Uttar Pradesh

StateCommission

A/2013/255

Dev Shankar - Complainant(s)

Versus

State Bank Of India - Opp.Party(s)

S P Bajpai

18 Feb 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2013/255
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Dev Shankar
a
...........Appellant(s)
Versus
1. State Bank Of India
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Alok Kumar Bose PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Sanjay Kumar MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

(राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)

                सुरक्षित                   

अपील संख्‍या 255/2013

 

(जिला मंच उन्‍नाव द्वारा परिवाद सं0 98/2012 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 27/12/2012 के विरूद्ध)

 

देव शंकर आयु करीब 55 वर्ष पुत्र स्‍व0 देवी रतन निवासी ग्राम व पोस्‍ट दुबेपुर, तहसील व जिला उन्‍नाव।

                                                                                       …अपीलार्थी/परिवादी

बनाम

स्‍टेट बैंक आफ इंडिया शाखा शुक्‍ला गंज तहसील व जिला उन्‍नाव जरिये शाखा प्रबंधक।

                                                 .........प्रत्‍यर्थी/विपक्षी                

समक्ष:

       1. मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्‍य ।

  2. मा0 श्री संजय कुमार, सदस्‍य।

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित        : कोई नहीं।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित          : कोई नहीं।

 

दिनांक  21-05-2015

मा0 श्री संजय कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित ।

निर्णय

     प्रस्‍तुत अपील परिवाद सं0 98/2012 देव शंकर बनाम स्‍टेट बैंक आफ इंडिया, जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, उन्‍नाव के निर्णय/आदेश दिनांक 27/12/2012 से क्षुब्‍ध होकर प्रस्‍तुत की गई है। प्रश्‍नगत प्रकरण में अधीनस्‍थ जिला फोरम ने परिवाद खारिज करते हुए परिवादी को निर्देश दिया कि वह विपक्षी बैंक को परिवाद व्‍यय के रूप में मु0 5000/ रूपये की राशि अदा करेगा।

     प्रश्‍नगत प्रकरण में परिवादी का कथन संक्षेप में इस प्रकार है कि माह जनवरी, 2006 में परिवादी ट्रैक्‍टर खरीदने के लिए विपक्षी से 3,00,000/ रूपये का ऋण लिया था। परिवादी ने उक्‍त ऋण खाते में दिनांक 04/06/2007 को मु0 30,000/ रूपये, दिनांक 07/05/2009 को 25,000/ रूपये त‍था दिनांक 26/02/2010 को मु0 4000/ रूपये जमा किए। परिवादी की कृषि भूमि में धान की फसल होती है परन्‍तु बरसात ठीक न होने के कारण परिवादी ऋण की किस्‍ते समय से अदा नहीं कर सका। प्रधानमंत्री की ऋण राहत योजना के अंतर्गत परिवादी को मु0 94,598/ रूपये की ऋण राहत प्राप्‍त हुई जिसे विपक्षी ने परिवादी के खाते में दिनांक 27/09/2008 को जमा किया। इसके बाद वर्ष 2010 में परिवादी को ऋण राहत योजना के

 

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अंतर्गत 69,598/ रूपये की ऋण राहत प्राप्‍त हुई जो जमा किया परन्‍तु बाद में 94,598/ रूपये की धनराशि विपक्षी ने वापस ले लिया और परिवादी को कोई कारण नहीं बताया। विपक्षी द्वारा अनुचित तरीके से वसूली प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया जो कि निरस्‍त किये जाने योग्‍य है। दिनांक 18/07/2012 को कोई बकाया धनराशि 2,81,866/ रूपये थी लेकिन विपक्षी द्वारा परिवादी के घर पर जो वसूली प्रमाण पत्र चस्‍पा किया गया जिसमें यह राशि मु0 4,83,790/ रूपये दिखाई गई है। इन तथ्‍यों के साथ परिवाद योजित किया गया।

