राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
पुनरीक्षण सं0 :- 155/2018
(जिला उपभोक्ता आयोग, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0-147/2018 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 28/08/2018 के विरूद्ध)
Mahindra and Mahindra Financial Services Ltd. Mahindra tower 2nd Floor opposite H.A.L Faizabad Road Lucknow-226016
- Revisionist
Versus
Shri Krishna Singh S/O Shri Kedar Nath Singh R/O-5 CT/5 Sector-5 Obra, Sonbhadra.
समक्ष
- मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
उपस्थिति:
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री अदील अहमद
प्रत्यर्थी की ओर विद्वान अधिवक्ता:- कोई नहीं।
दिनांक:-29.09.2022
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
- यह निगरानी अंतर्गत धारा 17 (1) (बी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 जिला उपभोक्ता फोरम सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0 147 सन 2018 श्री कृष्णा सिंह बनाम महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा फाइनेन्स सर्विस लिमिटेड व अन्य में पारित आदेश दिनांक 28.08.2018 के विरूद्ध योजित किया गया है।
- प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र इन अभिकथनों के साथ प्रस्तुत किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने एक मीडियम गुड्स व्हिकल(टीपर) टाटा एलपीके-909 टीपर लोन एग्रीमेंट सं0 4224039 विपक्षीगण से अपनी जीविकोपार्जन हेतु दिनांक 23.05.2016 को फाइनेंस कराया है, जिसकी प्रथम किश्त एक महीने बाद दिनांक 24.06.2016 को होती है, परंतु प्रत्यर्थी/परिवादी की रू0 33,490/- किश्त बनायी गयी, जबकि प्रत्यर्थी/परिवादी ने रू0 35,000/- दिनांक 20.06.2016 को ही प्रथम किश्त की अदायगी कर दिया तथा इस प्रकार अगली किश्तों का भुगतान करता रहा। दिनांक 22.07.2016 को रू0 22,000/- एवं दिनांक 29.07.2016 को रू0 11,000/- विपक्षीगण को दिया, जिसकी रसीद विपक्षीगण द्वारा नहीं दी गयी। पैसा विपक्षी सं0 1 द्वारा दिनांक 24.08.2016 में काफी विलम्ब से जमा किया गया तथा सेवा में कमी करते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी पर ओवर ड्यू चार्ज लगा दिया गया, इस प्रकार प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कई तिथियों में किश्त अदा की गयी, परंतु विपक्षीगण द्वारा बिना विधिक प्रक्रिया अपनाये प्रत्यर्थी/परिवादी की गाड़ी माह जनवरी 2018 में खींच लिया, जिससे प्रत्यर्थी/परिवादी को मु0 2,000/- रू0 प्रतिदिन के हिसाब से माह जनवरी में विपक्षीगण की सेवा में कमी के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को मु0 60,000/- रू0 का नुकसान हुआ, जिसकी भरपाई हेतु विपक्षीगण जिम्मेदार है। विपक्षीगण द्वारा पुन: गाड़ी खींचकर खड़ी कर दी गयी, जिस कारण प्रत्यर्थी/परिवादी रोजी-रोटी हेतु जीविकोपार्जन नहीं कर पा रहा है। बिना विधिक प्रक्रिया अपनाये गाड़ी खींचने से हुई नुकसान की क्षति विपक्षीगण से दिलवाया जाना आवश्यक है।
- विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने प्रार्थना पत्र को एकपक्षीय रूप से सुनते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी के पक्ष में प्रथम दृष्टया मामला, सेवा का संतुलन एवं अपूर्णीय हानि मानते हुए उक्त आदेश पारित किया, जिससे व्यथित होकर यह निगरानी प्रस्तुत की गयी है।
