Milan sharma filed a consumer case on 10 Jun 2015 against State of Rajasthan, Director & Others in the Kota Consumer Court. The case no is CC/10/2009 and the judgment uploaded on 16 Jul 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष, मंच, झालावाड केम्प कोटा ( राजस्थान )
पीठासीनः- अध्यक्ष, श्री नंदलाल शर्मा, मेम्बर श्री महावीर तंवर
परिवाद संख्या:-10/09
मिलन शर्मा पुत्र ओम प्रकाश शर्मा आयु 37 साल जाति ब्राहमण निवासी मकान नं. 1-त-2, दादाबाडी, कोटा राजस्थान। परिवादी
बनाम
01. स्टेट आफॅ राजस्थान जरिये निदेशक एवं पदेन उपसचिव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाऐं ई0 एस0 आई0 योजना, लक्ष्मीनगर, अजमेर रोड, राजस्थान।
02. चिकित्सा अधिकारी प्रभारी (कर्मचारी बीमा योजना) औषधालय नं. 3 झालावाड रोड कोटा राजस्थान।
03. डा0 चन्द्रभान साहब, कन्सलटेन्ट कार्डियोलोजिस्ट विभागाध्यक्ष कार्डियोलोजी एस एम एस हास्प्टिल एवं मेडिकल काॅलेज जयपुर 15, अर्जुनपुरी ईमलीवाला फाटक ज्योति नगर, जयपुर।
04. डा0 शफी आरसीवाला, एस.के. सोनी हास्पिटल, विद्याद्यरनगर, जयपुर।
05. मैसर्स यूरिकाफोब्र्स लिमिटेड, 10-डी, द्वितीय फलोर, पंजवानी काॅम्पलेक्स, न्यू कोलोनी, गुमानपुरा, कोटा।
06. कर्मचारी राज्य बीमा निगम पंचदीप भवन सी आई जी मार्ग नई दिल्ली-110002 अप्रार्थीगण
प्रार्थना पत्र अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थिति:-
01. श्री ओम प्रकाश शर्मा, प्रतिनिधि, परिवादी की ओर से ।
02. श्री रितेश मेवाडा, अधिवक्ता, विपक्षी सं. 1,2 व 6 की ओर से।
03. अप्रार्थी सं. 3,4,5 के विरूद्ध एक पक्षीय कार्यवाही।
निर्णय दिनांक 10.06.2015
परिवादी का यह परिवाद जिला मंच कोटा से स्थानान्तरण होकर वास्ते निस्तारण जिला मंच, झालावाड, केम्प कोटा को प्राप्त हुआ, जिसमें अंकित किया कि उसके पिता श्री ओम प्राकश शर्मा दिनांक 15.07.07 को हार्ट अटेक होने के कारण अचानक कोटा हार्ट इन्स्टीट्यूट सुधा अस्पताल कोटा में भर्ती करना पडा,जिसकी सूचना दिनांक 15.07.07 को ही वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी, राज्य बीमा औषधालय नम्बर 3 कोटा एवं अप्रार्थी सं. 1 को दी। परिवादी के पिता को आई एस आई अस्पताल नं. 3 कोटा ने यह अंकित करते हुए कि पेशेन्ट आरलेडी इन आई एस आई हास्पीटल इन इमरजेन्सी रेफर टू फिजिशियन ई एस आई हास्पीटल फोर नीडफुल रेफर किया, और उक्त अस्पताल ने दिनांक 31.07.07 को एम बी एस हास्पीटल कोटा में रेफर किया। दिनांक 01.08.07 को डा0 चन्द्रभान को दिखाया जिसने दिनांक 02.08.07 को एस0के0 सोनी हास्पीटल जयपुर में रेफर किया। परिवादी के ईलाज में 1,66,551,78 पैसे के खर्च के बिल विपक्षीगण के यहाॅ भुगतान हेतु पडे हुये है, अप्रार्थीगण ने उक्त राशि का भुगतान आज तक नहीं कर, उसकी सेवा में कमी की है। अतः परिवादी को अप्रार्थीगण से 1,66,551,78 पैसे मय ब्याज , मानसिक क्षति तथा परिवाद खर्च दिलवाया जावे।
अप्रार्थी सं0 1,2 व 6 ने परिवादी के परिवाद का विरोध करते हुये जवाब पेश किया उसमें अंकित किया कि परिवादी उनका उपभोक्ता नहीं है। उच्च स्तरीय जांच समिति से जांच कराने पर पाया कि परिवादी का क्लेम देय नहीं होने के कारण उसका भुगतान नहीं किया गया। परिवादी ने अप्रार्थीगण को कोई सूचना नहीं दी । परिवादी के पिता को ई एस आई हास्पीटल ने एस के सोनी हास्पीटल में रेफर नहीं किया। परिवादी ने उक्त हास्पीटल में जाने का निर्णय अपने स्तर पर लिया, जिसके लिये वह स्वयं जिम्मेदार है। निजी चिकित्सालय मंे कराये गये ईलाज के पुर्नभरण के लिये विपक्षीगण जिम्मेदार नहीं है और भुगतान योग्य नहीं है। विपक्षीगण ने परिवादी के पिता को डा0 चन्द्र भान मीणा से व्यक्तिशः मिलने के लिये नही कहा था, यदि परिवादी के पिता अपने स्तर पर मिलकर कोई निर्णय करते है तो उसके लिये वह स्वयं जिम्मेदार होगे। विपक्षीगण ने परिवादी के क्लेम का भुगतान न कर उसकी सेवा में किसी भी प्रकार का कोई सेवा दोष नहीं किया । परिवादी का परिवाद सव्यय खारिज किया जावे।
