सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या-121/2011
1. मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0, ईएल-116/2, टी.टी.सी. इलेक्ट्रॉनिक जोन, एम.आई.डी.सी, महापे, नवी मुम्बई, द्वारा अथराइज्ड पर्सन।
2. सीनियर मैनेजर, मेसर्स एसकॉन, एलीवेटर्स प्रा0लि0, फ्लैट नं0-77, ब्लॉक बी-3, आरावली अपार्टमेंट्स, सेक्टर-34, नोयडा।
अपीलार्थीगण/विपक्षी सं0-1 व 2
बनाम्
1. स्टेट आफ यू0पी0 द्वारा कलेक्टर मेरठ।
2. ज्वाइंट कमिश्नर (कार्यपालक) वाणिज्य कर, मेरठ संभाग-ए, मेरठ।
3. डिप्टी कमिश्नर (प्रशासन) वाणिज्य कर, मेरठ।
4. परियोजना प्रबन्धक, निर्माण यूनिट मेरठ, यू0पी0 आवास एवं विकास परिषद, आफिस काम्पलेक्स, सेक्टर-9, शास्त्री नगर, मेरठ।
प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण/विपक्षी सं0-3
समक्ष:-
1. माननीय श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से : श्री अनिल कुमार चौबे के सहयोगी
अधिवक्ता श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय।
प्रत्यर्थी सं0-1, 2, 3 की ओर से : श्री आमोठ राठौर, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-4 की ओर से : श्री एन0एन0 पाण्डेय, विद्वान अधिवक्ता।
एवं
अपील संख्या-126/2011
1. यू0पी0 आवास एवं विकास परिषद, द्वारा हाउसिंग कमिश्नर, 104, महात्मा गांधी मार्ग, लखनऊ।
2. प्रोजेक्ट मैनेजर, यू0पी0 आवास एवं विकास परिषद, कंस्ट्रक्शन डिवीजन आफिस काम्पलेक्स, सेक्टर-9, शास्त्री नगर, मेरठ।
अपीलार्थीगण/विपक्षी सं0-3
बनाम्
1. स्टेट आफ यू0पी0 द्वारा कलेक्टर मेरठ।
2. ज्वाइंट कमिश्नर (एग्जीक्यूटिव) वाणिज्य कर, मेरठ संभाग-ए, मेरठ।
3. डिप्टी कमिश्नर (एडमिनिस्ट्रेशेन) वाणिज्य कर, मेरठ।
4. मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0, ईएल-116/2, टी.टी.सी. इलेक्ट्रॉनिक जोन, एम.आई.डी.सी, महापे, नवी मुम्बई।
5. सिनियर मैनेजर, मेसर्स एसकॉन, एलीवेटर्स प्रा0लि0, फ्लैट नं0-77, ब्लॉक बी-3, आरावली अपार्टमेंट्स, सेक्टर-34, नोयडा।
प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण/विपक्षी सं0-1 व 2
समक्ष:-
1. माननीय श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से : श्री एन0एन0 पाण्डेय, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-1, 2, 3 की ओर से : श्री आमोठ राठौर, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-4, 5 की ओर से : श्री अनिल कुमार चौबे के सहयोगी
अधिवक्ता श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय।
दिनांक 31.12.2018
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत दोनों अपीलें, अर्थात् अपील संख्या-121/2011 एवं अपील संख्या-126/2011 परिवाद संख्या-263/2008 में जिला मंच, मेरठ द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 06.01.2011 के विरूद्ध क्रमश: विपक्षी संख्या-1 व 2 एवं विपक्षी संख्या-3 की ओर से योजित की गयी हैं। उपरोक्त दोनों अपीलें एक ही निर्णय के विरूद्ध योजित किये जाने के कारण दोनों अपीलों का निस्तारण साथ-साथ किया जा रहा है। इस प्रकरण में अपील संख्या-121/2011 अग्रीण अपील होगी।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण 1 लगायत 3 के कथनानुसार नवनिर्मित वाणिज्य कर भवन मंगल पाण्डे नगर में परिवाद के विपक्षी संख्या-1 व 2 द्वारा 8 पैसेन्जर्स की दो लिफ्टें लगायी गयीं थीं, जिनका प्रयोग माह अक्टूबर 2006 से परिवादीगण संख्या-1 लगायत 3 वाणिज्य कर विभाग द्वारा किया जाना था, नवनिर्मित भवन परिवाद के विपक्षी संख्या-3, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद द्वारा बनाया गया, इस कारण उक्त लिफ्टों का संचालन विपक्षी संख्या-3 द्वारा कराया गया। उपरोक्त लिफ्टें प्रारम्भ से ही ठीक ढंग से नहीं चल रहीं थीं, इस कारण विपक्षी संख्या-3 एवं उनके अधिकारियों से लिफ्टों का संचालन सही प्रकार से कराने हेतु विपक्षी संख्या-3, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के अधिकारियों से पत्राचार किया गया। दिनांक 29.03.2007 को अपराह्न 3 बजे लिफ्ट ऊपर से नीचे आते हुए अनियंत्रित होकर अचानक नीचे गिरते हुए प्रथम तल पर आकर रूकी, जिससे कर्मचारीगण, अधिकारीगण एवं अधिवक्तागण जो उक्त घटना में उस समय लिफ्ट में उपस्थित थे गंभीर रूप से दुर्घटनाग्रस्त