राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-1542/2018
(जिला उपभोक्ता आयोग (द्वितीय), बरेली द्वारा परिवाद सं0-113/2017 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 13-07-2018 के विरूद्ध)
केयर हास्पिटल द्वारा डॉ0 निंकुंज गोयल स्वामी, स्टेडियम रोड, तहसील व जिला बरेली व एक अन्य
बनाम
सुधीर अग्रवाल पुत्र श्री वी0एस0 अग्रवाल निवासी 36, विक्रमादित्यपुरी, बानखाना रोड, बरेली एवं दो अन्य
समक्ष:-
1. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित: श्री बृजेन्द्र चौधरी विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-1 व 2 की ओर से उपस्थित: कोई नहीं।
प्रत्यर्थी सं0-3 की ओर से उपस्थित: श्री आलोक कुमार सिंह विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- 07-05-2024.
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-15 के अन्तर्गत, जिला उपभोक्ता आयोग (द्वितीय), बरेली द्वारा परिवाद सं0-113/2017 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 13-07-2018 के विरूद्ध योजित की गयी है।
परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने प्रतिपक्षी सं० 4 से स्वास्थ्य बीमा पालिसी संख्या 224600/48/2017/3515, रु० 2,00,000/- हेतु कय की थी। परिवादी को नाक से श्वास लेने में परेशानी होने की समस्या हेतु प्रतिपक्षी सं० 1 से उपचार चल रहा था। उपचार से लाभ नहीं होने पर प्रतिपक्षी सं० 1 द्वारा शल्य चिकित्सा की आवश्यकता बतायी और इस हेतु अनुमान से रु० 18,000/- से रु० 20000/- व्यय होना बताया।
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दिनांक 20.03.2017 परिवादी को श्वास लेने में तकलीफ होने के कारण शल्य चिकित्सा हेतु केयर के अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। परिवादी द्वारा अस्पताल में भर्ती होने पर प्रतिपक्षीगण 1 व 2 को उपरोक्त बीमा पालिसी के सम्बन्ध में जानकारी दी तो उन्होंने बताया कि उनका अस्पताल ओरियन्टल इन्श्योरेन्स कम्पनी में सूचीबद्ध है। परिवादी को दिनांक 20.03.2017 को अस्पताल में भर्ती कर प्रतिपक्षी सं० 1 ने शल्य चिकित्सा की और दिनांक 22.03.2017 छुट्टी कर दी, परन्तु परिवादी को कोई बिल नहीं दिया और न ही कोई भुगतान माँगा। जब परिवादी ने बेबसाइट पर उसकी चिकित्सा के सम्बन्ध में जानकारी की तो पता चला कि ओरियन्टल इन्श्योरेन्स कम्पनी से रु0 65000/- ले लिये गये है, जबकि उपचार पर अधिकतम २० 20000/- का व्यय आना बताया गया था।
प्रतिवाद पत्र में परिवाद के प्रस्तर सं० 3,4,5 के अमिकथनों को एवं परिवादी द्वारा निर्गत प्रसूचना पत्र प्राप्त करने को स्वीकार किया गया है। परिवाद के अन्य अभिकथनों का प्रतिवाद किया गया है।
प्रतिवाद पत्र में यह भी अभिकथित किया गया कि परिवादी को दिनांक 30.03.2017 को श्वास लेने में परेशानी होने पर प्रतिपक्षी सं० ३ के अस्पताल में भर्ती हुये और परिवादी का उपचार प्रतिपक्षी सं० 1 द्वारा चिकित्सीय मापदण्डों के द्वारा किया गया। परिवादी की शल्य चिकित्सा, औषधियों व अस्पताल में ठहरने आदि में व्यवस्था में कुल रु० 1,06,000/- व्यय हुआ था जिसमें केवल रु० 63,000/- का ही भुगतान किया गया है। रु० 43,000/- की धनराशि हड़पने के लिये परिवाद संस्थित किया गया है।
प्रतिपक्षी सं० 4 द्वारा प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया, जिसमें परिवाद के प्रस्तर सं० 1 के अमिकथनों को स्वीकार किया गया। परिवाद के अन्य अभिकथनों का प्रायः खण्डन किया गया है।
प्रतिवाद पत्र में अभिकथित किया गया है कि प्रतिपक्षी सं० 4 द्वारा निर्गत की गयी स्वास्थ्य बीमा पालिसी में दावा उत्पन्न होंने की दशा में दावे को निस्तारण हेतु प्रतिपक्षी सं० 3 के पास भेजा जाता है। यदि बीमित व्यक्ति प्रतिपक्षी सं० 4 द्वारा
