Madhya Pradesh

Seoni

CC/70/2013

RAJ KUMAR - Complainant(s)

Versus

SUDHIR MARUTI SERVISES - Opp.Party(s)

21 Nov 2013

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)


प्रकरण क्रमांक -70-2013                               प्रस्तुति दिनांक-20.08.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,

राजकुमार वल्द, जंगलसिंह ठाकुर, आयु
लगभग 35 वर्श, निवासी-खैरापलारी थाना
केवलारी, जिला सिवनी (म0प्र0)।.........................आवेदक परिवादी।


                :-विरूद्ध-: 
(1)    प्रबंधक (प्रोपरार्इटर)
    सुुधीर मारूति सर्विस सेन्टर, होटल
    सेन्टर पार्इन्ट, जी.एन.रोड, सिवनी(म0प्र0)।
(2)    प्रोपरार्इटर,
    एफ.के. बेलिडंग वर्कषाप, प्रायवेट बस 
    स्टैण्ड, सिवनी।
    वर्तमान पता-जे.सी.बी. षोरूम के पास,
    लूघरवाड़ा जी.एन.रोड सिवनी(म0प्र0)।....अनावेदकगण विपक्षीगण।

   
                 :-आदेश-:
     (आज दिनांक- 21.11.2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-

(1)        परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, उसके स्वामित्व के वाहन-मारूती ओमनी वेन, रजिस्ट्रेषन क्रमांक-एम0पी0 22 बी.ए. 0557 के दुर्घटना में क्षतिग्रस्त होने पर, उसे अनावेदकगण द्वारा समय पर सुधारकर न देने को सेवा में कमी होना बताते हुये, परिवादी द्वारा, अनावेदक क्रमांक-1 को अदा की गर्इ राषि पर ब्याज दिलाने, वाहन खराब रहने से परिवादी को हुर्इ आय की व्यवसायिक हानि व मानसिक कश्ट हेतु हर्जाना दिलाने व वाहन सुधारकर दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2)        यह विवादित नहीं कि-परिवादी उक्त वाहन का रजिस्टर्ड स्वामी है और उसने दिसम्बर-2011 में दुर्घटना में क्षतिग्रस्त हुये अपने वाहन को सुधारने के लिए अनावेदक क्रमांक-1 के सर्विस सेन्टर पर डाला था। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि-उक्त वाहन को दुरूस्त कराये जाने के मद में परिवादी की ओर से दिनांक-10.03.2012 को 15,000-रूपये व दिनांक-18.05.2012 को 15,000-रूपये कालूराम के द्वारा, अनावेदक क्रमांक-1 को भुगतान कर रसीद प्राप्त की गर्इ थी। और यह भी विवादित नहीं कि-अनावेदक क्रमांक-1 का सर्विस सेन्टर, सेन्टर प्वाइंट, प्रांगण जी.एन. रोड में सिथत है, जबकि-अनावेदक क्रमांक-2 का बेलिडंग वर्कषाप पूर्व में प्रायवेट बस स्टैण्ड, सिवनी के पास था, जो वर्तमान में बींझावाड़ा के पास सिथत है।
(3)        स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- परिवादी का उक्त वाहन, दिसम्बर-2011 में दुर्घटना होकर, क्षतिग्रस्त हो गया था, जो कि-अनावेदक क्रमांक-1 के सर्विस स्टेषन ले जाने पर, उसने वाहन का निरीक्षण कर, 60,000-रूपये में वाहन का सुधार कर व डेनिटंग-पेनिटंग कर, पूर्व सिथति में लाने का करार किया था और तीन महिने के अन्दर वाहन सुधारकर सौप देने की बात कही थी, जो कि- परिवादी की अनुपसिथति में उसके साले कालूराम ने उसकी ओर से बातचीत किया था और अनावेदकगण ने उसी समय परिवादी से 15,000- रूपये प्राप्त कर लिये थे, फिर दिनांक-10.03.2012 को 15,000-रूपये व दिनांक-18.05.2012 को 15,000-रूपये, इस तरह अनुबंध के अनुसार, कुल-45,000-रूपये एडवांस लेने के बाद भी अनावेदकगण ने वाहन सुधारकर नहीं दिया, जबकि-मात्र 15,000-रूपये और देना षेश हैं, जिसे अदा करने परिवादी तत्पर है, जो कि-परिवादी के निरन्तर संपर्क करने पर भी अनावेदकगण कहीं पार्टस न मिलने, कभी अन्य कार्य में व्यस्थता दर्षाकर, वाहन सुधारकर देने बाबद हीलाहवाली करते रहे। परिवादी ने