(राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)
सुरक्षित
अपील संख्या 1653/2000
(जिला मंच उन्नाव द्वारा परिवाद सं0 710/1995 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 25/05/2000 के विरूद्ध)
1- यूनियन आफ इंडिया, द्वारा सचिव, डिपार्टमेंट आफ टेलीकम्यूनिकेशन न्यू दिल्ली।
2- मुख्य डाक पाल, मुख्य डाक घर, उन्नाव।
…अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
सुभाष चन्द्र शुक्ला, मैनेजर, संगम शिक्षा संस्थान 534 ए0बी0 नगर, उन्नाव
.........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:
1. मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य ।
2. मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री एस0पी0 सिंह के
सहयोगी डा0 उदयवीर सिंह।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 05-08-2015
मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
प्रस्तुत अपील, परिवाद सं0 710/1995 सुभाष चन्द्र शुक्ला बनाम मुख्य डाकपाल, मुख्य डाकघर जनपद उन्नाव के विरूद्ध जिला फोरम, उन्नाव द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 25/05/2000 से क्षुब्ध होकर योजित की गई है। प्रश्नगत परिवाद में जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया है कि ‘’ विपक्षी इस निर्णय की प्रति प्राप्त होने के 60 दिन के अंदर परिवादी को उक्त 10/- रूपये वापस करे और उन्हें क्षतिपूर्ति हेतु मु0 50/- रूपये एवं परिवाद व्यय हेतु मु0 50/- रूपये का भुगतान करे। उभय पक्षों को निर्णय की प्रति नि:शुल्क शीध्र आपूर्ति कराये।‘’
संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार है कि परिवादी/प्रत्यर्थी संगम शिक्षा संस्थान का प्रबंधक है और विद्यालय के मान्यता हेतु उसने 1500/- रूपये के दो छ: वर्षीय राष्ट्रीय बचत पत्र विपक्षी से दिनांक 10/01/89 को क्रय किया था, जिसमें से बचत पत्र सं0 6 एन. 538 ई. 209222 एक हजार रूपया का था और बचत पत्र सं0 19 डी. 783095 मु0 500/- रूपये का था। राष्ट्रीय बचत पत्रों की परिपक्वता के पश्चात जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, उन्नाव द्वारा
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बंधक से मुक्त करने के पश्चात, उसने अपीलार्थी/विपक्षी मुख्य डाक पाल, उन्नाव के पास भुगतान हेतु प्रस्तुत किया किन्तु अपीलार्थी/विपक्षी ने उसे मूल धनराशि पर देय ब्याज नहीं दिया और कहा कि विभागीय नियमानुसार ब्याज देय नहीं है और दोनों बचत पत्रों के मूलधन पर पांच-पांच रूपये काटकर, उसे रसीद दे दिया। इसलिए राष्ट्रीय बचत पत्रोंस पर देय ब्याज को प्राप्त करने के लिए परिवाद सं0 710/1995 संस्थित किया।
अपीलार्थी की ओर से दाखिल किये गये लिखित कथन में कहा गया है कि उक्त राष्ट्रीय बचत पत्र संगम शिक्षा संस्थान के नाम थे इसलिए बचत पत्र छठा निर्गम नियमावली 1981 के नियम 04 के अंतर्गत उन पर ब्याज देय नहीं था। वे दोनों बचत पत्र नियम विरूद्ध निर्गत हो गए थे इसलिए परिवादी/प्रत्यर्थी को उन दोनों राष्ट्रीय बचत पत्रों पर ब्याज देय नहीं है। अपीलार्थी ने परिवादी/प्रत्यर्थी से उन दोनों बचत पत्रों में से 10 रूपये की कटौती करने की बात को मिथ्या बताया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की बहस को विस्तारपूर्वक सुना गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। यह अपील लगभग 15 वर्षों से विचाराधीन है। प्रत्यर्थी को पंजीकृत नोटिस जारी किया गया। तदोपरान्त उस पर तामिला पर्याप्त मानते हुए अपील की सुनवाई नियमानुसार की गई।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया कि परिवादी/प्रत्यर्थी ने दिनांक 10/01/89 को राष्ट्रीय बचत पत्र सं0 6 एन. 538 ई. 209222 मु0 1,000/- रूपया (एक हजार रूपया) एवं बचत पत्र सं0 19 डी. 783095 मु0 500/- रूपया (पांच सौ रूपया) के अपने शिक्षण संस्थान के नाम क्रय किये थे। विभागीय नियमानुसार संस्थान के नाम राष्ट्रीय बचत पत्र क्रय नहीं किया जा सकता है। इसलिए मूल धनराशि पर ब्याज नहीं दिया गया। परिवादी/प्रत्यर्थी को मूलधन मु0 1500/ रूपया लौटा दिया गया है।
आधार अपील एवं संपूर्ण पत्रावली का परिशीलन से यह स्पष्ट होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने राष्ट्रीय बचत पत्र सं0 बचत पत्र सं0 6 एन. 538 ई. 209222 मु0 1,000/ रूपया (एक हजार रूपया) एवं बचत पत्र सं0 19 डी. 783095 मु0 500/- रूपया (पांच सौ रूपया) कुल मु0 15,00/ रूपया अपने शिक्षण संस्थान के नाम खरीदा था। नियमानुसार संस्थान के नाम राष्ट्रीय बचत पत्र जारी नहीं किया जा सकता है। इसी कारण उपरोक्त दोनों राष्ट्रीय बचत पत्रों के परिपक्व होने के उपरान्त जब परिवादी/प्रत्यर्थी उसके भुगतान हेतु
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अपीलार्थीगण के समक्ष प्रस्तुत किया गया तो अपीलार्थी डाक विभाग द्वारा मूल धनराशि उसे लौटाई गई परन्तु उस पर देय ब्याज देने से इन्कार किया गया। इस आदेश में किसी प्रकार का कोई विरोधाभास, असमन्जश्यता अथवा विधिक त्रुटि नहीं है। अधीनस्थ फोरम द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि अपीलार्थी ने उपरोक्त दोनों बचत पत्रों पर 5-5 रूपया कुल 10/- रूपये की कटौती की है। प्रत्यर्थी ने कटौती स्वरूप दी गई रसीद की छायाप्रति दाखिल की है। अधीनस्थ फोरम द्वारा अपीलार्थी को गलत रूप से वसूल किये गये मु0 10/ रूपये को लौटाने का आदेश दिया गया है और साथ ही साथ प्रत्यर्थी को मु0 50/ रूपये क्षतिपूर्ति, मु0 50/- रूपये वाद व्यय अदा करने हेतु आदेश पारित किया गया। इस आदेश में किसी प्रकार का कोई विधिक त्रुटि नहीं है। जिला फोरम ने सभी तथ्य एवं परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त जो निर्णय दिया है वह प्रत्येक दृष्टिकोण से विधि अनुरूप है। इसमें किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। अपील सारहीन पायी जाती है एवं तद्नुसार अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। उभय पक्ष अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे। उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध कराई जाय।
(आलोक कुमार बोस) (संजय कुमार)
पीठासीन सदस्य सदस्य
सुभाष चन्द्र आशु0 कोर्ट नं0 4