Madhya Pradesh

Seoni

CC/11/2013

RAJENDRA SINGH - Complainant(s)

Versus

STATE BANK OFF INDIA - Opp.Party(s)

17 Apr 2013

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)


प्रकरण क्रमांक -11-2013                                   प्रस्तुति दिनांक-03.01.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,

गजेन्द्र सिंह, आत्मज श्री जगराम सिंह 
राजपूत, मिषन स्कूल के पास, छपारा
तहसील व जिला सिवनी
(म0प्र0)।....................................................................आवेदकपरिवादी।


                :-विरूद्ध-:                  
(1)    स्टेट बैंक आफ इणिडया, द्वारा-
    षाखा प्रबंधक, षाखा छपारा,
    तहसील व जिला सिवनी (म0प्र0)।
(2)    षाखा प्रबंधक, स्टेट बैंक आफ इणिडया
    नयागांव जबलपुर, ब्लाक नंबर-6 एम0पी0
    केम्पस रामपुर जबलपुर
    (म0प्र0)।....................................................अनावेदकगणविपक्षीगण।

                    
                 :-आदेश-:
     (आज दिनांक-17/04/2013             को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1)        परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, अनावेदक क्रमांक-1 बैंक षाखा सिथत परिवादी के बचत खाता में परिवादी के द्वारा, भारतीय स्टेट बैंक, रामपुर जबलपुर के खाता से जारी 3,00,000-रूपये का चेक क्रमांक-634171, दिनांक-16.07.2012 की राषि परिवादी के खाते में भुगतान कर देने के बाद, खाते से उक्त राषि परिवादी के सहमति के बिना, अनावेदक क्रमांक-1 बैंक षाखा द्वारा वापस निकाल लेने और उक्त चेक अनादर हो जाने की सूचना का ज्ञापन विलम्ब से दिनांक-05.09.2012 का स्वयं अनावेदक क्रमांक-1 की षाखा द्वारा बनाकर दे-देने और अनावेदक क्रमांक-2 का ज्ञापन साथ में न दिये जाने को सेवा में कमी बताते हुये हर्जाना दिलाने के अनुतोश के लिए पेष किया है।
(2)         मामले में यह स्वीकृत सिथति है कि-परिवादी का बचत खाता क्रमांक-11522153985 अनावेदक क्रमांक-1 की बैंक षाखा में धारित है। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि-भारतीय स्टेट बैंक, रामपुर जबलपुर के बचत खाता क्रमांक-10238059619 से परिवादी के नाम जारी 3,00,000-रूपये का चेक क्रमांक-634171, दिनांकित-16.7.2012 परिवादी ने अपने बचत खाता में जमा करने के लिए दिनांक-17.07.2012 को अनावेदक क्रमांक-1 की बैंक षाखा में पेष किया था। यह भी विवादित नहीं कि-उसी दिन परिवादी के बचत खाता में 3,00,000- रूपये की राषि जमा होना दर्षा दी गर्इ और बाद में दिनांक-05.09.2012 का चेक अनादरण का ज्ञापन अनावेदक क्रमांक-1 की षाखा द्वारा जारी बताकर, दिनांक-06.09.2012 को परिवादी के खाते से उक्त 3,00,000-रूपये की राषि अनावेदक क्रमांक-1 बैंक षाखा द्वारा वापस ले-ली गर्इ।
(3)        स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- परिवादी के बचत खाता में जमा चेक की राषि 3,00,000-रूपये दिनांक-06.09.2012 को अनावेदक क्रमांक-1 बैंक षाखा द्वारा वापस आहरित कर लिये जाने की जानकारी परिवादी को होते ही, अनावेदक क्रमांक-1 से संपर्क किया गया, तो अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा चेक अनादरण के ज्ञापन दिनांक-05.09.2012 स्वयं बनाकर दे-दिया गया, जिसकी सूचना संबंधित चेक जारीकत्र्ता को दिये जाने पर उन्होंने ऐसा कोर्इ निर्देष बैंक को न देना और बैंक की ही त्रुटि होना बताया, परिवादी के बैंक खाता में जमा चेक की राषि 3,00,000-रूपये वापस ले-लिये जाने से वह उक्त राषि के उपयोग से वंचित हुआ है, जो कि- बैंक के बाहरी षाखा से चेक की राषि तीन से लेकर सात दिन के अंदर समाषोधित होना आवष्यक है, अनावेदक क्रमांक-1 ने दो माह पष्चात चेक के अनादरण की सूचना का ज्ञापन जारी किया और अनावेदक क्रमांक-2 बैंक षाखा ने अनावेदक क्रमांक-1 की बैंक षाखा से सांठगांठ कर, उसके विलम्ब व षंकास्पद प्रणाली में सहयोग किया है। 
