Madhya Pradesh

Seoni

CC/09/2014

BINDESHWER BISEN - Complainant(s)

Versus

SUNDAR LAL BISEN/BHARAT BROBELES - Opp.Party(s)

RAJESH SHUKLA

17 Apr 2014

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)


 प्रकरण क्रमांक 092014                              प्रस्तुति दिनांक-13.01.2014
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,

बिन्देष्वर बिसेन, उम्र 35 वर्श, आत्मज
श्री हिम्मतसिंह बिसेन, कृशक निवासी-
ग्राम कनारी पोस्ट खुरसुरा, थाना उगली,
तहसील केवलारी, जिला सिवनी
(म0प्र0)।..................................................................आवेदकपरिवादी।


                :-विरूद्ध-: 
सुन्दरलाल बिसेन, प्रोपरार्इटर भारत
बोरवेल्स, पंडित दीनदयाल चौक,
बारासिवनी थाना व तहसील वारासिवनी,
जिला बालाघाट (म0प्र0)।..........................................अनावेदकविपक्षी।  

 
                 :-आदेश-:
     (आज दिनांक- 17.04.2014 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1)        परिवादी ने यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, अनावेदक द्वारा, परिवादी की कृशि-भूमि में किये गये बोर का 5 माह में ही केसिंग पार्इप फट जाने से बोर में मलमा गिरकर, बोर खराब हो जाने को अमानक स्तर का केसिंग पार्इप रहे होने के आधार पर, घटिया कार्य होना कहते हुये, पुन: खनन कर, आर्इ.एस.आर्इ. मार्क का केसिंग पार्इप लगाते हुये बोर को दुरूस्त कर, उपयुक्त बनाने और सिंचार्इ के आभाव में फसल की हानि व मानसिक क्लेष बाबद हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2)        यह स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादी के खेतों की सिंचार्इ के कार्य हेतु अनावेदक ने दिनांक-12.03.2013 को परिवादी के खेत में नलकूप का खनन किया था और 425 फिट खनन व 70 फिट पी0वी0सी0 केसिंग लगाने का कार्य होना कहते हुये भुगतान प्राप्त किया था। यह भी विवादित नहीं कि-दिनांक-14.03.2013 को परिवादी ने नलकूप में विधुत मोटर पम्प प्रारम्भ किया, जिससे पर्याप्त पानी निकला था। और यह भी विवादित नहीं कि-दिनांक-02.09.2013 को परिवादी की ओर से जरिये अधिवक्ता पंजीकृत- डाक से नोटिस एक माह के अंदर नवीन केसिंग डालकर, नलकूप को सिंचार्इ योग्य बनाने बाबद भेजा गया था, जिसके बाद भी अनावेदक के द्वारा, परिवादी के नलकूप में सुधार बाबद कोर्इ कार्यवाही नहीं की गर्इ।
(3)        स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि-परिवादी ने ग्राम-कनारी सिथत अपनी कृशि भूमि में सिंचार्इ हेतु नलकूप खनन के संबंध में अनुदान प्राप्त करने हेतु उपसंचालक किसान कल्याण और कृशि विकास, सिवनी को दिनांक-14.02.2013 को आवेदन देकर पंजीयन कराया था। उपसंचालक द्वारा आदेषित षर्तों के अनुसार खनन करने हेतु अनावेदक सहमत हुआ था, साढ़े छै इंच व्यास वाला बोर का 90-रूपये प्रतिफिट के हिसाब से खनन किया जाना तय किया था और षासन के निर्देषानुसार अनावेदक ने 959 आर्इ.एस.