Uttarakhand

Rudraprayag

2/2014

Jeet singh negi S/o saun singh - Complainant(s)

Versus

State Bank India Gupt kashi - Opp.Party(s)

Gangadhar nautyal

12 Apr 2017

ORDER

District Consumer Form, Rudra Prayag, Uttrakhand
Near District Hospital, Rudra Prayag, Uttrakhand
 
Complaint Case No. 2/2014
 
1. Jeet singh negi S/o saun singh
vill- Khumaura, Gupt kashi, ukhimath, Rudra prayag
...........Complainant(s)
Versus
1. State Bank India Gupt kashi
Gupt kashi Rudra prayag
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Ashis Naithani PRESIDENT
 HON'BLE MR. Jeet pal singh kathait MEMBER
 HON'BLE MRS. Geeta Rana MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 12 Apr 2017
Final Order / Judgement

न्यायालय जिला फोरम, उपभोक्ता संरक्षण, रूद्रप्रयाग।
    उपस्थितः     1- आशीष नैथानी,    अध्यक्ष,
            2- गीता राणा, सदस्या।
    उपभोक्ता वाद संख्याः  02/2014
जीत सिंह पुत्र सैन सिंह,
निवासी ग्राम- खुमेरा रा0उ0नि0क्षे0-गुप्तकाषी तहसील-ऊखीमठ, जिला-रूद्रप्रयाग
                         ............................................        प्रार्थी।
बनाम
क्षेत्रीय प्रबन्धक भा0स्टेट बैंक क्षेत्र-4, आंचलिक कार्यालय देहरादून।
षाखा प्रबन्धक भा0स्टे0 बैंक गुप्तकाषी, जिला रूद्रप्रयाग
   ....................प्रतिवादीगण।
 
1- प्रार्थी की ओर से               ः     श्री गंगाधर नौटियाल, एडवोकेट ।
2- प्रतिवादीगण की ओर से          ः     श्री आनन्द बगवाड़ी, एडवोकेट।  