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अधिकृत सूचीबद्ध अस्पताल में उपचार कराता है तो उस दशा में अस्पताल बीमा धारक के व्ययों का विवरण प्रतिपक्षी सं० 3 को प्रेषित कर अनुमति प्राप्त कर लेता है तो बीमा धारक को कैशलेस चिकित्सीय सुविधा दी जाती है और समस्त व्यय का भुगतान प्रतिपक्षी सं० 4 द्वारा प्रतिपक्षी सं० 3 की संस्तुति के आधार पर किया जाता है। चिकित्सा के व्ययों के निर्धारण में प्रतिपक्षी सं० 4 की कोई भूमिका नहीं होती।
दोनों पक्षों के कथनों/अभिकथनों एवं साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त विद्वान जिला आयोग ने निम्नांकित आदेश पारित किया :-
'' परिवाद इस प्रकार स्वीकार किया जाता है कि प्रतिपक्षीगण 1 व 2 को यह निर्देश दिया जाता है कि परिवादी की बीमा पालिसी के आधार पर प्राप्त की गयी धनराशि में से रु0 26500/- प्रतिपक्षी सं० 4 को वापस कर दें। एक माह के अन्तर्गत ऐसा न करने पर उक्त धनराशि पर परिवाद संस्थित होने की तिथि से उक्त धनराशि का भुगतान होने तक उस पर 7 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी देय होगा।
मानसिक कष्ट हेतु परिवादी प्रतिपक्षीगण 1 व 2 से रु0 5000/- प्राप्त करने का अधिकारी है। एक माह के अन्तर्गत उक्त धनराशि का भुगतान न होने पर परिवादी उक्त धनराशि पर प्रतिपक्षीगण 1 व 2 से परिवाद संस्थित होने की तिथि से उक्त धनराशि का भुगतान होने तक उस पर 7 प्रतिशत वार्षिक साधारण व्याज प्राप्त करने का अधिकारी होगा। वाद व्यय के रुप में परिवादी प्रतिपक्षी, सं० 1 व 2 से रु0 5000/- प्राप्त करने का का अधिकारी है। ''
हमारे द्वारा अपीलार्थीगण एवं प्रत्यर्थी सं0-3 के विद्वान अधिवक्तागण को विस्तार से सुना गया तथा पत्रावली का सम्यक् रूप से परिशीलन किया गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क यह है कि इस मामले में अपीलार्थीगण द्वारा यदि प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से अधिक धनराशि प्राप्त की गई है तो यह उपभोक्ता विवाद नहीं है। अपीलार्थीगण एवं विपक्षी बीमा कम्पनी के मध्य उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता का सम्बन्ध नहीं है।
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इस प्रकार प्रश्नगत परिवाद संधारणीय न होकर निरस्त होने योग्य है। विद्वान जिला आयोग ने इस बिन्दु पर विचार किए बिना ही अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर अवैधानिक निर्णय पारित किया है।
प्रत्यर्थी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता ने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता के उक्त तर्क का कोई खण्डन नहीं किया।
विद्वान जिला आयोग ने अपने निर्णय में यह निष्कर्ष दिया है कि प्रतिपक्षीगण 1 व 2 को भुगतान की गयी धनराशि रू0 63,000/- में से पैकेज के अनुसार देय धनराशि रू0 36,500/- को घटाने पर अपने वाली धनराशि रू0 26,500/- का अधिक भुगतान किया गया है।
प्रत्यर्थी बीमा कम्पनी की ओर से विद्वान जिला आयोग के उक्त निष्कर्ष/निर्णय के विरूद्ध कोई अपील प्रस्तुत नहीं की गई है। यथार्थ में अधिक धनराशि वसूलने का विवाद अपीलार्थीगण एवं बीमा कम्पनी के मध्य है न कि अपीलार्थीगण एवं प्रत्यर्थी/परिवादी के मध्य। ऐसी स्थिति में प्रश्नगत परिवाद संधारीण नहीं है।
उपरोक्त तथ्य एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय विधि विरूद्ध होने के कारण अपास्त होने योग्य है।
तदनुसार वर्तमान अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग (द्वितीय), बरेली द्वारा परिवाद सं0-113/2017 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 13-07-2018 अपास्त किया जाता है।
अपील व्यय उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
अपीलार्थीगण द्वारा यदि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत कोई धनराशि जमा की गई हो तो वह सम्पूर्ण धनराशि मय अर्जित ब्याज के अपलार्थीगण को विधि अनुसार शीघ्रातिशीघ्र वापस अदा कर दी जाए।
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उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
दिनांक :- 07-05-2024.
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-3.