न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-प्रथम, बरेली ।
परिवाद सं0 138/2012
उपस्थित:- 1- बृजेश चन्द्र सक्सेना अध्यक्ष
2- मोहम्मद कमर अहमद सदस्य
देवेन्द्र कुमार यादव पुत्र श्री रामधारी प्रसाद यादव, निवासी राजेन्द्र नगर, बरेली ।
............ परिवादी
बनाम
1. स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया, पंजीकृत कार्यालय मुम्बई द्वारा चेयरमैन ।
2. स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया, शाखा कार्यालय एकता नगर, थाना प्रेमनगर, बरेली द्वारा शाखा प्रबन्धक ।
............विपक्षीगण
निर्णय
परिवादी देवेन्द्र कुमार यादव की ओर से यह परिवाद विपक्षीगण स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया द्वारा चेयरमैन व अन्य के विरूद्व इस आशय से योजित किया गया है कि परिवादी को विपक्षीगण से अंकन 44,650/- रूपये का भुगतान मय ब्याज एवं अंकन 1358/-रूपये का भुगतान मय ब्याज के कराया जाये और साथ ही साथ मानसिक एवं शारीरिक कष्ट हेतु अंकन 20,000/-रूपये और वाद व्यय के रूप में अंकन 5550/-रूपये का भुगतान कराया जाये ।
संॅक्षेप में परिवादी का कथन है कि परिवादी द्वारा विपक्षी नं0 2 बैंक में दिनांक 20.06.11 को खाता संॅ0 31794196054 खोला गया । विपक्षी नं0 2 द्वारा जरूरत के अनुसार रूपये निकालने के लिए परिवादी को ए.टी.एम. की सुविधा प्रदान की गयी । विपक्षी नं0 2 बैंक द्वारा इंटरनेट बैंकिंग की सुविधा भी बतायी गयी, परन्तु परिवादी ने इंटरनेट बैंकिंग की सुविधा लेने से इंकार कर दिया । परिवादी के खाते में दिनांक 23.04.12 को अंकन 1,24,650/-रूपये शेष थे, जिसमें से परिवादी ने दिनांक 24.04.12 को अंकन 40,000/-रूपये एवं दिनांक 25.04.12 को अंकन 40,000/-रूपये ए.टी.एम. कार्ड के माध्यम से अपने खाते से निकाल लिये और इस निकासी के बाद परिवादी के खाते में अंकन 44,650/-रूपये अवशेष रहने चाहिये थे । परिवादी दिनांक 26.04.12 को कुछ रूपये निकालने के लिए विपक्षीगण की ए.टी.एम. मशीन पर गया और उसने रूपये निकालने की कोशिश की, तब परिवादी को पता चला कि उसके खाते में बैलेंस शून्य हो चुका है । परिवादी द्वारा खाते के विवरण की जाॅंच करने पर यह पाया गया कि उसके खाते से दिनांक 24.04.12 को अंकन 200/-रूपये और दिनांक 26.04.12 को अंकन 44,450/-रूपये अवैध रूप से निकाले जा चुके हैं । परिवादी द्वारा इसकी जानकारी विपक्षीगण के अधिकारियों को दी गयी । विपक्षीगण के अधिकारियों द्वारा जाॅंच करने के पश्चात् परिवादी के खाते से समायोजन किये जाने का आश्वासन दिया गया । परिवादी के खाते में जब दिनांक 30.04.12 तक कोई रकम वापस नहीं आयी, तब परिवादी द्वारा शिकायत की गयी तथा शिकायत दर्ज कराने के बावजूद विपक्षीगण द्वारा कोई रकम वापस खाते में जमा नहीं की गयी । परिवादी को रूपयों की शख्त आवश्यकता थी, जिसके अभाव में वह अपनी बहन की शादी का खर्च उठाने में परेशानी में पड गया, जिसके कारण परिवादी को शारीरिक व मानसिक कष्ट हुआ । परिवादी विपक्षीगण के अधिकारियों से दो-तीन दिन बाद मिलता रहा, परन्तु दिनांक 12.05.12 को विपक्षीगण के अधिकारियों द्वारा रकम वापस जमा करने से इंकार कर दिया । दौरान मुकदमा विपक्षी द्वारा ब्याज के रूप में अंकन 1358/-रूपये रकम जमा की गयी थी, परन्तु उक्त रकम भी परिवादी के खाते से दिनांक 10.07.12 को अवैध रूप से निकाल ली गयी । इस धनराशि को भी परिवादी वापस प्राप्त करने का अधिकारी है, तदनुसार यह परिवाद योजित किया गया ।
