राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
पुनरीक्षण संख्या-33/2001
1.सहकारी गन्ना विकास समिति छितौनी कार्यालय छितौनी पो0 छितौनी
जिला कुशीनगर।
2.सचिव सहकारी गन्ना विकास समिति छितौनी कार्यालय छितौनी पोस्ट
छितौनी जिला कुशीनगर। .........पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी
बनाम्
1.सुभाष पुत्र हरिकृष्ण
2.विन्ध्याचल पुत्र सरजू
3.राजनरायन पुत्र रामचन्द्र
साकिन पड़रही उर्फ पकड़ी तप्पा बटेसरा परगना सि0 जो0 पोस्ट
जटहा बाजार तहसील पड़रौना जिला कुशीनगर। ........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 गुप्ता, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :कोई नहीं।
दिनांक 08.04.2015
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
पत्रावली पेश हुई। इस संबंध में पुनरीक्षणकर्ता के अधिवक्ता की बहस सुनी गई। मूल अपील का निस्तारण किया जा चुका है। इस संबंध में मौजूदा निगरानी आदेश दिनांकित 30.03.01 जो इजरा वाद संख्या 181/2000 में जिला फोरम कुशीनगर द्वारा पारित किया गया है, के विरूद्ध किया गया है।
संक्षेप में केस तथ्य इस प्रकार हैं कि जिला फोरम के समक्ष इजराय केस में जिला फोरम द्वारा यह निर्णय लिखा गया है कि शिकायतकर्ता को सुना गया। विपक्षी दरख्वास्त देकर खिसक गया है। शिकायकर्ता के हक में जो निर्णय शिकायत संख्या 483/2000 में दि. 22.09.2000 को पारित हुआ उसका पालन विपक्षीगण ने नहीं किया है। सेवा की घोर कमी उनके पार्ट पर है। मामला स्पष्टत: धारा 27 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की परिधि में आता है एवं फोरम की राय में सहकारी गन्ना विकास समिति छितौनी के सचिव के विरूद्ध एक माह के साधारण कारावास का आदेश पारित किया जाना मुनासिब होगा। शिकायतकर्तागण विपक्षी सचिव का नाम खोलें, जिससे वारंट उनके
विरूद्ध निर्गत किया जा सके।
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इस संबंध में पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है और जिला फोरम के आदेश से स्पष्ट है कि सचिव जिनको एक महीने का कारावास की सजा दिया गया है वह व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में उपस्थित नहीं थे और उनका नाम भी जिला फोरम को ज्ञात नहीं था और इस प्रकार से पदनाम से केवल सजा किया गया है और किसी व्यक्ति विशेष का नाम आदेश में नहीं लिया गया है, बल्कि यही कहा गया है कि शिकायतकर्तागण विपक्षी सचिव का नाम खोलें, जिससे वांरट उनके विरूद्ध निर्गत किया जा सके। इस प्रकार से हम यह पाते हैं कि बिना समुचित सुनवाई का मौका देते हुए आदेश पारित किया गया है और विधि प्रक्रिया का पूर्ण रूप से पालन नहीं किया गया है और हम यह पाते हैं कि जिला फोरम का निर्णय दि. 30.03.2001 जो इजरा वाद संख्या 181/2000 में पारित किया गया है, वह निरस्त किए जाने योग्य है और पुनरीक्षण स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
पुनरीक्षण स्वीकार की जाती है तथा जिला मंच का निर्णय/आदेश दि. 30.03.2001 निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाए।
(राम चरन चौधरी) (राज कमल गुप्ता)
पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-5