(4)        अनावेदक क्रमांक-2 मामले में उपसिथत नहीं हुआ और उसके विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही की गर्इ। 
(5)        अनावेदक क्रमांक-1 के जवाब का सार यह है कि-परिवादी ने अपने बैंक खाते में चेक क्रमांक-8271 राजेष्वरराम दुबे के बचत खाता क्रमांक-10018872479 का प्राप्त किया था, जो अनावेदक क्रमांक- 1 की बैंक षाखा में अपने खाते में जमा किया, उक्त चेक को रिकार्ड पर लेकर, पासिंग आफिसर के पास पहुंचाया गया, तो उसके द्वारा चेक में तारिख की गड़बड़ी होना बताकर वापस करने कहा गया, तो वह चेक क्रमांक-8271 परिवादी को वापस कर दिया गया था, लेकिन तकनीकी त्रुटि के कारण, उक्त चेक में वर्णित राषि खाताधारक राजेष्वरराम दुबे के खाते से आहरित कर, परिवादी के खाते में जमा कर दी गर्इ, पर अनावेदक क्रमांक-1 को जब ज्ञात हुआ कि-उक्त चेक, परिवादी को चेक में गड़बड़ी होने के कारण वापस कर दिया गया है, तो तत्काल परिवादी के खाते से उक्त चेक की राषि 3,00,000-रूपये निकालकर पुन: चेक प्रदानकत्र्ता राजेष्वरराम दुबे के खाते में जमा कर दिये, जो कि-परिवादी के द्वारा, दिनांक-16.07.2012 को अनावेदक क्रमांक-1 के बैंक में जमा किया गया, जिसे रिकार्ड्र में लिया जाकर, उक्त चेक के अवलोकन में चेक जारी करने का दिनांक-26.07.2012 होना दर्षित हो रहा था, तो परिवादी को जानकारी दी गर्इ की उसके द्वारा जमा किया गया चेक दस दिन बाद की तारिख का है, तो परिवादी के द्वारा कहा गया कि-चेक जारीकत्र्ता से पूछकर चेक जारी करने की दिनांक बता देंगे, तब-तक आप चेक को खाते में न लें। फिर परिवादी ने दिनांक-05.09.2012 को अनावेदक क्रमांक-1 के समक्ष उपसिथत होकर यह बताया कि-चेक क्रमांक-634171 का जारी होने का दिनांक- 16.07.2012 ही है, आप इसे मेरे खाते में जमा करें, तब उक्त चेक को परिवादी के खाते में लिया जाकर, चेक जारीकत्र्ता के खाता क्रमांक- 10238059619 में चेक के भुगतान हेतु पर्याप्त निधि न होने के कारण, इस टीप के साथ परिवादी को चेक वापस कर दिया गया कि-चेक प्रदानकत्र्ता के खाते में पर्याप्त निधि नहीं है और परिवादी को यह जानकारी भी मौखिक रूप से दे-दी गर्इ थी कि-दिनांक-16.07.2012 को जो चेक क्रमांक-8271 उसे वापस किया गया था, भूलवष उक्त चेक में वर्णित राषि परिवादी के खाते में जमा कर दी गर्इ थी, जिसे पुन: वापस ली जाकर चेक जारीकत्र्ता के खाते में पुन: जमा कर दी गर्इ है। स्पश्ट है कि-परिवाद में दर्षाये विवादित चेक क्रमांक-634171 का जो चेक परिवादी द्वारा बैंक षाखा में पेष किया गया, वह चेक जारीकत्र्ता के खाते में पर्याप्त राषि न होने से आहरण नहीं किया जाकर, परिवादी के खाते में राषि जमा नहीं हुर्इ है, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी नहीं की गर्इ है, उसने वास्तविक सिथति न बताकर, झूठे कथनों का सहारा लेकर, गोलमोल तरीका अपनाकर झूठा परिवाद पेष किया है।
(6)        मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
        (अ)    क्या अनावेदकगण ने परिवाद में संदर्भित चेक 
            क्रमांक-634171 की राषि परिवादी के खाते में
            जमा कर और फिर उसे खाते से वापस निकालकर
            और चेक अनादरण की सूचना अपूर्ण व विलम्ब से
            देकर, परिवादी के प्रति-सेवा में कमी की है?
        (ब)    सहायता एवं व्यय?
                 -:सकारण निष्कर्ष:-