होने से बचे। किसी तरह उन लोगों को लिफ्ट से बाहर निकाला गया। अत: पत्र दिनांक 30.03.2007 द्वारा उक्त घटना से अवगत कराते हुए विपक्षी संख्या-1 व 2 से लिफ्ट बदलने का अनुरोध किया गया, इसके बाद दिनांक 04.05.2007 को पुन: लिफ्ट रूक गयी, उस समय भी लिफ्ट में कर्मचारीगण, अधिकारीगण, अधिवक्तागण एवं सम्मानित सदस्य मौजूद थे, उस समय विपक्षी संख्या-1 व 2 का कर्मचारी भी मौके पर मौजूद था उसके द्वारा काफी प्रयास करने के बाद उक्त लिफ्ट खुल पायी थी। इसके बाद दिनांक 16.05.2007 को पुन: लिफ्ट इसी प्रकार से अचानक रूक गयी और उस दिन भी लिफ्ट में कर्मचारीगण, अधिकारीगण, अधिवक्तागण एवं सम्मानित सदस्य मौजूद थे। उक्त घटना की सूचना देते हुए विपक्षीगण से उक्त लिफ्ट को बदलने का अनुरोध परिवादीगण द्वारा किया गया। इस प्रकार उक्त लिफ्ट बार-बार फेल होने पर अधिवक्ता संघ, व्यापारी संघ, कर्मचारी एसोसिएशन एवं विभिन्न स्तरों के व्यक्तियों द्वारा बैठक कर ज्ञापन एवं प्रत्यावेदन परिवादीगण के समक्ष प्रस्तुत किये गये तथा चेतावनी दी गयी कि यदि अचानक लिफ्ट बंद होने के कारण कोई अप्रिय घटना घट जाती है और किसी व्यक्ति की मृत्यु दुर्घटना के अधीन हो जाती है तो उस परिस्थिति में विषम परिस्थितियों का सामना विभाग को करना पड़ेगा। सहायक निदेशक विद्युत सुरक्षा मरेठ जोन, मेरठ से जांच करायी गयी, जिन्होंने अपनी जांच दिनांकित 25.07.2007 में लिखा है कि जांच के दिन एक लिफ्ट पूर्णत: बन्द पायी गयी तथा दूसरी लिफ्ट भी बीच में रूक जाती है। इस कारण दोनों लिफ्टों को सही कराया जाये अथवा उन्हें बदलवाकर नई लिफ्टें लगायी जाये। उक्त लिफ्ट बदलने हेतु परिवादीगण द्वारा विपक्षीगण से पत्राचार किया गया, लेकिन विपक्षीगण की ओर से कोई कार्यवाही नहीं की गयी। विपक्षीगण को इस संबंध में नोटिस भी दी गयी। दिनांक 30.04.2008 को पुन: लिफ्टों का परीक्षण सहायक निदेशक विद्युत सुरक्षा मेरठ जोन तथा आवास एवं विकास परिषद के इंजीनियर्स की उपस्थिति में किया गया। उक्त परीक्षण के दौरान भी लिफ्ट फंस गयी, जिसमें उपस्थित अधिकारीगण बाल-बाल बचे। परिवादीगण द्वारा विपक्षीगण से काफी वार्तालाप एवं पत्राचार उक्त लिफ्टों को बदलने के लिए किया गया, लेकिन विपक्षीगण ने उक्त लिफ्टों को नहीं बदला। इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी की गयी है। अत: प्रश्नगत परिवाद जिला मंच के समक्ष उक्त लिफ्टों को बदलकर नयी लिफ्टों को लगाये जाने के अनुतोष के साथ योजित किया गया और 10 लाख रूपये मानसिक एवं आर्थिक क्षतिपूर्ति दिलाये जाने एवं रू0 10000/- परिवाद व्यय दिलाये जाने हेतु भी परिवाद योजित किया गया।
अपीलकर्तागण/विपक्षी संख्या-1 व 2, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 द्वारा प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। अपीलकर्तागण के कथनानुसार विपक्षी संख्या-1 व 2 तथा विपक्षी संख्या-3 के मध्य प्रश्नगत लिफ्टों को क्रय करने हेतु संविदा सम्पादित की गयी और उक्त संविदा के अन्तर्गत दिनांक 13.06.2006 को वाणिज्य कर भवन मंगल पाण्डेय नगर, मेरठ में 08 पैसेन्जर्स की दो लिफ्टें लगवायी गयीं। दिनांक 01.09.2006 को विपक्षी संख्या-3, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के उच्चाधिकारियों के समक्ष लिफ्टें चालू की गयीं, जिसका संचालन संतोष पूर्ण रहा। अनुबन्ध की शर्तों के अनुसार उक्त लिफ्टों में 01 वर्ष का फ्री मेन्टेनेन्स दिनांक 01.09.2006 से दिनांक 31.08.2007 तक था, जो दिनांक 31.08.2007 को समाप्त हो गया। विपक्षी संख्या-3, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद ने दिनांक 30.04.2008 को उक्त लिफ्टों के सुचारू रूप से कार्य न करने के संबंध में एक शिकायती पत्र विपक्षी संख्या-1 व 2 को भेजा था, जिसका जवाब पंजीकृत डाक से विपक्षी संख्या-3 को भेज दिया था। तदोपरांत उक्त लिफ्टों के संबंध में कोई शिकायती प्रार्थना पत्र प्राप्त नहीं हुआ। विपक्षी संख्या-1 व 2/अपीलकर्तागण की जिम्मेदारी समाप्त हो चुकी है।
