज विधि आस्था डवलेपर्स में परिवादी उपभोक्ता एवं विपक्षी डेवलेपर्स विल्डर्स में एग्रीमेंट हुआ, जिसके अनुसार विल्डर्स द्वारा मकान बनवाकर 18 माह में दिया जाना था लेकिन 30 माह के पश्चात भी विल्डर्स द्वारा उपभोक्ता को मकान नही दिया गया। तत्पश्चात बिल्डर्स द्वारा जो चेक उपभोक्ता को निर्गत किया गया वह अनादृत होने पर परिवादी उपभोक्ता को दिलाया जाना उचित माना गया है।
जहाॅंतक प्रश्नगत प्रकरण का संबंध में मामले में परिवादी खेत (कृषि भूमि) के सम्बंध में परिवादी एवं विपक्षी सेवा प्रदाता के बीच संविदा/अनुबन्ध होना कहा
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गया है। यह प्रकरण किसी भी रूप में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2 की उपधारा 42 में कथित सेवा की परिधि में नही आता है। प्रश्नगत प्रकरण में संदर्भित निर्णयज विधि का परिवादी को कोई लाभ मिलता है क्योकि निर्णयज विधि आवासीय मकान के संबंध में किये गये अनुबन्ध के पालन से सम्बंधित है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सं0-35/2019 की धारा 2 की उपधारा 5 एवं 9 के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादी उपभोक्ता द्वारा प्रतिफल देकर कोई सेवा प्राप्त करने पर संेवा में हुई त्रुटि के सम्बंध में सेवा प्रदाता के विरुद्व परिवाद दाखिल कर सकता है। धारा 2 की उपधारा 42 में सेवा को परिभाषित किया गया है कि ‘‘सेवा‘‘ से किसी प्रकार की सेवा अभिप्रेत है जो उसके सम्भावित उपयोगकर्ताओं को उपलब्ध कराई जाती है और इसके अंतर्गत बैंककारी, वित्तपोषण, बीमा परिवहन, प्रसंस्करण, विद्युत या अन्य उर्जा की पूर्ति, दूरसंचार, भोजन या निवास अथवा दोनो गृह निर्माण, मनोरंजन, आमोद-प्रमोद या समाचार या अन्य जानकारी पहुचाना सम्मिलित है, किन्तु इन तक ही सीमित नही है, किन्तु इसके अन्तर्गत निःशुल्क या व्यक्तिगत सेवा संविदा के अधीन सेवा का प्रदान किया जाना नही है।
उपधारा 42 के अवलोकन से स्पष्ट है कि भोजन या निवास अथवा दोनो गृह निर्माण के सम्बंध में हुये सेवा की कमी के सम्बंध में क्रय कर्ता उपभोक्ता की श्रेणी में आता है लेकिन उस धारा के आखिरी लाईन में यह स्पष्ट है कि निःशुल्क सेवा या व्यक्तिगत सेवा संविदा के अधीन सेवा की श्रेणी में नही आती है तात्पर्य यह कि किन्ही दो व्यक्तियों के बीच यदि व्यक्तिगत सेवा हेतु संविदा की गयी है तो उसमें लाभग्राही उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है।
प्रश्नगत प्रकरण में खेत अर्थात कृषि भूमि के बैनामा के सम्बंध में व्यक्तिगत संविदा की गयी है जिसे किसी भी रूप में भोजन या निवास ( ठवतकपदह वत सवकहपदह ) या दोनो गृह निर्माण की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है। बल्कि यह खेत/कृषि भूमि के बैनामा हेतु व्यक्तिगत सेवा संविदा के अधीन सेवा की परिधि का है जो उपभोक्ता सेवा के अन्र्तगत नहीं आता है। इस प्रकार प्रश्नगत प्रकरण में बैनामा हेतु कि गयी व्यक्तिगत संविदा सेवा उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है।
इस प्रकार मामले के तथ्यों, संदर्भित निर्णयज विधि एवं उपभोक्ता अधिनियम के सुसंगत उपबन्धों के अवलोकन से स्पष्ट है कि मामले में परिवादी किसी भी रूप में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम संख्या 35/2019 के अन्तर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। अतः परिवाद उपभोक्ता आयोग मंे संधारणीय नही है।
तद्नुसार अंगीकरण के स्तर पर ही संधारणीय नही होने के आधार पर परिवाद निरस्त किया जाता है।
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