Uttar Pradesh

StateCommission

A/1176/2019

Phool Singh Yadav Advocate - Complainant(s)

Versus

State Of U.P. - Opp.Party(s)

K.K. Singh

10 Oct 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1176/2019
( Date of Filing : 03 Oct 2019 )
(Arisen out of Order Dated 30/04/2019 in Case No. C/21/2012 of District Fatehpur)
 
1. Phool Singh Yadav Advocate
S/O Late Ram Saran Singh R/O 84 Civil Lines Abu Nagar Road City and Distt. Fatehpur
...........Appellant(s)
Versus
1. State Of U.P.
Through Collector Fatehpur
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 10 Oct 2024
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

(सुरक्षित)

अपील संख्‍या-707/2019

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, फतेहपुर द्वारा परिवाद संख्‍या 21/2012 में पारित आदेश दिनांक 30.04.2019 के विरूद्ध)

डा0 दिलीप चौरसिया एम0एस0 (सर्जरी), एम0सीच0 (यूरो) पुत्र श्री गणेश प्रसाद चौरसिया निवासी- यूरो सर्जन (यूरोलॉजिस्‍ट) स्‍वरूप रानी हास्पिटल इलाहाबाद

                           ..............अपीलार्थी/विपक्षी सं07

बनाम

1. फूल सिंह यादव, एडवोकेट, पुत्र स्‍व0 राम शरण सिंह, निवासी-84 सिविल लाइन, आबूनगर रोड, जिला फतेहपुर

2. स्‍टेट आफ यू0पी0 कलेक्‍टर, फतेहपुर

3. डा0 विकास त्रिपाठी ई0एम0ओ0, जिला चिकित्‍सालय फतेहपुर

4. श्रीमती तारा देवी, नर्स जिला चिकित्‍सालय फतेहपुर

5. राज बहादुर, वार्ड बॉय, जिला चिकित्‍सालय फतेहपुर

6. अनिल कुमार, सफाई कर्मी, जिला चिकित्‍सालय फतेहपुर

7. श्री सुनील कुमार उत्‍तम, सर्जन, श्‍याम नर्सिंग होम, 400/761 सिविल लाइन, फतेहपुर

8. डा0 वी0 दिलीप चौरसिया संचालित बाला जी इंस्‍टीट्यट आफ रीनाल डिसीज स्थित 7ए/8ए/बी पन्‍ना लाल रोड, इलाहाबाद                                                  

         ..........प्रत्‍यर्थीगण/परिवादी व विपक्षी सं01,2,3,4,5,6,8

एवं

अपील संख्‍या-1421/2019

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, फतेहपुर द्वारा परिवाद संख्‍या 21/2012 में पारित आदेश दिनांक 30.04.2019 के विरूद्ध)

डा0 वि‍कास त्रिपाठी, पुत्र श्री सुभाष त्रिपाठी, निवासी- 230-ए/93, टैगोर टाउन, इलाहाबाद

                       ....................अपीलार्थी/विपक्षी सं02

बनाम

फूल सिंह यादव, एडवोकेट, पुत्र स्‍व0 राम शरण सिंह, निवासी-84 सिविल लाइंस, आबूनगर रोड, जिला फतेहपुर                                                

                          ........................प्रत्‍यर्थी/परिवादी

एवं

 

 

 

-2-

अपील संख्‍या-1176/2019

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, फतेहपुर द्वारा परिवाद संख्‍या 21/2012 में पारित आदेश दिनांक 30.04.2019 के विरूद्ध)

फूल सिंह यादव, एडवोकेट, पुत्र स्‍व0 राम शरण सिंह, निवासी-84 सिविल लाइंस, आबू नगर रोड, शहर व जिला-फतेहपुर

                               ..............अपीलार्थी/परिवादी

बनाम

1. स्‍टेट आफ यू0पी0 द्वारा कलेक्‍टर, फतेहपुर

2. डा0 विकास त्रिपाठी, ई0एम0ओ0, जिला चिकित्‍सालय, फतेहपुर

3. श्रीमती तारा देवी, नर्स, जिला चिकित्‍सालय, फतेहपुर

4. राज बहादुर, वार्ड बॉय, जिला चिकित्‍सालय, फतेहपुर

5. अनिल कुमार, सफाई कर्मी, जिला चिकित्‍सालय, फतेहपुर

6. डा0 सुनील कुमार उत्‍तम, सर्जन, श्‍याम नर्सिंग होम, 400/761, सिविल लाइन, फतेहपुर

7. डा0 दिलीप चौरसिया, सर्जन, बाला जी इंस्‍टीट्यूट आफ रीनाल डिसीज, पन्‍नालाल रोड, इलाहाबाद

8. डा0 वी0 दिलीप प्रोपराइटर एण्‍ड मैनेजर नर्सिंग होम बाला जी, इंस्‍टीट्यट आफ रीनाल डिसीज, पन्‍नालाल रोड, इलाहाबाद                                                    

                      ......................प्रत्‍यर्थीगण/विपक्षीगण

समक्ष:-

1. माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष।

2. माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

परिवादी की ओर से उपस्थित : स्‍वयं एवं श्री के0के0 सिंह,

                           विद्वान अधिवक्‍ता

विपक्षी सं0 2 की ओर से उपस्थित : श्री आर0पी0एस0 चौहान एवं                          

                               श्री राजीव कृष्‍ण पाण्‍डेय,

                               विद्वान अधिवक्‍ता द्वय

विपक्षी सं0 7 की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा,

                               विद्वान अधिवक्‍ता

दिनांक: 10.10.2024

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

परिवाद संख्‍या-21/2012 फूल सिंह यादव बनाम राज्‍य उ0प्र0

 

 

 

-3-

द्वारा कलेक्‍टर फतेहपुर व 07 अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता आयोग, फतेहपुर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 30.04.2019 के विरूद्ध उपरोक्‍त अपील संख्‍या-707/2019 डा0 दिलीप चौरसिया बनाम फूल सिंह यादव व 07 अन्‍य परिवाद के विपक्षी संख्‍या-7 डा0 दिलीप चौरसिया की ओर से एवं उपरोक्‍त अपील संख्‍या-1421/2019 डा0 विकास त्रिपाठी बनाम फूल सिंह यादव परिवाद के विपक्षी संख्‍या-2 डा0 विकास त्रिपाठी की ओर से एवं उपरोक्‍त  अपील संख्‍या-1176/2019 फूल सिंह यादव बनाम स्‍टेट आफ यू0पी0 द्वारा कलेक्‍टर, फतेहपुर व 07 अन्‍य परिवाद के परिवादी फूल सिंह यादव की ओर से राज्‍य आयोग के समक्ष योजित की गयी है।

प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश के द्वारा जिला उपभोक्‍ता आयोग  ने परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है:-

''परिवादी का परिवाद विपक्षी सं0-2 डा0 विकास त्रिपाठी, ई.एम.ओ. जिला चिकित्‍सालय, फतेहपुर व विपक्षी सं0-7 डा0 दिलीप चौरसिया, सर्जन, बालाजी इंस्‍टीट्यूट आफ रीनाल डिसीज पन्‍नालाल रोड, इलाहाबाद के विरूद्ध आंशिक रूप से स्‍वीकार किया जाता है एवं विपक्षी सं0-1, 3, 4, 5, 6 व 8 के विरूद्ध खारिज किया जाता है। आदेशित किया जाता है कि विपक्षी सं0-2 डा0 विकास त्रिपाठी मु0 1,00,000/-रू0 (रूपये एक लाख) व विपक्षी सं0-7 डा0 दिलीप चौरसिया, सर्जन मु0 5,00,000/-रू0 (रूपये पॉंच लाख) इलाज में हुयी लापरवाही के कारण क्षतिपूर्ति परिवादी को परिवाद दर्ज रजिस्‍टर होने के दिनांक से अदायगी के दिनांक तक 7 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज की दर से जोड़कर निर्णय की तिथि से एक माह के अन्‍दर परिवादी को अदा करें।''

विपक्षी संख्‍या-7 डा0 दिलीप चौरसिया ने उपरोक्‍त अपील संख्‍या-707/2019 एवं विपक्षी संख्‍या-2  डा0  विकास  त्रिपाठी  ने

 

 

 

 