     विपक्षी द्वारा स्‍वीकार किया गया कि परिवादी द्वारा ऋण मु0 3,00,000/ रूपये लिया गया था। दिनांक 07/06/2009 को 25,000/ रूपये तथा दिनांक 26/02/2010 को 4,000/ रूपये जमा करना भी स्‍वीकार किया गया है। विपक्षी ने इस आधार पर प्रतिवाद किया है कि प्रधान मंत्री राहत योजना में परिवादी की ऋण माफी योजना में 69,598/ रूपये का लाभ मिला जो उसके खाते में जमा कर दिया गया। मु0 94,598/ रूपये की राशि गलत जमा हो गई थी और गलती का संज्ञान में आने पर यह राशि परिवादी के खाते से वापस ले ली गई। वर्ष 2010 में कोई भी ऋण माफी योजना नहीं आई। विपक्षी द्वारा कोई सेवा में कमी नहीं की गई है। परिवाद खारिज किये जाने योग्‍य है। उभय पक्ष को सुनने के उपरान्‍त विद्वान अधीनस्‍थ जिला फोरम ने गुणदोष के आधार पर परिवाद निरस्‍त किया है, जिसके विरूद्ध प्रस्‍तुत अपील योजित की गई है।     

     दिनांक 18/02/2015 को अपील सुनवाई हेतु ली गई। उक्‍त तिथि को पक्षकार अनुपस्थित थे। चूंकि यह अपील पिछले दो वर्ष से अधिक समय से अंगीकरण हेतु सूचीबद्ध चली आ रही थी। अत: उत्‍तर प्रदेश उपभोक्‍ता संरक्षण नियमावली 1987 के नियम 08 उपनियम 06 सपठित धारा 30 उपधारा 02 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 में दिये गये प्राविधान को दृष्टिगत रखते हुए पीठ द्वारा यह समाचीन पाया गया कि इस अपील का निस्‍तारण अंगीकरण के स्‍तर पर विधि अनुसार कर दिया जाय।

     पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्‍य प्रकाश में आता है कि इस प्रकरण में अधीनस्‍थ फोरम द्वारा दिनांक 27/12/2012 को परिवाद सं0 98/12 को निरस्‍त कर दिया गया था। इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि अपीलार्थी को 01/01/2013 को उपलब्‍ध कराई गई थी एवं अपीलार्थी ने प्रस्‍तुत अपील दिनांक 11/02/2013 को योजित की है। इस प्रकार अपील योजित करने में मात्र 10 दिन का विलंब है इसे क्षमा करने हेतु अपीलार्थी ने एक प्रार्थना पत्र एवं उसके समर्थन में शपथ पत्र प्रस्‍तुत किया है जिसमें विलंब का समुचित कारण दर्शाया गया है।

    

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     पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्‍य प्रकाश में आता है कि अपीलार्थी/परिवादी ने माह जनवरी 06 में एक ट्रैक्‍टर खरीदने के लिए प्रत्‍यर्थी/विपक्षी स्‍टेट बैंक आफ इंडिया, शुक्‍ला गंज, उन्‍नाव से मु0 3,00,000/- रूपये का ऋण प्राप्‍त किया जिसका ऋण खाता सं0 106518100675 अपीलार्थी/परिवादी ने उक्‍त ऋण खाते में दिनांक 04/06/2007 को मु0 30,000/- तत्‍पश्‍चात दिनांक 07/05/2009 को 25,000/- रूपये एवं दिनांक 26/02/2010 को 4,000/- रूपये जमा किये। इस बीच उसका धान का फसल नष्‍ट हो जाने के कारण वह बैंक से लिये गये उक्‍त ऋण की किस्‍ते समय से अदा नहीं कर सका। अपीलार्थी का कहना है कि उसे प्रधानमंत्री ऋण राहत योजना के अंतर्गत दिनांक 27/09/2008 को मु0 94,598/- रूपये प्राप्‍त हुआ था तत्‍पश्‍चात पुन: दिनांक 26/02/2010 को उपरोक्‍त योजना के अंतर्गत 69,598/- रूपये प्राप्‍त हुआ परन्‍तु प्रत्‍यर्थी स्‍टेट बैंक आफ इंडिया ने बिना कोई कारण दर्शाये उसके खाते से 94,598/- रूपये वापस ले लिया जो अनुचित व्‍यापार व्‍यवहार रहा। तत्‍पश्‍चात बैंक द्वारा उसके विरूद्ध वसूली प्रमाण पत्र (रिकवरी सर्टिफिकेट) जारी किया गया। बैंक के इसी कृत्‍य से अपीलार्थी/परिवादी देव शंकर ने जिला फोरम में परिवाद सं0 98/12 प्रस्‍तुत किया। प्रत्‍यर्थी/बैंक ने अपने लिखित उत्‍तर में यह स्‍पष्‍ट किया कि अपीलार्थी को प्रधानमंत्री राहत योजना 2008 के अंतर्गत मु0 69,598/- रूपया ऋण माफी में आवंटित हुआ था जिसे उसने खाते में जमा कर दिया था। बैंक का कहना है कि लिपिकीय त्रुटिवश उसके खाते में पुन: मु0 94,598/- रूपये गलत जमा हो गया था। इस गलती को सुधारते हुए बैंक द्वारा उक्‍त 94,598/- रूपये उसके खाते से वापस ले लिया गया था। अपीलार्थी को कभी भी किसी योजना के अंतर्गत उपरोक्‍त धनराशि आवंटित नहीं किया गया था चूंकि अपीलार्थी ने ट्रैक्‍टर खरीदने हेतु ऋण प्राप्‍त किया था एवं उसके द्वारा समय से ऋण की वापसी नहीं की गई और न ही किस्‍ते जमा की गई। अत: उसके विरूद्ध विधि अनुरूप वसूली प्रमाण पत्र (रिकवरी सर्टिफिकेट) जारी किया गया था। प्रत्‍यर्थी बैंक का यह भी कहना है कि अपीलार्थी/परिवादी ने माननीय उच्‍च न्‍यायालय में रिट याचिका सं0 4301/12 संस्थित किया था जिसमें उसने मु0 4,83,790/- रूपये धनराशि बकाया माना एवं किस्‍तों में धन अदा करने की बात की। उक्‍त रिट याचिका को दिनांक 27/08/2012 को निस्‍तारित करते हुए अपीलार्थी/परिवादी को किस्‍तों में बकाया धनराशि अदा करने के लिए निर्देशित किया गया। इसके उपरान्‍त भी अपीलार्थी ने माननीय उच्‍च न्‍यायालय के आदेश का अनुपालन नहीं किया। माननीय उच्‍च न्‍यायालय द्वारा प्रकीर्ण याचिका सं0 4301/12 में पारित

