Uttar Pradesh

StateCommission

A/2009/223

Transport Officer - Complainant(s)

Versus

Sudama Singh - Opp.Party(s)

Alok Singh

24 Mar 2023

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2009/223
( Date of Filing : 13 Feb 2009 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District Ballia)
 
1. Transport Officer
Ballia
...........Appellant(s)
Versus
1. Sudama Singh
Ballia
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vikas Saxena PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 24 Mar 2023
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0, लखनऊ

 (मौखिक)

अपील सं0- 223/2009

Assistant Regional Transport Officer, Bulandshahar.                                                                                   

                                         ……..Appellant

 

Versus

1. Sudama Singh, Son of Sri Shushil Singh, R/o Village Parsia, Pargana & District Balia.

2. Amit Kumar Singh, Son of Sri Vinod Kumar Singh, R/o Village Parsia, Pargana & District Balia.

3. Vivek Kumar Singh Son Sri Narendra Pal Singh R/o Village  Rabupura, Tahsil Zebar, District Gautam Budh Nagar.

                                                                     ……..Respondents

     

समक्ष:-

   मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

   मा0 श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य।

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित     : कोई नहीं।

                                                                                                                                                                                

प्रत्‍यर्थी सं0- 1 की ओर से उपस्थित : श्री कुमार सम्‍भव,

                                विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी सं0- 2 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।

प्रत्‍यर्थी सं0- 3 की ओर से उपस्थित : श्री संजय कुमार श्रीवास्‍तव,

                                विद्वान अधिवक्‍ता।

                             

दिनांक:- 24.03.2023

 

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उद्घोषित

निर्णय

1.          परिवाद सं0- 109/2007 सुदामा सिंह व एक अन्‍य बनाम सहायक सम्‍भागीय परिवहन अधिकारी व तीन अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता आयोग, बलिया द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 21.02.2007 के विरुद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गई है।

2.          जिला उपभोक्‍ता आयोग ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए निम्‍नलिखित आदेश पारित किया है:-

            ‘’विपक्षी सं0- 2 को आदेश दिया जाता है कि वह इस आदेश से 60 दिन में परिवादी को रू0 50,000/- 06 प्रतिशत ब्‍याज सहित (गाड़ी सीज अवधि 22 माह का ब्‍याज देते हुए) रू0 1,000/- वाद व्‍यय प्रदान करें।‘’         

3.          परिवाद पत्र में प्रत्‍यर्थी/परिवादी का संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि उसने वाहन सं0- यू0पी0 1362882 दि0 15.04.2004 को बुलन्‍दशहर से प्रत्‍यर्थी सं0- 3/विपक्षी सं0- 4 से क्रय करके अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 से रोड प‍रमिट बनवाकर बलिया वाहन को लाया, किन्‍तु विपक्षी सं0- 1 ने परमिट फर्जी (एन0ओ0सी0 फर्जी होने के कारण) बताया तथा गाड़ी जब्‍त कर ली और गाड़ी का दि0 03.04.2006 को तकनीकी मुआयन करके दि0 03.04.2006 को ही रिलीज की। जब कि गाड़ी जून 2004 से जब्‍त रही। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के अनुसार अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 सहायक सम्‍भागीय परिवहन अधिकारी, बुलन्‍दशहर के गलत पत्र एवं निर्देशन के कारण विपक्षी सं0- 1 सम्‍भागीय परिवहन अधिकारी, बलिया को दि0 23.07.2004 पत्र जारी करना पड़ा। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के अनुसार अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 के स्‍तर से लापरवाही, असंवैधानिक दायित्‍वों का निर्वहन करने में चूक एवं कानूनी नियमों का पालन न होने के कारण प्रत्‍यर्थी/परिवादी को घोर मानसिक एवं आर्थिक पीड़ा हुई है। इस आधार पर क्षतिपूर्ति की मांग की गई है। अत: अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गई है।     

4.          अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 ने अपने जवाब में कहा है कि एन0ओ0सी0 जाली व फर्जी थी, अत: उनसे परमिट फर्जी बन गया जिसक सूचना विपक्षीगण सं0- 1 व 3 को दी गई थी।

5.          विपक्षी सं0- 3 ने अपने जवाब में कहा है कि उन्‍हें विपक्षी सं0- 2 से पत्र मिला था कि एन0ओ0सी0 फर्जी है, उन्‍होंने एन0ओ0सी0 के सत्‍यापन होने तक अस्‍थायी परमिट जारी किया था।