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(7)       अनावेदक-पक्ष की ओर से प्रदर्ष आर-1 की परिवादी के बचत खाता की दिनांक-17.07.2012 की ट्रांनसेक्षन्स रिपोर्टखाता नकल जो पेष की गर्इ है और जो स्वयं परिवादी की ओर से प्रदर्ष सी-2 की अपने बचत खाता की नकल पेष की गर्इ है, उससे यह स्पश्ट है कि-दिनांक-17.07.2012 को परिवादी ने जो अपने बचत खाता में चेक पेष किया था, जिसकी राषि 3,00,000-रूपये उसके बचत खाता में जमा हुर्इ, वह दूसरा चेक था, जिसका चेक क्रमांक-8271 रहा है और वह परिवाद में वर्णित चेक क्रमांक-4171 (634171) वाला चेक नहीं है। स्पश्ट है कि-परिवाद में परिवादी की ओर से यह असत्य कथन किया गया है कि-परिवाद में वर्णित चेक क्रमांक-4171 की राषि का उसके बैंक खाते में 3,00,000-रूपये का भुगतान दिनांक-17.07.2012 को हुआ था, जो कि-स्वयं परिवादी द्वारा पेष प्रदर्ष सी-2 की उसकी बैंक पासबुक की प्रति से ही यह सिथति स्पश्ट है। और अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष प्रदर्ष आर-1 से यह सिथति भी स्पश्ट है कि-उक्त चेक क्रमांक-8271 परिवाद में वर्णित खाता क्रमांक-10238059619 के खाता का चेक नहीं है, जो कि-परिवादी ने अपने परिवाद में दिनांक-17.07.2012 को चेक क्रमांक-8271 बैंक में पेष किये जाने की कहानी को छिपाया है और अनावेदक क्रमांक-1 के जवाब में यह सिथति स्पश्ट कर दिये जाने पर कि-दिनांक-17.07.2012 को परिवादी द्वारा चेक क्रमांक- 8271 पेष किया गया था, जो चेक में तारिख की त्रुटि के कारण, उसे वापस कर दिया गया। तो इस बात का परिवादी द्वारा, दिनांक-25.03.2013 को पेष परिवादी के साक्ष्य के षपथ-पत्र में भी कोर्इ खण्डन नहीं किया गया, जो कि-परिवादी की ओर से पेष प्रदर्ष सी-2 की पासबुक की प्रविशिटयों से ही यह सिथति स्पश्ट है कि-दिनांक-06.09.2012 को जो 3,00,000-रूपये की राषि परिवादी के खाते से निकालकर चेक क्रमांक-8271 के खाताधारी, राजेष्वरराम दुबे के खाते में वापस ट्रांसफर कर दी गर्इ, वह परिवाद में वर्णित चेक का समव्यवहार नहीं है, बलिक एक अन्य चेक क्रमांक-8271 से संबंधित समव्यवहार है, उक्त 3,00,000-रूपये परिवादी के खाते में जमा कर दिये जाने और बाद में वापस चेक जारीकत्र्ता के खाते में जमा कर दिये जाने का समव्यवहार परिवाद में वर्णित चेक क्रमांक-4171 से संबंधित नहीं है और इसलिए इस संबंध में परिवाद में दर्षाया वृतांत सही नहीं है।
(8)        जहां-तक परिवाद में वर्णित प्रष्नाधीन चेक क्रमांक-4171 के अनादर हो जाने का कारण, प्रदर्ष सी-4 के बैंक ज्ञापन में खाते में पर्याप्त निधि न होना बताया गया है और चेक के अनादर होने का कारण, चेक जारीकत्र्ता द्वारा कोर्इ बैंक को निर्देष दिया जाना नहीं रहा है। तो चेक जारीकत्र्ता द्वारा, परिवादी को यह सूचित किये जाने बाबद कि-उसने बैंक को कोर्इ निर्देष नहीं दिया, परिवाद में निरर्थक वृतांत, आधार गढ़ने बाबद लेख किया जाना पाया जाता है, जो कि-प्रदर्ष सी- 4 के बैंक ज्ञापन में चेक के भुगतान का दर्षाया गया कारण असत्य रहा हो, ऐसा परिवादी-पक्ष दर्षा नहीं सका, जो कि-चेक जारीकत्र्ता के खाते में पर्याप्त निधि न होने से चेक का अनादरण होने बाबद, बैंक षाखा का कोर्इ रोल हो सकना संभव नहीं, तो अनावेदकगण द्वारा, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी किया जाना स्थापित नहीं पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(9)        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ के निश्कर्श के आधार पर, प्रस्तुत परिवाद आधारहीन होने के कारण निरस्त किया जाता है। पक्षकार अपना-अपना कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे।

​        
         मैं सहमत हूँ।                              मेरे द्वारा लिखवाया गया।  
       
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत)                          (रवि कुमार नायक)
            सदस्य                                                अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                          जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         प्रतितोषण फोरम,सिवनी                                  

          (म0प्र0)                                                  (म0प्र0)

 

 

 

 


        
            

 

 

 

 

 

 

 

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