श्रनकहउमदज चतमचंतमक इल. ैतप ।ेीपेी छंपजींदपए ब्ींपतउंदण्

निर्णय
        प्रार्थी ने यह प्रार्थना पत्र उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत विपक्षी षाखा प्रबन्धक, भारतीय स्टैट बैंक, गुप्तकाषी से दुकान व्यवसाय संचालन हेतु लिये गये ऋण मय ब्याज ृ 10,00,000/- (दस लाख रूपये) को माफ कर खत्म करने हेतु प्रस्तुत किया है।
प्रार्थना पत्र के अनुसार तथ्य इस प्रकार हैं कि, प्रार्थी वर्श 1995 से गौरीकुण्ड में दुकान का व्यवसाय करता आ रहा है। प्रार्थी ने अपने व्यवसाय के सम्बन्ध में विपक्षी भारतीय स्टैट बैंक गुप्तकाषी में खाता संख्या 31848423262 खोला और इस खाते के विपरीत वर्श 1997 में विपक्षी बैंक में व्यवसाय के संचालन हेतु ृ 25000/- (पच्चीस हजार रूपये) की ऋण साख/लिमिट बनाई, जिस पर भारतीय स्टैट बैंक गुप्तकाषी द्वारा प्रार्थी के खाते से बीमा की किस्त काटकर बीमाकृत करवाया गया। बैंक द्वारा खाते के सही संचालन को देखते हुए उक्त खाते की ऋण साख/लिमिट ृ 25000/-रूपये से बढ़कर ृ 1,50,000/-रूपये और फिर बढ़ाकर ृ 3,00,000/-रूपये किया गया, जिसे वर्श 2011 में ृ10,00,000/- रूपये किया गया। वर्श 1997 से वर्श 2012 तक लगातार बैंक द्वारा प्रार्थी के खाते से बीमा की किस्त काटकर प्रत्येक वर्श स्वंय ही उक्त खाते की सम्पत्ति का बीमा करवाया गया। दिनांक 16-17 जून, 2013 को केदारनाथ में आयी भंयकर त्रासदी के कारण प्रार्थी की उक्त दुकान तथा सारी सम्पत्ति ृ 15,00,000/-रूपये की नश्ट हो गयी। इस संबध में प्रार्थी द्वारा विपक्षी प्रबन्धक भारतीय स्टैट बैंक गुप्तकाषी को मौखिक सूचना दी गयी तथा दिनांक 17-10-2013 को लिखित आवेदन पत्र दिया गया। दिनांक 17-10-2013 को ही प्रार्थी द्वारा इस संबध में दि, ओरियन्टल इन्ष्योरेंस कम्पनी लि0 षाखा कार्यालय निकट श्रीनगर गढ़वाल वि0वि के सामने श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखण्ड को भी दिया गया, जिनके द्वारा दिनांक 23-10-2013 को प्रार्थी को पत्र भेजकर कहा गया कि, प्रार्थी अपने बैंकर से सम्पर्क कर पाॅलिसी नम्बर बीमा कम्पनी को उपलब्ध करायें। किन्तु बैंक द्वारा कोई सूचना नहीं दी गयी। प्रार्थी द्वारा बैंक में पता करने पर बैंक द्वारा मौखिक रूप से दुकान का बीमा न करने की बात की गयी। इस पर प्राथी द्वारा विरूद्ध पक्ष को अपने अधिवक्ता के माध्यम से दिनांक 04-09-2013 को रजिस्टर्ड नोटिस भेजा गया किन्तु बैंक द्वारा उस नोटिस का न तो जवाब दिया गया और न ही कोई कार्यवाही अमल में लायी गयी। आपदा के बाद प्रार्थी बेरोजगार हो गया है। उसके पास रोजगार का कोई साधन नहीं है। बैंक की गलती के कारण दुकान का समय पर बीमा न होने से प्रार्थी ृ 10,00,000/-(दस लाख रूपये) के कर्जे में फंस गया है जिस पर लगातार बैंक का ब्याज भी बढ़ता जा रहा है। जबकि प्रार्थी की इसके प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है। अतः याचना की गयी कि प्रार्थी द्वारा विपक्षी भारतीय स्टैट बैंक, गुप्तकाषी से दुकान व्यवसाय संचालन हेतु लिये गये ऋण मय ब्याज ृ 10,00,000/- (दस लाख रूपये) को माफ कर खत्म किया जाय।
