NAVNEET SINGH THAKUR filed a consumer case on 29 May 2013 against STATE BANK OFF INDIA in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/33/2013 and the judgment uploaded on 26 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक-33-2013 प्रस्तुति दिनांक-08.03.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
नवनीत सिंह ठाकुर, आत्मज श्री अमर सिंह
ठाकुर, निवासी-एकता कालोनी, (षांति नगर)
सिवनी, तहसील व जिला सिवनी
(म0प्र0)।................................................................आवेदक परिवादी।
:-विरूद्ध-:
षाखा प्रबंधक महोदय,
भारतीय स्टेट बैंक, षाखा सिवनी
जिला सिवनी (म0प्र0)।...........................................अनावेदक विपक्षी।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 29/05/2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, उसके स्वामित्व के व्यवसायिक संस्थान आदर्ष फेविकेटर्स द्वारा लिया गया व्यवसायिक ऋण की गारंटी के तौर पर निक्षेपित किये गये परिवादी के पिता के मकान के स्वायत्व दस्तावेजों को ऋण अदायगी के बावजूद, मूल दस्तावेज न लौटाये जाने को अनुचित प्रथा व सेवा में कमी बताते हुये, हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादी ने अपने व्यवसाय आदर्ष फेविकेटर्स प्रोप्रार्इटर, नवनीत सिंह ठाकुर के नाम से अनावेदक बैंक षाखा से 2,25,000-रूपये का व्यवसायिक ऋण लिया था और जिनकी गारंटी के तौर पर अपने पिता के नाम की मूल रजिस्ट्री व मूल ऋण पुसितका को निक्षेपित किया था। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादी द्वारा, दिनांक-17.08.2012 को ऋण खाते की बकाया राषि एकमुष्त जमा कर, अनावेदक से नो-डयूज सर्टिफिकेट प्राप्त कर लिये गये, लेकिन परिवादी द्वारा ऋण की गारंटी के तौर पर निक्षेपित उक्त दस्तावेज बैंक द्वारा, परिवादी को वापस नहीं किये गये और दस्तावेज मिल न रहा होना, का कारण बताया गया।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- परिवादी द्वारा, उक्त व्यवसायिक ऋण चुकता कर दिये जाने के बाद, पिता के नाम मूल रजिस्ट्री व भू अधिकार पुसितका गांरटी के तौर पर निक्षेपित की गर्इ थी, उन दस्तावेजों की वापसी की मांग किये जाने पर, अनावेदक द्वारा टालामटोली की जाती रही और परिवादी को मूल दस्तावेज वापस नहीं किये गये, उक्त संबंध में परिवादी द्वारा, दिनांक- 27.11.2012 को भारतीय स्टेट बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय, जबलपुर को भी पत्र लिखा गया, पर दस्तावेज वापस नहीं हुये, जो कि-मूल दस्तावेज बैंक में रहन रखे रहने के दौरान, परिवादी के पिता, क्रिसेंट हासिपटल एण्ड हार्ट सेन्टर, नागपुर में 9 अक्टूबर 2013 से 18 अक्टूबर-2013 तक गंभीर अवस्था में भर्ती रहे, जिसका इलाज खर्च परिवादी के द्वारा उठाया गया और बैंक से मूल दस्तावेज वापस न होने के कारण, परिवादी के पिता को गंभीर आघात लगा, इसलिए 10,00,000-रूपये हर्जाना और 1,90,804-रूपये पिता के इलाज-व्यय की राषि दिलाने की मांग की गर्इ है।
(4) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, अनावेदक के जवाब का सार यह है कि-परिवादी द्वारा एक बार उक्त दस्तावेजों की मांग की गर्इ है, बैंक द्वारा, दस्तावेजों को सूची अनुसार ढूंढा गया, पर उक्त दस्तावेज प्राप्त नहीं हो सके, तो उक्त दस्तावेजों की प्रमाणित प्रति प्राप्त की गर्इ और उसे परिवादी को देने का प्रयास किया गया, लेकिन परिवादी द्वारा प्रतियां प्राप्त नहीं की गर्इं और पिता के अस्पताल में भर्ती कराने के व्यय का प्रस्तुत मामले से कोर्इ लेनादेना नहीं है। परिवादी के पिता की कोर्इ संपतित हित अंतरण संबंधी प्रभावित नहीं होते, क्योंकि राजस्व- कार्ड के आधार पर ही पुन: विक्रय किया जा सकता है, जो कि-बैंक में बहुत सारा रिकार्ड होने से दस्तावेज ढंूढने में थोड़ी कठिनार्इ हो रही है और प्राथमिकता के आधार पर दस्तावेज खोजकर परिवादी को वापस उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है।
(5) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
(अ) क्या पेष विवाद, उपभोक्ता विवाद होकर, अनावेदक
द्वारा, परिवादी के प्रति-सेवा में कमी की गर्इ है?