आर्इ. मार्क वाली केसिंग 200- रूपये प्रतिफिट की दर से लगाना तय किया था, दिनांक-12.03.2013 को अनावेदक ने खनन कर, 425 फिट तक खनन हो जाना बताया था और जानकारी दी थी कि-25 फिट गहरार्इ तक मिटटी है उसके नीचे 50 फिट गहरार्इ तक मुरम वाला कड़ा पत्थर है और 75 फिट के नीचे कड़ा पत्थर प्रारम्भ हो चुका है, जो कि-425 फिट गहरार्इ तक पर्याप्त पानी प्राप्त हो जाने पर, परिवादी ने आगे खनन न करने की सहमति दिया था, जो कि- अनावेदक ने आर्इ.एस.आर्इ. मार्क वाली केसिंग नहीं लगार्इ, परिवादी व अन्य उपसिथत कृशकों द्वारा संदेह प्रकट किये जाने पर लगार्इ जा रही पी0वी0 सी0 पार्इप केसिंग अच्छी किस्म की होना अनावेदक ने बताया था और परिवादी से कुल-52,250-रूपये भुगतान प्राप्त कर परिवादी को बिल दिया था। 
(4)        परिवादी द्वारा दिनांक-14.03.2013 को त्रिलोक कृशि केन्द्र से सबमर्सिबल पम्प क्रय कर, विधुत मोटर पम्प प्रारम्भ किया गया, जिसमें नलकूप से पर्याप्त पानी निकला, परन्तु अनावेदक द्वारा हल्की, घटिया किस्म की केसिंग नलकूप में लगाये जाने के कारण, पी0वी0सी0 पार्इप केसिंग फट गर्इ और पत्थर के टुकड़े, गिटटी, रेत, मलमा, कंकड़ नलकूप में गिरकर, नलकूप भर गया, तब परिवादी ने सबमर्सिबल मोटर पम्प को बाहर निकाला, तो मोटर के साथ बोर में लगे पी0वी0सी0 पार्इप का टुकड़ा जो कि- लगभग एक फिट लम्बा था बाहर आया, जो कि-हल्के किस्म का पी0वी0 सी0 पार्इप का केसिंग अनावेदक द्वारा लगाये जाने के कारण, पार्इप फटकर बोर पुर गया और उस समय बोर की गहरार्इ 320 फिट निकली, जिससे परिवादी को विष्वास है कि-मात्र 350 फिट ही नलकूप की खुदार्इ की गर्इ और बोर खराब हो जाने से परिवादी धान व गेहूं की फसल से वंचित रहा, जिससे उसे 50,000-रूपये की नुकसानी हुर्इ। अनावेदक को सूचना दिये जाने पर उसे बोर दुरूस्त करने का झूठा आष्वासन देकर टाल-मटौल किया, जिससे परिवादी को मानसिक-क्लेष हुआ और दिनांक-02.09.2013 को पंजीकृत- डाक से जरिये अधिवक्ता भेजा गया नोटिस भी दिनांक-06.09.2013 को प्राप्त हो जाने के बावजूद, अनावेदक ने न तो बोर की सफार्इ की, न ही नया केसिंग डाला और न ही मरम्मत की। इस तरह परिवादी के प्रति-सेवा में कमी की गर्इ है।
(5)        स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद के लांछनों से इंकार करते हुये, अनावेदक के जवाब का सार यह है कि-उपसंचालक किसान कल्याण कृशि विकास, सिवनी द्वारा आदेषित षर्तों के अनुसार ही परिवादी ने अनावेदक से संपर्क किया था, लेकिन 959 आर्इ.एस.आर्इ. मार्क वाली केसिंग लगाना तय नहीं हुआ था, बलिक अनावेदक के पास उपलब्ध पी0वी0सी0 केसिंग थी, उसे परिवादी को दिखाकर उसकी संतुशिट के उपरांत ही परिवादी से दर तय कर, केसिंग डाला था और उसका बिल भी परिवादी को दिया था। जो कि-परिवादी ने मौके पर खड़े होकर नलकूप का खनन कराया था और उस समय गिटटी, मुरम व चटटान की गहरार्इ की जानकारी स्वयं परिवादी को थी, 20 फिट लम्बी 21 डि्रलिंग राड डाली गर्इ थी, तो स्पश्ट है कि-420 फिट से अधिक गहरार्इ तक नलकूप का खनन किया गया था, परिवादी और अनावेदक भलीभांति आपस में परिचित रहे हैं, अनावेदक के पास उपलब्ध पी.वी.सी. केसिंग अन्य स्थानों पर भी इस्तेमाल की जा रही है, जिसमें किसी तरह की कोर्इ षिकायत नहीं आर्इ और परिवादी की पूर्ण संतुशिट के अनुसार ही पी.वी.