(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1839/2012
(जिला उपभोक्ता आयोग, कुशीनगर द्वारा परिवाद संख्या-215/2007 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 21.08.2007 के विरूद्ध)
1. मैगमा लीजिंग लिमिटेड, 24, पार्क स्ट्रीट, कोलकाता 16, द्वारा चीफ मैनेजर।
2. मैगमा लीजिंग लिमिटेड, द्वितीय तल, वाईएमसीए कम्पाउंड, राणा प्रताप मार्ग, लखनऊ, द्वारा मैनेजर।
3. मैगमा लीजिंग लिमिटेड, मोहल्ला शाहपुर, निकट अस्टरन चौक, राधिका काम्प्लेक्स, द्वितीय तल, गोरखपुर।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
सुन्दरावती देवी पत्नी श्री दयानन्द मिश्रा, निवासिनी एचआईजी 04, राप्तीनगर, गोरखपुर।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :श्री श्रीकृष्ण पाठक, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 02.01.2023
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-215/2007, श्रीमती सुन्दरावती देवी बनाम मैसर्स मैगमा लि0 तथा तीन अन्य में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, कुशीनगर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 21.08.2007 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। इस निर्णय एवं आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने ट्रक संख्या-यू.पी. 53 टी. 3166 परिवादिनी को वापस करने का आदेश पारित किया है साथ ही आर्थिक क्षतिपूर्ति के लिए अंकन 10 लाख रूपये 10 प्रतिशत ब्याज सहित अदा करने के लिए भी विपक्षीगण को आदेशित किया है।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि ट्रक संख्या-यू.पी. 53 टी. 3166 विपक्षी संख्या-1 से फाइनेन्स कराया था। ऋण का भुगतान 36 किश्तो में अंकन 30 हजार रूपये प्रतिमाह की दर से होना था। सितम्बर 2006 में अंतिम किश्त का भुगतान किया जाना था। परिवादिनी किश्त का भुगतान करती रही, परन्तु निर्धारित समय-सीमा के पूर्व ही दिनांक 02.08.2005 को ट्रक खिंचवाकर अपने कब्जे में ले लिया गया।
3. इस परिवाद का कोई जवाब विपक्षीगण द्वारा नोटिस की तामीला के बावजूद नहीं दिया गया, इसलिए एकतरफा साक्ष्य पर विचार करते हुए विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि परिवादिनी द्वारा नियमित रूप से किश्तों का भुगतान किया जाता रहा है। सितम्बर 2006 में अंतिम किश्त का भुगतान किया जाना था, परन्तु अगस्त 2005 में ट्रक खिंचवा लिया गया, जिसका कोई औचित्य नहीं था। अत: उपरोक्त वर्णित निर्णय एवं आदेश पारित किया गया।
4. इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध है। परिवादिनी पर किश्त एवं बकाया देयों के संबंध में अंकन 07 लाख रूपये बकाया हैं। ट्रक का कब्जा प्राप्त करने के बाद भी बकाया भुगतान का अवसर प्रदान किया गया, परन्तु कोई सूचना नहीं दी गई, इसलिए प्रश्नगत ट्रक अंकन 5.50 लाख रूपये में श्री हाफिज निसार अहमद को दिनांक 27.09.2005 में विक्रय कर दिया गया। दिनांक 17.11.2005 को मध्यस्थ द्वारा भी प्रत्यर्थी के विरूद्ध अवार्ड जारी किया गया। इस अवार्ड के अनुक्रम में निष्पादन वाद संख्या-5/2008 जिला जज, संतकबीर नगर की कोर्ट में प्रेषित किया गया। तत्पश्चात दिनांक 17.07.2007 में यह परिवाद प्रस्तुत किया गया। परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद की जानकारी सितम्बर 2007 में उस समय हुई जब निर्णय एवं आदेश की प्रति प्रेषित की गई। इस एकतरफा निर्णय एवं आदेश को पारित करने का क्षेत्राधिकार विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग को नहीं है। एकतरफा निर्णय एवं आदेश को अपास्त कराने के लिए आवेदन दिया गया, जो दिनांक 05.06.2012 को निरस्त कर दिया गया। अंकन 10 लाख रूपये की क्षतिपूर्ति का आदेश 10 प्रतिशत ब्याज के साथ अवैध रूप से पारित किया गया है, जो अपास्त होने योग्य है।
5. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री श्रीकृष्ण पाठक को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