अप्रार्थी सं. 5 ने परिवादी के परिवाद का विरोध करते हुये जवाब पेश किया उसमें अंकित किया कि परिवादी का बीमा किया जाना स्वीकार है। परिवादी ने परिवाद में अप्रार्थी सं. 5 के विरूद्ध कोई भी कथन अंकित नहीं किया है। अतः परिवादी का प्रार्थना-पत्र सव्यय खारिज किया जावे।
उपरोक्त अभिकथनों के आधार पर बिन्दुवार हमारा निर्णय निम्न प्रकार हैः-
01. आया परिवादी अप्रार्थीगण का उपभोक्ता है ?
परिवादी के परिवाद, शपथ-पत्र, तथा अप्रार्थीगण के जवाब से परिवादी, अप्रार्थीगण का उपभोक्ता है।
02. आया परिवादी का परिवाद इस मंच के श्रवणाधिकार का है?
उभय पक्षों को सुनने,पत्रावली का अध्य्यन अवलोकन करने तथा परिवादी द्वारा प्रस्तुत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, अप्रार्थीगण द्वारा पेश किये गये न्यायिक दृष्टान्त का ससम्मान अध्य्यन किया। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी का परिवाद ई एस आई एक्ट की धारा 75(3) के तहत इस जिला मंच के श्रवणाधिकार का नही है, परिवादी कोई रिलीफ चाहे तो वह सक्षम न्यायालय ई एस आई कोर्ट में कार्यवाही कर सकता है। अप्रार्थीगण ने अपने उक्त तर्क के समर्थन में माननीय राष्टीय आयोग का न्यायिक दृष्टान्त पेश किया है। वर्तमान प्रकरण में परिवादी के पिता के ईलाज के बिल ईलाज पूरा होने पर उसने उन्हे भुगतान हेतु अप्रार्थीगण को भेज दिया, जिस पर अप्रार्थीगण ने परिवादी के पिता के ईलाज के बिलोें पर उच्च स्तरीय जांच समिति जांच करवाकर देय योग्य नहीं पाये, अर्थात परिवादी के द्वारा पेश किये गये बिलों का निस्तारण कर दिया गया, जबकि अप्रार्थी ने न्यायिक दृष्टान्त माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई देहली, रीवीजन रिट पीटीशन नं. 543/98 आदेश दिनांक 26.03.96 उनवानी अरूण कुमार गुप्ता बनाम कर्मचारी बनाम राज्य बीमा निगम वाले मामले में कर्मचारी के ईलाज के बिल पेंडिग थे, इसलिये उपभोक्ता अधिनियम के तहत सुनवाई का श्रवणाधिकार नहीं माना था, इस प्रकार न्यायिक दृष्टान्त वाले प्रकरण एवं वर्तमान प्रकरण के तथ्य भिन्न होने से वर्तमान प्रकरण में कोई प्रकाश प्राप्त नहीं होता है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने न्यायिक दृष्टान्त 2007 एन सी जे 441 (एस सी) पेश किया, न्यायिक दृष्टान्त वाले प्रकरण के तथ्य और वर्तमान प्रकरण के तथ्य भिन्न होने से वर्तमान प्रकरण में कोई प्रकाश प्राप्त नहीं होता । परिवादी ने अप्रार्थीगण के उपरोक्त तर्क का खंडन करते हुये निवेदन किया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 3 में निम्न प्रकार से अंकित किया गया हैः- 3ण् ।बज दवज पद कमतवहंजपवद व िंदल वजीमत संू.ज्ीम चतवअपेपवदे व िजीपे ।बज ेींसस इम पद ंककपजपवद जव ंदक दवज पद कमतवहंजपवद व िजीम चतवअपेपवदे व िंदल वजीमत संू वित जीम जपउम इमपदह पद वितबमण् और उपरोक्त अधिनियम के तहत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के रहते अन्य किसी भी प्रकार का कानून प्रभावी नहीं हो सकता, इसलिये अप्रार्थीगण द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृष्टान्त वर्तमान प्रकरण पर लागू नहीं होता, और इस मंच को परिवादी के परिवाद को सुनने का श्रवणाधिकार प्राप्त है।
03. आया अप्रार्थीगण ने सेवा दोष किया है ?