6.          विपक्षी सं0- 4 ने अपने जवाब में कहा है कि एन0ओ0सी0 सही था। गाड़ी उसी ने परिवादी को बेची थी।

7.          हमने प्रत्‍यर्थी सं0- 1 के विद्वान अधिवक्‍ता श्री कुमार सम्‍भव तथा प्रत्‍यर्थी सं0- 3 के विद्वान अधिवक्‍ता श्री संजय कुमार श्रीवास्‍तव को सुना। प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों का सम्‍यक परिशीलन किया। अपीलार्थी और प्रत्‍यर्थी सं0- 2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।

8.          पत्रावली के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि स्‍वयं प्रत्‍यर्थी/परिवादी के अनुसार अपीलार्थी/विपक्षी सहायक सम्‍भागीय परिवहन अधिकारी द्वारा अपने राजकीय कार्यों में शिथिलता एवं अनियमितता करते हुए कार्यवाही की गई थी। प्रत्‍यर्थी/परिवादी एवं अपीलार्थी/विपक्षी सम्‍भागीय परिवहन अधिकारी के मध्‍य कोई भी उपभोक्‍ता एवं सेवा प्रदाता का सम्‍बन्‍ध परिवाद में नहीं दर्शाया गया है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा प्रतिफल के बदले न तो अपीलार्थी/विपक्षी सम्‍भागीय परिवहन अधिकारी से कोई वस्‍तु क्रय की गई है न ही कोई सेवा ली गई है जो स्‍वयं परिवाद से स्‍पष्‍ट होता है, जब कि धारा 2(1)(घ) में निम्‍नलिखित  प्रकार से उल्लिखित किया गया है:-

            ‘’(i) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है और भागत: वचन दिया गया है, या किसी आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन किसी माल का क्रय करता है और इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्‍यक्ति से भिन्‍न, जो ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है या भागत: वचन दिया गया है या आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन माल का क्रय करता है ऐसे माल का कोई प्रयोगकर्ता भी है, जब ऐसा प्रयोग ऐसे व्‍यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है किन्‍तु इसके अन्‍तर्गत ऐसा कोई व्‍यक्ति नहीं है जो ऐसे माल को पुन: विक्रय या किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए अभिप्राप्‍त करता है : और

            (ii) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है और भागत: वचन दिया गया है, या किसी आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को (भाड़े पर लेता है या उनका उपभोग करता है) और इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्‍यक्ति से भिन्‍न जो ऐसे किसी प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है और वचन दिया गया है और भागत: संदाय किया गया है और भागत: वचन दिया गया है या किसी आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को (भाड़े पर लेता है या उनका उपभोग करता है) ऐसी सेवाओं का कोई हिताधिकारी भी है जब ऐसी सेवाओं का उपयोग प्रथम वर्णित व्‍यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है, (किन्‍तु इसके अंतर्गत ऐसा व्‍यक्ति नहीं आता है जो किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए ऐसी सेवाएं प्राप्‍त करता है।‘’

9.          उपरोक्‍त परिभाषा के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा परिवाद में दर्शाये गए तथ्‍यों के अनुसार अपीलार्थी/विपक्षी सेवाप्रदाता की श्रेणी में नहीं आता है, न ही प्रत्‍यर्थी/परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में आता है। अत: उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत यह परिवाद पोषणीय नहीं है। जिला उपभोक्‍ता आयोग ने उचित प्रकार से गलत प्रक्रिया के तहत उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के दायरे के अंतर्गत अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 को निर्देश दिया है कि वे परिवादी को क्षतिपूर्ति प्रदान करें। प्रश्‍नगत निर्णय क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर दिया गया है एवं परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नही है। अत: प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश अपास्‍त किए जाने योग्‍य एवं परिवाद पोषणीयता के आधार पर निरस्‍त किए जाने योग्‍य है। तदनुसार अपील स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।                   

आदेश

10.         अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश अपास्‍त किया जाता है तथा परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय न होने के आधार पर निरस्‍त किया जाता है।        

अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

अपील में धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपीलार्थी द्वारा जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित विधिनुसार अपीलार्थी को वापस की जाए।    

            आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।   

 

        (सुधा उपाध्‍याय)                           (विकास सक्‍सेना)

            सदस्‍य                                   सदस्‍य  

 

शेर सिंह, आशु0, कोर्ट नं0- 3

 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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