विपक्षी नं0 1 की ओर से कोई प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया, जिसके कारण दिनांक 05.10.12 को उनके विरूद्व एक पक्षीय कार्यवाही किये जाने हेतु आदेशित किया गया ।
विपक्षी नं0 2 की ओर से प्रतिवाद पत्र दाखिल करते हुए यह कथन प्रस्तुत किया गया कि परिवादी का खाता संॅ0 31794196054 विपक्षी नं0 2 बैंक की शाखा में संचालित है, जिसे खोलने का निर्णय परिवादी स्वयॅं का था, विपक्षीगण के किसी भी अधिकारी का कोई दबाव नहीं था । किसी भी खाते से ए.टी.एम. कार्डधारकों के खातों की सुरक्षा व खातेधारक के ए.टी.एम. कार्ड के लेन-देने की जिम्मेदारी खातेधारक स्वयॅ की होती है । यदि ए.टी.एम. कार्ड का दुरूपयोग किया जाता है, या खातेधारक को कोई असुरक्षा या क्षति होती है, तो उसके लिए बैंक जिम्मेदार नहीं होती है । परिवादी ने दिनांक 01.04.12 से 25.04.12 तक, दिनांक 10.04.12 को दो बार, दिनांक 14.04.12 को दो बार, दिनांक 22.04.12 को दो बार, दिनांक 24.04.12 को तीन बार तथा दिनांक 01.04.12, 23.04.12, 25.04.12 व दिनांक 26.04.12 को एक बार ए.टी.एम. का प्रयोग किया गया और विभिन्न धनराशियों का आहरण किया गया, जिनका कुल योग अंकन 2,30,650/-रूपये था । इससे स्पष्ट हो जाता है कि ए.टी.एम. सुविधा परिवादी की मजबूरी नहीं, बल्कि शौक व आदत है और विपक्षी द्वारा उत्तम सुविधा प्रदान की गयी है । परिवादी के खाते से दिनांक 23.04.12 को अंकन 6000/-रूपये ए.टी.एम. के माध्यम से आहरण करने के उपरांत खाते में अंकन 1,24,650/-रूपये उपलब्ध थे, जिसमें से दिनांक 24.04.12 को परिवादी ने ए.टी.एम. के माध्यम से अंकन 200/-रूपये की इंटरनेट परचेजिंग की और दिनांक 24.04.12 को ही दो बार में अंकन 40,000/-रूपये की धनराशि आहरित की गयी तथा दिनांक 25.04.12 को ए.टी.एम. के माध्यम से अंकन 40,000/-रूपये का आहरण किया गया । इस प्रकार परिवादी के खाते में अंकन 44450/-रूपये अवशेष बचे । परिवादी ने दिनांक 26.04.12 को शेष धनराशि अंकन 44,450/-रूपये की इंटरनेट परचेंिजग कर ली और खाते में शेष धनराशि शून्य हो गयी । परिवादी के खाते से कोई भी धनराशि अवैध रूप से आहरित नहीं की गयी है, बल्कि परिवादी द्वारा इंटरनेट परचेजिंग की गयी है । विपक्षी नं0 2 के अधिकारियों ने परिवादी की शिकायत की जाॅच पडताल करके यह बताया कि अंकन 44,650/-रूपये इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से निकाले गये हैं । परिवादी को केवल यह बताया गया था कि ए.टी.एम. कार्ड के द्वारा इंटरनेट परचेजिंग की गयी है । परिवादी द्वारा इंटरनेट परचेजिंग द्वारा ए.टी.एम. कार्ड का उपभोग किया गया, जिसमें बैंक की कोई भी गलती व लापरवाही नहीं रही है और न ही बैंक के अधिकारियों द्वारा कभी यह आश्वासन दिया गया कि परिवादी के खाते में रकम वापस कर दी जायेगी । परिवाद योजित किये जाने का कोई विधिक अधिकार नहीं है । बैंक द्वारा ए.टी.एम. कार्ड दिये जाने के साथ ही पिन नम्बर दिया जाता है, जिसकी जानकारी केवल कार्डधारकों को होती है, बैंक के पास कोई जानकारी नहीं होती है । पिन नम्बर की गोपनीयता बनाये रखने का दायित्व ए.टी.एम. कार्डधारक की होती है । परिवादी द्वारा अथवा उसके ए.टी.