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RAMDAS THAKUR filed a consumer case on 26 Dec 2013 against STATE BANK OF INDIA in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/80/2013 and the judgment uploaded on 20 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक -80-2013 प्रस्तुति दिनांक-18.10.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
रामदास ठाकुर, आत्मज किषन लाल
ठाकुर, उम्र लगभग 57 वर्श, जाति
किरार, निवासी-ग्राम छुर्इ, थाना
कान्हीवाड़ा, तहसील व जिला सिवनी
(म0प्र0)।......................................................................आवेदकपरिवादी।
:-विरूद्ध-:
(1) षाखा प्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक, षाखा बारापत्थर,
सिवनी (म0प्र0)।
(2) षाखा प्रबंधक,
दी न्यू इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी
लिमिटेड, षाखा प्रथम मंजिल
एस.एफ.वट के सामने परासिया,
रोड, छिन्दवाड़ा,तहसील व जिला छिन्दवाड़ा
(म0प्र0)।..................................................अनावेदकगणविपक्षीगण।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 26.12.2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, अनावेदक क्रमांक-1 बैंक षाखा द्वारा, परिवादी का ट्रेक्टर खरीदी के ऋण खाता में ट्रेक्टर के बीमा अवधि वर्श-2008 से 2011 तक अतिरिक्त रूप से प्रत्येक वर्श दूसरी-दूसरी बार काट ली गर्इ प्रीमियम राषि को मय ब्याज परिवादी को दिलाने व हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादी ने अपने कृशि कार्य हेतु आयषर ट्रेक्टर, रजिस्ट्रेषन नंबर-एम0पी022-ए.ए.1176 अनावेदक क्रमांक- 1 बैंक षाखा से ऋण लेकर क्रय किया था, जिसका ऋण खाता नंबर- 3035095055 है। और परिवादी के उक्त ट्रेक्टर को अनावेदक क्रमांक-2 बीमा कम्पनी से बीमित किया जाता रहा है। यह भी विवादित नहीं कि- परिवादी ने उक्त ट्रेक्टर ऋण खाते की राषि भी अदा कर दिया, जो कि- अनावेदक क्रमांक-1 के माध्यम से परिवादी के ऋण खाता से बीमा इंष्योरेंस की किष्तें वर्श-2008 से 2011 तक जमा होती रही, जो कि- वर्श-2008 में दिनांक-23.04.2008 को 6,275-रूपये पुन: दिनांक-31.05.2008 को 6,120-रूपये, इसी तरह वर्श-2009 में दिनांक-16.04.2009 को 4,585-रूपये और दिनांक-06.06.2009 को 4,511-रूपये, इसी तरह वर्श-2010 में दिनांक-19.04.2010 को 4,157-रूपये और दिनांक-29.07.2010 को 4,090-रूपये , फिर वर्श-2011 में भी दिनांक-12.08.2011 को 5,115-रूपये और दिनांक-12.08.2011 को ही पुन: 5,112-रूपये की राषि, प्रीमियम वास्ते परिवादी के ऋण खाते में जोड़ दी गर्इ। और इस प्रकार उक्त चार वर्शों में प्रत्येक वर्श के लिए बीमा प्रीमियम की राषि दो- दो बार परिवादी के ऋण खाते में जोड़ दी गर्इ।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि-चार वर्शों में जो दोहरा प्रीमियम अदा कर, कुल-39,965-रूपये प्रीमियम के रूप में परिवादी के ऋण खाते में जोड़े गये, जिसकी आधी राषि 19,982-रूपये अथवा प्रत्येक वर्श दूसरी बार ऋण खाते में जोड़ी गर्इ प्रीमियम भुगतान की कुल राषि 19,8,33-रूपये परिवादी वापस पाने का अधिकारी है, इस संबंध में परिवादी ने अनावेदकों से अनेक बार अतिरिक्त वसूली गर्इ प्रीमियम राषि प्रदान करने निवेदन किया, इस पर अनावेदक क्रमांक-1 बैंक के द्वारा, अनावेदक क्रमांक-2 बीमा कम्पनी को दिनांक-12.11.2012 को एक पत्र लिखकर, अतिरिक्त राषि का चेक भिजवाने के लिए प्रेशित किया गया, पर अनावेदक ने, परिवादी की उक्त राषि प्रदान नहीं किया है, जो कि-मय ब्याज उक्त राषि व हर्जाना चाहा गया है।