-4-

उपरोक्‍त अपील संख्‍या-1421/2019 में जिला उपभोक्‍ता  आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्‍त किये जाने का अनुरोध किया है, जबकि परिवादी ने उपरोक्‍त अपील संख्‍या-1176/2019 में जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा प्रदान किए गए अनुतोष में बढ़ोत्‍तरी किए जाने का अनुरोध किया है।

     उपरोक्‍त तीनों अपीलों की अन्तिम सुनवाई की तिथि पर परिवादी की ओर से परिवादी श्री फूल सिंह यादव स्‍वयं एवं उनके विद्वान अधिवक्‍ता श्री के0‍के0 सिंह, विपक्षी संख्‍या-2 डा0 विकास त्रिपाठी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता द्वय श्री आर0पी0एस0 चौहान एवं श्री राजीव कृष्‍ण पाण्‍डेय और विपक्षी संख्‍या-7 डा0 दिलीप चौरसिया की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री राजेश चड्ढा उपस्थित आये हैं।

हमने उभय पक्ष को तीनों अपीलों में सुना और प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया।

संक्षेप में वाद के तथ्‍य इस प्रकार हैं कि दिनांक 27.06.2010 को समय 1 बजे रात्रि में अचानक परिवादी को पेशाब करने में दर्द हुआ और पेशाब निकलना बन्द हो गया तो परिवादी अपने साथी दिनेश सिंह एडवोकेट को साथ लेकर जिला चिकित्सालय करीब             3 बजे रात्रि गये और उनके साथ में गजोधर सिंह भी गये। जिला चिकित्सालय में आपातकालीन कक्ष में सफाई कर्मी अनिल कुमार मिला। अनिल कुमार द्वारा डाक्टर विकास त्रिपाठी, जो सो रहे थे, को आपातकालीन कक्ष में बुला कर लाया और मु० 40/-रू० भर्ती फीस माँगा गया। परिवादी द्वारा भर्ती फीस जमा करके पर्ची बनवाई गयी तथा तारा देवी नर्स के पास पुरूष वार्ड में भेज दिया और डा० विकास त्रिपाठी पुनः अपने कमरे में सोने चले गये।

राज बहादुर वार्ड बॉय व सफाई कर्मी अनिल कुमार ने पेशाब नली में लापरवाही व तेजी से कैथेटर को कई बार डाला, जिससे पेशाब नली में  घाव  होकर  खून  बहने  लगा  तो  परिवादी  ने

 

 

 

-5-

चिकित्‍सक को बुलाने के लिये कहा। जब डा० विकास त्रिपाठी आये तो नाराज होकर उन्‍होंने कैथेटर नली में डाला और फुला दिया, जिससे परिवादी की पेशाब नली में काफी घाव हो गया, खून बहने लगा और खून से परिवादी का अण्डरवियर, पैजामा व कुर्ता भीग गया और तेजी से लगातार खून बहता रहा। परिवादी व उसके साथियों द्वारा जब डा० विकास त्रिपाठी से पेशाब सिरिंज से निकालने के लिये कहा तो उन्होंने कहा कि पेशाब मैं नहीं निकालूँगा और न इलाज करूँगा और यह कहा कि आप यहाँ से जाकर किसी नर्सिंग होम में अपना इलाज करवा सकते हैं। तब परिवादी मजबूर होकर सुनील कुमार उत्तम के श्याम नर्सिंग होम में 5 बजे सुबह भर्ती हुआ।

श्याभ नर्सिंग होम में परिवादी का पेशाब सिरिंज से निकाला गया और सुनील कुमार उत्तम द्वारा परिवादी को आगे के इलाज के लिए डा० दिलीप चौरसिया, जो स्वरूप रानी हास्पिटल, इलाहाबाद में यूरो सर्जन के पद पर कार्यरत हैं, को दिखाने की सलाह दी। तब परिवादी डा० दिलीप चौरसिया के पास दिनेश सिंह एडवोकेट व गजोधर सिंह को साथ लेकर दिनांक 27.06.2010 को करीब 3 बजे दिन में उनके बालाजी नर्सिंग होम बालाजी इंस्टीट्यूट आफ रीनाल डिसीज पन्नालाल रोड, इलाहाबाद गया। वहाँ डा0 दिलीप चौरसिया ने परिवादी को देख कर अल्ट्रासाउण्ड, एक्सरे कराने के लिये कृति स्कैनिंग सेंटर इलाहाबाद भेजा और जाँच कराकर जॉच रिपोर्ट               डा० दिलीप चौरसिया को दिखाया तो डा0 दिलीप चौरसिया द्वारा आपरेशन के लिये अपनी फीस मु० 16,000/- रू० लिया और ठीक करने का भरोसा दिया, परन्तु बिना सुगर की जाँच कराये परिवादी का आपरेशन दिनांक 27.06.2010 को शाम 7 बजे दूरबीन विधि से करके पेशाब नली में कैथेटर डाल दिया। दिनांक 29.06.2010 को डा0 दिलीप चौरसिया ने बालाजी नर्सिंग होम में चेकअप करके परिवादी को डिस्चार्ज कर दिया तथा परिवादी घर वापस आ गया।

 

 

 

-6-

परिवादी पुनः दिनांक 06.07.2010 को बालाजी नर्सिंग होम दिखाने के लिये गया तो वहाँ उपरोक्‍त डाक्टर दिलीप चौरसिया ने परिवादी का कैथेटर अपने अकुशल नौकर से निकालने के लिये कहा तो उसने बड़ी लापरवाही व तेजी से कैथेटर खींच लिया, जिससे परिवादी को असहनीय दर्द व पीड़ा हुई और परिवादी की पेशाब नली में घाव होने से पुनः पेशाब बन्द हो गयी और पेशाब के रास्‍ते से खून बहने लगा।

तब डा० दिलीप चौरसिया ने मु० 555/-रू० का दवा का बिल बनाकर दिया, परन्तु उन दवाओं से कोई लाभ नहीं हुआ। पेशाब नली में सूजन बढ़ने लगी और दर्द बराबर बना रहा। परिवादी द्वारा दिनांक 12.07.2010 को डा० दिलीप चौरसिया को पुन: बाला जी नर्सिंग होम में दिखाया तब पेट में सूजन बढ़ने व दर्द के बारे में बताया तो उन्होंने डा० सुनील उत्तम, सर्जन, श्याम नर्सिंग होम, फतेहपुर में दिखाकर इलाज कराने के लिये कहा तो            डा० सुनील उत्तम ने डा० दिलीप चौरसिया को परिवादी के पेट में इन्‍फेक्‍शन व फाइलेरिया बढ़ने का कारण फोन पर बताया, तब परिवादी को डा० दिलीप चौरसिया ने पुनः बुलाया और दवा देकर परिवादी को घर भेज दिया, परन्तु उससे परिवादी को कोई लाभ नहीं हुआ और परिवादी का बुखार व दर्द तेजी से बढ़ने लगा। तब उन्होंने दिनांक 19.07.2010 को बालाजी नर्सिंग होम पुनः बुलाया और परिवादी जब पुनः डा० दिलीप चौरसिया के पास गया तो डा०  दिलीप चौरसिया ने परिवादी को देखकर मु0 1,694/-रू0 की दवा देकर वापस कर दिया।

परिवादी ने दिनांक 22.07.2010 को डा० दिलीप चौरसिया को फोन से पुनः बताया कि पेट में सूजन बढ़ रही है और वह उठ बैठ नहीं पा रहा है तब डा० दिलीप चौरसिया ने परिवादी को किसी फिजीशियन को दिखाने के लिए कहा। तब परिवादी दिनांक 28.07.2010 को अपनी पत्‍नी उर्मिला देवी व दिनेश सिंह एडवोकेट

 

 

 