एम. कार्ड का उपयोग करते हुए किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ए.टी.एम. कार्ड के माध्यम से इंटरनेट परचेजिंग की गयी है, जिसके लिए विपक्षी बैंक उत्तरदायी नहीं है । परिवादी के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति उसी स्थिति में इंटरनेट परचेजिंग कर सकता है,े जबकि उसे ए.टी.एम. कार्ड के पिन नम्बर की पूर्ण जानकारी हो । इसके अतिरिक्त उसे परिवादी के पासवर्ड की भी जानकारी हो, क्योंकि चरणबद्व तरीके से इंटरनेट परचेजिंग किये जाने हेतु पिन नम्बर व पासवर्ड की आवश्यकता होती है । इंटरनेट परचेजिंग और इंटरनेट बैंकिंग की अलग प्रक्रिया है, हर इंटरनेट कार्ड पर इंटरनेट बैंकिंग नहीं होती है और खातेधारक द्वारा इंटरनेट की सुविधा माॅगने पर ही प्रदान की जाती है, परन्तु हर ए.टी.एम. कार्ड के माध्यम से शापिंग करके इंटरनेट परचेजिंग की जा सकती है । परिवादी द्वारा इस प्रकरण में पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं करायी गयी, जबकि यह पुलिस जाॅंच का विषय रहा है । परिवादी द्वारा स्वयॅं ही शापिंग की गयी और बैंक की गलती बताकर यह परिवाद योजित किया गया है, जो निरस्त किये जाने योग्य है । परिवादी विपक्षीगण से कोई भी धनराशि वापस प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है, क्योंकि उसी के ए.टी.एम. कार्ड का उपयोग करते हुए इंटरनेट परचेजिंग की गयी है, जिसके कारण खाता शून्य हो गया । विपक्षी नं0 1 आवश्यक पक्षकार नहीं है, क्योंकि समस्त लेन-देन बैंक की शाखा से ही हुआ है । इस प्रकार परिवाद में आवश्यक पक्ष बनाये जाने का भी दोष है । परिवादी की ओर से योजित परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है ।
परिवादी की ओर अपने कथनों के समर्थन मंे शपथपत्र साक्ष्य 19/1 लगायत 19/3, अतिरिक्त शपथपत्र साक्ष्य 41/1 लगायत 41/2 दाखिल किया गया है । इसके अतिरिक्त प्रति उत्तर शपथपत्र 46/1 लगायत 46/6 प्रस्तुत किया गया है । परिवादी की ओर से ए.टी.एम. कार्ड की छाया प्रति 46/7, क्लासिक डेविट कार्ड के नियम एवं उपयोग के विवरण की छाया प्रति 46/8 लगायत 46/15, पासबुक की छाया प्रति 7/1, ए.टी.एम. कार्ड की छाया प्रति 7/2, खाते के विवरण की छाया प्रति 7/3 व 7/4 प्रस्तुत किया गया है । इसके अतिरिक्त दैनिक जागरण अखबार की प्रति 48/1 तथा इंटरनेट परचेजिंग विवरण प्रक्रिया की छाया प्रति 48/2 लगायत 48/18 प्रस्तुत किये गये हैं ।
विपक्षी नं0 2 की ओर से शपथपत्र साक्ष्य 24/2 लगायत 24/11 एवं परिवादी द्वारा की गयी शिकायत के विवरण की छाया प्रति 26/1, जाॅंच सम्बन्धी प्रपत्र की छाया प्रति 26/2 लगायत 26/12, ए.टी.एम. कार्ड निर्देशिका की छाया प्रति 26/13 और खाते का विवरण प्रस्तुत किया गया है।
पक्षगण अधिवक्ता की बहस सुनी एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया ।
निष्कर्ष
उपरोक्त आधार पर यह स्पष्ट है कि परिवादी द्वारा विपक्षी नं0 2 बैंक की शाखा में खाता संॅ0 31794196054 दिनांक 20.06.11 को खोला गया । विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी को जरूरत के अनुसार रूपये निकालने हेतु ए.टी.एम. कार्ड की सुविधा प्रदान की गयी । परिवादी के कथनानुसार उसने दिनांक 24.04.12 को अंकन 40,000/-रूपये एवं दिनांक 25.04.12 को अंकन 40,000/-रूपये अर्थात् कुल अकन 80,000/-रूपये ए.टी.