Chhattisgarh

Durg

CC/14/260

Girish Kumar Markandey - Complainant(s)

Versus

Star Helth & Applied Insuance - Opp.Party(s)

Mr. Rakesh Dubey

26 Feb 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM, DURG (C.G.)
FINAL ORDER
 
Complaint Case No. CC/14/260
 
1. Girish Kumar Markandey
Durg
Durg
Chhattisgarh
...........Complainant(s)
Versus
1. Star Helth & Applied Insuance
Bhilai
Durg
Chhattisgarh
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर् PRESIDENT
 HON'BLE MRS. शुभा सिंह MEMBER
 
For the Complainant:Mr. Rakesh Dubey, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

                                                  प्रकरण क्र.सी.सी./14/260

                                                                                                  प्रस्तुती दिनाँक 02.09.2014

गिरीश कुमार मारकण्डेय, आ. श्री मधुसूदन मारकण्डेय ,उम्र लगभग 42 वर्ष, निवासी-क्वा.नं.बी.2, शिक्षक नगर, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)                                                - - - -      परिवादी

विरूद्ध

1. स्टार हेल्थ एण्ड एलाईड इंश्योरेंस कंपनी लिमि., न्यू बैंक स्ट्रीट,  वेलुवर कोटम हाई रोड, ननगमबक्कम, चेन्नई-600034

2.             स्टार हेल्थ एण्ड एलाईट इंश्योरेंस कंपनी लिमि., शाखा प्रबंधक, कामर्शियल काॅम्पलेक्स, 29, विजया बैंक के ऊपर, नेहरूनगर (ईस्ट) भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)

                                           - - - -      अनावेदकगण

 

आदेश

(आज दिनाँक 26 फरवरी 2015 को पारित)

श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष

                                परिवादी द्वारा अनावेदकगण से मेडिक्लेम की राशि 1,13,590रू. मय ब्याज, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।

परिवाद-

                                (2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के द्वारा अपने पूरे परिवार का बीमा अनावेदक क्र.2 के माध्यम से अनावेदक क्र.1 से दि.10.09.13 को कराया था, जिसके अंतर्गत वह उसकी पत्नि एवं पुत्र बीमित थे तथा बीमा कंपनी द्वारा जिनका पृथक से स्वास्थ्य परीक्षण नहीं कराया गया था तथां 6,242रू. प्रीमियम राशि प्राप्त की गई जिसका रिस्ककव्हर मूल्यांकन 3,00,000रू. था। दिनंाक 18.12.13 को परिवादी की पत्नी का स्वास्थ्य खराब होने पर उसे सेक्टर-9, मेन हास्पिटल, भिलाई स्वास्थ्य लाभ हेतु एडमिट कराया गया तथा एम.एम.आई.हाॅस्पिटल, रायपुर ले जाया गया तथा इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई।  चिकित्सक से पूछे जाने पर बताया गया कि बीमारी के कई कारण हो सकते हैं तथा मृतिका के किए गए परीक्षण से स्पष्ट प्र्रतीत होता है कि उपरोक्त बीमारी मृतिका को उच्च रक्त चाप संबंधी बीमारी के कारण नहीं हुई है। परिवादी के द्वारा दि.23.01.14 को क्लेम दावा मय आवश्यक दस्तावेज अनावेदक कार्यालय में प्रस्तुत किया गया। अनावेदक के द्वारा दि.11.03.14 को आवेदक का क्लेम दावा बिना किसी युक्तियुक्त कारण के निरस्त कर सूचना प्रेषित की गई, आवेदक के द्वारा अपने अधिवक्ता के माध्यम से दि.31.05.14 को पंजीकृत डक से नोटिस अनावेदक बीमा कंपनी को प्रेषित किया गया, परंतु अनावेदक के द्वारा आवेदक के नोटिस का जवाब नहीं दिया गया और न ही दावा राशि प्रदान की गई। इस प्रकार अनावेदकगण द्वारा सेवा मे कमी एवं व्यावसायिक कदाचरण किए जाने के फलस्वरूप अनावेदकगण से ईलाज में हुए व्यय की राशि 1,13,590रू. मय ब्याज, वाद व्यय एवं अन्य अनुतोष दिलाया जावे।

जवाबदावाः-

                                (3) अनावेदकगण का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि इस फोरम को वाद सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है, परिवादी के पास कोई वाद कारण नहीं है, मृतक पिछले सात सालों से उच्च रक्तचाप से पीड़ित थी, इस प्रकार जिस बीमारी का इलाज हुआ और मृतक की मृत्यु हुई, वह प्री-एक्जिस्टिंग डिसीज़ के कारण था, फलस्वरूप बीमा पालिसी की शर्तो के मुताबिक बीमा दावा खारिज करने पर अनावेदकगण ने किसी प्रकार की सेवा में निम्नता नहीं की है।