-7-

के साथ नई दिल्ली गया और वहॉं पर सर गंगाराम हास्पिटल नई दिल्ली में दिनांक 29.07.2010 को भर्ती हुआ और वहाँ के डाक्टरों ने काफी गहनता से जाँच करा कर महँगा इलाज किया तथा उक्‍त  अस्‍पताल में परिवादी दिनांक 06.08.2010 तक भर्ती रहा तथा परिवादी के पेट में जो डा० दिलीप चौरसिया की अनुचित चिकित्‍सा  पद्धति द्वारा इन्‍फेक्‍शन, मवाद पैदा किया गया था उसकी जाँच व इलाज दिनांक 31.07.2010 को डाक्टरों ने परिवादी के पेट व अण्डकोष में पाँच जगह आपरेशन करके करीब आधा लीटर से अधिक मवाद निकाला। तब परिवादी का बुखार व दर्द समाप्त हो पाया। नई दिल्‍ली के सर गंगाराम अस्‍पताल में परिवादी का इलाज में लगभग 1,50,000/-रू0 खर्च हुआ और इसके बाद परिवादी डिस्चार्ज होकर दिनांक 06.08.2010 को डा० राममनोहर लोहिया हास्पिटल नई दिल्ली में भर्ती हुआ और वहाँ इलाज कराया तथा दिनांक 17.08.2010 को डिस्चार्ज हुआ। इसके बाद डा० राममनोहर लोहिया अस्पताल नई दिल्ली का इलाज लगातार चल रहा है। तदनुसार परिवादी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख परिवाद योजित करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।

जिला उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष विपक्षी संख्‍या-1 की ओर से जवाबदावा प्रस्तुत किया गया तथा मुख्‍य रूप से कथन किया गया कि परिवाद अवैधानिक व अस्पष्ट है तथा पोषणीय नहीं है। परिवाद जिला आयोग में चलने योग्य नहीं है। परिवाद में अनावश्यक व अवैधानिक पक्षकार बनाये जाने का दोष है।

जिला उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष विपक्षी संख्‍या-2 डा0 विकास त्रिपाठी की ओर से जवाबदावा प्रस्तुत किया गया तथा मुख्‍य रूप से कथन किया गया कि परिवादी जिला चिकित्सालय दिनांक 27.06.2010 को प्रातः 4 बजे आये थे और पूर्ण सतर्कता के साथ उनकी चिकित्सा प्रारम्भ किया गया। परिवादी  को  पेशाब  न

 

 

 

-8-

होने की कठिनाई थी, इसलिये कैथेटर डालने का प्रयास किया गया, परन्तु वह सूजन के कारण जा नहीं पा रहा था। पेशाब के रास्ते दो-तीन बूँद खून आया, इसलिए कैथेटर डालने का काम रोक दिया गया और मामले की गम्भीरता को देखते हुए विपक्षी संख्‍या-2 ने सर्जन से बात किया और परिवादी जिला चिकित्सालय से अपने सहयोगियों के साथ बिना सूचना के चले गये। ड्यूटी के दौरान सोने की बात पूर्णतया झूठ व गनगढ़न्त है। विपक्षी संख्‍या-2 ने परिवादी को किसी भी प्राइवेट नर्सिंग होम जाने या इलाज कराने की कोई सलाह नहीं दिया है, वह स्वयं अपनी इच्छा से चले गये। विपक्षी संख्‍या-2 द्वारा चिकित्सा में कोई लापरवाही नहीं की गयी है। विभागीय जांच में विपक्षी संख्‍या-2 को दोषी नहीं पाया गया। नया चिकित्सक होने की वजह से भविष्य में सचेत रहने को कहा गया है। विपक्षी सं0-2 व 3 सरकारी कर्मचारी हैं। परिवादी से निर्धारित शुल्क ही लिया गया था। परिवाद निरस्‍त होने योग्‍य है।

जिला उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष विपक्षी संख्‍या-3 श्रीमती तारा देवी, नर्स, जिला चिकित्सालय फतेहपुर द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया तथा मुख्‍य रूप से यह कथन किया गया कि डा0 विकास त्रिपाठी ड्यूटी में पूरे समय मौजूद रहे। विपक्षी संख्‍या-3 द्वारा कोई रूपया परिवादी से नहीं माँगा गया, केवल कैथेटर की फीस मु०68/-रू० मांगी गयी। अन्य कोई पैसा नहीं लिया गया। कैथेटर डा० विकास त्रिपाठी ने डाला था। विपक्षी संख्‍या-3 से कोई लेना देना नहीं है। विभागीय जाँच में विपक्षी संख्‍या-3 को दोषी नहीं पाया गया। केवल वार्ड बॉय का स्थानान्तरण हुआ था, जो कि एक विभागीय प्रक्रिया है। परिवाद निरस्‍त होने योग्‍य है।

जिला उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष विपक्षी संख्‍या-4 राजबहादुर वार्ड बॉय द्वारा जवाबदावा प्रस्‍तुत किया गया तथा मुख्‍य  रूप से यह कथन किया गया कि परिवादी को पेशाब बन्द होने के कारण पेट में दर्द था। विपक्षी संख्‍या-4  ने  विपक्षी  संख्‍या-3  के

 

 

 

-9-

कहने पर बेड पर चादर वगैरह बिछवाया था। इसके अतिरिक्त प्रार्थी को कोई जानकारी नहीं है। विपक्षी संख्‍या-4 मात्र वार्ड बॉय के पद पर कार्यरत है। उसने किसी प्रकार का कैथेटर डालने या इलाज करने का कोई कार्य नहीं किया है। कैथेटर डालना व इलाज करना डाक्टर का कार्य है।

जिला उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष विपक्षी संख्‍या-5 अनिल कुमार, सफाई कर्मी की ओर से कोई लिखित जवाबदावा दाखिल नहीं किया गया।

जिला उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष विपक्षी संख्‍या-6                डा० सुनील कुमार उत्तम (सर्जन) की ओर से जवाबदावा प्रस्तुत किया गया तथा परिवाद में किये गये कथनों से इन्कार किया गया। विपक्षी संख्‍या-6 द्वारा सिरिन्ज से पेशाब निकाला जाना स्वीकार किया गया।

विपक्षी संख्‍या-6 का कथन है कि परिवादी से कोई शुल्क नहीं लिया गया। उसको विधि विरूद्ध गलत तरीके से पक्षकार बनाया गया है। परिवादी जब सुबह करीब 5 बजे उसके यहाँ आया तब दर्द से कराह रहा था। यूरीन ब्लैडर में पेशाब भरे होने के कारण पेट फूला हुआ था। परिवादी पूर्व से परिचित थे, इसलिये विपक्षी  संख्‍या-6 सूचना पाकर अपने आवास से तुरन्त परिवादी को देखने आया और पूर्ण निष्ठा से बिना किसी शुल्क के विगो व सिरिन्‍ज के द्वारा पेशाब निकाल कर परिवादी को तकलीफ से राहत दिलाई और समझाया कि यह यूरो सर्जन का केस है, किसी बड़े अस्पताल में दिखायें। परिवादी की सुविधा के लिये अपने लेटर पैड में "Higher Centre" के लिये लेटर लिख दिया। परिवादी द्वारा सुझाव मांगे जाने पर डा० दिलीप चौरसिया के यहाँ जाकर इलाज करवाने की सलाह दी गयी। विपक्षी संख्‍या-6 द्वारा इलाज में कोई लापरवाही नहीं की गयी, उसके विरूद्ध परिवाद निरस्‍त होने योग्‍य है।

जिला  उपभोक्‍ता  आयोग  के  समक्ष   विपक्षी   संख्‍या-7                      

 

 

 

-10-

डा0 दिलीप चौरसिया एवं विपक्षी संख्‍या-8 डा0 वी0 दिलीप द्वारा जवाबदावा दाखिल किया गया तथा मुख्‍य रूप से यह कथन किया गया कि परिवाद की सुनवाई व निस्तारण का अधिकार जिला फोरम को प्राप्‍त नहीं है तथा परिवाद पोषणीय नहीं है। परिवादी ने अपने अधिवक्‍ता होने, सक्रिय राजनीति से जुड़े होने का अनुचित लाभ लेते हुए प्रश्‍नगत परिवाद अत्यन्त गलत, बनावटी एवं अवैधानिक अभिकथनों के साथ दाखिल किया है, जो निरस्त होने योग्य है।