(4) अनावेदक क्रमांक-2 बीमा कम्पनी के द्वारा, दिनांक-20.11.2013 का अनावेदक क्रमांक-1 बैंक के नाम 19,833-रूपये का चेक सहित, अनावेदक क्रमांक-1 को दिनांक-21.11.2013 के अग्रेशण-पत्र की पावती पेष किये जाने पर, परिवादी द्वारा, अनावेदक क्रमांक-2 से अन्य कोर्इ अनुतोश न चाहना और उसके विरूद्ध कोर्इ कार्यवाही न चलाना व्यक्त किया, इसलिए अनावेदक क्रमांक-2 की ओर से कोर्इ जवाब परिवाद का पेष नहीं किया गया है।
(5) अनावेदक क्रमांक-1 की ओर से दिनांक-10.12.2013 को पेष किये गये जवाब में स्वीकृत तथ्यों के अलावा, यह बचाव लिया गया है कि-जैसे ही अनावेदक क्रमांक-1 के अधिकारी को परिवादी के ऋण खाते से अनावेदक क्रमांक-2 को बीमा प्रीमियम की अतिरिक्त राषि का भुगतान हो जाने की जानकारी प्राप्त हुर्इ, तो अनावेदक क्रमांक-2 को दिनांक-11.12.2012 को, फिर दिनांक-27.07.2013 को और दिनांक-30.10.2013 को पत्र लिखकर यह अपेक्षा की गर्इ थी कि-अतिरिक्त रूप से भुगतान हो गर्इ राषि का चेक परिवादी के खाते में वापस करने हेतु जारी कर दिया जाये, लेकिन अनावेदक क्रमांक-2 द्वारा भुगतान नहीं किये जाने के कारण, उक्त राषि परिवादी के खाते में जमा नहीं की जा सकती है और मामले का नोटिस प्राप्त होने के बाद, अनावेदक क्रमांक-2 ने जो भुगतान हेतु डिमांड ड्राफट जारी किया है, उसकी जानकारी परिवादी व पीठ को दी जा चुकी है, जो कि-अनावेदक क्रमांक-2 बीमा कम्पनी को एक वर्श की अवधि के लिए प्रीमियम राषि का भुगतान किया जाता है और एक ही अवधि के लिए त्रुटिवष दो बार भुगतान हो गया था, तो तुरंत अनावेदक क्रमांक-2 को जानकारी प्राप्त हो गर्इ थी और उसका उत्तरदायित्व था कि-वह षीघ्रता से अधिक भुगतान की गर्इ बीमा प्रीमियम राषि को वापस भेज देता, लेकिन अनावेदक क्रमांक-2 के कर्मचारियों व अधिकारी की लापरवाही के कारण, उक्त राषि लंबित रही और अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा पत्र लिखने पर भी टालामटोली की जाती रही, जो कि-अनावेदक क्रमांक-1 बैंक की लिपिकीय त्रुटिवष अगर अनावेदक क्रमांक-2 को अधिक भुगतान हो गया था, तो भी यह भुगतान इतनी अवधि तक मात्र अनावेदक क्रमांक- 2 की लापरवाहीवष, उक्त भुगतान इतनी लम्बी अवधि तक लमिबत रहा है। अनावेदक क्रमांक-1 किसी भी प्रकार की कोर्इ क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी नहीं है।
(6) तब मामले में निम्न निराकरणीय प्रष्न यह हैं कि:-
(अ) क्या अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी के ऋण
खाते में अनुचित रूप से ऋण के रूप में जोड़ी गर्इ
चार वर्शों की अतिरिक्त बीमा प्रीमियम राषि का परिवादी के निवेदन के बावजूद भी भुगतान न करना, परिवादी के प्रति-की गर्इ सेवा में कमी व अनुचित प्रथा है?