                                (4) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-

1.             क्या परिवादी, अनावेदकगण से मेडिक्लेम की राशि 1,13,590रू. प्राप्त करने का अधिकारी है?             हाँ

2.             अन्य सहायता एवं वाद व्यय?           आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत

निष्कर्ष के आधार

                                (5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है। 

फोरम का निष्कर्षः-

                                (6) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि एनेक्चर-10 अनुसार परिवादी का बीमा दावा इस आधार पर खारिज कर दिया गया है कि मृतक को कन्जेनिटल विकनेस आॅफ वेसल्स की वाल में होने के कारण एन्यूरीज़म हो जाने से हुई है जो कि उच्च रक्तचाप से और बढ़ गया, इस प्रकार मृतक को प्री-एक्जिस्टिंग डिसीज़़ थी, जिसके कारण दावा पाॅलिसी की शर्तों के एक्सक्लूज़न क्लाॅज के अनुसार स्वीकार योग्य नहीं माना जा सकता है।

(7) परंतु यदि प्रकरण में संलग्न अन्य दस्तावेजों का अवलोकन किया जाये तो अनावेदक ने यह कहीं भी सिद्ध नहीं किया है कि यदि उसने संबंधित बीमारी को उच्च रक्तचाप के कारण आधारित माना है तो बीमा पालिसी प्रदान करने के पहले अनावेदक ने मृतक का सूक्ष्म मेडिकल परीक्षण कराया था। अनावेदक ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है कि मृतक को बीमा पालिसी लेने के पहले किस प्रकार का उपचार, उच्च रक्तचाप के लिए दिया जाता था, यदि एनेक्चर-5 क्लेम फार्म का अवलोकन किया जाये तो डाॅक्टर द्वारा दिया गया सर्टिफिकेट के काॅलम 8 में यह उल्लेखित है कि परिवादी की बीमारी को प्री-एक्जिस्टिंग डिसीज़़ मानना आवश्यक नहीं है, केवल उसकी संभावना थी और इस स्थिति में अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा प्री-एक्जिस्टिंग डिसीज़़ को आधारित करते हुए बीमा दावा खारिज करना निश्चित रूप से सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आता है।

 

(8) यदि अनावेदक को उच्च रक्तचाप का बिन्दु ही बीमा दावा खारिज करने में आधारित करना था तो उसे यह सिद्ध करना था कि बीमित व्यक्ति को कितने दिनों से उच्च रक्तचाप था और क्या उच्च रक्तचाप के कारण ही मृतक अचानक अस्वस्थ हो गई और उसे समस्या आई? सिसे सिद्ध करने में अनावेदक असफल रहा है।

(9) अनावेदक बीमा कंपनी ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है कि यदि मृतक को उच्च रक्तचाप था तब भी उसे एनेक्चर-7 में बताई गई बीमारी हो सकती थी, जरूरी नहीं है कि व्यक्ति को लम्बे समय से हाईपरटेंशन हो, अनावेदक को यह सिद्ध करना था कि हाईपरटेंशन कितने दिनों से था, जिसके कारण यह बीमारी हुई।  इस संबंध में अनावेदक ने कोई सुदृढ़ चिकित्सकीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है, स्वयं चिकित्सक ने एनेक्चर-5 क्लेम फार्म में यह निश्चित निष्कर्ष भी नहीं दिया है कि मृतक को जो बीमारी हुई और जिससे उसकी मृत्यु हुई, वह प्री-एक्जिस्टिंग डिसीज़़ के कारण हुई। इस स्थिति में परिवादी का बीमा दावा एक्सक्लूज़न नं.1 एवं 4 के आधारों पर खारिज किया जाना उचित नहीं है।