वाहन, महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा कम्पनी से ऋण लेकर क्रय किया था, जिसकी ऋण की किष्तें नियमित रूप से न पटा पाने के कारण, परिवादी व उसके गारंटर-कालूराम के विरूद्ध फायनेंस कम्पनी द्वारा, आर्बीट्रेटर के समक्ष मुंबर्इ में कार्यवाही प्रारम्भ कर दी गर्इ है, परिवादी निजी कार्यों के अलावा, उक्त वाहन का उपयोग जननी एक्सप्रेस के रूप में षासन के नियमानुसार ग्रामीण क्षेत्रों से गर्भवती महिलाओं को उपचार व प्रसव हेतु षासकीय चिकित्सालय पहुंचाने का कार्य करता था, जिससे उसे 15,000-रूपये मासिक की बचत होती थी और अनावेदकों द्वारा, वाहन को अप्रैल-2012 तक सुधारकर न देने से मर्इ-2012 से 15 माह की आय की क्षति 2,25,000-रूपये हुर्इ है, जो कि-बार-बार मौखिक अनुरोध करने के अलावा, परिवादी ने अनावेदकगण को दिनांक-31.12.2012 को जरिये अधिवक्ता नोटिस भेजा था, अनावेदक क्रमांक-1 ने उक्त नोटिस प्राप्त कर लेने के बावजूद भी, न तो क्षतिपूर्ति की राषि अदा की, न ही वाहन सुधारकर दिया, जबकि-अनावेदक क्रमांक-2 के द्वारा नोटिस प्राप्त नहीं किया गया। और इस तरह अनावेदकों ने, परिवादी के प्रति-सेवा में कमी किया है, जो कि-वाहन सुधारकर न देने के कारण, परिवादी को मानसिक कश्ट और असुविधा भी हुर्इ है, इसके लिए भी परिवादी हर्जाना पाने का पात्र है।
(4)        स्वीकृत तथ्यों के अलावा, अनावेदकों ने अपने जवाब में परिवाद के षेश लांछन से इंकार करते हुये, यह अतिरिक्त कथन किया है कि-वाहन दुरूस्त किये जाने संबंधी अनावेदक क्रमांक-1 का परिवादी से कोर्इ अनुबंध नहीं हुआ है, परिवादी के वाहन का परीक्षण कर, अनावेदक क्रमांक-1 ने लगभग 2,00,000-रूपये व्यय होना बताया था और कथित वाहन के पार्टस इत्यादि भी परिवादी के द्वारा ही लाने की बात बता दी गर्इ थी, परिवादी ने स्वयं अनावेदक क्रमांक-1 को भुगतान नहीं किया है, बलिक परिवादी की ओर से कालूराम द्वारा ही, अनावेदक क्रमांक-1 से बात की गर्इ थी, उसके द्वारा ही 30,000-रूपये अनावेदक क्रमांक-1 को भुगतान किये गये हैं और षेश 2-3 माह में अदा करने की बात कही गर्इ थी। जबकि-वाहन को पूर्व की भांति दुरूस्त किये जाने में लगभग 2,00,000- रूपये की राषि का खर्च संभव होना बता दिया गया था और कालूराम ने कहा था कि-परिवादी को ओ0डी0 क्लेम की राषि मिलने पर, वह षेश राषि भी अदा कर देगा, जिसके संबंध में वाहन दुरूस्ती हेतु 2,00,000- रूपये का इस्टीमेन्ट भी बनाकर, अनावेदक क्रमांक-1 ने कथित वाहन की बीमा कम्पनी, नेषनल इंष्योरेंस कम्पनी को दिया है, जो कि-कालूराम से बार-बार वाहन दुरूस्ती में लगने वाली राषि की मांग की जाती रही, पर षेश राषि अदा नहीं की गर्इ, जिस पर अनावेदक क्रमांक-1 ने कालूराम द्वारा जितनी राषि अदा की गर्इ थी, उतनी सामग्री लाकर, वाहन में लगा दिया है और षेश राषि न मिलने से वाहन का कार्य पूर्ण होना संभव नहीं है, जो कि-वाहन दुरूस्ती में हो रहे विलम्ब के लिए स्वयं परिवादी जिम्मेदार है। और परिवादी चाहता है कि-उसके साले द्वारा अदा की गर्इ ही राषि में वाहन दुरूस्त हो जावे, षेश राषि न देना पड़े, इसलिए परिवादी ने झूठे तथ्यों व झूठे आधारों पर परिवाद पेष किया है, जो पोशणीय नहीं, जो कि-अनावेदक क्रमांक-2 से कोर्इ लेनदेन या करार जैसी किसी बात का उल्लेख परिवाद में नहीं, उसे परिवाद में अनावष्यक-पक्षकार संयोजित किया गया है। अत: परिवाद निरस्त कर, परिवाद के बचाव में हुये व्यय व मानसिक क्षति हेतु अनावेदकों को परिवादी से 5,000-5,000-रूपये दिलाया जाये।  
(5)        मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हंंै कि:-