(ब) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(7) परिवादी की ओर से बीमा पालिसी की प्रति प्रदर्ष सी-4 पेष की गर्इ है और परिवादी के अनावेदक क्रमांक-1 बैंक षाखा में ऋण खाते के विभिन्न अवधियों की प्रतियां प्रदर्ष सी-5ए से प्रदर्ष सी-5डी तक की पेष कर, यह दर्षाया गया है कि-वर्श-2008 से 2011 तक प्रत्येक वर्श ऋण खाते में बीमा प्रीमियम की किष्तों बाबद भुगतान दर्षाकर, परिवादी के ऋण में उक्त राषि जोड़ी जाती रहीं। और प्रदर्ष सी-5 से यह भी दर्षित है कि-दिनांक-15.06.2012 को परिवादी ने अपने उक्त ऋण खाते में अंतिम भुगतान कर, पूर्ण ऋण अदायगी कर दी। परिवादी-पक्ष का यही तर्क है कि-ऋण खाते में पूर्ण भुगतान हो जाने बाबद जब खाता स्टेटमेन्ट की प्रति बैंक से प्राप्त की गर्इ, तो उसके अवलोकन से पता चला कि- वर्श-2008 से 2011 तक लगातार चार वर्शों तक ऋण खाता में ट्रेक्टर के बीमा कराने की प्रीमियम राषि प्रत्येक वर्श दो-दो बार जोड़ी जाती रही है और ये सब तथ्य, स्वीकृत तथ्य भी हैं। और प्रदर्ष सी-3 के अनावेदक क्रमांक-1 की ओर से अनावेदक क्रमांक-2 को भेजे टेलीग्राम की प्रति में भी उन तथ्यों का स्वयं अनावेदक क्रमांक-1 बैंक की ओर से उल्लेख किया गया है, लेकिन दिनांक-12.11.2012 को अनावेदक क्रमांक-1 बैंक षाखा को उक्त तथ्य से अवगत हो जाना भी स्वीकृत सिथति है, फिर भी बैंक के द्वारा, उक्त राषि का परिवादी को भुगतान न कर, अनावेदक क्रमांक-2 से भुगतान प्राप्त करने के लिए मात्र पत्र लिखा गया, जो कि-प्रदर्ष आर-1, आर- 2 और आर-4 के अनावेदक क्रमांक-1 द्वारा, अनावेदक क्रमांक-2 को लिखे पत्रों की प्रतियों से स्पश्ट है कि-जानकारी हो जाने के बाद भी एक वर्श तक अनावेदक क्रमांक-1 बैंक ने परिवादी से अनुचित रूप से वसूली गर्इ राषियों का परिवादी को भुगतान नहीं किया, जो कि-प्रदर्ष सी-1 का जरिये अधिवक्ता नोटिस भी दिनांक-02.09.2013 को परिवादी द्वारा, अनावेदकगण को भेजा जाना, नोटिस की प्रति प्रदर्ष सी-1, प्रदर्ष सी-2 व प्रदर्ष सी-3 की रजिस्टर्ड पोस्ट की रसीद से स्पश्ट है।
(8) प्रदर्ष सी-5ए से प्रदर्ष सी-5डी तक के स्टेटमेन्ट आफ अकाउंट से यह स्पश्ट है कि-परिवादी के ऋण खाते में जो भी बैलेंस राषि डाली जाती रही, उस पर 15.25 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से ब्याज भी परिवादी से वसूला जाता रहा है। इस तरह परिवादी के ऋण खाता में जो डेबिट एडजेस्टमेन्ट के रूप में बैंक द्वारा बिना परिवादी से पूछे प्रत्येक वर्श के बीमा प्रीमियम हेतु बीमा किष्त की राषि प्रत्येक वर्श दूसरी-दूसरी बार भी भेजी जाकर, ऋण खाता में डेबिट के रूप में जोड़ी जाती रही और उस-पर 15.25 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से ब्याज भी और उस-पर अनुचित रूप से वसूला था, वह राषि ब्याज सहित तत्काल परिवादी को देय थी, बीमा कम्पनी से अनावेदक क्रमांक-1 राषि भले ही बाद में वसूलता रहता, लेकिन