विपक्षी संख्या-3, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद की ओर से भी प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया। उसके कथनानुसार वाणिज्य कर भवन का निर्माण विपक्षी संख्या-3 द्वारा कराया गया था, जिसमें विवादित लिफ्टें लगायी गयी थीं, जिनका संचालन परिवादीगण, वाणिज्य कर विभाग द्वारा किया जाता रहा है। विपक्षी संख्या-3 द्वारा मात्र लिफ्टें संस्थित की गयी हैं, जिसके उपरान्त उक्त लिफ्टे सही चल रही थीं, लेकिन रख-रखाव के अभाव में उक्त लिफ्टों में खराबी आनी स्वाभाविक है। परिवादीगण, वाणिज्य कर विभाग द्वारा प्रेषित पत्र दिनांक 30.03.2007 को प्राप्त हुआ था, जिसका उत्तर दिनांक 16.04.2007 को दे दिया गया था। उक्त लिफ्टों में तकनीकी खराबी नहीं थी, केवल गलत बटन के प्रयोग से लिफ्ट चतुर्थ तल से आकर प्रथम तल पर रूक गयी थी। परिवादीगण, वाणिज्य कर विभाग द्वारा प्रेषित पत्र दिनांक 21.05.2007 का जवाब विपक्षी संख्या-3, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद द्वारा दिनांक 18.06.2007 को दे दिया गया था। सहायक निदेशक विद्युत सुरक्षा मेरठ जोन द्वारा उक्त लिफ्ट की जांच विपक्षी संख्या-3, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के अधिकारियों की मौजूदगी में नहीं की गयी और न ही सहायक निदेशक विद्युत सुरक्षा मेरठ जोन लिफ्ट की जांच के लिए अधिकृत हैं। लिफ्ट की स्थिति के संबंध में विपक्षी संख्या-1 व 2, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 के इंजीनियर्स ही लिफ्ट की वास्तविक समस्या का निदान करने हेतु सक्षम हैं। विपक्षी संख्या-3, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद द्वारा उक्त लिफ्टों में आई कमियों को दूर करने के लिए विपक्षी संख्या-1 व 2 को पत्र दिनांकित 07.09.2007, 05.11.2007, 13.06.2008 लिखे। दिनांक 08.02.2008 को लिफ्ट में फंसने जैसी कोई घटना नहीं हुई। लिफ्ट में बैट्री डिस्चार्ज हो गयी थीं। परिवादीगण द्वारा किसी प्रशिक्षित कर्मचारी से उक्त लिफ्टों का संचालन नहीं कराया गया। दिनांक 30.04.2008 को लिफ्ट में कुछ समस्या आई थी, किन्तु इस घटना को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णित किया गया है। विपक्षी संख्या-3, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद द्वारा कोई सेवा में कमी नहीं की गयी है।
जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश द्वारा प्रत्यर्थीगण संख्या-1 लगायत 3/परिवादीगण का परिवाद विपक्षी संख्या-1, 2 एवं विपक्षी संख्या-3 के विरूद्ध स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को निर्देशित किया गया कि वह इस आदेश से एक माह के अन्दर प्रश्नगत लिफ्टों को मौके से हटाकर उसके स्थान पर नयी लिफ्टें लगायें। विपक्षीगण मानसिक, शारीरिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति हेतु रू0 50,000/- एवं परिवाद व्यय रू0 5,000/- परिवादीगण को अदा करें।
इस निर्णय एवं आदेश से क्षुब्ध होकर उपरोक्त दोनों अपीलें, अर्थात् अपील संख्या-121/2011 एवं अपील संख्या-126/2011 योजित की गयी हैं।
हमने अपीलकर्तागण/विपक्षी संख्या-1 व 2 के विद्वान अधिवक्ता श्री अनिल कुमार चौबे द्वारा अधिकृत विद्वान अधिवक्ता श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय तथा प्रत्यर्थी संख्या-1, 2 व 3/परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री आमोद राठौर एवं प्रत्यर्थी संख्या-4/विपक्षी संख्या-3 के विद्वान अधिवक्ता श्री एन0एन0 पाण्डेय के तर्क सुने तथा पत्रावली पर उपलबध अभिलेखों का अवलोकन किया।
यह तथ्य निर्विवाद है कि वाणिज्य कर भवन का निर्माण प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद द्वारा किया गया तथा प्रत्यर्थी संख्या-4 द्वारा ही प्रश्नगत लिफ्ट इस भवन में अपीलकर्तागण के माध्यम से प्रतिफल प्राप्त करके संस्थापित करायी गयी। अत: स्वाभाविक रूप से प्रत्यर्थी संख्या-1 लगायत 3 प्रत्यर्थी संख्या-4 के उपभोक्ता हैं।
अपीलकर्तागण/विपक्षी संख्या-1 व 2, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 के विद्वान अधिवक्ता द्वारा मुख्य रूप से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत लिफ्टें अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 से प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद द्वारा क्रय की गयी थीं। अत: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2 (1) (डी) के अन्तर्गत परिवादीगण अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 के उपभोक्ता नहीं हैं। प्रश्नगत परिवाद पोषणीय न होने के कारण प्रश्नगत निर्णय त्रुटिपूर्ण है। अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत लिफ्टों के सन्दर्भ में 01 वर्ष की वारण्टी प्रदान की गयी थी। प्रश्नगत लिफ्टों को क्रय किये जाने के उपरान्त क्रेता द्वारा इस अवधि के मध्य लिफ्टों के कार्य के संबंध में कोई त्रुटि सूचित नहीं की गयी।
यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रश्नगत लिफ्टों के क्रय किये जाने के सन्दर्भ में अनुबन्ध अपीलकर्तागण, मेसर्स एस्कॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 एवं प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के मध्य निष्पादित हुआ, किन्तु यह तथ्य भी निर्विवाद है कि प्रश्नगत लिफ्टें परिवादीगण, वाणिज्य कर भवन मंगल पाण्डेय, नगर मेरठ में संस्थापित की जानी थी तथा वाणिज्य कर विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों, अधिवक्तागण तथा वादकारियों के उपयोगार्थ उक्त लिफ्टों का प्रयोग किया जाना था।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2 (1) (डी) के अन्तर्गत उपभोक्ता को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है :-
" i. buys any goods for a consideration which has been paid or promised or partly paid and partly promised, or under any system of deferred payment and includes any user of such goods other than the person who buys such goods for consideration paid or promised or partly paid or partly promised, or under any system of deferred payment, when such use is made with the approval of such person, but does not include a person who obtains such goods for resale or for any commercial purpose; or
ii. any serivces for a consideration which has been paid or promised or partly paid and partly promised, or under any system of deferred payment and includes any beneficiary of such services other than the person who (hires or avails of) the services for consideration paid or promised, or partly paid and partly promised, or under any system of deferred payment, when such sercices are availed of with the approval of the first mentioned person (but does not include a person who avails of such services for any commercial purpose;) "
उपरोक्त परिभाषा के अवलोकन से यह स्पष्ट रूप से विदित होता है कि उपभोक्ता की परिभाषा लाभार्थी भी सम्मिलित है। प्रश्नगत प्रकरण में निर्विवाद रूप से लिफ्टें परिवादीगण के उपयोगार्थ क्रय की गयी थीं। अत: लाभार्थी होने के कारण परिवादीगण भी उपरोक्त परिभाषा के अन्तर्गत उपभोक्ता माने जायेंगें। ऐसी परिस्थिति में अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 का यह तर्क स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है कि प्रत्यर्थी संख्या-1 लगायत 3/परिवादीगण उपभोक्ता न होने के कारण उनका परिवाद पोषणीय नहीं था। जहां तक अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 के इस तर्क का प्रश्न है कि प्रश्नगत प्रकरण में क्रय की गयी लिफ्ट क्रय की तिथि से 01 वर्ष की वारण्टी पक्षकारों के मध्य निष्पादित अनुबन्ध पत्र के अनुसार प्रदान की गयी थी तथा उक्त अवधि के मध्य क्रेता/प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद द्वारा प्रश्नगत लिफ्टों में त्रुटि के संबंध में कोई शिकायत नहीं की गयी। उल्लेखनीय है कि परिवादीगण का यह कथन है कि कि प्रश्नगत लिफ्टें प्रारम्भ से ही ठीक ढंग से नहीं चल रही थीं। इस संदर्भ में प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के अधिकारियों को बार-बार सूचित किया गया। परिवाद के अभिकथनों में विशिष्ट रूप से परिवादीगण द्वारा यह अभिकथित किया गया है कि दिनांक 29.03.2007 को अपराह्न 3 बजे लिफ्ट ऊपर से नीचे आते हुए अनियंत्रित होकर अचानक नीचे गिरते हुए प्रथम तल पर आकर रूकी, जिससे लिफ्ट में सवार कर्मचारीगण, अधिकारीगण एवं अधिवक्तागण दुर्घटनाग्रस्त होने से बचे। इस संबंध में पत्र दिनांक 30.03.2007 द्वारा उक्त घटना से अवगत कराते हुए विपक्षी संख्या-1 व 2 से लिफ्ट बदलने अनुरोध किया गया। यद्यपि अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 