परिवादी को फतेहपुर जिला के सर्जन डा0 सुनील उत्‍तम द्वारा इलाहाबाद उपचार एवं परामर्श हेतु भेजा गया था। इसके पूर्व परिवादी फतेहपुर में अपना उपचार करवा रहा था। रोग की गम्भीरता को देखते हुए फतेहपुर के डाक्टर द्वारा इलाहाबाद के नर्सिंग होम के डाक्टर विपक्षी संख्‍या-7 के पास भेजा गया था और डा० सुनील कुमार उत्तम ने भी टेलीफोन के द्वारा अनुरोध किया था। विपक्षी संख्‍या-7 स्वरूप रानी चिकित्सालय, इलाहाबाद में चिकित्‍सक के पद पर कार्यरत है। दिनांक 27.06.2010 को रविवार का दिन था। अवकाश होने के कारण विपक्षी ने परिवादी को दूसरे दिन अस्पताल में दिखाने को कहा, परन्तु डा० सुनील कमार उत्तम के विशेष आग्रह पर तथा परिवादी की बीमारी की गम्भीरता को देखते हुए परिवादी की जान बचाने के उद्देश्‍य से परिवादी से विपक्षी संख्‍या-7 ने कोई पारिश्रमिक नहीं लिया व विपक्षी संख्‍या-8, जो प्राइवेट नर्सिंग होम है, उसे उचित व्यय अदा किया गया। विपक्षी संख्‍या-7 द्वारा परिवादी को रक्त परीक्षण हेतु निर्देशित किया गया, परन्तु परिवादी फतेहपुर से रक्त्त शुगर का परीक्षण करवा कर रिपोर्ट लेकर आया था। उसी रिपोर्ट के आधार पर परिवादी की शल्य चिकित्सा सफलतापूर्वक की गयी। परिवादी की जान बचाने एवं रोग की गम्भीरता को देखते हुए स्टैण्डर्ड मानक के द्वारा पूरी सावधानी व सफाई से नि:शुल्‍क बालाजी  इन्‍स्‍टीट्यूट  आफ  रीनल  डिसीज

 

 

 

-11-

इलाहाबाद के शल्‍य कक्ष में शल्‍य चिकित्‍सा सफलतापूर्वक किया गया और परिवादी के इलाज में कोई लापरवाही नहीं की गयी। अत: परिवाद निरस्‍त होने योग्‍य है।

हमारे द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त प्रपत्रों का सम्‍यक परिशीलन किया गया।

परिवादी ने विपक्षीगण के विरूद्ध यह आरोप लगाया है कि विपक्षी संख्‍या-2 डा0 विकास त्रिपाठी जिला अस्‍पताल, फतेहपुर में वार्ड बॉय राज बहादुर और सफाई कर्मी अनिल कुमार से पेशाब की नली में कैथेटर डालने के लिए सुपुर्द कर दिया एवं स्‍वयं चिकित्‍सक

का उत्‍तरदायित्‍व न निभाकर चिकित्‍सीय लापरवाही दर्शायी। इसके अतिरिक्‍त विपक्षी संख्‍या-6 डा0 सुनील कुमार उत्‍तम, सर्जन, श्‍याम नर्सिंग होम में पुन: श्री सुनील कुमार द्वारा सिरिंज से पेशाब निकालने का आक्षेप लगाया है। इसके उपरान्‍त विपक्षी संख्‍या-7 डा0 दिलीप चौरसिया द्वारा बालाजी इंस्‍टीट्यूट आफ रीनाल डिसीज, जो उनकी पत्‍नी वी0 दिलीप के द्वारा चलाया जा रहा था/है, में असावधानी के साथ परिवादी का आपरेशन करने का आक्षेप लगाया है, जिसके कारण इंफेक्‍शन व मवाद पैदा हुआ और परिवादी का शरीर कमजोर हुआ तथा उसके जीवन को खतरा उत्‍पन्‍न हुआ। इसके अतिरिक्‍त परिवादी को बहुत महंगा इलाज दिल्‍ली जाकर करवाना पड़ा।

जहॉं तक विपक्षी संख्‍या-2 डा0 विकास त्रिपाठी का प्रश्‍न है उनके द्वारा अपील संख्‍या-1421/2019 प्रस्‍तुत की गयी है एवं स्‍वयं को उत्‍तर‍दायित्‍व से उन्‍मुक्‍त करने की प्रार्थना की गयी है। इस संबंध में यह दृष्‍टनीय है कि डा0 विकास त्रिपाठी द्वारा जिला अस्‍पताल, फतेहपुर में इलाज करना दर्शाया है, जिसे परिवादी ने स्‍वयं अभिकथित किया है। चूँकि इलाज जिला अस्‍पताल में स्‍वयं परिवादी ने स्‍वीकार किया है एवं स्‍वीकृत रूप से जिला अस्‍पताल में इलाज हेतु प्रतिफल नहीं लिया गया, अत: जिला अस्‍पताल में किए

 

 

 

 

-12-

गए इलाज के विरूद्ध क्षतिपूर्ति का दावा स्‍थापित विधि सिद्धान्‍त के अनुसार उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत पोषणीय नहीं है। इस संबंध में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित निर्णय इण्डियन मेडिकल ऐसोसिएशन प्रति वी0पी0 शान्‍था, प्रकाशित III (1995) CPJ 1 (SC) का उल्‍लेख करना उचित होगा, जिसमें      माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि जिस अस्‍पताल में इलाज के लिए मरीज से विशि‍ष्‍ट शुल्‍क नहीं लिया जाता है, उसे उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत सेवा की परिभाषा में नहीं माना जा सकता है और इस कारण परिवादी एवं विपक्षी के मध्‍य सेवाप्रदाता एवं उपभोक्‍ता के संबंध स्‍थापित नहीं होते हैं एवं नि:शुल्‍क इलाज के विरूद्ध क्षतिपूर्ति हेतु परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत पोषणीय नहीं है। अत: माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के उपरोक्‍त निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए डा0 विकास त्रिपाठी के विरूद्ध प्रस्‍तुत परिवाद पोषणीय नहीं माना जा सकता है एवं इस आधार पर डा0 विकास त्रिपाठी को इस मामले में उन्‍मुक्‍त किया जाता है। परिवादी नियमित एवं उपयुक्‍त न्‍यायालय में अपना वाद प्रस्‍तुत करने के लिए स्‍वतंत्र है। अत: डा0 विकास त्रिपाठी की अपील संख्‍या-1421/2019 स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है। परिवादी को उपयुक्‍त न्‍यायालय में अपना वाद प्रस्‍तुत करने की स्‍वतंत्रता देते हुए डा0 विकास त्रिपाठी को क्षतिपूर्ति के उत्‍तरदायित्‍व से उन्‍मुक्‍त किया जाना उचित है।

     जहॉं तक विपक्षी संख्‍या-6 डा0 सुनील कुमार उत्‍तम का प्रश्‍न है, परिवाद पत्र के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि डा0 सुनील कुमार उत्‍तम के विरूद्ध विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने निर्णय पारित नहीं किया है। विपक्षी संख्‍या-2 डा0 विकास त्रिपाठी एवं विपक्षी संख्‍या-7 डा0 दिलीप चौरसिया के विरूद्ध क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया गया है।

जहॉं तक विपक्षी संख्‍या-7  डा0  दिलीप  चौरसिया,  सर्जन,

 

 

 

 

-13-

बाला जी इंस्‍टीट्यूट आफ रीनाल डिसीज के इलाज का प्रश्‍न है, उनके विरूद्ध यह आक्षेप है कि उन्‍होंने मरीज की ब्‍लड शुगर की जांच किए बिना मरीज के प्रोस्‍टेट की सर्जरी की, जबकि सर्जरी के पहले यह आवश्‍यक था कि रक्‍त शर्करा की जांच करते हुए इसका इलाज किया जाता, जिससे रक्‍त शर्करा बढ़े होने की दशा में उसका चिकित्‍सीय प्रबंधन कर लिया जाता तथा मरीज के शरीर पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। इस तथ्‍य को सी0एम0ओ0 की जांच रिपोर्ट दिनांकित 09.01.2012 में उद्धरित भी किया गया है, जिसके पृष्‍ठ-2 पर अंकित है कि, ''उपलब्‍ध अभिलेखों में दिनांक 23.07.2010 को केयर पैथोलाजी, फतेहपुर की जांच रिपोर्ट में  RANDOM  BLOOD SUGAR 290 mg% दिनांक 24.07.2010 को BLOOD SUGAR FASTING 228 mg% & BLOOD SUGAR P.P. 309 mg% दिनांक 28.07.2010 को BLOOD SUGAR FASTING 192 mg% & BLOOD SUGAR P.P. 206 mg% दर्शित है जिससे स्‍पष्‍ट होता है कि सम्‍बन्धित मरीज का रक्‍त सर्करा बढ़ा हुआ था परन्‍तु इलाज का कोई साक्ष्‍य उपलब्‍ध नही कराया गया है।''  

