राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद संख्या-121/2010
पल्लवी कोल्ड स्टोरेज एण्ड आईस फैक्ट्री प्रा0लि0, इंदराई रोड, नवाडा मक्खनपुर।
परिवादी
बनाम्
स्टेट बैंक आफ इण्डिया, मेन ब्रांच, बाई पास रोड, फिरोजाबाद।
विपक्षी
समक्ष:-
1. माननीय श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री संजय कुमार, सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री प्रशान्त कुमार, विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : श्री डी0पी0 द्विवेदी के सहयोगी श्री शरद
द्विवेदी, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 30.09.2016
मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह परिवाद, परिवादी ने विपक्षी, बैंक के विरूद्ध इस अनुतोष हेतु योजित किया है कि विपक्षी, बैंक को निर्देशित किया जाये कि वह परिवादी द्वारा निस्पादित डाक्यूमेंट परिवादी को वापस करें तथा विपक्षी बैंक को यह भी निर्देशित किया जाये कि वह बल पूर्वक, मनमाने ढंग से परिवादी की सम्पत्ति न लें तथा मानसिक एवं शारीरिक कष्ट के लिए रूपये 25 लाख दिलाये जाने हेतु परिवाद प्रस्तुत किया है।
परिवाद पत्र का अभिवचन इस प्रकार है कि विपक्षी बैंक ने गलत तरीके से परिवादी के पल्लवी कोल्ड स्टोरेज एण्ड आईस फैक्ट्री प्रा0लि0 के ऋण खाते के संचालन को रोक दिया है तथा परिवादी के खिलाफ वसूली की कार्यवाही सर्फेसी एक्ट के अन्तर्गत की गयी है। विपक्षी बैंक ने परिवादी से सम्पर्क किया कि वित्तीय स्थिति के अनुसार ऋण शर्त एवं नियम के अनुसार स्वीकृत किया गया था तथा उनके बैंक की स्थिति अन्य बैंक से अच्छी है। विपक्षी ने यह आश्वासन दिया कि साधारण ब्याज की दर से चार्ज लिया जायेगा, जो भारत में सभी बैंकों की ब्याज दर से कम होगा। विपक्षी बैंक ने सामान्य लाभ दिये जाने का आश्वासन दिया तथा परिवादी को ऋण स्वीकृत किया। परिवादी ने आवश्यक औपचारिकतायें भी पूर्ण की और यह चाहा कि परिवादी अपने ऋण की धनराशि शेड्यूल के अनुसर जमा करे, लेकिन परिवादी की वित्तीय स्थिति ठीक न होने के कारण उस समय नियमित रूप से वह ऋण का भुगतान नहीं कर सका, क्योंकि शेयर में बहुत हानि हो गयी थी। परिवादी समाज का सम्मानित सदस्य है, लेकिन विपक्षी बैंक द्वारा विधि विरूद्ध दायत्वि आरोपित किया गया है। विपक्षी बैंक ने नोटिस दिया, जिसका जवाब परिवादी ने दिनांक 13.08.2010 की धारा 13 (2) सर्फेसी एक्ट 2002 के अन्तर्गत दिया है। विपक्षी बैंक ने आपत्ति का निस्तारण नहीं किया। दिनांक 13.08.2010 की नोटिस में परिवादी ‘’नन प्रोफार्मिंग असेट्स अकाउण्ट्स‘’ रिजर्व बैंक की गाईड लाइन के अनुसार नहीं आता है। परिवादी द्वारा मांगे गये डाक्यूमेंट को देने में विपक्षी बैंक असफल रहा है। विपक्षी बैंक द्वारा स्वीकृत किये गये ऋण के समय एक सादे कागज पर परिवादी से हस्ताक्षर करवा लिये गये थे, जो कि विपक्षी का यह कृत्य सेवा में कमी साबित करता है, अत: सर्फेसी एक्ट 2002 के अन्तर्गत जारी नोटिस निरस्त होने योग्य है। विपक्षी बैंक द्वारा गलत व्यवहार किया गया है। विपक्षी बैंक ने परिवादी को बिना सूचना दिये उसका खाता सीज कर दिया है तथा उसकी सहमति के बिना अधिक ब्याज दर लगाया है, जो नियम व शर्तें के अनुसार नहीं थी, उस नियम व शर्तों के विपरीत विपक्षी बैंक ने कार्य किया है। विपक्षी बैंक ने बिना परिवादी को सूचित किये उसके खाते का संचालन रोक दिया है। विपक्षी बैंक ने आवश्यक कागजात के आधार पर ऋण स्वीकृत किया था। परिवादी ने बार-बार कहा कि वह अपने ऋण का भुगतान दिये गये सूची के अनुसार करना चाहता है।