द्वारा प्रस्तुत किये गये प्रतिवाद पत्र में यह अभिकथित नहीं किया गया है कि दिनांक 29.03.2007 की कथित घटना के संदर्भ में कोई सूचना अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 को प्राप्त करायी गयी और न ही अपीलकर्तागण का यह कथन है कि दिनांक 29.03.2007 की घटना के बाद प्रश्नगत लिफ्ट की कथित कमियों को दूर करने हेतु अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 का कोई इंजीनियर आया था, जबकि प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद द्वारा प्रस्तुत किये गये प्रतिवाद पत्र में यह अभिकथित किया गया है कि दिनांक 29.03.2007 की घटना के संदर्भ में परिवादीगण की ओर से भेजे गये पत्र दिनांकित 30.03.2007 का उत्तर प्रत्यर्थी संख्या-4 द्वारा दे दिया गया था। उक्त पत्र में यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 के इंजीनियर द्वारा जांच कर बताया गया था कि लिफ्ट में कोई तकनीकी खराबी नहीं थी, बल्कि लिफ्ट में सवार व्यक्तियों द्वारा गलत बटन दबाने की वजह से लिफ्ट चतुर्थ तल से प्रथम तल पर आकर रूक गयी। ऐसी स्थिति में अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 का यह तर्क स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है कि प्रश्नगत लिफ्ट की वारण्टी अवधि के मध्य लिफ्ट के संचालन में कोई त्रुटि की सूचना अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 को प्राप्त नहीं करायी गयी।
अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 के विद्वान अधिवक्ता तथा प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के विद्वान अधिवक्तागण यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत लिफ्टों में निर्माण संबंधित कोई त्रुटि नहीं थी, केवल रख-रखाव में कमी व परिवादीगण द्वारा लिफ्ट ऑपरेटर को नियुक्त न किये जाने एवं लिफ्ट का संचालन सही ढंग से न किये जाने के कारण लिफ्ट बार-बार रूक जाती थी, जिसका निदान समय-समय पर प्रत्यर्थी संख्या-4 द्वारा किये गये प्रयासों के अन्तर्गत अपीलकर्तागण द्वारा किया गया।
प्रस्तुत प्रकरण के संदर्भ में परिवाद के अभिकथनों के अवलोकन से यह विदित होता है कि परिवाद योजित किये जाने के पूर्व लिफ्ट के संचालन में आई कमियों का उल्लेख परिवाद की धारा-4, 5 व 6 में दिनांक 29.03.2007, 04.05.2007 एवं दिनांक 16.05.2007 की घटना का उल्लेख करते हुए किया गया है। पुन: परिवाद के अभिकथन की धारा-14 में दिनांक 30.04.2008 की घटना का उल्लेख किया गया है। प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद ने अपने प्रतिवाद पत्र की धारा-12 में यह स्वीकार किया गया है कि लिफ्टों में आई कमियों को दूर करने के लिए उसने दिनांक 07.09.2007, 05.11.2007 एवं दिनांक 13.06.2008 को अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 को पत्र लिखे। प्रश्नगत निर्णय में प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद द्वारा प्रेषित पत्र दिनांकित 07.09.2007 का विवरण अंकित किया गया है, जो इस प्रकार है :-
'' उपरोक्त विषयक कृपया इस कार्यालय के पत्रांक 1855/डी-1/62 दिनांक 16.08.2007 का संदर्भ लें, जिसमें मासिक बैठक में लिये गये निर्णयानुसार उक्त लिफ्टों की उच्चस्तरीय तकनीकी टीम से जांच हेतु कोई तिथि निर्धारित कर इस कार्यालय को सूचित करने का अनुरोध आपसे किया गया था, परन्तु आपने अपने पत्र सं.-ई.सी.सी/एम.के.टी./यू.पी.ई.वी.पी./6412/07/08 दिनांक 23.08.2007 द्वारा सूचित किया गया है कि यहां पर लगातार 5 से 6 दिन तक विद्युत आपूर्ति बाधित रहती है, जिस कारण बैट्रियां चार्ज न होने के कारण लिफ्ट ठीक प्रकार से कार्य नहीं करती है। आपका उपरोक्त कथन उचित नहीं है। यहां पर कभी भी इतनी अधिक अवधि तक विद्युत आपूर्ति बाधित नहीं रहती है। मात्र कुछ घंटों के लिये कभी कभी विद्युत आपूर्ति बाधित होती है। उपरोक्त से ऐसा प्रतीत होता है कि आप अपने उत्तरदायित्व से बचना चाहते हैं। आपको पूर्व पत्र में भी सूचित किया गया था कि उक्त लिफ्टों में प्रारम्भ से ही कुछ न कुछ कमियां आती रहीं हैं, जिसको समय-समय पर आपके स्टाफ द्वारा ठीक भी कराया जाता रहा है। ट्रेड टैक्स विभाग द्वारा उक्त लिफ्टों को ठीक से कार्य न करने के संबंध में समय-समय पर इस कार्यालय/कुछ अधिकारियों को सूचित किया जाता रहा है, जिससे इस विभाग की छवि प्रभावित हो रही है।