 प्रार्थी केे प्रार्थना पत्र पर विपक्षीगण को नोटिस जारी किया गया। प्रतिपक्षी 02 की ओर से जवाबदावा 11-ख प्रस्तुत करते हुए कथन किया गया कि, विपक्षी स्टैट बैंक आफ इण्डिया अधिनियम 1955 के अन्तर्गत गठित बैंकिग कम्पनी है जिसका केन्द्रीय काॅरपोरेट कार्यालय मैडम कामा मार्ग रीमन प्वाइण्ट मुम्बई में स्थित है तथा स्थानीय प्रधान कार्यालय 10 संसद मार्ग नई दिल्ली में है। विपक्षी बैंकिग का व्यवसाय करता है तथा उसकी षाखाऐं समूचे भारतवर्श में है। विपक्षी की एक षाखा स्थान गुप्तकाषी जिला रूद्रप्रयाग में स्थित है। विपक्षी के गुप्तकाषी में मुख्य अधिकारी षाखा प्रबन्धक वर्तमान समय में श्री राकेष कुमार हैं जो यह उत्तर पत्र प्रस्तुत करने के सत्यापित करने व हस्ताक्षरित करने में सक्षम एवं अधिकृत हैं। परिवाद, क्षेत्रीय प्रबन्धक भारतीय स्टैट बैंक तथा षाखा प्रबन्धक भारतीय स्टैट बैंक के विरूद्ध योजित किया गया है जो विधि सम्मत नहीं है। परिवाद के केवल विधिक व्यक्ति द्वारा अथवा विधिक व्यक्ति के विरूद्ध ही संज्ञेय है। परिवादी का उपरोक्त नाम व पते को होना स्वीकार करते हुए परिवाद के पद संख्या 02 का प्रत्युत्तर में कहा गया कि, परिवादी ने ऋण लिया था और परिवादी के ही निर्देष पर बीमा किया गया था, जो परिवादी ने स्वीकार किया है। ऋण खाता संख्या 31848423262 वास्ते ृ10,0000/- (रूपया दस लाख) दिनांक 22-07-2011 को आरम्भ हुआ है, इसलिए परिवादी का यह कथन तथ्यगत आधार पर सही नहीं है कि यह ऋण खाता वर्श 1997 में आरम्भ हुआ था।
विपक्षी बैंक की ओर से कहा गया कि, परिवादी को दिनांक 22-07-2011 को ऋण सीमा स्वीकृत होकर ऋण संबधी दस्तावेज तथा ऋण अनुबन्ध, व्यवस्थापन पत्र आदि परिवादी द्वारा निश्पादित किए गए हैं। प्रार्थना पत्र के पद संख्या 04 के प्रत्युत्तर में कहा गया कि, परिवादी के ऋण खाता से संबधित स्टाक का बीमा परिवादी के निर्देष एवं सूचना पर आधारित होकर परिवादी की सहमति पर करवाया गया है। बीमा की किस्त परिवादी के ऋण खाता से परिवादी के निर्देष पर ही बीमा कम्पनी को दी गयी। उल्लेखनीय है कि, परिवादी का ऋण खाता नकद साख ऋण खाता है जिसमें धन जमा करने व आहरण की सुविधा दी जाती है। परिवाद के पद संख्या 05 के प्रत्युत्तर में कहा गया कि, परिवादी को यह अच्छी तरह ज्ञात है कि उसके द्वारा लिया गया ऋण, लिखे गए अनुबन्ध के अधीन है। अपने व्यवसाय का बीमा करवाने की जिम्मेदारी परिवादी की थी और ऐसा न करके परिवादी ने स्वंय ही लापरवाही की है, जिसके लिए परिवादी का बैंक को जिम्मेदार ठहराना किसी भी तरह सही नहीं है। बीमा न होने से यदि परिवादी को कोई नुकसान हुआ है तो इसकी जिम्मेदारी परिवादी की स्वंय की है। परिवादी याचित अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है और परिवाद व्यय सहित खारिज होने योग्य है। अतिरिक्त निवेदन में कहा गया है कि परिवादी ने अपने स्टाक स्टेटमेंट पत्र दिनांक 18-06-2012 तथा स्टाक स्टेटमेंट पत्र 10-03-2013 से बैंक को सूचित किया है कि, अनुबन्धानुसार समस्त स्टाक का बीमा किया हुआ है। इसलिए अब परिवादी का यह कथन ग्राह्य और पोशणीय नहीं है कि बीमा करवाने में बैंक की गलती या लापरवाही थी। दरअसल बीमा करवाने की जिम्मेदारी तथ्यगत और विधिक रूप से परिवादी की ही थी। इस आधार पर प्रार्थी का प्रार्थना पत्र खारिज होने योग्य है।