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निर्णय की प्रतिलिपि पत्रावली में उपलब्‍ध है जिसमें माननीय उच्‍च न्‍यायालय द्वारा 06 दोमाही किस्‍तों में संपूर्ण ऋण की धनराशि को वापस करने की अनुमति अपीलार्थी को दी गई थी एवं यह भी निर्देश दिया गया था कि ऐसा न करने पर बैंक द्वारा उसके विरूद्ध वसूलयाबी की कार्यवाही की जा सकती है। अपीलार्थी ने माननीय उच्‍च न्‍यायालय द्वारा दिये गये निर्देश का अनुपालन नहीं किया है। सभी बातों को दृष्टिगत रखते हुए अधीनस्‍थ फोरम द्वारा परिवाद सं0 98/12 को गुणदोष के आधार पर दिनांक 27/12/12 को निरस्‍त कर दिया गया था। यह निर्णय पत्रावली में उपलब्‍ध अभिलेखीय साक्ष्‍य एवं माननीय उच्‍च न्‍यायालय द्वारा दिये गये दिशा-निर्देशों के अनुरूप है। इसमें हस्‍तक्षेप करने का प्रथम दृष्‍टया कोई आधार नहीं बनता है। फलस्‍वरूप अपील सारहीन होने के कारण अंगीकरण के स्‍तर पर निरस्‍त होने योग्‍य है। प्रत्‍यर्थी स्‍टेट बैंक आफ इंडिया द्वारा वसूली कार्यवाही प्रारम्‍भ कर किसी प्रकार का कोई सेवा में कमी अथवा विधि विरूद्ध कार्यवाही नहीं की गई है।

आदेश

         अपील सारहीन होने के कारण अंगीकरण के स्‍तर पर निरस्‍त की जाती है। पक्षकार अपना-अपना अपीलीय व्‍यय भार स्‍वयं वहन करेंगे। उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्‍ध कराई जाय।

                                 

                                                              (आलोक कुमार बोस)

                                                            पीठासीन सदस्‍य

 

                                                                     

                                                                                 

                                                   (संजय कुमार)

                                                     सदस्‍य                                                  

                                                    

  

                                                                            

 सुभाष चन्‍द्र आशु0  कोर्ट नं0 4                                                       

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Alok Kumar Bose]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Sanjay Kumar]
MEMBER

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