उभय पक्षों को सुनने, पत्रावली में उपलब्ध रेकार्ड एवं उभय पक्षों द्वारा पेश किये गये न्यायिक दृष्टान्तों का ससम्मान अध्य्यन करने से स्पष्ट होता है कि परिवादी के पिता श्री ओम प्राकश शर्मा दिनांक 15.07.07 को हार्ट अटेक होने के कारण अचानक कोटा हार्ट इन्स्टीट्यूट सुधा अस्पताल कोटा में भर्ती करना पडा,जिसकी सूचना दिनांक 15.07.07 को ही वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी, राज्य बीमा औषधालय नम्बर3 कोटा एवं अप्रार्थी सं. 1 को दी। परिवादी के पिता को आई एस आई अस्पताल नं. 3 कोटा ने यह अंकित करते हुए कि पेशेन्ट आरलेडी इन आई एस आई हास्पीटल इन इमरजेन्सी रेफर टू फिजिशियन ई एस आई हास्पीटल फोर नीडफुल रेफर किया, और उक्त अस्पताल ने दिनांक 31.07.07 को एम बी एस हास्पीटल कोटा में रेफर किया। दिनांक 01.08.07 को डा0 चन्द्रभान को दिखाया जिसने दिनांक 02.08.07 को एस0के0 सोनी हास्पीटल जयपुर में रेफर किया। परिवादी के ईलाज में 1,66,551,78 पैसे के खर्च के बिल विपक्षीगण के यहाॅ भुगतान हेतु पडे हुये है। अप्रार्थी सं. 1,2 व 6 उच्च स्तरीय जांच के आधार पर परिवादी के बिलों का भुगतान नहीं कर रही है। अप्रार्थी सं. 1,2 व 6 का मुख्य तर्क यही है कि परिवादी के पिता ने निजी हास्पीटल में इ्रलाज करवाया है जो उनसे पूछ कर नहीं करवाया और निजी अस्पताल के ईलाज की राशि का भुगतान करने में असमर्थता व्यक्त करते है और उच्च स्तरीय जांच समिति ने जांच करके परिवादी के ईलाज के बिलों को भुगतान योग्य नही पाने से भुगतान करने से इंकार कर दिया। परिवादी के प्रतिनिधी ने अप्रार्थी सं. 1,2 व 6 के उक्त तर्क का खंडन करते हुये निवेदन किया कि परिवादी के पिता को हार्ड अटेक जैसी गभीर प्रकृति की बीमारी थी,जिससे बीमार व्यक्ति की मौत हो सकती है ऐसे मे जैसे जैो चिकित्सको ने उसे जहाॅ जहाॅ रेफर किया वही उसने अपना ईलाज करवाया और ईलाज में जो खर्चा हुआ उसके बिल अप्रार्थीगण को भुगतान के लिये दिये जिनका भुगतान अभी तक अप्रार्थीगण ने नहीं किया और उच्च स्तरीय जांच समिति का बहाना लगाकर परिवादी को उक्त बिलों का भुगतान नहीं किया है। परिवादी ने अपने उक्त तर्क के समर्थन में न्यायिक दृष्टान्त 268 वेस्टर्न ला केसेज (राजस्थान2005)(2) राजस्थान उच्च न्यायालय जयपुर बैंच उनवानी हिम्मत सिंह बनाम राजस्थान राज्य और अन्य पेश किया। माननीय उच्च न्यायालय ने उक्त न्यायिक दृष्टान्त में यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि परिवादी को छाती में दर्द से ह्दय का दौरा- एस एम एस या अन्य राजकीय चिकित्सालय में आपात सुविधा उपलब्ध होने की कोई साक्ष्य नही, याची को टांग्या ह्दय और सामान्य चिकित्सालय ले जाया गया- प्रस्तुत बिल सत्य पाये गये -याची चिकित्सा व्यय हुई राशि का 80 प्रतिशित या रूपये 1,20,000/- रूपये जो न्यून हो, का