(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-657/2008
(जिला आयोग, अलीगढ़ द्वारा परिवाद संख्या-199/2006 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 27.2.2008 के विरूद्ध)
1. श्रीमती विमलेश शर्मा पत्नी श्री आर.पी. शर्मा।
2. श्री आनन्द शर्मा पुत्र श्री आर.पी. शर्मा।
3. श्रीमती बीना शर्मा पत्नी श्री आनन्द शर्मा।
4. कुमुंद शर्मा पुत्री श्री आर.पी. शर्मा।
5. जया शर्मा पुत्री श्री आर.पी. शर्मा।
6. श्री आर.पी. शर्मा पुत्र श्री पी.एल. शर्मा।
समस्त निवासीगण 1/543 राजेन्द्र कालोनी, सुरेन्द्र नगर, अलीगढ़।
7. मैसर्स जया इंजीनियरिंग वर्क्स द्वारा पार्टनर श्रीमती विमलेश शर्मा।
अपीलार्थीगण/परिवादीगण
बनाम
1. दि रिजनल मैनेजर, यू.पी. स्टेट इण्डस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन लि0, ताला नगरी, अलीगढ़।
2. दि यू.पी.एस.आई.डी.सी. लि0, रजिस्टर्ड आफिस ए-1/4 लखनपुर, कानपुर द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर।
प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री पी.पी. श्रीवास्तव के
कनिष्ठ सहायक।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री अजय कुमार सिंह।
दिनांक: 21.05.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-199/2006, श्रीमती विमलेश शर्मा तथा छ: अन्य बनाम रिजनल मैनेजर, उ0प्र0 स्टेट इण्डस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन लि0 तथा एक अन्य में विद्वान जिला आयोग, अलीगढ़ द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 27.2.2008 के विरूद्ध यह अपील स्वंय परिवादीगण की ओर से अनुतोष में बढ़ोत्तरी के लिए प्रस्तुत की गई है। इस निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला आयोग ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए विपक्षी निगम को यह निर्देशित किया है कि 30 दिन के अन्दर वादीगण का पट्टा निरस्त कर उनके द्वारा जमा राशि अंकन 9,16,153/-रू0 6 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस करें तथा अंकन 50,000/-रू0 हर्जा व परिवाद व्यय के रूप में अंकन 1,000/-रू0 भी अदा करे।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी ने विपक्षी निगम से दिनांक 19.4.2004 को विवादित प्लाट पट्टे पर लिया था तथा कुल रू0 8,39,752.94 पैसे निगम को अदा किए थे। वर्ष 2005 में होली त्योहार के करीब परिवादी ने प्लाट पर निर्माण कार्य प्रारम्भ किया तब आस-पास के गांव वालों ने विरोध किया और बताया कि इस जमीन के बारे में मुकदमे बाजी चल रही है। दिवानी न्यायालय से निषेधाज्ञा जारी है। जानकारी करने पर ज्ञात हुआ कि मूल वाद संख्या 65/1999, मुरारी सिंह व यू.पी.एस.आई.डी.सी. लम्बित है और न्यायालय ने दिनांक 11.3.1999 को यथा-स्िथति के आदेश पारित किए हैं। दिनांक 19.4.2004 को वादी के पक्ष में विपक्षी द्वारा पट्टा निष्पादित कर दिया, जिसमें अंकन 76,400/-रू0 खर्च हुए, परन्तु मौके पर कोई कार्य नहीं हो रहा है। दिवानी वाद लम्बित है। इन सभी तथ्यों को शपथ पत्र एवं दस्तावेजों से साबित किया गया है, जिस पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग ने उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया है।
3. इस निर्णय/आदेश को स्वंय परिवादीगण द्वारा इन आधारो पर चुनौती दी गई है कि विपक्षी द्वारा किसी अन्य न्यायालय में चल रहे वाद के बारे में नहीं बताया गया तथा विद्वान जिला आयोग ने पट्टा विलेख रद्द करने का आदेश अवैध रूप से पारित किया है और कंपनशेसन की राशि अंकन 50 हजार रूपये के स्थान पर अंकन 15 लाख रूपये दिलाए जाने का अनुरोध किया है।
4. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता के साथी अधिवक्ता उपस्थित हुए, परन्तु उनके द्वारा कोई बहस नहीं की गई तथा प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने भी बहस नहीं की और कहा कि लिखित बहस पत्रावली पर उपलब्ध है, उसे ही मौखिक बहस मानी ली जाए। अत: पीठ द्वारा स्वंय प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली तथा लिखित बहस का अवलोकन किया गया।
5. परिवाद पत्र में परिवादीगण द्वारा उपरोक्त वर्णित तथ्यों का उल्लेख करते हुए निम्न लिखित अनुतोष की मांग की गई है :-
(1) अंकन 15 लाख रूपये की क्षतिपूर्ति दिलाई जाए। वाद खर्च दिलाया जाए।
उपरोक्त अनुतोषों में से कोई भी अनुतोष परिवादीगण के पक्ष में निष्पादित दस्तावेज को निरस्त करने के लिए नहीं किया गया था, इसलिए विद्वान जिला आयोग द्वारा वह अनुतोष स्वीकार किया गया है, जिसकी मांग नहीं की गई। अत: विलेख निरस्त करने वाला आदेश अनुचित है। इस आदेश को निरस्त किया जाना योग्य है।
6. अब इस बिन्दु पर विचार किया जाता है कि क्षतिपूर्ति की राशि क्या निर्धारित की जानी है। विद्वान जिला आयोग द्वारा अंकन 50,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति दिलाई गई है। उल्लेखनीय है कि परिवादीगण द्वारा वर्ष 2005 से पूर्व रू0 8,39,752.94 पैसे जमा किए जा चुके थे। मौके पर समयावधि के अंदर निर्माण कार्य न होने के कारण परिवादीगण इस राशि का उपयोग नहीं कर सके, इस राशि का उपयोग न करने के कारण जो क्षति कारित हुई है। परिवादीगण उस क्षति को प्राप्त करने के लिए अधिकृत हैं। चूंकि यह राशि वर्ष 2004 में जमा की गई थी। परिवाद वर्ष 2006 में दाखिल किया गया, जिस पर निर्णय दिनांक 27.2.2008 को हुआ है, इसके बाद भी लगभग 16 वर्ष इस आयोग में व्यतीत हो चुके हैं। अभी तक अपीलार्थीगण इस प्लाट पर निर्माण कार्य कराने में सफल नहीं हुए हैं। प्रत्यर्थीगण द्वारा लिखित बहस में उल्लेख किया गया है कि सिविल वाद के संबंध में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। यह तर्क इस आधार पर अग्राह्य है कि सिविल वाद में प्रत्यर्थीगण को पक्षकार बनाया गया है। यह भी उल्लेख किया गया कि अंतरिम आदेश देने के बावजूद परिवादीगण ने निर्माण कार्य पूरा नहीं किया, परन्तु चूंकि मौके पर निर्माण कार्य नहीं होने दिया गया। स्टे आदेश दिखाया गया सिविल वाद लम्बित पाया गया, इसलिए निर्माण कार्य पूर्ण करने का कोई अवसर ही नहीं था। अत: प्रत्यर्थीगण की ओर से लिखित बहस में जो अभिवाक लिए गए हैं, वह निरर्थक हैं।
7. परिवादीगण अपने द्वारा जमा राशि पर वास्तविक निर्माण कार्य पूर्ण न होने की तिथि तक 12 प्रतिशत की दर से ब्याज प्राप्त करने के लिए अधिकृत हैं। यह ब्याज राशि ही प्रतिकर की राशि निर्धारित की जाती है तथा प्रत्यर्थीगण को आदेशित किया जाता है कि जमा राशि, जमा की तिथि से 12 प्रतिशत प्रतिवर्ष साधारण ब्याज की दर से गणना करते हुए परिवादीगण को तीन माह के अंदर उपलब्ध कराई जाए। यद्यपि गणना करने से पूर्व यह सुनिश्चित कर लिया जाए कि निर्माण कार्य किस तिथि को बंद हो चुका है, उसके पश्चात ब्याज अदा करने की आवश्यकता नहीं होगी। तदनुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
8. प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 27.2.2008 इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि प्रत्यर्थीगण को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादीगण को जमा राशि, जमा की तिथि से 12 प्रतिशत प्रतिवर्ष साधारण ब्याज की दर से गणना करते हुए परिवादीगण को तीन माह के अंदर उपलब्ध कराई जाए। यद्यपि गणना करने से पूर्व यह सुनिश्चित कर लिया जाए कि निर्माण कार्य किस तिथि को बंद हो चुका है, उसके पश्चात ब्याज अदा करने की आवश्यकता नहीं होगी। यह ब्याज राशि ही प्रतिकर की राशि निर्धारित की जाती है। यद्यपि परिवाद व्यय के संबंध में पारित आदेश पुष्ट किया जाता है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2