Rajasthan

Kota

CC/65/2012

Nawal kishore gupta - Complainant(s)

Versus

State Bank of India, Manager - Opp.Party(s)

S.K.gupta

05 Oct 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)
परिवाद संख्या:- 65 /12

नवल किशोर गुप्ता पुत्र प्रभूलाल गुप्ता जाति महाजन आयु 44 वर्ष निवासी ग्राम बोरदा तहसील सांगोद जिला कोटा, राजसथान।                                                           -परिवादी

                    बनाम

मुख्य शाखा प्रबंधक    , भारतीय स्टेट बैंक, मेन ब्रान्च, छावनी चैराहा, कोटा, राजस्थान।                                -विपक्षी

समक्ष:-
भगवान दास     ः    अध्यक्ष
हेमलता भार्गव    ः    सदस्य
    परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
01.    परिवादी की ओर से कोई उपस्थित नहीं।  
02.    श्री सुरेश माथुर, अधिवक्ता, विपक्षी की ओर से। 
 
 
            निर्णय             दिनांक 05.10.2015
         
         परिवादी ने विपक्षी के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर संक्षेप में उसका यह सेवा दोष बताया है कि उसने दिनांक 27.01.10 को विपक्षी से 6.50 लाख रूपये का गृह लोन लिया था, उस समय कागजात के नाम से धोखे में फार्म सहित सभी खाली कागजों आदि पर हस्ताक्षर करा लिये, उसकी जानकारी व सहमति के बिना कपट पूर्वक एस.बी.आई. लाईफ से उसके जीवन बीमा की पालिसी नम्बर 93000000605 भी जारी करते हुये प्रीमियम के पेटे 46,191/- रूपये गलत काट लिये जिसकी जानकारी होने पर पालिसी को निरस्त कराने के लिये विपक्षी को वेबसाइट, ईमेल आई.डी. के जरिये व्यक्तिगत रूप से एवं डिप्टी जनरल मैनेजर के देहली स्थित आफिस को शिकायत की गई। अधिवक्ता के जरिये काूननी नोटिस विपक्षी को भेजा गया, लेकिन बीमा पालिसी निरस्त नहीं की गई, जिससे उसे आर्थिक क्षति के साथ-साथ मानसिक संताप हुआ।    
    विपक्षी की ओर से प्रस्तुत जवाब का सार है कि  परिवादी पढा लिखा विधिक स्नातक है उसने गृह ऋण लेते समय सभी दस्तावेजों को पढकर समझकर हस्ताक्षर किये जिसमें उसने स्वेच्छा से एस.बी.आई. लाईफ बीमा कराने की स्वीकृति देकर बीमा करवाया, पालिसी प्राप्त की। बीमा पालिसी विपक्षी द्वारा जारी नहीं की गई अपितु एस.बी.आई. लाईफ  नामक अलग कंपनी द्वारा जारी की गई है। परिवाद में सभी तथ्य गलत अंकित किये गये है। पालिसी निरस्त करने का विपक्षी को कोई अधिकार नहीं है केवल एस.बी.आई. लाईफ बीमा कंपनी को ही अधिकार है। उसे पक्षकार नहीं बनाया गया है। उनका कोई सेवा-दोष नहीं है। 
       
    परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा गृह ऋण हेतु प्रस्तुत आवेदन-पत्र , एस.बी.आई. लाईफ बीमा पालिसी का प्रमाण-पत्र, विपक्षी को ईमेल के जरिये भेजी गई शिकायत, कानूनी नोटिस, विपक्षी से प्राप्त जवाब आदि की प्रति प्रस्तुत की। 
    विपक्षी ने साक्ष्य में अपने जवाब के समर्थन में  प्रबंधक, प्रदीप शर्मा के शपथ-पत्र के अलावा परिवादी द्वारा एस.बी.आई. लाईफ धन रक्षा प्लस पालिसी हेतु प्रस्तुत आवेदन पत्र के साथ संलग्न दस्तावेजात आदि की प्रति प्रस्तुत की है। 
    प्रकरण में वादी बहस की स्टेज पर दिनांक 06.08.15, 31.08.15 व 22.09.15 को परिवादी व उसके अधिवक्ता उपस्थित नहीं आये ऐसी स्थिति में विपक्षी के वकील की एक तरफा बहस सुनी गई पत्रावली का अवलोकन किया गया। 
    परिवादी स्वयं विपक्षी को गृह ऋण हेतु प्रस्तुत आवेदन की प्रति प्रस्तुत की है उस पर उसके अंग्रेजी में हस्ताक्षर है इसमें उसने अपनी शैक्षणिक योग्यता बी.एस.सी., बी.एड. व एल एल.बी. अंकित की है तथा अध्यापक ग्रेड थर्ड के पद पर कार्यरत  होना भी अंकित किया है इसी आवेदन-पत्र के कालम संख्या 14- ष्सामान्यष् के क्रम संख्या 1 में उससे निम्न प्रश्न पूछा गया -
    ष्  क्या आप एस.बी.आई. लाईफ आप्शनल ग्रुप से कवर होने के इच्छुक है ? 
    उक्त प्रश्न का ष्हाॅष् में जवाब दिया गया है। अर्थात स्वयं परिवादी जो की विधि स्नातक है अध्यापक के पद पर कार्यरत है उसने इस आवेदन-पत्र में पूछे गये उक्त प्रश्न के उत्तर में स्पष्ट रूप से एस.बी.आई. लाईफ बीमा पालिसी कवर होने के विकल्प को स्वीकार किया है। इतना ही नहीं विपक्षी ने परिवादी की ओर से एस.बी.आई. लाईफ धन रक्षा प्लस एल पी पी टी मेम्बर-शिप हेतु प्रेषित फार्म की प्रति प्रस्तुत की है इस फार्म में भी परिवादी के तीन स्थानों पर अंग्रेजी में हस्ताक्षर है इस आवेदन-पत्र के जरिये उसने बीमा पालिसी लेने हेतु स्पष्ट रूप से प्रस्ताव पत्र प्रेषित किया है ।
    इस प्रकार दस्तावेजी साक्ष्य से स्पष्ट है कि परिवादी ने स्वाभाविक रूप से एस.बी.आई. लाईफ की पालिसी ली है उसकी यह कहानी बिल्कुल विश्वास योग्य नहीं है कि उससे खाली कागजात पर बिना समझे हस्ताक्षर करा लिये हो। क्योंकि न केवल वह विधि स्नातक है अपितु राज्य सेवा मेें शिक्षक के पद पर कार्यरत है, इसलिये हम पाते है कि परिवादी की कहानी विश्वास योग्य नहीं है परिवादी विपक्षी का सेवा-दोष सिद्ध नहीं कर पाया । 
    अतः परिवाद खारिज होने योग्य है।
    

     
                   आदेश 

         परिवादी नवल किशोर गुप्ता का परिवाद खारिज किया जाता है। खर्चा परिवाद पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगे। 
       

         (हेमलता भार्गव)                                (भगवान दास)  
             सदस्य                                       अध्यक्ष
 
     निर्णय आज दिनंाक 05.10.2015 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 
                                     
          सदस्य                                        अध्यक्ष

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