प्रार्थी ने अपने प्रार्थना पत्र के समर्थन में स्वयं का षपथ पत्र बतौर पी0डब्ल्यू-1 कागज संख्या-16-क/1 लगायत 16-क/2, सोनू नेगी का षपथ पत्र बतौर पी0डब्ल्यू-2 कागज संख्या 23-क, वाजिद अली का षपथ पत्र बतौर पी0डब्ल्यू-3 कागज संख्या26-क, सोमनाथ कर्नाटकी का षपथ पत्र बतौर पी0डब्ल्यू-4 कागज संख्या 31-क तथा सतेन्द्र नेगी का षपथ पत्र बतौर पी0डब्ल्यू-5 कागज संख्या 35-क पेष करते हुए सूची 4-क के अनुसार उभयपक्षों के मध्य हुये एग्रीमेंट की प्रति 12-ख/1 लगायत 12-ख/19, स्टाॅक स्टैटमेंट की प्रति प्रार्थी जीत सिंह द्वारा दिनांक 17-10-2013 को षाखा प्रबन्धक भारतीय स्टैट बैंक गुप्तकाषी को दिये गये प्रार्थना पत्र की प्रति 4-क/1, बीमा कम्पनी का पत्र 4-क/2, प्रार्थी के अधिवक्ता द्वारा विपक्षी बैंक को प्रेशित नोटिस की प्रति मय डाक रसीद 4-क/4, सोनू नेगी के खाता संख्या 3271100578476 के विवरण की प्रति, 25-क/1, वाजिद अली के खाता संख्या 11758171018 के विवरण की प्रति 28-क/1, सोमनाथ कर्नाटकी के खाता संख्या 11786580642 के विवरण की प्रति 33-क/1 लगायत 33-क/2, सतेन्द्र सिंह नेगी के खाता संख्या 32353500946 की प्रति 34-क/1 लगायत 34-क/3, सूचना  अधिकार अधिनियम-2005 के अंतर्गत सूचना के अधिकार की प्रति, 50क/1 लगायत 50-क/2, सूचना के अधिकार के तहत प्रेशित प्रार्थना पत्र एवं डाक रसीद और 50क/3  एवं 50-क/4, बैंक का प्रत्युत्तर 50-क/5, दाखिल किये गये।
प्रार्थी की ओर से उपरोक्त के अतिरिक्त सूची 58क के अनुसार प्रार्थी द्वारा भारतीय डाक विभाग डाक अधीक्षक चमोली गोपेष्वर को भेजे गए प्रार्थना पत्र एवं विवरण पर्ची की प्रति 58-क/1 लगायत 58-क/2, रिजर्व बैंक का पत्र 58-क/3 लगायत 58-क/6, कार्यालय जिला लोक सूचना अधिकारी का पत्र 58-क/7, प्रषासनिक अधिकारी (संग्रह) जिला कार्यालय रूद्रप्रयाग के द्वारा वादी को दी गयी सूचना की प्रति 58क/8, जिला अधिकारी रूद्रप्रयाग द्वारा दी गयी सूचना की प्रति 58-क/9, उत्तराखण्ड षासन द्वारा व्याससायिक ऋणों पर देय ब्याज का विवरण उपलब्ध कराये जाने की सूचना की छायाप्रति 58-क/10, वादी के अधिवक्ता को सलाहकार वित (बैंकिग) उत्तराखण्ड षासन की छायाप्रति को दाखिल किया है।
विपक्षी बैंक की ओर से अपनी आपत्ति के समर्थन में नित्यानन्द मिश्रा षाखा प्रबन्धक एस0बी0आई0 गुप्तकाषी को बतौर डी0डब्ल्यू-1 परीक्षित कराया गया तथा सूची 12-ख के अनुसार व्यवस्थापन पत्र की फोटो प्रति 12-ख/1 लगायत 12-ख/10, ऋण अनुबन्ध पत्र 12-ख/11 लगायत 12-ख/20, स्टाॅक स्टेटमेंट की प्रति 12-ख/20 लगायत 20-ख/21 को दाखिल किया गया है।  
हमने पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण को सुना एवं पत्रावली पर मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य का अवलोकन किया।
प्रस्तुत मामले के निस्तारण के लिए निम्न तीन निर्णायक बिन्दु हैंः-
क्या प्रष्नगत सम्पत्ति, जिसे प्रार्थी द्वारा दिनांक 16/17 जून 2013 को केदारनाथ में आयी विनाषकारी आपदा में माल मय सामान क्षतिग्रस्त होने का दावा किया गया है; के सम्बन्ध में प्रार्थी के द्वारा विपक्षी भारतीय स्टैट बैंक गुप्तकाषी से ऋण लिया गया था अथवा नहीं?
क्या प्रष्नगत सम्पत्ति के सम्बन्ध में लिये गये ऋण के बाद उक्त विवादित सम्पति का बीमा करवाया गया था?
यदि प्रष्नगत सम्पति का बीमा हुआ था तो, क्या उसकी किष्तें जमा की जा रही थी और अदायगी का दायित्व किसका था?