अत: आपको पुन: सूचित किया जाता है कि आप निर्णयानुसार उक्त लिफ्टों की जांच किसी उच्चस्तरीय तकनीकी टीम से कराने हेतु एक सप्ताह के अंदर कोई तिथि निर्धारित कर इस कार्यालय को सूचित करने का कष्ट करें एवं 15 दिन के अंदर उक्त लिफ्टों की कमियों को ठीक कराने का कष्ट करें। यदि उक्त लिफ्टों को बदलने की आवश्यकता है तो कृपया तद्नुसार शीघ्रतम कार्यवाही करना सुनिश्चित करें, अन्यथा अनुबन्ध की शर्तों के अनुसार कार्यवाही की जायेगी। ''
प्रश्नगत निर्णय में प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद द्वारा अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 को प्रेषित पत्र दिनांक 30.04.2008 का उल्लेख भी किया गया है, जिसमें यह उल्लिखित है कि लिफ्ट के संचालन के दौरान लिफ्टों में खराबी आती रही है, जिसको आप द्वारा ठीक कराया जाता रहा है। जिला मंच द्वारा प्रश्नगत निर्णय में यह भी उल्लिखित है कि उक्त पत्र में अनुबन्ध की शर्तों के अनुसार इन लिफ्टों को तुरन्त ठीक कराया जाये अथवा बदला जाये। इस पत्र में यह भी लिखा है कि दिनांक 07.09.2007 के पत्र के अनुपालन में अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 द्वारा लिफ्ट को ठीक करने हेतु कोई कार्यवाही नहीं की गई। जिला मंच द्वारा यह मत व्यक्त किया गया है कि ऐसी परिस्थिति में प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद को यह कहने का कोई अधिकार नहीं है कि यह लिफ्ट सही है और शुरू से ही कार्य कर रही है। विद्वान जिला मंच का यह निष्कर्ष हमारे विचार से त्रुटिपूर्ण नहीं है। विद्वान जिला मंच द्वारा प्रश्नगत निर्णय में यह भी मत व्यक्त किया गया है कि दिनांक 30.04.2008 की घटना के संदर्भ में प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि उस समय उसके सहायक अभियन्ता व अपर अभियन्ता मौजूद थे। परिवादीगण के कथनानुसार उस समय लिफ्ट का परीक्षण किया जा रहा था और परिवादीगण, विभाग के सहायक अभियन्ता व अपर अभियन्ता भी लिफ्ट में मौजूद थे। अत: प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद का यह कथन स्वीकार योग्य नहीं है कि उन लोगों को लिफ्टों के बटन की सही जानकारी नहीं थी और गलत बटन दबाने के कारण घटना घटित हुई। विद्वान जिला मंच का यह निष्कर्ष भी हमारे विचार से त्रुटिपूर्ण नहीं है।
प्रत्यर्थी संख्या-1 लगायत 3/परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि परिवादीगण, विभाग के पास 100 केवीए का जनरेटर उपलब्ध है। इस संदर्भ में विद्वान जिला मंच के समक्ष प्रतिउत्तर में विशिष्ट रूप से अभिकथित किया गया है। ऐसी स्थिति में अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 एवं प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद का यह तर्क स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है कि विद्युत आपूर्ति बाधित होने के कारण लिफ्टों के संचालन में असुविधा हो रही है। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया है कि स्वंय प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद द्वारा अपीलकर्तागण, मेसर्स एस्कॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 को प्रेषित पत्र दिनांक 07.09.2007 में इस तथ्य का उल्लेख किया गया है कि अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 का यह कथन गलत है कि बैट्रियां चार्ज न होने के कारण लिफ्ट ठीक से कार्य नहीं करती है। प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद की ओर से यह लिखा गया है कि अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 का यह कथन उचित नहीं है कि लिफ्ट में कभी कभी इतनी अवधि तक विद्युत आपूर्ति बाधित रहती ह। मात्र कुछ घंटों के लिए कभी कभी विद्युत आपूर्ति बाधित रहती है। ऐसा प्रतीत होता है कि अपीलकर्तागण/विपक्षी संख्या-1 व 2 अपने उत्तरदायित्व से बचना चाहते हैं। लिफ्ट में प्रारम्भ से ही कुछ न कुछ कमियां आती रही हैं। इस प्रकार स्वंय प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद ने अपने पत्र में यह स्वीकार किया है कि विद्युत आपूर्ति की कमी के कारण लिफ्ट में खराबी नहीं थी।