(ब) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(6) परिवादी की ओर से पेष प्रदर्ष सी-4 के बैंक द्वारा जारी नो-डयूज सर्टिफिकेट व प्रदर्ष सी-3 की जमा रसीद की प्रति से यह स्पश्ट है कि-दिनांक-17.08.2012 को मेसर्स आदर्ष फेविकेटर्स प्रोप्रार्इटर, नवनीत सिंह ठाकुर का ऋण खाता, समझौते के तहत एकमुष्त षेश राषि अदायगी के आधार पर बंद कर दिया गया और अनावेदक के द्वारा, प्रदर्ष सी-5 का पत्र दिनांक-21.08.2012 बैंक के द्वारा, अमर सिंह ठाकुर के नाम की अकृशि भूमि की रजिस्ट्री व बही बैंक में मिल न रहे होने के कारण, नर्इ बही उन्हें प्रदान किये जाने बाबद, अनापतित का पत्र है। और प्रदर्ष सी-2 का पत्र दिनांक-26.11.2012 बैंक के द्वारा, सब रजिस्ट्रार से अमर सिंह के नाम की खसरा नंबर-2807 की रजिस्ट्री की प्रतिलिपि जारी करने हेतु मूल आवेदन प्रदर्ष सी-2 है, जो परिवादी के द्वारा पेष किया गया है, अर्थात उक्त प्रदर्ष सी-2, सी-4 और सी-5 के पत्र बैंक से जारी कराकर परिवादी ने अपने पास रखा व प्रदर्ष सी-2 के पत्र के आधार पर जो अनावेदक-पक्ष से प्रदर्ष आर-1 के रूप में पेष किया गया है, कथित विक्रय-पत्र रजिस्ट्री की नकल की प्रमाणित प्रति, अनावेदक द्वारा प्राप्त की गर्इ थी, जिसकी प्रति प्रदर्ष आर-2 के रूप में अनावेदक-पक्ष से पेष हुर्इ है, तो परिवादी के पिता के नाम के स्वायत्व विलेख, विक्रय-पत्र व भू अधिकार पुसितका जो ऋण की गारंटी के रूप में बैंक में निक्षेपित किये गये थे वे बैंक के अभिलेख से गुम जाना स्वीकृत सिथति है।
(7) परन्तु न्यायदृश्टांत-2000 (भाग-1) सी0पी0जे0 325 (राज्य आयोग चेन्नर्इ) एक्स वायर इस्टेट बनाम सीनियर मैनेजर इंडियन बैंक एवं 1999 (भाग-1) सी0पी0जे0 130 (राज्य आयोग केरल) केन्द्रा बैंक व अन्य बनाम सी.अप्पू वाले मामलों में 1997 (भाग-2) सी0पी0आर0 3 (राश्ट्रीय आयोग) मेसर्स षंकर टयूबवेल बनाम ब्रांच मैनेजर स्टेट बैंक आफ इंडिया के मामले में माननीय राश्ट्रीय आयोग द्वारा दी गर्इ प्रतिपादना को अनुसरित करते हुये, यह अवधारित किया गया है कि- ऋण की सेक्युरिटी के रूप में जमा दस्तावेज वापस करने में असफल रहने बाबद विवाद, मात्र एक सिविल विवाद है और ऐसे विवाद बाबद परिवादी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता। और न्यायदृश्टांत 2003 (भाग-4) सी0पी0जे0 122 (दिल्ली राज्य आयोग) आदित्य अग्रवाल व अन्य विरूद्ध चेयरमैन एण्ड सी0र्इ0ओ0 हाग्कांग सिंघर्इ बैंकिंग कार्पोरेषन लिमिटेड व अन्य के मामले में भी ऐसे विवाद को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2 (1) (र्इ) के तहत उपभोक्ता विवाद रहा होना नहीं माना गया।
(8) प्रस्तुत परिवाद मामले में स्वयं परिवादी की ओर से पेष प्रदर्ष सी-4 के पत्र व परिवाद की कणिडका-1 में दिये विवरण से ही स्पश्ट है कि-उक्त कथित ऋण, बैंक से आदर्ष फेविकेटर्स के व्यवसायिक संस्थान द्वारा लिया गया था, जिसका परिवादी प्रोप्रार्इटर है। और स्वयं परिवादी के द्वारा अनावेदक के क्षेत्रीय प्रबंधक को रजिस्टर्ड- डाक से जो नोटिस भेजा गया, उसकी प्रति प्रदर्ष सी-7 से स्पश्ट है कि-उक्त नोटिस (आवेदन) भी आदर्ष फेविकेटर्स प्रोप्रार्इटर, नवनीत सिंह ठाकुर के द्वारा भेजा गया था, ऐसे में जबकि-परिवादी ने परिवाद में जो कथित ऋण प्राप्त करना कहा है, वह परिवादी के व्यवसायिक संस्थान द्वारा लिया गया व्यवसायिक ऋण रहा है, जो कि-ऋण प्राप्त करने और उसकी अदायगी का समव्यवहार, व्यवसायिक समव्यवहार रहा है, तो व्यवसायिक प्रयोजन के लिए लिया गया ऋण के समव्यवहार बाबद कोर्इ भी विवाद के संबंध में परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में दी गर्इ उपभोक्ता की श्रेणी में होना नहीं पाया जाता है।
(9) ऐसे में जबकि-पेष विवाद व्यवसायिक ऋण के संबंध का विवाद है और इसलिए परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं, पेष विवाद भी उपभोक्ता विवाद होना स्थापित नहीं। तो तदानुसार ही विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(10) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ के निश्कर्श के आधार पर, प्रस्तुत परिवाद, उपभोक्ता फोरम में संधारणीय न होने से निरस्त योग्य है। तदानुसार निरस्त किया जाता है। पक्षकार अपना-अपना कार्यवाही- व्यय वहन करेंगे।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी प्रतितोषण फोरम,सिवनी
(म0प्र0) (म0प्र0)
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