एम. के माध्यम से आहरित किये गये और इस निकासी के बाद परिवादी के खाते से अंकन 44,650/-रूपये शेष रहने चाहिये थे, परन्तु जब दिनांक 26.04.12 को परिवादी ए.टी.एम. कार्ड के माध्यम से रूपये निकालने गया, तब उसे यह जानकारी हुई कि उसके खाते में बैलेंस शून्य हो चुका है । खाते के विवरण की जाॅंच करने पर यह पता चला कि परिवादी के खाते से दिनांक 24.04.12 को अंकन 200/-रूपये और दिनांक 26.04.12 को अंकन 44,450/-रूपये अवैध रूप से निकाले गये हैं । इसकी जानकारी विपक्षी नं0 2 के अधिकारियों को दी गयी, जिनके द्वारा जाॅंच करने के पश्चात् यह बताया गया कि खाते से रकम इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से निकाली गयी है, जिसका खुलासा करके शीघ्र ही रकम परिवादी के खाते में वापस कर दी जायेगी, जबकि इस संदर्भ में विपक्षी नं0 2 बैंक की ओर से यह अस्वीकार किया गया है कि परिवादी को बैंक के अधिकारियों द्वारा यह बताया गया हो कि खाते की जाॅंच करने पर यह पता चला कि रकम इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से निकाली गयी है और न ही परिवादी को कभी भी यह आश्वासन दिया गया कि यह रकम उसके खाते में वापस कर दी जायेगी । विपक्षी नं0. 2 के अधिकारियों द्वारा परिवादी को यह सूचना दी गयी थी कि उसके खाते से इंटरनेट परचेजिंग के माध्यम से दिनांक 24.04.12 व दिनांक 26.04.12 को क्रमशः अंकन 200/-रूपये एवं 44,450/-रूपये ए.टी.एम. कार्ड के माध्यम से निकाले गये हैं । विपक्षी नं0 2 की ओर से यह कथन प्रस्तुत किया गया है कि परिवादी द्वारा दिनांक 23.04.12 को अंकन 6000/-रूपये ए.टी.एम. के माध्यम से आहरित किये गये, उसके पश्चात् परिवादी के खाते में अंकन 1,24,650/-रूपये अवशेष थे, जिसमें से दिनांक 24.04.12 को परिवादी ने ए.टी.एम. के माध्यम से अंकन 200/-रूपये इंटरनेट परचेजिंग की गयी और दिनांक 24.04.12 को ही दो बार अंकन 20,000-20,000/-रूपये ए.टी.एम. कार्ड के माध्यम से आहरित किये गये । इसके पश्चात् दिनांक 25.04.12 को ही परिवादी द्वारा ए.टी.एम. कार्ड के माध्यम से अंकन 40,000/-रूपये का आहरण किया गया और इस प्रकार परिवादी के खाते में अंकन 44,450/-रूपये अवशेष रहे, जिसमें से परिवादी ने दिनांक 26.04.12 को अंकन 44,450/-रूपये की इंटरनेट परचेजिंग कर ली गयी, जिसके कारण उसका खाता शून्य हो गया । विपक्षी नं0 2 का कथन है कि परिवादी द्वारा स्वयॅं ही इंटरनेट परचेजिंग की गयी है और ए.टी.एम. कार्ड का उपयोग किया गया है, जिसके लिए विपक्षी नं0 2 किसी प्रकार से भी उत्तरदायी नहीं है । विपक्षी नं0 2 की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया है कि चरणबद्व तरीके से इंटरनेट परचेजिंग किये जाने हेतु पिन नम्बर और पासवर्ड की आवश्यकता होती है, जिसकी जानकारी केवल कार्डधारक को होती है । इसकी कोई भी जानकारी न तो बैंक को रहती है और न ही बैंक द्वारा इसकी जानकारी किसी को प्रदत्त की जाती है । अतः परिवादी द्वारा ही इंटरनेट परचेजिंग की गयी है और यदि परिवादी द्वारा स्वयॅं इंटरनेट परचेजिंग नहीं की गयी है, तो किसी एैसे व्यक्ति द्वारा परिवादी के ए.टी.एम. कार्ड का उपयोग किया गया, जिसको परिवादी का पिन नम्बर और पासवर्ड की जानकारी रही हो । इस प्रकार यह एक जाॅंच का विषय है, जिसके लिए परिवादी को पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज कराये जाने की आवश्यकता थी, परन्तु परिवादी द्वारा उचित कार्यवाही न करते हुए असत्य कथनों के आधार पर विपक्षीगण को उत्तरदायी बनाते हुए यह झूठा परिवाद योजित किया गया है ।