        (अ)    क्या परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में होकर, उसका
            परिवाद उपभोक्ता फोरम में प्रचलन योग्य है?
        (ब)    क्या अनावेदकों ने परिवादी का वाहन दुरूस्त न कर,
            अनुचित विलम्ब किया है और इस तरह परिवादी के
            प्रति-सेवा में कमी किया है?
        (स)    सहायता एवं व्यय?
                -:सकारण निष्कर्ष:-
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(6)        स्वयं परिवादी का अपने परिवाद में और षपथ-पत्र में व अनावेदकों को जरिये अधिवक्ता भेजे प्रदर्ष सी-3 के नोटिस में यह स्पश्ट अभिकथन रहा है कि-परिवादी अपने उक्त वाहन को जननी एक्सप्रेस के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों से गर्भवती महिलाओं को उपचार व प्रसव हेतु षासकीय चिकित्सालय पहुंचाने के व्यवसायिक प्रयोजन हेतु उपयोग करता था और जिससे परिवादी को 15,000-रूपये मासिक लाभ प्राप्त होता रहा है, वाहन के रजिस्ट्रेषन प्रदर्ष सी-9 में उक्त वाहन-मारूती ओमनी, प्रायवेट बस के रूप में ही वर्गीकृत है और परिवादी ने जो उक्त बस को सामुदायिक केन्द्र, चौरर्इ को किराये पर दे रखा था, उक्त सामुदायिक केन्द्र के खण्ड चिकित्सा अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित, परिवादी के उक्त वाहन की लाकबुक की प्रति प्रदर्ष सी-8 के रूप में परिवादी-पक्ष की ओर से ही पेष हुर्इ है, तो परिवादी द्वारा व्यवसायिक लाभ के प्रयोजन हेतु, उक्त वाहन का उपयोग किया जाना और इसलिए वाहन, व्यवसायिक वाहन रहा होना स्थापित पाया जाता है। 
(7)        परिवादी ने अपने उक्त व्यवसायिक वाहन को ही दुर्घटना में क्षतिग्रस्त होना कहते हुये, सुधार व दुरूस्ती के लिए अनावेदक क्रमांक-1 के सर्विस सेन्टर में डाला जाना जो परिवाद में कहा है, वह भी स्वीकृत तथ्य है और इसलिए व्यवसायिक वाहन की दुरूस्ती बाबद, प्राप्त की गर्इ मैकेनिक की सेवायें, व्यवसायिक प्रयोजन के लिए प्राप्त की गर्इ सेवायें होना स्पश्ट है। जो कि-उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (1) (डी) (प्प्) में हुये संषोधन दिनांक-15.03.2003 से प्रभावषील हो जाने के पष्चात ऐसे व्यवसायिक प्रयोजन के लिए सेवायें प्राप्त करने वाला व्यकित उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रयोजन हेतु उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं है। (न्यायदृश्टांत-2009 (भाग-2) सी0पी0जे0 402 (राश्ट्रीय आयोग) वीरा इण्डस्ट्रीज बनाम मोडर्न कन्ट्रक्षन्स), इसलिए परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में न होने से उसका यह परिवाद, उपभोक्ता फोरम में संधारणीय होना नहीं पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है। 
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(8)        परिवाद का आधार यह बनाया गया है कि-अनावेदक क्रमांक- 1 मैकेनिक ने परिवादी का वाहन का भौतिक निरीक्षण कर, 60,000- रूपये में वाहन को पूरी तरह सुधारकर और आवष्यक पार्टस बदलकर, डेनिटग-पेनिटग कर, पूर्ववत चालू कंडिषन में लाने का करार किया था, ऐसा कोर्इ लिखित करार रहा हो, यह परिवादी का कथन नहीं। परिवाद की कणिडका-3 में यह भी कहा गया है कि-अनावेदक क्रमांक-1 ने वाहन ठीक कर, तीन माह में सौप देने का वचन दिया था, जबकि-कणिडका-11 में यह कहा गया है कि-दिनांक-31.12.2012 का परिवादी का नोटिस प्राप्त होने के बाद अनावेदक क्रमांक-1 ने, परिवादी से संपर्क कर, दो माह में वाहन सुधारकर देने का मौखिक वचन दिया था। 