(10) यहां हम यह उल्लेख करना भी आवश्यक पाते हैं कि अनावेदक बीमा कपंनी ने बीमित व्यक्ति के परिवार सहित फेमिली हेल्स आॅप्टिमा इंश्योेरेंस पालिसी योजना के अंतर्गत पाॅलिसी जारी की, परंतु प्रकरण में कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है कि परिवार के जिन व्यक्तियों को पाॅलिसी में शामिल किया था, उनका पालिसी जारी करने के पहले विस्तृत डाॅक्टरी परीक्षण कराया था।  अनावेदक ने यह भी सिद्ध नहीं किया है कि बीमित व्यक्ति से उन्होंने लिखित में यह प्राप्त किया था कि बीमित व्यक्ति एवं पालिसी के अंतर्गत संबंधित व्यक्तियों के पास इस प्रकार का डाॅक्टरी सर्टिफिकेट है कि उन्हें पूर्व में किसी प्रकार की बीमारी नहीं है।  एनेक्चर-1 पालिसी शैड्युल से यह सिद्ध होता है कि अनावेदक बीमा कंपनी ने अपने ग्राहकों को अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति के तहत एजेंटों को भी नियुक्त किया है, जैसा कि इस प्रकार में अब्दुल जमील को एजेंट के रूप में दर्शाया गया है, जिससे यही सिद्ध होता है कि अनावेदक बीमा कंपनी ने अपना व्यापार बढ़ाने की त्वरित कार्यवाही के लिए परिवादी एवं उसके परिवार को ऐसा दिग्भ्रमित किया कि वे अनावेदक बीमा कंपनी की पाॅलिसी ले लें, परंतु उनका पूर्व में मेडिकल परीक्षण कराया जाना सिद्ध नहीं किया है, जबकि पालिसी स्वास्थ्य से सबंधित थी, तब अनावेदक बीमा कंपनी का यह कर्तव्य था कि वे बीमित व्यक्ति को इस बात की अलग से विशिष्ट सूचना देते कि उन्हें बीमा पालिसी लेते समय कोई बीमारी नहीं होनी चाहिए अन्यथा निर्धारित अवधि में बीमा दावा प्रस्तुत होने पर उनका बीमा दावा निरस्त भी किया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अपने और अपने परिवार का स्वास्थ्य बीमा इसी आशय से निश्चिंत होकर कराता है कि समय पड़ने पर उसके और उसके परिवार के इलाज का खर्चा बीमा कंपनी उठायेगी, इस मनःस्थिति का बीमा कंपनी को अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति के तहत फायदा नहीं उठाना चाहिए, बल्कि समस्त स्थिति को साफ करने के पश्चात् ग्राहक को उसके चिकित्सकीय परिस्थितियां निश्चिंत कराकर तभी बीमा पालिसी प्रदान करनी चाहिए, क्योंकि ग्राहक ऐसी पालिसी लेने हेतु अपने मेहनत की गाढ़ी कमाई की राशि प्रीमियम चुकाने में लगाता है और यही कल्पना करता है कि विपत्ति की स्थिति में उसके परिवार को आर्थिक रूप से परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा।

(11) यह एक सामाजिक चेतना का विषय है कि किस प्रकार बीमा कंपनी ग्राहकों को बीमा पालिसी देकर अपना व्यापार तो बढ़ा लेती हैं, परंतु जब क्लेम देने का अवसर आता है तो गलत आधारों पर बिना दस्तावेजों का सूक्ष्मता से अध्ययन किये बीमा दावा खारिज कर देती हंै, जैसा कि इस प्रकरण में हुआ है।  अनावेदक ने एनेक्चर-5 के अनुसार डाॅक्टर के मात्र शंका के आधार पर ही यह निष्कर्षित कर दिया कि मृतक को पूर्व में कोई बीमारी थी।

(12) प्रस्तुत परिस्थितियों में हम यह निष्कर्षित करते हैं कि मृतिका को प्री-एक्जिस्टिंग डिसीज़़ नहीं थी ना ही उसको कन्जेनिटल विकनेस आॅफ वेसल्स की बीमारी थी, बल्कि वह अचानक अस्वस्थ्य हो गयी और इलाज पश्चात् उसकी मृत्यु हो गई।

(13) चूंकि मृतिका बीमित थी, इसलिए अनावेदकगण द्वारा बिना किसी उचित कारण के बीमा दावा खारिज किया जाना निश्चित रूप से सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक कदाचरण की श्रेणी में आता है।

(14) फलस्वरूप हम परिवादी के दावा को स्वीकार करने का समुचित आधार पाते हैं और यह निष्कर्षित करते हैं कि परिवादी, अनावेदकगण से एनेक्चर-16 अनुसार इलाज का खर्च पाने का हकदार है।

                                (15) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक 1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करेंगे:-

(अ)    अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को 1,13,590रू. (एक लाख तेरह हजार पांच सौ नब्बे रूपये) प्रदान करेंगे।

(ब)    अनावेदक क्र.1 एवं 2 द्वारा निर्धारित समयावधि के भीतर उक्त राशि का भुगतान परिवादीगण को नहीं किये जाने पर अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादीगण को आदेश दिनांक 26.02.2015 से भुगतान दिनांक तक 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करनें के लिए उत्तरदायी होंगे।

(स)    अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करेंगे।

 
 
[HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर्]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. शुभा सिंह]
MEMBER

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