निस्तारण बिन्दु संख्या 01 के परिप्रेक्ष्य में यदि देखा जाय तो यह स्वीकार्य तथ्य है कि, प्रार्थी ने गौरीकुण्ड में अपने व्यवसाय के संचालन हेतु विपक्षी भारतीय स्टैट बैंक गुप्तकाषी से ऋण लिया था। दिनांक 16-17 जून, 2013 को केदारनाथ में आयी भंयकर त्रासदी के कारण प्रार्थी की उक्त दुकान तथा सारी सम्पत्ति नश्ट हो गयी। इस सम्बन्ध में उभयपक्षों की ओर से पत्रावली पर उपलब्ध कराये गये तमाम दस्तावेजी साक्ष्य से भी इस बात की पुश्टि होती है कि, प्रार्थी जीत सिंह द्वारा विपक्षी भारतीय स्टैट बैंक गुप्तकाषी से अपने गौरीकुण्ड स्थित दुकान (व्यवसाय) के संचालन हेतु ऋण लिया गया था और प्रार्थी की उक्त सम्पत्ति दिनांक 16-17 जून, 2013 में केदारनाथ में आयी विनाषकारी प्रलय में नश्ट हो गयी।
जहां तक निस्तारण बिन्दु संख्या 02 कि, क्या प्रष्नगत सम्पत्ति के सम्बन्ध में लिये गये ऋण के बाद उक्त विवादित सम्पति का बीमा करवाया गया था?
इस सम्बन्ध में प्रार्थी द्वारा अपने प्रार्थना पत्र के प्रस्तर संख्या 2 में कहा गया कि, उसने अपने व्यवसाय के सम्बन्ध में विपक्षी भारतीय स्टैट बैंक गुप्तकाषी में खाता संख्या 31848423262 खोला और इस खाते के विपरीत वर्श 1997 में विपक्षी बैंक में व्यवसाय के संचालन हेतु ृ 25000/- (पच्चीस हजार रूपये) की ऋण साख/लिमिट बनाई, जिस पर भारतीय स्टैट बैंक गुप्तकाषी द्वारा प्रार्थी के खाते से बीमा की किस्त काटकर बीमाकृत करवाया गया। जबकि विपक्षी भारतीय स्टेट बैंक गुप्तकाषी की ओर से अपने जबाबदावा 11-ख में कहा गया कि, परिवादी को दिनांक 22-07-2011 को ऋण सीमा स्वीकृत होकर ऋण संबधी दस्तावेज तथा ऋण अनुबन्ध, व्यवस्थापन पत्र आदि परिवादी द्वारा निश्पादित किए गए हैं। परिवादी का ऋण खाता नकद साख ऋण खाता है जिसमें धन जमा करने व आहरण की सुविधा दी जाती है। अपने व्यवसाय का बीमा करवाने की जिम्मेदारी परिवादी की थी और ऐसा न करके परिवादी ने स्वंय ही लापरवाही की है, जिसके लिए परिवादी का बैंक को जिम्मेदार ठहराना किसी भी तरह सही नहीं है। बीमा न होने से यदि परिवादी को कोई नुकसान हुआ है तो इसकी जिम्मेदारी परिवादी की स्वंय की है। चूॅकि प्रार्थी द्वारा अपने उक्त तथा-कथित सम्पत्ति का बीमा नहीं कराया गया है और न ही बीमा कराये जाने से सम्बन्धित कोई दस्तावेज बीमा पाॅलिसी, कवर नोट की प्रति एवं बीमा धनराषि प्रीमियम जमा करने की प्रति पत्रावली अथवा बैंक में प्रस्तुत नहीं की है, अतः प्रार्थी किसी अनुतोश को प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। अतः इस आधार पर भी प्रार्थी के प्रार्थना पत्र में कोई बल प्रतीत नहींे होता है।
अब मुख्य मुद्दा मामले के निस्तारण के सन्दर्भ में यह है कि, यदि प्रष्नगत सम्पति का बीमा हुआ था तो, क्या उसकी किष्तें जमा की जा रही थी और अदायगी का दायित्व किसका था?
इस सम्बन्ध में प्रार्थी की ओर से कहा गया कि, बैंक उसके खाते से बीमा की किष्त जमा करता था। जबकि विपक्षी का कहना है कि यह दायित्व प्रार्थी का था, जो उसने नहीं निभाया और लम्बे समयान्तराल के बाद जब दैवीय आपदा में नुकसान की भरपायी करने का प्रष्न है तो बीमा की किष्ते अदा न करने के कारण प्रार्थी यह हक खो चुका था और उसे बीमा से सम्बन्धित धनराषि अदा नहीं की गयी। बैंक की ओर से प्रार्थी को दिये गये ऋण की अदायगी की पूर्ति के सम्बन्ध में पूर्ण रूप से अदायगी का दायित्व प्रार्थी का है। वैसे भी सरकार की ओर से अब तक केदारनाथ की आपदा में त्रस्त लोगों की ऋण माफी के सम्बन्ध में कोई स्पश्ट आदेष जारी नहीं किया गया है। प्रार्थी द्वारा दुकान के सामान के सम्बन्ध में कोई स्टाॅक स्टेटमेंट नहीं दिया गया।