हकदार। आपताकालीन परिस्थितियों में किसी मरीज के घर वाले से ये अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह उस समय ये पता करे कि कौनसा अस्पाताल ईलाज के लिये अधिकृत है, क्योकि मरीज की जान बचाना सर्वोपरि रहता है। बनाये गये नियमों का ऐसी स्थिति में यदि पूर्णतःपालन किया जाये तो परिणाम घातक हो सकते है और मरीज की जान जा सकती है सामान्य स्थिति में भले ऐसे नियामों पर ध्यान दिया जाये, परन्तु प्रक्रिया भी ऐसी पेचीदी न हो कि किसी को उससे हताषा हो । आपात काल में जब किसी की जिन्दगी खतरे में हो तो धन को भी नही देखा जाना चाहिए। जोधपुर की एक खण्डपीट के सिविल अपील सं. 457/01 में राजस्थान सरकार बनाम नवरतनमल मेहता के केस में 115/04 में भी यही दर्शाया गया था कि भारतीय संविधानकी धारा 21 के तहत अपनी सुरक्षा के लिये चिकित्सा प्राप्त करना जीवित रहने के अधिकार जैसा है तथा बिना किसी स्थान का ध्यान रखते प्रार्थी चिकित्सा व्यय के पुनर्भरन का हकदार है। इसी प्रकार वी डी सक्सेना बनाम राजस्थान सरकार वाले केस नं. 2003(3)आर एल आर 629 में भी तकनीकी आधार पर पुनर्भरण अस्वीकार करना केवल मनमाना गलत और अन्याय है। राजकीय अस्पताल की स्थिति सभी को विदित है और बीमार तथा उसके घरवालो को हमेशा उस समय सर्वोतम इलाज की फिक्र रहती है जिससे उसकी जानकी सुरक्षा हो । अतः मेरे विचार से योजना के अनुसार पुनर्भरण को अस्वीकार करना बिल्कुल गलत है। उपरोक्त विवेचन, विशलेषण को दृष्टिगत रखते हुये हमारे विचार से परिवादी के द्वारा पेश किये गये ईलाज के बिलों का भुगतान न कर अप्रार्थीगण ने परिवादी की सेवा में कमी की है।
03. अनुतोष ?
परिवादी का परिवाद अप्रार्थीगण के खिलाफ आंशिक रूप से सयंुक्ततः अथवा पृथकततः स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी मिलन शर्मा का परिवाद अप्रार्थीगण के खिलाफ आंशिक रूप से संयुक्ततः अथवा पृथकततः स्वीकार किया जाकर आदेश दिया जाता है कि:-
01. परिवादी को अप्रार्थीगण ईलाज के खर्च के1,66,552/-रूपये, अक्षरे एक लाख छाछठ हजार,पांच सौ बावन रूपये अदा करे।
02. अप्रार्थीगण परिवादी को 5,000/- रूपये ,अक्षरे पांच हजार रूपये मानसिक क्षति के, 5,000/- रूपये, अक्षरे पांच हजार रूपये परिवाद खर्च के अदा करे।
03. अप्रार्थीगण आदेश की पालना निर्णय के दिनांक से दो माह के अंदर करे।
(महावीर तंवर) (नंदलाल शर्मा)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष
मंच,झालावाड केम्प कोटा मंच, झालावाड, केम्प कोटा।
निर्णय आज दिनांक 10.06.2015 को खुले मंच में लिखाया जाकर सुनाया गया।
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष
मंच,झालावाड केम्प कोटा मंच, झालावाड, केम्प कोटा।
Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes
Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.