Uttar Pradesh

StateCommission

A/1996/1522

Mangalore Refinery - Complainant(s)

Versus

Sunil Kumar Singh - Opp.Party(s)

N K Seth

17 Aug 2016

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1996/1522
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Mangalore Refinery
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Sunil Kumar Singh
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 HON'BLE MRS. Bal Kumari MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 17 Aug 2016
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखन

अपील संख्‍या-1522/1996

(मौखिक)

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, सोनभद्र द्वारा परिवाद संख्‍या 299/1996 में पारित आदेश दिनांक 21.08.1996 के विरूद्ध)

1. Mangalore Refinery And Petrochemicals Ltd.

  Arcadia, 7th Floor

  195, NCPA Marg

  Mumbai 400 021

2. Birla Consultancy & Software Services

  Registrars & Transfer Agents

  Vallabhdas Building

  Plot No. 15 MIDC Andheri (E)

  Mumbai 400 093                   ....................अपीलार्थीगण/विपक्षीगण

बनाम

Mr. Sunil Kumar Singh

S/o Mr Ram Lalit Singh

R/o, Sector No. D-18,

Renusagar Power Colony

Renusagar U.P.                             ................प्रत्‍यर्थी/परिवादी

 

समक्ष:-

1. माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित  : कोई नहीं।                     

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित    : कोई नहीं।

दिनांक: 17.08.2016

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

परिवाद संख्‍या-299/1996 सुनील कुमार सिंह बनाम मैनेजिंग डाइरेक्‍टर मंगलौर रिफाइनरी एण्‍ड पेट्रोकेमिकल्‍स लि0 व एक अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता संरक्षण फोरम, सोनभद्र द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 21.08.1996 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्‍त परिवाद के विपक्षीगण मंगलौर रिफाइनरी एण्‍ड पेट्रोकेमिकल्‍स लि0 व एक अन्‍य की ओर से धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत प्रस्‍तुत की गयी है।

आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने उपरोक्‍त परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षीगण को निर्देशित किया है कि वे परिवादी की 3 लाख

 

 

-2-

रूपये की रकम जो उन्‍होंने ड्राफ्ट के तहत प्राप्‍त की है 18 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज के साथ एक माह के अन्‍दर परिवादी को अदा करे तथा अपनी सेवा की कमी को दूर करे। इसके साथ ही जिला फोरम ने 50,000/-रू0 क्षतिपूर्ति मानसिक और शारीरिक कष्‍ट व हर्जा के रूप में उपरोक्‍त अवधि में अदा करने के लिए आदेश दिया है तथा यह भी आदेशित किया है कि उपरोक्‍त धनराशि अदा न करने की सूरत में विपक्षीगण के विरूद्ध धारा-27 के अन्‍तर्गत कार्यवाही योजित की जा सकती है।

अपील की सुनवाई के समय उभय पक्ष की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है, जबकि उभय पक्ष पहले ही अपील में उपस्थित हो चुके हैं। प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से लिखित कथन भी प्रस्‍तुत किया गया है, जो पत्रावली में संलग्‍न है।

हमने आधार अपील एवं प्रत्‍यर्थी की ओर से प्रस्‍तुत लिखित कथन एवं आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा सम्‍पूर्ण पत्रावली का अवलोकन किया है।

परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी/प्रत्‍यर्थी का कथन है कि परिवादी मेसर्स के0डी0 इन्‍वेस्‍टमेण्‍ट सेन्‍टर फर्म का साझेदार है और फर्म मेसर्स के0डी0 इन्‍वेस्‍टमेण्‍ट सेन्‍टर निवेशकों की निम्‍न आवश्‍यकताओं की पूर्ति करता है और उनके कष्‍ट निवारण में सहायक है।

  1.  शेयर की खरीद-बिक्री करना तथा ट्रांसफर के लिए सर्टिफिकेट आदि भेजना।
  2.  नेय इशू फार्म देना और उसके लिए पैसा बैंकों में जमा करवाना।
  3. रिफण्‍ड आर्डर प्राप्‍त न होना, अलाटमेन्‍ट न होने पर पैसा वापस न आना, डिबेन्‍चर पर ब्‍याज न मिलना शेयर पर डिविडेन्‍ड न प्राप्‍त होना, राइट ईशू फार्म समय पर न मिलना, आदि की प‍रेशानियों को हल करने में मदद करना।
  4. अलाटमेण्‍ट मनी, कालमनी आदि कम्‍पनियों को या रजिस्‍ट्रार के पास भेजना।

 

-3-

  1. जवाब या सन्‍तोष जनक उत्‍तर न प्राप्‍त होने पर बार-बार रिमाइण्‍डर भेजना।
  2. शेयर डिबेन्चर से संबन्धित अन्‍य और भी जितनी बातें हैं, सबके लिए सुझाव देना और सहायता करना।