सी. पार्इप केसिंग में डाला गया, स्वयं परिवादी ने ही 70 फिट केसिंग डालने कहा था, अनावेदक ने 250 फिट केसिंग डालने का सुझाव दिया था लेकिन परिवादी ने आर्थिक संकट का हवाला देकर और मात्र 70 फिट ही केसिंग डालने को कहा था। नलकूप उत्खनन का कार्य पूरा किये जाने के बाद, बोर की सफार्इ की प्रक्रिया (फलषिंग) परिवादी के समक्ष की गर्इ थी और उस समय कोर्इ पत्थर के टुकड़े पानी के साथ बाहर नहीं आये, जो कि-मौके पर पानी निकालकर दिखाया गया था, बाद में संतुश्ट होकर निकाल लिया गया था और बाद में परिवादी द्वारा भी अन्य जगह से मोटर लेकर डलवाया था और 6 माह तक उक्त पम्प से पानी का उपयोग करने के पष्चात लूज मटेरियल आ जाने का जो लांछन लगाया गया है, वह पूर्णत: असंभव प्रतीत होता है और नलकूप उत्खनन के संबंध में पूरी जांच-पड़ताल किया जाकर, पंचनामा बनाकर, सक्षम अधिकारियों ने परिवादी को अनुदान स्वीकृत की थी, जिसका भुगतान परिवादी को हो चुका है और क्योंकि परवादी मात्र 70 फिट केसिंग लगाना चाहता था, इसलिए अनावेदक ने केसिंग पार्इप (लोहे का) डालने की सलाह दी थी, लेकिन आर्थिक आभाव के कारण परिवादी ने मना कर दिया, इसलिए उपलब्ध पी0वी0सी0 पार्इप डाले थे, जिससे परिवादी संतुश्ट था, परिवादी ने जो नापते समय 300 फिट गहरार्इ, बोर क्षतिग्रस्त होने पर रही होना कथन किया है, तो यदि बोर क्षतिग्रस्त होता, तो पूर्णत: भर गया होता और डाली गर्इ सबमर्सिबल मोटर बाहर नहीं आ सकती थी। स्पश्ट है कि-मात्र अनावेदक को परेषान करने के लिए व राषियां ऐंठने के लिए परिवादी ने झूठे कथन करते हुये, परिवाद पेष किया गया है, जो निरस्त योग्य है।
(6)        मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
        (अ)    क्या अनावेदक ने, परिवादी के बोर में लगाये जा 
            रहे पी0वी0सी0 केसिंग पार्इप मानक स्तर व
            गुणवत्ता के प्रतिमान का रहे होने का झूठा
            प्रतिनिधान कर, उसे परिवादी को बेचा और उसके बोर             में उपयुक्त होना बताकर, उसका प्रयोग किया?
        (ब)    क्या परिवादी का उक्त बोर का केसिंग टूटकर 
            मलमा भर जाने पर, अनावेदक ने उसे सुधारकर
            दुरूस्त न कर, परिवादी के प्रति-सेवा में कमी की है?
        (स)    क्या परिवादी, अनावेदक से हर्जाना पाने का 
            अधिकारी है?
        (द)    सहायता एवं व्यय?
                -:सकारण निष्कर्ष:-
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(7)        स्वयं परिवादी के परिवाद व विषिश्टत: कणिडका-8 से स्पश्ट है कि-परिवादी के बोर में जो पी0वी0सी0 का केसिंग अनावेदक द्वारा लगाया गया था, वह लगाये जाने के पूर्व परिवादी ने स्वयं देखा था, जिसमें 959 आर्इ0एस0आर्इ0 मार्क नहीं था, लेकिन उक्त पी0वी0सी0 पार्इप केसिंग अच्छी किस्म की होने का आष्वासन देकर, परिवादी, अनावेदक से उक्त पार्इप केसिंग के रूप में लगवाने के लिए सहमत रहा है और प्रदर्ष सी-5 के बिल में भी केसिंग पी0वी0सी0 का ही मूल्य परिवादी से अनावेदक द्वारा प्राप्त किया जाना स्पश्ट है। ऐसे में उक्त केसिंग में लगाया गया पी0वी0सी0 पार्इप आर्इ0एस0आर्इ0 मार्क का 959 पी0वी0सी0 पार्इप नहीं है, यह लगाने के पूर्व ही परिवादी को स्पश्ट हो गया था, फिर भी परिवादी ने उसे लगवाया है, तो उक्त बाबद कोर्इ झूठा प्रतिनिधान किये जाने का कोर्इ प्रष्न संभव नहीं है। 