परिवादी को तत्काल राषि अनावेदक क्रमांक-1 बैंक के द्वारा भुगतान न करना, अनुचित व्यापार प्रथा है और परिवादी के प्रति-की गर्इ सेवा में कमी है। जबकि-प्रदर्ष एस-1 के अनावेदक क्रमांक-2 बीमा कम्पनी द्वारा, अनावेदक क्रमांक-1 को लिखे गये पत्र व अतिरिक्त बीमा धन लौटाने बाबद राषि के चेक की जो प्रति पेष की गर्इ है, उससे यह भी स्पश्ट हो रहा है कि-अनावेदक क्रमांक-1 बैंक षाखा ग्राहकों के ऋण खाते से बीमा कम्पनी को जितनी बार प्रीमियम राषि भेजती थी, उस-पर बैंक को कमीषन भी प्राप्त होता था। और इस तरह जो 19,833-रूपये चार वर्शों तक दूसरी-दूसरी बार अनुचित रूप से प्रीमियम की राषि बीमा कम्पनी को बैंक ने भेजी और परिवादी के ऋण खाते में अनुचित रूप से डेबिट दर्षा दी, उस-पर भी अनावेदक क्रमांक-1 बैंक ने 1047-रूपये कमीषन के रूप में लाभ प्राप्त किया है।
(9) ऐसे में अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा लगातार चार वर्शों तक बीमा प्रीमियम की राषि ऋण खाते में दो-दो बार परिवादी से वसूलकर, बीमा कम्पनी को भेजना, भले ही त्रुटि हो, लेकिन उक्त तथ्य को अनावेदक क्रमांक-1 के ज्ञान में ला देने के बावजूद, परिवादी के ऋण खाते में अनुचित रूप से जोड़ी गर्इ राषि और उस-पर 15.25प्रतिषत वार्शिक की दर से वसूला गया ब्याज का परिवादी को भुगतान न कर, यह कहना कि-बीमा कम्पनी से राषि प्राप्त होने पर ही भुगतान की जायेगी, अनुचित प्रथा होकर, परिवादी के प्रति की गर्इ सेवा में कमी है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(10) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ के निश्कर्श के आधार पर, मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
(अ) अनावेदक क्रमांक-1 ने, अनावेदक क्रमांक-2 बीमा
कम्पनी से चेक के जरिये, उक्त राषि 19,833-
रूपये (उन्नीस हजार आठ सौ तेतिस रूपये) प्राप्त
हो जाने पर भी परिवादी के बचत खाते मेंं भुगतन
न की हो, तो उक्त राषि का भुगतान आदेष दिनांक
से दो माह की अवधि के अन्दर परिवादी को करे।
और उक्त राषि में-से 6,120-रूपये (छै हजार
एक सौ बीस रूपये) पर निकासी दिनांक-31.05. 2008 सेे 4,511-रूपये (चार हजार पांच सौ ग्यारह रूपये)पर निकासी दिनांक-06.06.2009 से 4090- रूपये (चार हजार नब्बे रूपये) पर निकासी दिनांक- 29.07. 2010 से और 5,112-रूपये पर (पांच हजार एक सौ बारह रूपये) पर निकासी दिनांक-12.08. 2011 से भुगतान दिनांक तक की अवधि का 15.25 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से ब्याज परिवादी को अदा करे।
(ब) अनावेदकगण स्वयं का कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे और अनावेदक क्रमांक-1, परिवादी को कार्यवाही- व्यय के रूप में 2,000-रूपये (दो हजार रूपये) अदा करे।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी प्रतितोषण फोरम,सिवनी
(म0प्र0) (म0प्र0)
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