उल्‍लेखनीय है कि डा0 दिलीप चौरसिया द्वारा अपने शपथ पत्र के प्रस्‍तर-7 में इस तथ्‍य को स्‍वीकार किया है कि मरीज श्री फूल सिंह यादव बढ़े हुए ब्‍लड शुगर के साथ उनके समक्ष आए थे। प्रस्‍तर-7 में यह कहा गया है कि श्री फूल सिंह यादव की रक्‍त शर्करा ग्‍लूकोमीटर से लिया गया था, जो कि 115 mg% थी। उक्‍त  115 mg% सामान्‍य तौर पर बढ़ी हुई रक्‍त शर्करा नहीं कही जा सकती। इस परिणाम का कोई दस्‍तावेजी साक्ष्‍य या ब्‍लड रिपोर्ट  डा0 दिलीप चौरसिया द्वारा नहीं दिया गया है, जबकि चिकित्‍सीय जांच आख्‍या दिनांकित 09.01.2012 में केयर पैथोलाजी फतेहपुर में मरीज की रक्‍त शर्करा 290 mg% दिनांक 24.07.2010 को तथा फास्टिंग 228 mg% दर्शायी गयी  है।  इसके  अतिरिक्‍त  पी0पी0   

 

 

 

 

 

-14-

309 mg% दिनांक 28.07.2010 को तथा फास्टिंग 192 mg% दर्शायी गयी है। इसके साथ पी0पी0 206 mg% दर्शायी गयी है, जिससे स्‍पष्‍ट होता है कि मरीज की रक्‍त शर्करा लगातार बढ़ी हुई थी।

जहॉं तक डा0 दिलीप चौरसिया द्वारा किया गया यह दावा कि उनके द्वारा ग्‍लूकोमीटर से ब्‍लड शुगर नापी गयी थी और जो मात्र 115 mg% पायी गयी थी, इस संबंध में कोई भी दस्‍तावेज प्रस्‍तुत/उपलब्‍ध नहीं है, बल्कि बाला जी इंस्‍टीट्यूट आफ रीनाल डिसीज की डिस्‍चार्ज समरी अभिलेख पर है, जो स्‍वयं डा0 दिलीप चौरसिया की ओर से अपने अपील मेमो के साथ पृष्‍ठ संख्‍या-71 पर प्रस्‍तुत की गयी है, जिसमें मरीज फूल सिंह यादव का दिनांक 27.06.2010 से दिनांक 29.06.2010 तक उक्‍त हास्पिटल में रहना दर्शाया गया है, किन्‍तु इसमें कहीं भी मरीज की रक्‍त शर्करा की जॉंच के परिणाम का उल्‍लेख नहीं है। इस संबंध में पुन: चिकित्‍सीय जांच आख्‍या दिनांकित 09.01.2012 का उल्‍लेख करना होगा, जिसके अन्‍त में ''सारांश'' में यह अंकित किया गया है कि, ''अध्‍यक्ष सहित समस्‍त विशेषज्ञ चिकित्‍सक सदस्‍यों ने एक मत से राय प्रस्‍तुत की जोकि निम्‍नवत् है:-

मरीज वास्‍तव में मधुमेह का रोगी था और बिना रक्‍त शर्करा की सम्‍पूर्ण जॉंचें कराये तथा मधुमेह का समुचित चिकित्‍सा उपचार एवं नियन्‍त्रण किये बिना किसी भी प्रकार का शल्‍य क्रिया सम्‍पादित करने से रोगी में शल्‍य क्रिया के उपरान्‍त किसी भी प्रकार का संक्रमण होना सम्‍भव है।''

उपरोक्‍त चिकित्‍सीय जांच आख्‍या दिनांकित 09.01.2012 में दिए गए परिणाम से स्‍पष्‍ट है कि चिकित्‍सीय विशेषज्ञों की राय में मधुमेह और बढ़ी हुई रक्‍त शर्करा की दशा में शल्‍य क्रिया के उपरान्‍त संक्रमण होने की सम्‍भावना अधिक होती है। प्रस्‍तुत मामले में विपक्षी संख्‍या-7 डा0 दिलीप चौरसिया द्वारा शल्‍य क्रिया करने के

 

 

 

 

-15-

पहले रक्‍त शर्करा की जांच करने का कोई साक्ष्‍य नहीं है। यद्यपि उनके द्वारा ग्‍लूकोमीटर के माध्‍यम से जांच करना और रक्‍त शर्करा सामान्‍य होने की बात कही गयी है, किन्‍तु साक्ष्‍य से यह बात स्‍पष्‍ट नहीं है, दूसरी ओर मरीज श्री फूल श्री यादव की बढ़ी हुई रक्‍त शर्करा लगातार उनकी उपलब्‍ध जांच रिपोर्ट से प्रदर्शित होती है। अत: इस पीठ के मत में भी चिकित्‍सीय जांच आख्‍या                के अनुरूप यह मत प्रकट किया जाता है कि विपक्षी संख्‍या-7            डा0 दिलीप चौरसिया द्वारा परिवादी श्री फूल सिंह यादव की शल्‍य  क्रिया करने में घोर लापरवाही बरती गयी, जिस कारण मरीज को अत्‍यधिक पीड़ा एवं असुविधा व परेशानी हुई, जिसके लिए डा0 दिलीप चौरसिया का उत्‍तरदायित्‍व परिलक्षित होता है।

शल्‍य क्रिया के उपरान्‍त परिवादी द्वारा डा0 दिलीप चौरसिया को दिनांक 22.07.2010 को सूजन आना एवं शारीरिक कष्‍ट के कारण उठ बैठ न पाना सूचित भी किया गया, जिससे स्‍पष्‍ट है कि डा0 दिलीप चौरसिया की लापरवाही के कारण परिवादी श्री फूल सिंह यादव को संक्रमण हुआ, जिसके लिए डा0 दिलीप चौरसिया उत्‍तरदायी हैं एवं परिवादी को डा0 दिलीप चौरसिया से क्षतिपूर्ति दिलवाया जाना न्‍यायोचित एवं पूर्ण रूप से उचित है।

अपील संख्‍या-1176/2019 में परिवादी श्री फूल सिंह यादव ने क्षतिपू‍र्ति की धनराशि बढ़ाए जाने की याचना की है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने कुल 6,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति की धनराशि दिलवायी है, किन्‍तु यह देखते हुए कि श्री फूल सिंह यादव विपक्षी संख्‍या-7 डा0 दिलीप चौरसिया द्वारा शल्‍य क्रिया के उपरान्‍त  संक्रमण के कारण रूग्‍ण रहे और उनकी वकालत प्रैक्टिस भी बुरी तरह से प्रभावित हुई एवं उनके द्वारा आज भी शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक रूप से अत्‍यन्‍त कठिनाइयॉं व परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। अत: जिला उपभोक्‍ता  आयोग  द्वारा  दी  गयी

 

 

 

 

 

-16-

क्षतिपूर्ति 6,00,000/-रू0 के स्‍थान पर विपक्षी संख्‍या-7                 डा0 दिलीप चौरसिया से क्षतिपूर्ति के मद में 10,00,000/-रू0 (दस लाख रूपए) परिवाद योजित किए जाने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज सहित परिवादी को दिलाया जाना उचित है।

यह तथ्‍य भी उल्‍लेखनीय है कि स्‍वयं के अभिवचनों के अनुसार विपक्षी संख्‍या-7 डा0 दिलीप चौरसिया स्‍वरूप रानी चिकित्‍सालय, इलाहाबाद (प्रयागराज) में कार्यरत थे, इसके बावजूद भी उनके द्वारा सरकारी नियमों का पूर्ण रूप से उल्‍लंघन करते हुए उनके द्वारा बाला जी इंस्‍टीट्यूट आफ रीनाल डिसीज में चिकित्‍सीय कार्य किया जा रहा था, जो अवैधानिक एवं अनुचित है।