6. परिवादिनी का यह कथन है कि उसने नियमित रूप से किश्तों का भुगतान किया है, परन्तु स्वंय विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के पारित निर्णय के विवरण से ज्ञात होता है कि किश्तों का भुगतान नियमित रूप से नहीं किया गया, अपितु किश्तों की राशि का कई बार आंशिक भुगतान किया गया है, परन्तु कई बार किश्त से अधिक राशि भी जमा की गई है। अत: प्रश्न उठता है कि क्या परिवादिनी द्वारा निर्धारित किश्त से कम या ज्यादा के रूप में जमा करते रहने के बावजूद अपीलार्थीगण को यह अधिकार प्राप्त है कि वह ट्रक को कब्जे में लेकर विक्रय कर दिया जाए ? इस प्रश्न का उत्तर नकारात्मक है। परिवादिनी को नोटिस दिए बिना ट्रक का विक्रय करना अवैध है। अपील के ज्ञापन के साथ ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया, जिससे साबित हो कि ट्रक का विक्रय करने से पूर्व परिवादिनी को नोटिस दिया गया था, इसलिए ट्रक को पुन: प्राप्त कर विक्रय करने की समस्त कार्यवाही मनमानी तथा अवैधानिक है, परन्तु चूंकि ट्रक का विक्रय किया जा चुका है और ट्रक परिवादिनी को वापस करना संभव नहीं है, इसलिए ट्रक वापस करने का आदेश पुष्ट नहीं किया जा सकता, परन्तु क्षतिपूर्ति के रूप में जो राशि अधिरोपित की गई है, उस राशि को अदा करने का आदेश पुष्ट किया जाना न्यायोचित है, परन्तु इस राशि पर ब्याज (10 प्रतिशत) अत्यधिक उच्च दर से अधिरोपित किया गया है। अत: ब्याज की दर 10 प्रतिशत के स्थान पर 07 प्रतिशत करना उचित है। साथ ही यह आदेश देना भी उचित है कि ट्रक कब्जे में लेने की तिथि से परिवादिनी पर जो राशि बकाया थी, उस राशि को समायोजित करने के पश्चात ही शेष राशि बतौर प्रतिकर परिवादिनी को उपलब्ध कराई जाए। यहां यह स्पष्ट किया जाता है कि जिस दिन ट्रक विपक्षीगण द्वारा अपने कब्जे में लिया गया, उस दिन के पश्चात से परिवादिनी पर बकाया किसी भी राशि की गणना नहीं की जाएगी और न ही कोई ब्याज लगाया जाएगा। अपील तदनुसार आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
7. प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 21.08.2007 इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि परिवादिनी को ट्रक वापस करने का आदेश समाप्त समझा जाए, परन्तु अंकन 10 लाख रूपये की क्षतिपूर्ति अपीलार्थीगण द्वारा की जाए। अपीलार्थीगण द्वारा ट्रक अपने कब्जे में लेने की तिथि तक परिवादिनी पर यदि कोई राशि बकाया हो तब वह उस राशि को समयोजित करते हुए शेष राशि बतौर क्षतिपूर्ति परिवादिनी को इस निर्णय की तिथि से 03 माह के अंदर वापस लौटाए, इस राशि पर ब्याज की गणना परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अंतिम भुगतान की तिथि तक 07 प्रतिशत की दर से की जाए। यहां यह स्पष्ट किया जाता है कि जिस दिन ट्रक अपीलार्थीगण द्वारा अपने कब्जे में लिया गया, उस दिन के पश्चात से परिवादिनी पर बकाया किसी भी राशि की गणना नहीं की जाएगी और न ही कोई ब्याज लगाया जाएगा। शेष निर्णय एवं आदेश पुष्ट किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3
(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
पुनरीक्षण संख्या-178/2012
(जिला उपभोक्ता आयोग, कुशीनगर द्वारा प्रकीर्ण वाद संख्या-91/2007 में पारित आदेश दिनांक 05.06.2012 के विरूद्ध)
1. मैगमा लीजिंग लिमिटेड, 24, पार्क स्ट्रीट, कोलकाता 16, द्वारा चीफ मैनेजर।
2. मैगमा लीजिंग लिमिटेड, द्वितीय तल, वाईएमसीए कम्पाउंड, राणा प्रताप मार्ग, लखनऊ, द्वारा मैनेजर।
3. मैगमा लीजिंग लिमिटेड, मोहल्ला शाहपुर, निकट अस्टरन चौक, राधिका काम्प्लेक्स, द्वितीय तल, गोरखपुर।
अपीलार्थीगण/आवेदकगण
बनाम
सुन्दरावती देवी पत्नी श्री दयानन्द मिश्रा, निवासिनी एचआईजी 04, राप्तीनगर, गोरखपुर।
प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्तागण की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री श्रीकृष्ण पाठक, विद्वान
अधिवक्ता।
दिनांक: 02.01.2023
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. प्रकीर्ण वाद संख्या-91/2007, मैगमा बनाम सुन्दरावती में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, कुशीनगर द्वारा पारित आदेश दिनांक 05.06.2012 के विरूद्ध यह पुनरीक्षण आवेदन प्रस्तुत किया गया है।
2. पुनरीक्षणकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री श्रीकृष्ण पाठक को सुना गया तथा प्रश्नगत आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
3. प्रश्नगत परिवाद संख्या-215/2007 से संबंधित यह पुनरीक्षण आवेदन प्रस्तुत किया गया है, उस परिवाद में पारित निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील का निस्तारण अंतिम रूप से किया जा चुका है। अत: यह पुनरीक्षण आवेदन उद्देश्य विहीन हो चुका है। तदनुसार खारिज होने योग्य है।
आदेश
4. प्रस्तुत पुनरीक्षण खारिज किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3