(8)        परिवादी के परिवाद व साक्ष्य में स्वयं परिवादी व साक्षी-कीर्ति कुमार राहंगडाले, ओमकार प्रसाद सोनवाने व हिम्मतसिंह बिसेन का जो षपथ-कथन पेष किये गये हैं, उनमें कहीं भी यह दर्षाया नहीं गया है कि-उक्त बोर का केसिंग पार्इप फटकर मलमा बोर में गिर जाने की घटना कब की है, बलिक परिवाद और उक्त षपथ-पत्रों में यह आभास कराने का प्रयास कराया गया है, जैसा कि-दिनांक-14.03.2013 को बोर में विधुत मोटर लगाकर प्रारम्भ करने के बाद उसी दिन पार्इप की केसिंग फटकर मलमा बोर में गिर गया हो। जबकि-अनावेदक के जवाब में यह आपतित ली गर्इ है कि-छै माह तक बोर से पानी उपयोग करने के बाद लूज मटेरियल आ जाने की जो आपतित परिवादी ने ली है, वह संभव नहीं।
(9)        तो इस संबंध में स्वयं परिवादी द्वारा, अनावेदक को जो दिनांक-02.09.2013 को जरिये अधिवक्ता नोटिस भेजा गया था, उसकी प्रति प्रदर्ष सी-3 की कणिडका-7 में यह उल्लेख किया गया है कि-उक्त पी0वी0सी0 केसिंग लगाये पांच माह का समय ही व्यतीत हुआ है और केसिंग घटिया किस्म की थी, इसलिए फट गर्इ, जिस कारण से मलमा, गिटटी, रेत व पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े नलकूप में गिरने से नलकूप में लगभग 100 फिट तक भर गया है, तो उक्त से प्रथम तो यह स्पश्ट है कि- वास्तव में लगभग साढ़े 5 माह तक परिवादी ने उक्त नलकूप का, पानी निकालने के लिए उपयोग किया, जिसके पष्चात ही, उक्त नलकूप में मलमा भर जाने की षिकायत परिवादी ने अपने उक्त नोटिस में की थी और पांच माह से अधिक समय तक नलकूप का उपयोग करने के बाद केसिंग खराब होने और मलमा गिर जाने के तथ्य को परिवादी-पक्ष द्वारा परिवाद में जानबूझकर छिपाते हुये, केसिंग घटिया किस्म की होने का लांछन बनाया गया है। और दूसरा यह तथ्य भी स्पश्ट है कि-परिवाद में जो कणिडका-11 में 425 फिट से कम लगभग 350 फिट ही बोर की खुदार्इ का लांछन लगाया गया है, वह भी परिवादी द्वारा गढ़ा गया असत्य लांछन है। क्योंकि बोर में मलमा गिर जाने के बाद लोहे के टुकड़े को रस्सी में बांधकर, बोर में डालते हुये, गहरार्इ की वास्तविक नाप कर पाना एक तो संभव नहीं और दूसरा उससे वास्तव में बोर कितने फिट गहरा किया गया था, यह मलमा गिर जाने के बाद उक्त आधार पर पता कर, किया जा सकना भी संभव नहीं। जबकि-स्वयं परिवादी ने करीब 100 फिट मलमा बोर में गिर जाने का स्वयं उल्लेख किया था।
(10)        वास्तव में बोर जब मार्च महिने में कराया गया और बरसात के बाद अगस्त-सितम्बर के महिने में जब बरसाती पानी के षोशण से जमीन के अंदर भूगर्भीय दबाव अगर उक्त स्थान पर बढ़ा और उक्त भूगर्भीय दबाव के फलस्वरूप, केसिंग व बोर दबाव पड़ने से टूटकर भसक गया होता, तो भी उक्त भूगर्भीय घटना पर किसी का नियंत्रण संभव नहीं होता और ऐसे दबाव को सहन कर सकने की संभावना किसी भी तरह के पार्इप में संभव नहीं। और इसलिये 5-6 माह पष्चात केसिंग टूट जाने और बोर में मलमा गिर जाने की परिवाद में कही जा रही घटना मात्र के आधार पर, केसिंग अमानक स्तर का या गुणवत्ता विहीन होने का कोर्इ कयास या निश्कर्श कतर्इ नहीं निकाला जा सकता था, इसलिए परिवादी-पक्ष ने उक्त बोर 5-6 माह तक उपयोग कर चुकने के तथ्य को छिपाते हुये, केसिंग लगाने के 2- 4 दिनों के अंदर ही केसिंग टूट जाने के झूठे वृतांत उल्लेख कर परिवाद पेष किया है।