विपक्षी, बैंक ने परिवाद का विरोध करते हुए यह अभिवचित किया कि परिवादी ने विपक्षी से रू0 100.0 लाख की कैश क्रेडिट लिमिट लिया है तथा कैश क्रेडिट लिमिट रू0 25.00 लाख का जो दिनांक 01.02.2008 को अनुमोदन दिया गया है। दिनांक 01.12.2008 से परिवादी की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी, जिसके फलस्वरूप विपक्षी द्वारा वसूली की कार्यवाही सर्फेसी एक्ट के अन्तर्गत की गयी। दिनांक 24.04.2014 को परिवादी/ऋणी एवं विपक्षी बैंक के बीच वन टाईम सेटेलमेंट हुआ कि कुल धनराशि रू0 1.50 करोड़ भुगतान कर देने पर ऋण खाता बन्द हो जायेगा तथा बैंक द्वारा प्रतिभूति के रूप में जो डाक्यूमेंट रखे गये हैं, उसे वह परिवादी/ऋणी को वापस कर देगा। वन टाइम सेटेलमेंट के अन्तर्गत परिवादी सभी मूल कागजात दिनांक 05.12.2014 को प्राप्त कर चुका है। बन्धक के रूप में रखी गयी प्रापर्टीज दिनांक 24.12.2014 को परिवादी के अधिकृत अधिकारी को प्राप्त कराया जा चुका है एवं ऋण खाता सुलहनामा के आधार पर बन्द किया जा चुका है, जिससे अनुतोष (ए) फलहीन हो चुका है। परिवादी का आरोप है कि उसकी प्रापर्टी सर्फेसी एक्ट के अन्तर्गत नीलाम की जा रही है तथा उसे भी चैलेंज किया जा रहा है। परिवादी/ऋणी द्वारा सुलहनामेके समय ड्यूज के सम्बन्ध में कोई आपत्ति नहीं उठाई गयी थी। यदि सर्फेसी एक्ट के अन्तर्गत कार्यवाही प्रारम्भ हो चुकी है तब उपभोक्ता फोरम में परिवाद योजित नहीं किया जा सकता है, अत: परिवादी/ऋणी को डेब्ट रिकवरी ट्रीब्यूनल में ही अनुतोष मिल सकता है। इस प्रकार परिवाद खण्डित होने योग्य है।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री प्रशान्त कुमार तथा विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता श्री डी0पी0 द्विवेदी के सहयोगी श्री शरद द्विवेदी उपस्थित हैं। परिवाद अंगीकरण के बिन्दु पर विचाराधीन है, अत: उभय पक्ष को विस्तार से सुना गया एवं पत्रावली का परिशीलन किया गया।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किया कि परिवादी, कोल्ड स्टोरेज एण्ड आईस फैक्ट्री है। परिवादी ने विपक्षी बैंक से ऋण रू0 100.00 लाख की कैश क्रेडिट लिमिट तथा रू0 25.00 लाख की कैश क्रेडिट लिमिट ली थी। परिवादी की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह ऋण का भुगतान नहीं कर सका, इस पर विपक्षी बैंक ने सर्फेसी एक्ट के अन्तर्गत कार्यवाही प्रारम्भ कर दी, जो उचित नहीं है। इसके सम्बन्ध में परिवादी ने विपक्षी बैंक को आपत्ति भेजी, लेकिन आपत्ति का निस्तारण अभी तक नहीं किया गया, जो विपक्षी की सेवा में कमी स्पष्ट है, अत: विपक्षी को निर्देशित किया जाये कि वह बलपूर्वक परिवादी की सम्पत्ति न लें तथा बन्धक के रूप में रखे गये कागजात वापस करें।
विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किया कि विपक्षी ने परिवादी को रू0 25.00 लाख की कैश क्रेडिट लिमिट दी है। परिवादी आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण ऋण का भुगतान नहीं कर सका। विपक्षी बैंक ने वन टाइम सेटेलमेंट के आधार पर सुलहनामा किया है, सुलहानामे करने के उपरान्त बन्धक में रखे गये परिवादी के कागजात वापस कर दिये गये, जिसे परिवादी ने प्राप्त कर लिया। परिवादी के अशोध्य ऋण (ड्यूज) के विषय में कोई समझौता नहीं हुआ है, इसलिए सर्फेसी एक्ट के अन्तर्गत वसूली की कार्यवाही प्रारम्भ की गयी है, जो सही एवं उचित है, अत: परिवाद खण्डित होने योग्य है।
उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता को सुन गया एवं सम्पूर्ण पत्रावली का परिशीलन किया गया, जिससे यह विदित होता है कि परिवादी ने विपक्षी से रू0 100.00 लाख की कैश क्रेडिट लिमिट ली थी तथा रू0 25.00 लाख की कैश क्रेडिट लिमिट दिनांक 01.02.2008 को अनुमोदित की गयी थी। परिवादी अपने कोल्ड स्टोरेज एण्ड आईस फैक्ट्री के लिए कैश क्रेडिट लिमिट सुविधा ली थी, लेकिन परिवादी की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह ऋण खाता का भुगतान नहीं कर सका, जिसके फलस्वरूप विपक्षी बैंक ने परिवादी के विरूद्ध ऋण की वसूली हेतु सर्फेसी एक्ट के अन्तर्गत कार्यवाही प्रारम्भ कर दी। प्रश्नगत प्रकरण परिवादी एवं विपक्षी बैंक के बीच हुए सुलहनामा, जिसके आधार पर विपक्षी बैंक ने परिवादी के बन्धक रखे कागजात परिवादी को वापस कर दिये, परन्तु शेष ऋण के भुगतान के सम्बन्ध में सुलहनामा पर कोई समझौता नहीं किया गया, जिसके कारण ऋण की वसूली की कार्यवाही हो रही है। इस संबंध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा हरिनन्दन प्रसाद बनाम स्टेट बैंक आफ इण्डिया III (2012) CPJ 237 (NC) में यह विधिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि – “ No attempt should be made by one tribunal to usurp the powers and jurisdiction of other either directly or indirectly. Such a situation may lead to anomalous situation because the orders passed by two or more tribunals on the same tribunals controversy may vary.” इसके अतिरिक्त मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा परिवाद संख्या-74/2012 श्री शकर लाल गुप्ता बनाम कोटक महिन्द्रा बैंक लि0 में यह विधिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि – “ Civil Court mentioned here also includes Tribunals and Commissions dealing with civil matters. There lies a rub and we cannot entertain this complaint. The complaint is therefore dismissed. It has become necessary to discourage the institution of such like frivolous complaints. These entail too much precious time to National Commission.” इस प्रकार उपरोक्त विधिक सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई का मौलिक क्षेत्राधिकार उपभोक्ता फोरमक को प्राप्त नहीं है। फलस्वरूप प्रस्तुत परिवाद पोषणीय न होने के कारण अंगीकरण के स्तर पर ही निरस्त होने योग्य है।
आदेश
परिवाद निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष इस परिवाद का व्यय स्वंय वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(जितेन्द्र नाथ सिन्हा) (संजय कुमार)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2