उत्‍तर प्रदेश सरकार द्वारा एलोपैथिक चिकित्‍सक की कार्यप्रणाली निर्धारित किए जाने से सम्‍बन्धित नियम/विनियम वर्ष 1983 में प्रस्‍तावित किए गए, जिसका मुख्‍य उद्देश्‍य एलोपैथिक चिकित्‍सकों द्वारा निजी चिकित्‍सा पद्धति अपनाने से निरूद्ध किए जाने का मुख्‍य कारण एवं उद्देश्‍य यह था/है कि राजकीय मेडिकल कालेजों में कार्यरत चिकित्‍सा शिक्षकों द्वारा निजी प्रैक्टिस पर पूर्ण प्रतिबन्‍ध लगाया जा सके, जिससे कि राजकीय मेडिकल कालेजों व राजकीय चिकित्‍सालयों के एलोपैथिक चिकित्‍सकों द्वारा आवश्‍यकतानुसार राजकीय मेडिकल कालेज एवं चिकित्‍सालयों में अपना कर्तव्‍य जनमानस की चिकित्‍सा सेवा में निर्वहित किया जा सके।

उत्‍तर प्रदेश सरकार द्वारा तदनुसार ‘उत्‍तर प्रदेश सरकारी डॉक्‍टर (एलोपैथिक) निजी प्रैक्टिस पर प्रतिबंध नियम, 1983 का क्रियान्‍वयन/पब्लिकेशन दिनांक 30.08.1983 को प्रस्‍तावित किया गया। उपरोक्‍त शासनादेश के नियम 3 में स्‍पष्‍ट रूप से राजकीय चिकित्‍सकों द्वारा निजी चिकित्‍सा करने को निरूद्ध किया गया है। नियम 4 में उपरोक्‍त निजी चिकित्‍सा को  निरूद्ध  किए  जाने  के

 

 

 

 

-17-

कारण राजकीय चिकित्‍सकों द्वारा निजी चिकित्‍सा न किए जाने के विरूद्ध वेतन व भत्‍ता अथवा दोनों जैसा कि राज्‍य सरकार द्वारा नियत किया जावेगा, देय होगा। उपरोक्‍त नियम के अन्‍तर्गत उत्‍तर प्रदेश में स्‍थापित सभी राजकीय मेडिकल कालेजों/चिकित्‍सालयों में कार्यरत/सेवारत चिकित्‍सकों को राज्‍य सरकार द्वारा वेतन व भत्‍तों  के अतिरिक्‍त समुचित भत्‍ता प्रदान किया जाता है, जो कि चिकित्‍सकों के मूल वेतन का 1/3 धनराशि वर्तमान में निर्धारित है।

उपरोक्‍त तथ्‍यों को दृष्टिगत रखने के उपरान्‍त उत्‍तर प्रदेश शासन द्वारा प्रमुख सचिव, चिकित्‍सा  शिक्षा अनुभाग-1, उ0प्र0 शासन का पत्र संख्‍या-437/71-1-2019-रिट-71/2017टी0सी0 दिनांक 08 मार्च, 2019 उल्‍लेखनीय है, जो निम्‍नवत् है:-

संख्‍या-437/71-1-2019-रिट-71/2017टी0सी0

प्रेषक,

      डा0 रजनीश दुबे,    

      प्रमुख सचिव,

      उ0प्र0 शासन।

 

सेवा में,

1.     महानिदेशक,                     2.   जिलाधिकारी,

      चिकित्‍सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण,           आगरा, प्रयागराज, आजमगढ़, गोरखपुर,

      उ0प्र0, लखनऊ।                            झॉंसी, कानपुर, मेरठ, सहारनपुर,

                                        अम्‍बेडकरनगर, जालौन, बॉंदा, कन्‍नौज,

                                        तथा बदायूँ।

3.    वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक,                                                4.   प्रधानाचार्य,

      आगरा, प्रयागराज, आजमगढ़, गोरखपुर,           राजकीय मेडिकल कालेज,

      झॉंसी, कानपुर, मेरठ, सहारनपुर,                आगरा, प्रयागराज, गोरखपुर, मेरठ,

      अम्‍बेडकरनगर, जालौन, बॉंदा, कन्‍नौज,      झॉंसी, कानपुर, सहारनपुर, आजमगढ़,

      तथा बदायूँ।                          अम्‍बेडकर नगर, जालौन, कन्‍नौज,

                                         बॉंदा तथा बदायूँ।

5.    मुख्‍य चिकित्‍साधिकारी,

      आगरा, प्रयागराज, आजमगढ़, गोरखपुर,

      झॉंसी, कानपुर, मेरठ, सहारनपुर,

      अम्‍बेडकरनगर, जालौन, बॉंदा, कन्‍नौज

      तथा बदायूँ।

 

चिकित्‍सा शिक्षा अनुभाग-1                    लखनऊ : दिनांक 08 मार्च, 2019

 

 

 

 

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विषय:- राजकीय मेडिकल कालेजों में कार्यरत चिकित्‍सा शिक्षकों (एलोपैथिक) की निजी            

      प्रैक्टिस पर प्रतिब‍न्‍ध के क्रम में सतर्कता जॉंच की प्रक्रिया के संबंध में।

 

महोदय,

उपर्युक्‍त विषयक शासनादेश संख्‍या-1025/71-3-2003-323/83टी0सी0 दिनांक 08.09.2003, शासनादेश संख्‍या-2239/71-3-08-सी0एम0यू0-34/2008, दिनांक 30.07.2008, शासनादेश संख्‍या-2362/71-1-14-रिट-59/14, दिनांक 29.08.2014 एवं शासनादेश संख्‍या-2590/71-1-14-रिट-59/14, दिनांक 02.09.2014 का कृपया संदर्भ ग्रहण करें, जिसके द्वारा समय-समय पर निजी प्रैक्टिस करने वाले चिकित्‍सा शिक्षकों (एलोपैथिक) के विरूद्ध कठोर कार्यवाही सुनिश्‍चित किए जाने के निर्देश दिए गए हैं।

 

2-    इस संबंध में अवगत कराना है कि जनहित याचिका संख्‍या-14588/2009 स्‍नेहलता सिंह सलेन्‍टा व अन्‍य बनाम उ0प्र0 राज्‍य व अन्‍य में पारित आदेश दिनांक 09.03.2018 के प्रस्‍तर-146(X) में मा0 उच्‍च न्‍यायालय, इलाहाबाद/प्रयागराज द्वारा निम्‍नवत आदेश पारित किए गए हैं:-

“Director General, Vigilance shall constitute special teams at District level to find out Medical Officers of State Government who are engaged in private practice or running Hospitals, Nursing Homes of attending or providing treatment to patients in such private Hospitals etc. Said teams shall also investigate into cases of radio diagnosis and pathology test from private institutions and establishments, in respect of patients who are under treatment at State Medical Care Centres Team shall find out reasons for non conduct of Radio Diagnostic or pathological services by institutions run by Government. Wherever private Radio Diagnosis and pathology tests are found got conducted from private hands, encouraged by Government Medical Staff, appropriate action including criminal and departmental shall be taken against them. We direct competent authority in such matters to proceed with such report of vigilance and take appropriate action at the earliest. Aforesaid vigilance teams, wherever finds Government Medical Officers/officials indulging in private practice, may also register First Information Report against them. Besides, competent authority in the State Government shall take appropriate stern action without any further delay besides recovery of entire non-practising allowances paid to such violators.”