(9)        60,000-रूपये में वाहन सुधारकर देने का करार कब, किस वर्श के कौन से माह में हुआ था और परिवादी ने उक्त वाहन सुधरने के लिए अनावेदक क्रमांक-1 के सर्विस सेन्टर में कब डाला था, इस बारे में परिवादी-पक्ष, परिवाद, साक्ष्य के षपथ-पत्र व अनावेदक को दिये नोटिस आदि में हर जगह मौन रहा है, जबकि-परिवाद में यह कहा गया कि-वाहन सुधरने डालते समय 15,000-रूपये परिवादी से अनावेदकगण ने प्राप्त कर लिये थे और बाद में दिनांक-10.03.2012 को 15,000-रूपये व दिनांक-18.05.2012 को 15,000-रूपये, इस तरह एडवांस में-से 45,000-रूपये अनावेदकों ने प्राप्त किये, जबकि-अनावेदक क्रमांक-1 के बिल दिनांक-10.03.2012 में उक्त दिनांक को 15,000-रूपये और 18.05.2012 को 15,000-रूपये प्राप्त कर लिये जाने का उल्लेख है। और अनावेदक क्रमांक-1 ने उक्त 30,000-रूपये ही पाना स्वीकारा है, जो कि-परिवादी-राजकुमार और उसके साक्षी-कालूराम के षपथ-पत्रों में यह दर्षाया गया है कि-अनावेदक क्रमांक-1 ने वाहन को सुधारने का करार किया, तो उसी समय 15,000-रूपये लिये थे और फिर दिनांक-18.05.2012 को 15,000-रूपये और लिये थे, जिससे यह दर्षित होता है कि- दिनांक-10.03.2012 को ही वाहन सुधारने के लिए संभवत: डाला गया और परिवादी तथा उसके साक्षी के षपथ-पत्रों में कुल-दो बार ही 15,000- 15,000-रूपये अनावेदक क्रमांक-1 को दिया जाना दर्षाया गया है, लेकिन इस तरह 45,000-रूपये अनावेदक क्रमांक-1 को दे-दिया जाना, जो परिवादी के षपथ-पत्र में कहा जा रहा, उसके लिए कोर्इ आधार स्वयं परिवादी-पक्ष के साक्ष्य के षपथ-पत्रों में व प्रदर्ष सी-1 की रसीद में वर्णित नहीं है।
(10)        अनावेदक क्रमांक-2 प्रोपरार्इटर बेलिडंग वर्कषाप से परिवादी का अनुबंध या सीधी कोर्इ बातचीत रही हो, ऐसा परिवादी या उसके साक्षी-कालूराम के षपथ-पत्र या परिवाद में वर्णित नहीं, उनमें अनावेदक क्रमांक-2 को परिवादी-पक्ष की ओर से कोर्इ भुगतान किया जाना नहीं कहा गया है, तो प्रदर्ष सी-2 अनावेदक क्रमांक-2 के वर्कषाप के केष क्रेडिट मेमो में 15,000-रूपये प्रापित के उल्लेख का दस्तावेज मात्र पेष कर दिया जाना व्यर्थ है। और उसमें अनावेदक क्रमांक-2 की कोर्इ पावती रही हो, ऐसा परिवादी-पक्ष का कथन नहीं। जबकि-कालूराम का नाम, दिनांक व 15,000-रूपये नगद प्रापित का उल्लेख सब अलग स्याही से वर्णित हैं, अन्यथा भी प्रदर्ष सी-2 परिवादी के वाहन के संबंध में रहा होना दर्षित नहीं है और इसलिए प्रदर्ष सी-2 पेष होने मात्र के आधार पर कतर्इ विचारणीय नहीं।
(11)        अनावेदक क्रमांक-1 के षपथ-पत्र में यह कथन रहा है कि- उसने परिवादी के वाहन को दुरूस्त करने में लगने वाला व्यय 2,01510- रूपये का इस्टीमेंट भी तैयार करकर दिया था, परिवादी ने जो 30,000- रूपये की राषि दी थी, उतना काम उसकी गाड़ी में किया जा चुका है, षेश राषि परिवादी अदा नहीं कर रहा है और वह चाहता है कि-मात्र 60,000-रूपये में उसका वाहन पूर्ण दुरूस्त करके देवें, जबकि-उक्त राषि में वाहन दुरूस्त हो पाना संभव नहीं, जो कि-इस्टीमेंट की प्रति प्रदर्ष आर-1 भी अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष हुर्इ है।
(12)        अनावेदकगण के जवाब के इस हिस्से का कि-उक्त इस्टीमेंट बनाकर, अनावेदक क्रमांक-1 ने उक्त वाहन का बीमा कम्पनी नेषनल इंष्योरेंस कम्पनी को भी दिया था और फिर भी परिवादी अपनी साक्ष्य में इस बाबद मौन है कि-उसका उक्त वाहन किस बीमा कम्पनी के द्वारा बीमित रहा है और किस बीमा कम्पनी को उसने दुर्घटना बाबद, बीमा क्लेम पेष किया है। और बीमा क्लेम कार्यवाही में कितने खर्च का इस्टीमेंट परिवादी-पक्ष की ओर से पेष किया गया, इस संबंध में अनावेदक के जवाब में विषिश्ट कथन होने के बावजूद परिवादी के द्वारा, उक्त बाबद अपने साक्ष्य के षपथ-पत्रों में मौन धारण कर लेना, 60,000-रूपये में वाहन ठीक किये जाने का सौदा होने के परिवादी के परिवाद में दर्षाये आधार को ही अविष्वसनीय होना दर्षाता है।