प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिवाद की सुनवाई के मध्य दिनांक 07.02.2009 को जिला मंच के समक्ष अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 द्वारा एक प्रार्थना पत्र इस आशय का प्रस्तुत किया गया कि उन्हें लिफ्ट की कमियों को दूर करने के लिए अनुमति प्रदान की जाये। इस प्रार्थना पत्र पर जिला मंच द्वारा दिनांक दिनांक 04.03.2009 को यह आदेश पारित किया गया कि अपीलकर्तागण, मेसर्स एस्कॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 प्रश्नगत लिफ्टों की उचित सर्विस प्रत्यर्थी संख्या-1 लगायत 3/परिवादीगण की पूर्ण संतुष्टि के अनुसार किया जाना सुनिश्चित करे। उक्त आदेश के उपरान्त अपीलकर्तागण, मेसर्स एस्कॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 द्वारा प्रश्नगत लिफ्टों की मरम्मत का कार्य किया गया तथा अपीलकर्तागण द्वारा परिवादीगण की संतुष्टि में मरम्मत का कार्य किये जाने के उपरांत डिप्टी कमिश्नर (प्रशासनिक) वाणिज्य कर विभाग, मेरठ को पत्र दिनांक 22.04.2009 द्वारा सहायक निदेशक विद्युत सुरक्षा मेरठ को तकनीकी जांच करके अपनी आख्या प्रस्तुत करने हेतु निर्देशित किया गया तथा जांच करके आख्या प्रस्तुत करें कि प्रश्नगत लिफ्ट में कोई कमी शेष रह गयी अथवा नहीं। सहायक निदेशक, विद्युत सुरक्षा की जांच के उपरांत दिनांक 23.06.2009 एवं दिनांक 14.07.2009 के द्वारा प्रश्नगत लिफ्टों मे कोई कमी नहीं पायी गयी। तदोपरांत दिनांक 05.03.2010 को परिवादीगण द्वारा प्रश्नगत लिफ्टों की तकीनीकी जांच प्रतिष्ठित कम्पनी से कराये जाने हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया। यह प्रार्थना पत्र जिला मंच के आदेश दिनांक 19.03.2010 द्वारा स्वीकार किया गया, किन्तु परिवादीगण ने ओटिस कम्पनी से जांच नहीं करायी, बल्कि प्राइवेट कम्पनी कैप्स कन्सलटेन्ट से जांच करायी, जिन्होंने आख्या दिनांक 22.09.2010 को प्रस्तुत की। इस आख्या में प्रश्नगत लिफ्टों में कोई निर्माण संबंधी त्रुटि नहीं पायी गयी। प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से विदित होता है कि जिला मंच ने सहायक निदेशक विद्युत सुरक्षा द्वारा प्रस्तुत आख्या दिनांक 23.06.2009 एवं आख्या दिनांक 14.07.2009 पर भी विचार किया है तथा यह उल्लिखित किया है कि इस जांच के मध्य भी लिफ्ट समय-समय पर बाधित रही, जिसका इन्द्राज इस संबंध में रखे गये रजिस्टर में किया गया। प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह भी विदित होता है कि परिवादीगण ने दिनांक 16.07.2009 को एक प्रार्थना पत्र पुन: दिया, जिसमें यह उल्लिखित किया गया कि दिनांक 29.06.2009 को लिफ्ट संख्या-ए खराब हो गयी, जिसकी प्रविष्टि रजिस्टर में की गयी थी। प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के कर्मचारी श्री सरजीत सिंह के हस्ताक्षर रजिस्टर में कराये गये। उक्त प्रार्थना पत्र में लिफ्ट की कई कमियों का उल्लेख भी किया गया। परिवादीगण की ओर से प्रस्तुत प्रार्थना पत्र दिनांक 29.06.2009 के रजिस्टर की प्रविष्टि में इस बात का उल्लेख है कि श्री भदौरिया डिप्टी कमिश्नर दिनांक 29.06.2009 का लिफ्ट संख्या-ए में ग्राउण्ड फ्लोर से चतुर्थ तल पर जाने के लिए चढ़े चतुर्थ तल पर पहुंचने पर लिफ्ट का दरवाजा नहीं खुला। कुछ क्षण के पश्चात् लिफ्ट पुन: नीचे की ओर चलने लगी और प्रथम तल पर आने के बाद पुन: ऊपर की ओर चली। पुन: लिफ्ट नीचे की ओर चलने पर वह घबरा गये और उन्होंने दरवाजा खटखटाया तब लिफ्ट ग्राउण्ड फ्लोर पर पहुंची तो लिफ्ट का दरवाजा खुला। इससे स्पष्ट है कि सहायक निदेशक विद्युत सुरक्षा द्वारा जांच करने के उपरांत भी लिफ्ट ने सही कार्य नहीं किया और दिनांक 29.06.2009 को उक्त घटना घटित हुई।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जिला मंच द्वारा प्रयास करने के बावजूद भी प्रश्नगत लिफ्टों का संचालन त्रुटि विहीन नहीं रहा, जिससे समय-समय पर परिवादीगण के अधिकारीगण, कर्मचारीगण, अधिवक्तागण तथा वादकारियों का इस लिफ्ट का प्रयोग असुरक्षित रहा।
जहां तक कैप्स कन्सलटेन्ट द्वारा प्रस्तुत की गयी आख्या का प्रश्न है इस आख्या का हमने अवलोकन किया। इस संदर्भ में जिला मंच के इस मत में बल है कि कैप्स कन्सलटेन्ट द्वारा लिफ्ट को चलाकर देखा नहीं गया। ऐसी परिस्थिति में पूर्व घटित घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में यह नहीं कहा जा सकता है कि लिफ्ट चालू होने की स्थिति में इनका संचालन सुरक्षित एवं बिना किसी त्रुटि के होगा। इस रिपोर्ट में भी प्रश्नगत लिफ्टों को त्रुटि विहीन होना नहीं कहा गया है।
अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 तथा प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत लिफ्टों के कार्य के संबंध में निष्पादित अनुबन्ध पत्र में लिफ्टों को बदले जाने की कोई शर्त नहीं है। उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत लिफ्टो के कार्य किये जाने के संबंध में निष्पादित संविदा की प्रति दाखिल नहीं की गयी। स्वंय प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद, जिसे प्रश्नगत लिफ्टों का क्रेता होना बताया गया है, ने अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 से किये गये पत्राचार में समय-समय पर प्रश्नगत लिफ्टों को बदले जाने हेतु अभिकथित किया है। प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि जिला मंच ने यह मत व्यक्त किया है कि अनुबन्ध की जनरल कण्डीशन आफ कान्ट्रेक्ट के क्लॉज संख्या-3(1)(ए) के अनुसार प्रश्नगत लिफ्टों को बदला जा सकता है। इस संदर्भ में अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 तथा प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के विद्वान अधिवक्ता द्वारा तर्क प्रस्तुत नहीं किया गया है।
निर्विवाद रूप से अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 प्रश्नगत लिफ्टों के विक्रेता हैं तथा वारण्टी अवधि के मध्य ही प्रश्नगत लिफ्टों के संचालन में कमी पायी गयी। परिवादीगण, विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों, अधिवक्तागण एवं वादकारियों द्वारा लिफ्टों का उपयोग समय-समय पर असुरक्षित पाया गया। समय-समय पर प्रश्नगत लिफ्ट के संचालन में हुई त्रुटियों तथा असुरक्षा से अपीलकर्तागण, मेसर्स एसकॉन एलीवेटर्स प्रा0लि0 को अवगत कराया जाता रहा, किन्तु वर्षों तक लिफ्ट में पायी गयी त्रुटियों का पूर्ण निराकरण संभव न हो सका। अंतत: लिफ्ट का संचालन लम्बी अवधि से बन्द है। प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि विद्वान जिला मंच ने पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों, पक्षकारों के अभिकथनों एवं सम्पूर्ण परिस्थितियों पर विस्तृत रूप से विचार करने के उपरांत प्रश्नगत निर्णय पारित किया है।
प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत परिवाद में परिवादीगण ने प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के विरूद्ध क्षतिपूर्ति का कोई अनुतोष नहीं चाहा गया है।
प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के विद्वान अधिवक्ता के तर्क में बल प्रतीत होता है। परिवाद के अभिकथनों में स्वंय परिवादीगण ने प्रत्यर्थी संख्या-4, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद से किसी क्षतिपूर्ति की मांग नहीं की है, अत: क्षतिपूर्ति के सन्दर्भ में प्रत्यर्थी संख्या-4 के विरूद्ध पारित प्रश्नगत आदेश अपास्त किये जाने योग्य है। तदनुसार अपीलकर्तागण/विपक्षी संख्या-3, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद द्वारा प्रस्तुत अपील संख्या-126/2011 आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है तथा अपीलकर्तागण/विपक्षी संख्या-1 व 2 द्वारा प्रस्तुत अपील संख्या-121/2011 निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील संख्या-121/2011 निरस्त की जाती है तथा अपीलकर्तागण के विरूद्ध पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपील संख्या-126/2011 आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। क्षतिपूर्ति के रूप में आदेशित रू0 50,000/- की अदायगी के सन्दर्भ में अपीलकर्तागण/प्रत्यर्थी संख्या-4 के विरूद्ध पारित प्रश्नगत आदेश अपास्त किया जाता है तथा शेष आदेश की पुष्टि की जाती है।
इस निर्णय की मूल प्रति अपील संख्या-121/2011 में रखी जाये एवं इसकी एक सत्य प्रति अपील संख्या-126/2011 में भी रखी जाये।
पक्षकारान को इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध कर दी जाए।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्द्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2