परिवाद पत्र में प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि विपक्षीगण ने परिवादी या उसके निवेशकों द्वारा व्‍यक्तिगत रूप से लिखी गई पचासों चिट्ठियों का  सन् 1992 से परिवाद पत्र प्रस्‍तुत किए जाने तक कोई सन्‍तोष जनक उत्‍तर देने का कष्‍ट नहीं किया है। विपक्षीगण द्वारा निवेशकों को परेशान करने की पालिसी के कारण परिवादी के बहुत से ग्राहक काफी परेशानी और आर्थिक तंगी के शिकार हुए हैं। रूपया प्राप्‍त कर लेने के बावजूद विपक्षीगण के पास से अक्‍सर रिमाइण्‍डर आता रहता है कि यदि पैसा नहीं भेजा गया तो पिछली सारी रकम जब्‍त कर ली जाएगी। इससे निवेशकों पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ रहा है। परिवादी द्वारा नोटिस भेजने के बावजूद भी विपक्षीगण इस बात पर अमादा हैं कि किसी भी धनराशि का भुगतान नहीं किया जाएगा। इस प्रकार परिवादी को मानसिक और आर्थिक क्षति हो रही है। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि सारे पेडिंग मामले उसके स्लिप मेमों    संख्‍या 477 दिनांक 23.1.96 में दर्ज है, जो विपक्षीगण के पास जनवरी में भेजा गया था, परन्‍तु उन्‍होंने कोई उत्‍तर नहीं दिया। इसके विपरीत उन्‍होंने स्लिप संख्‍या-930/931 के माध्‍यम से कालमनी कम्‍पनी के सेक्रेटरी के पास दिनांक 20.10.94 को ड्राफ्ट द्वारा भेजी गयी धनराशि जब्‍त करने की सूचना भेजी।

उपरोक्‍त आधारों पर प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस आशय का प्रस्‍तुत किया है कि उसके माध्‍यम से भेजे गए शेयर और पैसे की लेखा जोखा करके सभी शेयर सर्टीफिकेट और उन पर मिलने वाला ब्‍याज

और मानसिक क्षति के रूप में 50,000/-रू0 एवं 10,000/-रू0 अन्‍य खर्च दिलाया जाए।

 

-4-

      विपक्षीगण की ओर से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्‍तुत नहीं किया गया। तदोपरान्‍त विपक्षीगण की अनुपस्थिति में जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश प्रत्‍यर्थी/परिवादी को सुनकर पारित किया है।  अत: जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और आदेश से क्षुब्‍ध होकर अपीलार्थीगण/विपक्षीगण मंगलौर रिफाइनरी एण्‍ड पेट्रोकेमिकल्‍स लि0 व एक अन्‍य ने वर्तमान अपील आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की है।

      अपील मेमो में अपीलार्थीगण ने जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश को साक्ष्‍य और विधि के विपरीत बताया है। साथ ही यह भी कहा है कि परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है और परिवाद पत्र में कथित विवाद उपभोक्‍ता विवाद नहीं है। अत: उपभोक्‍ता फोरम को यह वाद सुनने का अधिकार नहीं है।

      प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से अपने लिखित कथन में यह कथन किया गया है कि परिवादी एक बेरोजगार स्‍नातक इंजीनियर है और वह शेयर की खरीद और बिक्री का व्‍यापार रजिस्‍टर्ड फर्म के माध्‍यम से करता है, जिसका एक मात्र उद्देश्‍य स्‍वरोजगार उपलब्‍ध कराना है। अत: परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में आता है और उसके द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण फोरम के क्षेत्राधिकार में है।

      धारा-2 (डी) उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 में उपभोक्‍ता को परिभाषित किया गया है, जिसमें वाणिज्यिक संव्‍यवहार को उपभोक्‍ता की श्रेणी से बाहर रखा गया है। धारा-2 (डी) का स्‍पष्‍टीकरण इस प्रकार दिया गया है कि इस खण्‍ड के प्रयोजनों के लिए ''वाणिज्यिक प्रयोजन'' में किसी व्‍यक्ति द्वारा माल का उपयोग और सेवाओं का उपाप्‍त नहीं करता जिसका उसने अनन्‍य रूप से स्‍व-नियोजन उपाय से अपनी जीविका उपार्जन के प्रयोजन के लिए क्रय और उपयोग किया है।

परिवाद पत्र के उपरोक्‍त कथन से यह स्‍पष्‍ट है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी मेसर्स के0डी0 इन्‍वेस्‍टमेण्‍ट सेन्‍टर फर्म का साझेदार है और फर्म मेसर्स के0डी0

 

 

-5-

इन्‍वेस्‍टमेण्‍ट सेन्‍टर से निवेशकों की आवश्‍यकताओं की पूर्ति करता है। परिवाद पत्र में प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने स्‍पष्‍ट रूप से उपशम इस आशय की चाही है कि परिवादी के माध्‍यम से भेजे गए शेयर और पैसे की लेखा जोखा करके सभी शेयर सर्टीफिकेट और उन पर मिलने वाला ब्‍याज और मानसिक क्षति के रूप में 50,000/-रू0 एवं 10,000/-रू0 अन्‍य खर्च दिलाया जाए। परिवाद पत्र के कथन से ही यह स्‍पष्‍ट है कि परिवाद पत्र में कथित संव्‍यवहार पूर्ण रूप से वाणिज्यिक संव्‍यवहार है। अत: परिवादी धारा-2 (डी) उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है। तदनुसार परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद जिला फोरम के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

उपरोक्‍त निष्‍कर्षों के आधार पर जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अधिकार रहित और उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधान के विपरीत है, अत: निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

आदेश

      वर्तमान अपील स्‍वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश दिनांक 21.08.1996 अपास्‍त करते हुए परिवाद निरस्‍त किया जाता है।

 

       (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)              (बाल कुमारी)        

           अध्‍यक्ष                         सदस्‍य           

 

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. Bal Kumari]
MEMBER

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