3-    उल्‍लेखनीय है कि उ0प्र0 सरकारी डाक्‍टर (एलोपैथिक) प्राइवेट प्रैक्टिस पर निबन्‍धन नियमावली, 1983 यथासंशोधित नियमावली, 2003 द्वारा उत्‍तर प्रदेश में राजकीय चिकित्‍सा  महाविद्यालयों के अध्‍यापकों और सरकारी डाक्‍टरों (एलोपैथिक) की प्राइवेट प्रैक्टिस को निर्बन्धित किया गया है। उक्‍त नियमावली का उल्‍लंघन करने वाले चिकित्‍सा शिक्षकों को उ0प्र0 सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली, 1956 के नियम-3 के अधीन दुराचरण का दोषी माना गया है। मा0 उच्‍च न्‍यायालय द्वारा भी राजकीय चिकित्‍सा शिक्षकों एवं चिकित्‍सकों के निजी प्रैक्टिस पर पूर्ण प्रतिबन्‍ध को वैध ठहराया गया है। शासनादेश संख्‍या-1025/71-3-2003-323/83टी0सी0 दिनांक 08.09.2003 तथा शासनादेश संख्‍या-2239/71-3-08-सी0एम0यू0-34/2008, दिनांक 30.07.2008 द्वारा राजकीय मेडिकल कालेजों के चिकित्‍सा  शिक्षकों के प्राइवेट प्रैक्टिस पर प्रतिबन्‍ध के एवज में उन्‍हें उनके मूल वेतन का 25 प्रतिशत की दर से प्रैक्टिस बन्‍दी भत्‍ता (एन0पी0ए0) भी अनुमन्‍य किया गया है।

4-    इस संबंध में मुझे यह कहने का निदेश हुआ है कि कृपया निजी प्रैक्टिस करने वाले चिकित्‍सा शिक्षकों के विरूद्ध निम्‍नानुसार कठोर कार्यवाही सुनिश्चित की जाय ताकि प्रदेश की जनता को राजकीय मेडिकल कालेजों एवं उनसे सम्‍बद्ध चिकित्‍सालयों में चिकित्‍सा सुविधा समुचित रूप से उपलब्‍ध हो सके:-

 

 

 

 

 

 

 

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  1. उत्‍तर प्रदेश सरकारी डाक्‍टर (एलोपैथिक) प्राइवेट प्रैक्टिस पर निर्बन्‍धन नियमावली, 1983 के प्रभावी क्रियान्‍वयन हेतु संबंधित जनपद के जिलाधिकारी की अध्‍यक्षता में एक सतर्कता समिति का गठन निम्‍नवत् किया जाता है:-

 

  1. संबंधित जनपद के जिलाधिकारी                             -    अध्‍यक्ष
  2. संबंधित राजकीय चिकित्‍सा महाविद्यालय के प्रधानाचार्य            -  सदस्‍य/संयोजक
  3. वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक                        -     सदस्‍य
  4. संबंधित जनपद के मुख्‍य चिकित्‍सा अधिकारी                   -     सदस्‍य
  5. जिलाधिकारी द्वारा नामित स्‍थानीय अभिसूचना इकाई        -     सदस्‍य

का एक वरिष्‍ठ सदस्‍य

  1. उक्‍त सतर्कता समिति द्वारा निजी प्रैक्टिस की रोक हेतु त्रैमासिक बैठक कराई जाये तथा चिकित्‍सा शिक्षकों के प्राइवेट प्रैक्टिस से संबंधित प्राप्‍त शिकायतों का नियमित अनुश्रवण किया जाये। समिति के स्‍वत: संज्ञान में यदि राजकीय मेडिकल कालेजों में कार्यरत किसी चिकित्‍सा शिक्षक/चिकित्‍सक द्वारा प्राइवेट प्रैक्टिस किए जाने की जानकारी आती है तो उक्‍त शिकायत की जॉंच स्‍थानीय अभिसूचना इकाई से कराकर शिकायत की पुष्टि करते हुए कार्यवाही सुनिश्चित की जाये।
  2. चिकित्‍सा शिक्षकों (एलोपैथिक) को प्राइवेट में लिप्‍त पाए जाने पर संबंधित चिकित्‍सा शिक्षकों के विरूद्ध उत्‍तर प्रदेश सरकारी डाक्‍टर (एलोपैथिक) प्राइवेट प्रैक्टिस पर निर्बन्‍धन नियमावली 1983 यथासंशोधित नियमावली, 2003 के नियम-3, नियम-4 तथा उ0प्र0 सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली, 1956 के संगत नियमों के उल्‍लंघन के फलस्‍वरूप उ0प्र0 सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमावली, 1999 के नियम-7 अथवा 10(2) के अन्‍तर्गत कार्यवाही की जाये।
  3. राजकीय चिकित्‍सा शिक्षकों द्वारा प्राइवेट प्रैक्टिस हेतु उपयोग में लाए जा रहे नर्सिंग होम, निजी चिकित्‍सालयों एवं संस्‍थानों के विरूद्ध भी दण्‍डात्‍मक कार्यवाही करते हुए उसका लाइसेंस निरस्‍त किए जाने की कार्यवाही चिकित्‍सा एवं स्‍वास्‍थ्‍य विभाग से समन्‍वय करते हुए कराई जाये।
  4. चिकित्‍सा शिक्षकों द्वारा की जा रही प्राइवेट प्रैक्टिस की पुष्टि होने पर उसे भुगतान किए गए प्रैक्टिस बन्‍दी भत्‍ता की वसूली की कार्यवाही की जाये।
  5. निजी प्रैक्टिस करने वाले चिकित्‍सा शिक्षक का पंजीकरण निरस्‍त करने हेतु मेडिकल काउंसिल ऑफ इण्डिया को संदर्भित किया जाये।
  6. यदि उपर्युक्‍तानुसार गठित सतर्कता समिति को किसी प्रकरण में यह उपयुक्‍त लगता है कि निजी प्रैक्टिस में संलिप्‍त चिकित्‍सा शिक्षक के विरूद्ध सतर्कता जॉंच कराई जाने की आवश्‍यकता है, तो समिति इस संबंध में संस्‍तुति सहित प्रस्‍ताव शासन को उपलब्‍ध करायेगी।

5-    कृपया उपरोक्‍त बिन्‍दुओं का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित किया जाये।

                                                                  भवदीय,

 

                                                             (डा0 रजनीश दुबे)

                                                               प्रमुख सचिव।

संख्‍या-437(1)/71-1-19, तददिनॉंक

            प्रतिलिपि निम्‍नलिखित को सूचनार्थ एवं आवश्‍यक कार्यवाही हेतु प्रेषित:-

1.     प्रमुख सचिव, गृह, गोपन एवं सतर्कता विभाग, उ0प्र0 शासन।

2.    प्रमुख सचिव, चिकित्‍सा, स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण विभाग, उ0प्र0 शासन।

 

 

 

 

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3.    महानिदेशक, चिकित्‍सा एवं स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं, उ0प्र0, लखनऊ।

4.    चिकित्‍सा एवं स्‍वास्‍थ्‍य अनुभाग-2

5.    चिकित्‍सा शिक्षा अनुभाग-2, 3 व 4

6.    गार्ड फाइल।

 

                                                          आज्ञा से,

 

                                                           (अनिल कुमार)

                                                            संयुक्‍त सचिव।''

शासन के ऊपर उल्लिखित आदेश के विरूद्ध एवं                       माननीय उच्‍च न्‍यायालय के निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध कार्यवाही किए जाने का दोषी भी डा0 दिलीप चौरसिया को पाया जाता                      है।

उपरोक्‍त ऊपर लिखित तथ्‍यों के अनुसार यह स्‍पष्‍ट पाया जाता है कि विपक्षी संख्‍या-7 डा0 दिलीप चौरसिया द्वारा निजी चिकित्‍सा न करने के कारण उत्‍तर प्रदेश सरकार से वेतन व भत्‍तों के अतिरिक्‍त निजी प्रैक्टिस न करने को दृष्टिगत रखते हुए लिए जाने वाले भत्‍ते/वेतन को अवैधानिक व अविधिक रूप से अपनी नियुक्ति की तिथि से लगातार लिया/प्राप्‍त किया जा रहा है, जो न सिर्फ उनके द्वारा अनैतिक आचरण की श्रेणी में परिलक्षित होता है वरन् उपरोक्‍त धनराशि की वसूली शासन के द्वारा ऊपर उल्लिखित शासनादेश/नियम व माननीय उच्‍च न्‍यायालय के आदेश के अनुपालन में स्‍पष्‍ट रूप से पाया जाता है, जिसकी वसूली तत्‍काल उत्‍तर प्रदेश शासन द्वारा प्रमुख सचिव, चिकित्‍सा, स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण, उत्‍तर प्रदेश, महानिदेशक, चिकित्‍सा एवं स्‍वास्‍थ्‍य सेवायें, उत्‍तर प्रदेश, प्रमुख सचिव, चिकित्‍सा एवं शिक्षा, उत्‍तर प्रदेश तथा प्रमुख सचिव, वित्‍त, उत्‍तर प्रदेश द्वारा वसूली जावे।

उपरोक्‍त के अतिरिक्‍त प्रमुख सचिव, चिकित्‍सा, स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण, उत्‍तर प्रदेश, महानिदेशक, चिकित्‍सा एवं स्‍वास्‍थ्‍य सेवायें, उत्‍तर प्रदेश, प्रमुख सचिव,  चिकित्‍सा  एवं  शिक्षा,  उत्‍तर