उपरोक्त संदर्भ में पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य पर विचारण किया गया। परिवादी की ओर से शपथपत्र साक्ष्य के माध्यम से यह साबित करने का प्रयास किया गया है कि उसके द्वारा इंटरनेट परचेजिंग नहीं की गयी है और न ही उसके ए.टी.एम. कार्ड पर इंटरनेट बंैकिंग की सुविधा प्रदान की गयी है और इस प्रकार यदि इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से अवैधानिक रूप से उसके खाते से अंकन 44,650/-रूपये निकाले गये हैं, तो उसके लिए विपक्षीगण उत्तरदायी हैं । इस संदर्भ में विपक्षीगण के अधिकारियों द्वारा आश्वासन भी दिया गया था कि शीघ्र ही जाॅंच करने के पश्चात् यह रकम परिवादी के खाते में वापस कर दी जायेगी, परन्तु विपक्षीगण के अधिकारियों द्वारा एैसा नहीं किया गया । विपक्षी नं0 2 की ओर से सशपथ यह अस्वीकार किया गया है कि उनके द्वारा परिवादी को यह अवगत कराया गया हो कि इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से उसके खाते से रकम का आहरण किया गया है और शीघ्र ही जाॅंच करके रकम उसके खाते में वापस की जायेगी, बल्कि विपक्षी नं0 2 के अधिकारियों द्वारा परिवादी को यह बताया गया था कि उसके द्वारा दिनांक 24.04.12 को अंकन 200/-रूपये की इंटरनेट परचेजिंग की गयी और दिनांक 24.04.12 को ही उसके द्वारा दो बार अंकन बीस-बीस हजार रूपये अर्थात् कुल अंकन 40,000/-रूपये का आहरण ए.टी.एम. कार्ड के माध्यम से किया गया तथा दिनांक 25.03.12 को पुनः ए.टी.एम. कार्ड के माध्यम से अंकन 40,000/-रूपये का आहरण किया गया और अवशेष धनराशि अंकन 44,450/-रूपये की इंटरनेट परचेजिंग दिनांक 26.04.12 को की गयी है, जिसके द्वारा खाता शून्य हो गया । परिवादी के खाते में न तो इंटरनेट बैंकिंग की गयी और न ही परिवादी के ए.टी.एम. कार्ड में कार्ड में इंटरनेट बैंकिंग की सुविधा थी । विपक्षी नं0 2 की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया कि इंटरनेट बैंकिंग की सुविधा बैंक द्वारा बिना माॅगे हुए प्रदान नहीं की जाती है, जबकि प्रत्येक ए.टी.एम. कार्ड पर शापिंग एवं इंटरनेट परचेजिंग की सुविधा उपलब्ध होती है । परिवादी की ओर से ए.टी.एम. कार्ड की विभिन्न स्कीम तथा विभिन्न प्रकार से ए.टी.एम. बैंकिंग प्रक्रिया किये जाने के संदर्भ में साक्ष्य प्रस्तुत की गयी है, जिसका कोई भी महत्व नहीं है क्योंकि विपक्षी नं0 2 द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि उसके ए.टी.एम. कार्ड पर न तो इंटरनेट बैंकिंग की सुविधा उपलब्ध थी और न ही इंटरनेट बैकिंग से रकम का आहरण किया गया है, बल्कि परिवादी अथवा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा जिसे परिवादी के पिन नम्बर व पासवर्ड की जानकारी रही है, उसने इंटरनेट परचेजिंग के माध्यम से रकम का आहरण किया गया है । परिवादी की ओर से स्वयॅ ंही ए.टी.एम. कार्ड की छाया प्रति 40/7 प्रस्तुत की गयी है, जिसके अवलोकन से यह स्पष्ट है कि यह ए.टी.एम. कार्ड स्टेट बैंक का शापिंग कार्ड रहा है, जिसके माध्यम से इंटरनेट परचेजिंग की गयी है । विपक्षी नं0 2 बैंक की ओर से खाते का विवरण 7/3 लगायत 7/4 प्रस्तुत किया गया है, जिसके अवलोकन से यह स्पष्ट है कि दिनांक 24.04.12 को को अंकन 200/-रूपये की पी.आर.सी.एच. अथवा परचेजिंग की गयी है और दिनांक 26.04.12 को अंकन 44,450/-रूपये पी.आर.सी.एच. अथवा परचेजिंग की गयी है । इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि अंकन 44,650/-रूपये का आहरण इंटरनेट बैकिंग के माध्यम से नहीं किया गया है, बल्कि इंटरनेट परचेजिंग के माध्यम से किया गया है ।