(11)        बोर में 70 फिट गहरार्इ तक केसिंग डाला गया था, यह विवादित नहीं है, परिवादी ने जो विधुत मोटर बोर में स्थापित किया, वह विधुत मोटर कितनी गहरार्इ तक डाला गया था या केसिंग की गहरार्इ से कम गहरार्इ में डाला गया हो, ऐसा कुछ भी परिवादी की ओर से परिवाद में या षपथ-पत्रों में दिये गये वृतांत में दर्षाया नहीं गया है। सामान्यत: विधुत मोटर केसिंग की गहरार्इ तक ही डाला जाता है, क्योंकि उससे आगे तक विधुत मोटर नहीं जा पाता। अब यदि 70 फिट गहरार्इ तक वाला जो केसिंग वाला भाग रहा है, वह टूटकर केसिंग और कंकड़़, पत्थर, गिटटी, रेत बोर में गिरा होता, तो निषिचत रूप से उक्त मलमा मोटर के उपर ही आ गया होता, जिसे निकाले बिना मोटर को खींचकर निकाला जा सकना किसी भी तरह संभव नहीं होता। तो वास्तव में परिवादी-पक्ष के द्वारा दर्षाये गये वृतांत की कहानी से ऐसा प्रतीत होता है कि-70 फिट केसिंग के बाद की गहरार्इ वाले बोर के भाग के ही गिटटी, पत्थर, मुरम बोर में टूटकर गिरे होंगे, जिनके गिरने की आवाज सुनकर मोटर निकाले जाने की कहानी का वृतांत परिवादी द्वारा, अनावेदक को भेजे गये नोटिस प्रदर्ष सी- 3 की कणिडका-7 और 8 में परिवादी-पक्ष द्वारा दिया गया था और उक्त नोटिस की कणिडका-8 में यह भी लेख किया गया था कि-जब गिटटी, रेत भरने की आवाज सुनार्इ दी, तब सबमर्सिबल मोटर बाहर निकाली, तो पी0 वी0सी0 मोटर के टुकड़े भी बाहर आये, जो परिवादी के पास सुरक्षित रखे हुये हैं, जबकि-उक्त सब वृतांत को छिपाते हुये, परिवाद में कणिडका-10 में यह लेख किया गया है कि-कंकंड़, पत्थर बोर में गिरने के बाद सबमर्सिबल मोटर को बाहर निकाला, तो मोटर के साथ बोर में लगे पी0 वी0सी0 पार्इप का लगभग एक लंबा टुकड़ा भी बाहर आया, तो उक्त सबसे दर्षित यह हो रहा है कि-70 फिट केसिंग तक गहरार्इ वाला बोर का भाग नहीं टूटा था, उससे नीचे के भाग के कंकंड़, पत्थर भसककर बोर में गिरे थे और केसिंग के निचले सिरे का भाग जो मोटर निकालते समय मोटर में फंस गया होगा, वही कुछ इंच का भाग टूटकर मोटर के साथ मोटर निकालते समय बाहर आना संभव रहा है। और केसिंग का ऐसा कोर्इ भाग भी टूटकर आया था, यह दर्षाने के लिए ऐसा केसिंग का टूटा वाला भाग साक्ष्य के तौर पर पेष भी नहीं किया गया है। तो वास्तव में 70 फिट केसिंग का पार्इप कहीं से फटकर टूटा हो, ऐसा परिवादी-पक्ष के वृतांत की कहानी संभव होने का कोर्इ विष्वसनीय आधार नहीं है और टूटे केसिंग का टुकड़ा यदि परिवादी के पास है, तो उसकी गुणवत्ता की कोर्इ जांच कराने का प्रयास परिवादी-पक्ष की ओर से किया नहीं गया, मात्र केसिंग टूटकर, केसिंग वाले भाग से कंकंड़, पत्थर गिरने की काल्पनिक कहानी का वृतांत भी जब संभाव्य और विष्वसनीय नहीं। और पी0वी0सी0 केसिंग पार्इप मानक गुणवत्ता के प्रतिमान का ना रहा हो, ऐसा कोर्इ प्रमाण परिवादी-पक्ष की ओर से पेष नहीं, तो विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को प्रमाणित व स्थापित होना नहीं पाया जाता है।