(13)        अन्यथा भी किसी निषिचत राषि में वाहन मरम्मत करने के ठेका की कोर्इ प्रथा होना संभव नहीं, दुर्घटनाग्रस्त वाहन को डिस्मेंटल किये बिना, मात्र उपर से देखकर, यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि- वाहन के अंदर कितने पार्टस खराब होंगे और वाहन की दुरूस्ती में कितना अनुमानित व्यय लगेगा। और उक्त वाहन फायनेंस कम्पनी से ऋण लेकर खरीदा गया था, जिस पर दुर्घटना के समय ऋण की किष्तें बकाया रही हैं, यह परिवादी की ओर से पेष प्रदर्ष सी-9 के आर्बीट्रेटर अबार्ड की प्रति से ही स्पश्ट है। वाहन षासकीय चिकित्सालय में जननी एक्सप्रेस के रूप में चलाया जा रहा था, तो इसकी ही संभावना अधिक है कि-वह बीमित वाहन रहा होगा। और दुर्घटना में क्षतिग्रस्त होने पर कोर्इ बीमा ओ0डी0 क्लेम परिवादी का नेषनल इंष्योरेंस कम्पनी में रहे होने का अनावेदक के अभिवचन का परिवादी ने कोर्इ खण्डन नहीं किया, ऐसे में प्रदर्ष आर-1 का इस्टीमेंट से अलग अन्य कोर्इ इस्टीमेंट परिवादी-पक्ष की ओर से जब पेष नहीं, तो यह कतर्इ स्थापित नहीं होता कि-परिवादी के वाहन को मात्र 60,000-रूपये में सुधारकर देने का कोर्इ सौदा परिवादी व अनावेदक क्रमांक-1 के बीच रहा है। और 30,000-रूपये से कोर्इ अधिक राषि परिवादी द्वारा, अनावेदक क्रमांक-1 को दी जाना भी स्थापित नहीं। और इसलिए परिवादी के द्वारा, वाहन में लगने वाले पार्टस या उनका मूल्य अदा न किये जाने के कारण ही उसका वाहन दुरूस्त नहीं हो सका है, तब वाहन दुरूस्त न होने बाबद अनावेदकों का कार्इ दोश होना स्थापित नहीं पाया जाता है और इसलिए अनावेदकों द्वारा, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी किया जाना स्थापित नहीं। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'ब को निश्कर्शित किया जाता है।
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(स):-
(14)        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ और 'ब के निश्कर्शों के आधार पर, अनावेदकों के द्वारा, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी किया जाना भी स्थापित नहीं और परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में भी होना स्थापित नहीं। फलत: पेष परिवाद स्वीकार योग्य न होने से और संधारणीय न होने से निरस्त किया जाता है। पक्षकार अपना-अपना कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे।


                                
   मैं सहमत हूँ।                                     मेरे द्वारा लिखवाया गया।         

(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत)                          (रवि कुमार नायक)
          सदस्य                                                 अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                           जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         प्रतितोषण फोरम,सिवनी                           

         (म0प्र0)                                                   (म0प्र0)

                        

 

 

 

        
            

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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