विपक्षी बैंक की ओर से कहा गया कि, परिवादी को यह अच्छी तरह ज्ञात है कि, उसके द्वारा लिया गया ऋण, लिखे गए अनुबन्ध के अधीन है। अपने व्यवसाय का बीमा करवाने की जिम्मेदारी परिवादी की थी और ऐसा न करके परिवादी ने स्वंय ही लापरवाही की है, जिसके लिए परिवादी का बैंक को जिम्मेदार ठहराना किसी भी तरह सही नहीं है। बीमा न होने से यदि परिवादी को कोई नुकसान हुआ है तो इसकी जिम्मेदारी परिवादी की स्वंय की है। इसके अतिरिक्त अपने कथनों के समर्थन में विपक्षी की ओर से केरला हाईकोर्ट की एक नजीर ज्ञण्त्ण् ज्ञतपेीदंदानजजल टेण् ैवनजी प्दकपंद ठंदा स्जकण् - 2 व्तेण्  पेश की है, जिसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि ऐसे मामलों में बैंक का कोई भी दायित्व नहीं बनता है।
दोनों पक्षों को सुने जाने तथा पत्रावली का अवलोकन करने के बाद प्रथमतः मैं यह पाता हूँ कि, प्रष्नगत सम्पत्ति जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी के द्वारा बैंक से ऋण लिया गया था उस बीमाकृत सम्पत्ति की किष्तों की अदायगी की जिम्मेदारी प्रार्थी की है न कि बैंक की, और अपनी गलतियों का जिम्मा प्रार्थी बैंक के ऊपर नहीं थोप सकता है। प्रार्थी की ओर से दौराने बहस जिस भारतीय रिजर्व बैंक के ऋण माफी के निर्देषों के सम्बन्ध में कहा गया है ऐसा कोई तथ्य प्रार्थी साबित करने में सफल नहीं रहा है। इसके साथ-साथ सरकार की ओर से ऋण माफी के सम्बन्ध में कोई घोशणा अथवा आदेष जारी नहीं किया गया है। स्टाॅक स्टेटमेंट एवं बीमा से सम्बन्धित कोई भी दस्तावेज प्रार्थी की ओर से इस सम्बन्ध में दाखिल नहीं किया गया है और जो तर्क प्रार्थी की ओर से दिया गया है कि लगातार 21 वर्शों से बैंक से कभी कोई स्टाॅक रजिस्टर अथवा विवरण जमा करते समय का आंकलन नहीं किया गया तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं लिया जा सकता कि, प्रार्थी की जिम्मेवारी बीमाकृत सम्पत्ति की किष्तों की अदायगी की न बनती हो।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर प्रार्थी के प्रार्थना पत्र में कोई बल नहीं है और यह खण्डित किये जाने योग्य है।
आदेष
    प्रार्थी जीत सिंह का प्रार्थना पत्र विपक्षीगण के विरूद्ध खण्डित किया जाता है।

(श्रीमती गीता)                         (आशीष नैथानी)
       सदस्या,                              अध्यक्ष,
    जिला उपभोक्ता फोरम,                    जिला उपभोक्ता फोरम,
     रूद्रप्रयाग।                            रूद्रप्रयाग।
      12-04-2017ः                             12-04-2017ः    

निर्णय दिनाॅकित एवं हस्ताक्षरित कर खुले फोरम में उद्घोषित किया गया।

(श्रीमती गीता)                         (आशीष नैथानी)
       सदस्या,                              अध्यक्ष,
    जिला उपभोक्ता फोरम,                    जिला उपभोक्ता फोरम,
     रूद्रप्रयाग।                            रूद्रप्रयाग।
      12-04-2017ः                             12-04-2017ः    

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Ashis Naithani]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Jeet pal singh kathait]
MEMBER
 
[HON'BLE MRS. Geeta Rana]
MEMBER

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