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(12)        बोर कितनी अवधि तक ठीक काम करेगा, कोर्इ खराबी नहीं आएगी, ऐसी कोर्इ किसी निषिचत अवधि के लिए गारंटी या वारंटी दी गर्इ हो, ऐसा परिवादी-पक्ष का भी मामला नहीं और भूगर्भीय हलचल, भूगर्भीय दबाव परिवर्तन व भूगर्भीय सिफटिंग जैसी धीमी प्रक्रियायें भूगर्भ में चलती रहती हैं और इसलिए कोर्इ बोर कितनी अवधी तक सही-सलामत बना रहेगा, ऐसी सामान्यत: कोर्इ गारंटी या वारंटी बोर करने वाली कोर्इ एजेंसी नहीं दे पाती है और क्योंकि प्रस्तुत मामले में भी ऐसी कोर्इ गारंटी या वारंटी अनावेदक द्वारा, परिवादी को किये गये बोर के संबंध में दी नहीं गर्इ, जो कि-बोर किये जाने से छै माह से अधिक अवधि बाद, बोर के अंदर कंकंड़, पत्थर गिर जाने के आधार पर, फिर से बोर करके और नर्इ केसिंग लगाकर दुरूस्त कर देने का प्रदर्ष सी-3 का जो नोटिस परिवादी- पक्ष द्वारा जो अनावेदक को दिया गया, तो जब ऐसी कोर्इ गारंटी या वारंटी नहीं थी, इसलिए फिर से बोर कर और केसिंग नि:षुल्क लगाकर, परिवादी को देने की नि:षुल्क सेवा हेतु अनावेदक कतर्इ बादध्य नहीं रहा है और इसलिए अनावेदक द्वारा, उक्त बोर को नि:षुल्क दुरूस्त न किया जाना किसी भी तरह सेवा में कमी होना नहीं कहा जा सकता, इसलिए अनावेदक द्वारा, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी नहीं की गर्इ। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-ब को निश्कर्शित किया जाता है।
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(स):-
(13)        क्योंकि अनावेदक के द्वारा, परिवादी के प्रति न तो कोर्इ अनुचित व्यापार-प्रथा अपनार्इ गर्इ है, न ही कोर्इ सेवा में कमी की गर्इ है, इसलिए परिवादी, अनावेदक से कोर्इ हर्जाना पाने का अधिकारी नहीं, बलिक प्रदर्ष सी-7 से यह दर्षित है कि-परिवादी की भूमि तालाब से सिंचिंत रही है और कृशि की कोर्इ हानी होने का कोर्इ प्रमाण भी परिवादी-पक्ष की ओर से पेष नहीं और ऐसी कोर्इ हानी होती भी तो उसके लिए अनावेदक दायी नहीं है, तो परिवादी, अनावेदक से कोर्इ हर्जाना पाने का अधिकारी नहीं। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'स को निश्कर्शित किया जाता है।
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(द):-
(14)        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ से 'स के निश्कर्शों के आधार पर पेष परिवाद स्वीकार योग्य न होने से निरस्त किया जाता है। उभयपक्ष अपना-अपना कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे।    
   मैं सहमत हूँ।                              मेरे द्वारा लिखवाया गया।         

 

(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत)                          (रवि कुमार नायक)
      सदस्य                                                   अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                           जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         प्रतितोषण फोरम,सिवनी  

                        (म0प्र0)                                        (म0प्र0)

                        

 

 

 

        
            

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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