इस प्रकार उपरोक्त विवेचना के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि दिनांक 24.04.12 को अंकन 200/-रूपये और दिनांक 26.04.12 को अंकन 44,450/-रूपये की इंटरनेट परचेजिंग या तो परिवादी द्वारा स्वयॅ की गयी है और यदि उसके द्वारा स्वयॅं नहीं की गयी है तो किसी अन्य व्यक्ति द्वारा परिवादी के ए.टी.एम. कार्ड का उपयोग किया गया है, जिसे परिवादी के पिन नम्बर व पासवर्ड की पूर्ण जानकारी रही है । यह जाॅंच का विषय है, जिसके संदर्भ में परिवादी को प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत करायी जानी चाहिये थी और पुलिस द्वारा जाॅंच करने के पश्चात् ही इसका खुलासा होना संभव था, परन्तु इस प्रकरण में विपक्षी को किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है और न ही इंटरनेट परचेजिंग किये जाने के संदर्भ में विपक्षीगण का कोई मतलब सरोकार रहा है । परिवादी की ओर से यह कथन भी प्रस्तुत किया गया है कि उपरोक्त घटना के बाद जब विपक्षी द्वारा ब्याज के रूप में अंकन 1358/-रूपये परिवादी के खाते में जमा किये गये, उस रकम को भी परिवादी के खाते से दिनांक 10.07.12 को अवैध रूप से निकाल लिया, इसके बावजूद भी परिवादी द्वारा न तो पुलिस के पास कोई शिकायत दर्ज करायी गयी और उपरोक्त घटना हो जाने के बाद भी परिवादी द्वारा सुरक्षा की दृष्टि से अपना पिन नम्बर व पासवर्ड को भी नहीं बदला गया और उसी व्यक्ति द्वारा परिवादी के पिन नम्बर व पासवर्ड का दुरूपयोग करते हुए परिवादी के खाते से रकम आहरित करने की घटना की पुनरावृत्ति की गयी । इस प्रकरण मंे विपक्षीगण को किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है । इस संदर्भ में विपक्षीगण की ओर से किसी भी प्रकार से सेवा में त्रुटि या लापरवाही नहीं की गयी है, बल्कि इसके विपरीत परिवादी द्वारा ही ए.टी.एम. कार्ड का प्रयोग करने और पिन नम्बर तथा पासवर्ड को सुरक्षित रखने में लापरवाही की गयी है, जिसके कारण यह घटना घटित हो गयी । अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि विपक्षीगण द्वारा उपरोक्त प्रकरण में किसी भी प्रकार से सेवा में त्रुटि या लापरवाही नहीं की गयी है, जिसके कारण परिवादी विपक्षीगण से कोई भी अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है और न ही किसी रकम को परिवादी के खाते में वापस किये जाने का कोई उत्तरदायित्व विपक्षीगण का है । अतः परिवादी की ओर से योजित परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है ।
आदेश
परिवादी की ओर से विपक्षीगण के विरूद्व योजित किया गया परिवाद निरस्त किया जाता है । पक्षगण अपना-अपना वाद व्यय स्वयॅं वहन करेगें ।
( मोहम्मद कमर अहमद ) ( बृजेश चन्द्र सक्सेना )
सदस्य अध्यक्ष
यह निर्णय आज दिनांक 17.11.2016 को हमारे द्वारा हस्ताक्षरित करके खुले फोरम में उद्घोषित किया गया ।
( मोहम्मद कमर अहमद ) ( बृजेश चन्द्र सक्सेना )
सदस्य अध्यक्ष