 

 

 

-21-

प्रदेश तथा प्रमुख सचिव, वित्‍त, उत्‍तर प्रदेश द्वारा उत्‍तर प्रदेश में स्‍थापित सभी राजकीय मेडिकल कालेजों व राजकीय चिकित्‍सालयों में कार्यरत/सेवारत चिकित्‍सकों द्वारा यदि निजी प्रैक्टिस किए जाने के उपरान्‍त भी निजी प्रैक्टिस से सम्‍बन्धित भत्‍ता प्राप्‍त किया जा  रहा है, पर तत्‍काल कार्यवाही सुनिश्चित करते हुए वसूली की प्रक्रिया सुनिश्चित की जावे, साथ ही उनके द्वारा किए गए अवैधानिक एवं अविधिक आचरण को संज्ञान में लेते हुए तत्‍काल विधिक कार्यवाही सुनिश्चित की जावे।

तदनुसार विपक्षी संख्‍या-7 डा0 दिलीप चौरसिया के उपरोक्‍त कृत्‍य के लिए विपक्षी संख्‍या-7 डा0 दिलीप चौरसिया के विरूद्ध नियमानुसार कार्यवाही हेतु मुख्‍य चिकित्‍साधिकारी,                    प्रयागराज/इलाहाबाद को निर्णय की प्रति प्रेषित की जाए, जो उचित पाए जाने पर एवं आवश्‍यकतानुसार यथायोग्‍य कार्यवाही विधिनुसार सुनिश्चित कर अपनी आख्‍या उत्‍तर प्रदेश शासन, प्रमुख सचिव, चिकित्‍सा शिक्षा को 60 दिवस की अवधि में प्रेषित करेंगे।

उत्‍तर प्रदेश शासन के उपरोक्‍त शासनादेश/पत्र से यह स्‍पष्‍ट रूप से पाया जाता है कि राजकीय मेडिकल कालेज में कार्यरत चिकित्‍सा शिक्षकों (एलोपैथिक) की निजी प्रैक्टिस पर शासन द्वारा पूर्ण रूप से प्रतिबन्‍ध लगाया गया है, जिसका न्‍यायिक रूप से परीक्षण व संस्‍तुति माननीय उच्‍च न्‍यायालय द्वारा जनहित याचिका संख्‍या-14588/2009 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 09.03.2018 द्वारा सुनिश्चित की गयी है। खेद का विषय है कि उपरोक्‍त की उक्‍त संबंध में अपेक्षित कार्यवाही महानिदेशक, चिकित्‍सा  शिक्षा एवं प्रशिक्षण, उत्‍तर प्रदेश, लखनऊ स्‍तर से                 व सम्‍बन्धित मुख्‍य चिकित्‍साधिकारी व राजकीय चिकित्‍सा महाविद्यालय के प्रधानाचार्यगण द्वारा नहीं की जा  रही  है,  जिससे  

 

 

 

-22-

न सिर्फ शासन के आदेश का उल्‍लंघन है वरन् माननीय उच्‍च  न्‍यायालय के निर्णय की अवहेलना भी स्‍पष्‍ट रूप से परिलक्षित होती है। तदनुसार शासन स्‍तर पर समुचित कार्यवाही सुनिश्चित किए जाने हेतु आदेशित किया जाता है।

इस निर्णय एवं आदेश की प्रति महानिदेशक, चिकित्‍सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण, उत्‍तर प्रदेश, लखनऊ व समस्‍त राजकीय चिकित्‍सा  महाविद्यालय के प्रधानाचार्यगण को चार सप्‍ताह की अवधि में द्वारा प्रमुख सचिव, चिकित्‍सा शिक्षा, उत्‍तर प्रदेश शासन प्रेषित किए जाने हेतु आदेशित किया जाता है।

तदनुसार उपरोक्‍त अपीलें अंतिम रूप से निस्‍तारित करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया जाता है:-

आदेश

     अपील संख्‍या-707/2019 डा0 दिलीप चौरसिया बनाम फूल सिंह यादव व 07 अन्‍य निरस्‍त की जाती है।

     अपील संख्‍या-1421/2019 डा0 विकास त्रिपाठी बनाम फूल सिंह यादव स्‍वीकार की जाती है तथा अपीलार्थी डा0 विकास त्रिपाठी के विरूद्ध परिवाद निरस्‍त करते हुए डा0 विकास त्रिपाठी को इस मामले में उन्‍मुक्‍त किया जाता है। डा0 विकास त्रिपाठी के विरूद्ध परिवादी नियमित एवं उपयुक्‍त न्‍यायालय में अपना वाद प्रस्‍तुत करने के लिए स्‍वतंत्र है।

अपील संख्‍या-1176/2019 फूल सिंह यादव बनाम स्‍टेट आफ यू0पी0 द्वारा कलेक्‍टर, फतेहपुर व 07 अन्‍य स्‍वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्‍ता आयोग, फतेहपुर द्वारा परिवाद संख्‍या-21/2012 फूल सिंह यादव बनाम राज्‍य उ0प्र0 द्वारा                    कलेक्‍टर फतेहपुर व  07  अन्‍य  में  पारित  निर्णय  एवं  आदेश               

 

 

 

-23-

दिनांक 30.04.2019 को संशोधित करते हुए आदेशित किया जाता है कि विपक्षी संख्‍या-7 डा0 दिलीप चौरसिया, सर्जन, बालाजी इंस्‍टीट्यूट आफ रीनाल डिसीज, पन्‍नालाल रोड, इलाहाबाद द्वारा इलाज में की गई भारी लापरवाही के कारण परिवादी को क्षतिपूर्ति के रूप में 10,00,000/-रू0 (दस लाख रूपए) परिवाद योजित किए जाने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज सहित इस निर्णय की तिथि से एक माह के अन्‍दर अदा किया जावे।

कार्यालय को निर्देशित किया जाता है कि विपक्षी संख्‍या-7 डा0 दिलीप चौरसिया के अनुचित कृत्‍य के लिए विपक्षी संख्‍या-7 डा0 दिलीप चौरसिया के विरूद्ध नियमानुसार कार्यवाही हेतु                 मुख्‍य चिकित्‍साधिकारी, प्रयागराज/इलाहाबाद को इस निर्णय की प्रति प्रेषित की जाए, जो उनके विरूद्ध उल्लिखित तथ्‍यों को उचित पाए जाने पर एवं आवश्‍यकतानुसार यथायोग्‍य कार्यवाही विधिनुसार सुनिश्चित कर अपनी आख्‍या उत्‍तर प्रदेश शासन, प्रमुख सचिव, चिकित्‍सा शिक्षा को 60 दिवस की अवधि में प्रेषित करेंगे।

इस निर्णय एवं आदेश की प्रति महानिदेशक, चिकित्‍सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण, उत्‍तर प्रदेश, लखनऊ व समस्‍त राजकीय चिकित्‍सा   महाविद्यालय के प्रधानाचार्यगण को चार सप्‍ताह की अवधि में द्वारा प्रमुख सचिव, चिकित्‍सा शिक्षा, उत्‍तर प्रदेश शासन प्रेषित किए जाने हेतु आदेशित किया जाता है। तदनुसार कार्यालय द्वारा अपेक्षित कार्यवाही विधि अनुसार सुनिश्चित की जावे।

अपील संख्‍या-707/2019 में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्‍त जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित सम्‍बन्धित जिला उपभोक्‍ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

 

 

-24-

अपील संख्‍या-1421/2019 में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्‍त जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की                    जाए।

इस निर्णय की मूल प्रति अपील संख्‍या-707/2019 में रखी जाये तथा इस निर्णय की एक-एक छायाप्रति अपील संख्‍या-1421/2019 एवं अपील संख्‍या-1176/2019 में भी रखी जाये।

कार्यालय द्वारा परिवाद संख्‍या-21/2012 की मूल पत्रावली जिला उपभोक्‍ता आयोग, फतेहपुर को तत्‍काल वापस प्रेषित की जावे।

आशुलिपि‍क से अपेक्षा की जाती है कि‍ वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

     (न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)            (विकास सक्‍सेना)       

              अध्‍यक्ष                      सदस्‍य 

 

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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