- निगरानी मे मुख्य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा निगरानीकर्ता से ऋण लेकर के प्रश्नगत वाहन लिया गया था, जिसकी किश्तों में प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से डिफाल्ट किया गया, जिस कारण निगरानीकर्ता ने प्रश्नगत वाहन को ऋण की शर्तों के अनुसार अपने कब्जे में ले लिया। निगरानीकर्ता के अनुसार यह परिवाद दिनांक 28.08.2018 को योजित किया गया था तथा उसी दिन परिवाद के अंगीकरण के साथ अस्थायी निषेधाज्ञा के प्रार्थना पत्र को सुनते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी को निषेधाज्ञा प्रदान की गयी है। इस संबंध में निगरानीकर्ता को कोई सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया। अत: प्रश्नगत आदेश मनमाना एवं बिना किसी तार्किक आधार पर पारित किया गया है। अत: आदेश जिला उपभोक्ता ने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर दिया है, जो अपास्त होने योग्य है।
- पुनरीक्षणकर्ता के विद्धान अधिवक्ता श्री अदील अहमद उपस्थित हैं। प्रत्यर्थी/परिवादी पर भेजी गयी नोटिस तामीली पर्याप्त मानी गयी है एवं प्रत्यर्थी/परिवादी की अनुपस्थिति में पुनरीक्षणकर्ता को सुना गया। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख का अवलोकन किया गया। तत्पश्चात पीठ के निष्कर्ष निम्नलिखित प्रकार से हैं:-
- प्रस्तुत मामले में निगरानीकर्ता/विपक्षी की ओर से जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित अस्थायी निषेधाज्ञा के आदेश को चुनौती दी गयी है एवं तर्क प्रस्तुत किया गया है कि विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग को इस प्रकृति का आदेश पारित करने का क्षेत्राधिकार नहीं है। इस संबंध में परिवाद पर लागू उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 13 (3बी) उपधरणीय है, जो निम्नलिखित प्रकार से है:-
(3ख) जहां जिला पीठ के समक्ष किसी कार्यवाही के लम्बित रहने के दौरान, उसे यह आवश्यक प्रतीत होता है, वहां वह ऐसा अंतरिम आदेश पारित कर सकेगा जो मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में न्यायसंगत और उचित हो ।
- उपरोक्त वर्णित प्रावधान के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि जिला उपभोक्ता फोरम को परिवाद की प्रक्रिया के दौरान अंतरिम आदेश पारित करने का अधिकार है। अत: पारित आदेश अवैध अथवा अनियमित नहीं कहा जा सकता है, किन्तु यहां पर यह भी देखना है कि क्या यह आदेश इन परिस्थितियों में जारी किया जाना न्यायोचित है। आदेश के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम आज्ञापक निषेधाज्ञा जारी करते हुए प्रश्नगत वाहन का कब्जा प्रत्यर्थी/परिवादी को सौंपे जाने के निर्देश दिये हैं इसके लिए निगरानीकर्ता/विपक्षी को सुना जाना भी आवश्यक पाया जाता है क्योंकि यह आज्ञापक निषेधाज्ञा है। इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह पारित किया गया है कि अंतरिम निषेधाज्ञा जो आज्ञापक है एवं अंतिम रूप से परिवाद में मांगी गयी अनुतोष के सदृश है, अस्थायी तौर पर दिया जाना न्यायोचित नहीं है। उक्त निर्णय माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बाम्बे डाइंग एण्ड मैनुफैक्चरिंग कम्पनी लिमिटेड प्रति बाम्बे इन्वायरमेंट एक्शन ग्रुप प्रकाशित 2005 वाल्यूम (V) पृष्ठ 61, दत्ताराज वर्सेज स्टेट आफ महाराष्ट्र वाल्यूम (V) एससीसी पृष्ठ 590, बी0 सिंह प्रति यूनियन ऑफ इंडिया 2004 वाल्यूम (III) एससीसी 363, देवराज प्रति स्टेट ऑफ महराष्ट्र 2004 वाल्यूम (IV) एससीसी पृष्ठ 697 अनेक निर्णयों में पारित किया गया है।
- इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक अन्य निर्णय मोहम्मद एहताब खान तथा अन्य प्रति खुशनुमा इब्राहिम खान व अन्य 2013 वाल्यूम (9) एससीसी पृष्ठ 221 में यह प्रदान किया गया है कि आज्ञापक निषेधाज्ञा जिसके माध्यम से प्रत्यर्थी/परिवादी को कब्जा प्रदान करने का निर्देश दिया गया है वह न्यायालय के अत्यधिक संतुष्टि के उपरान्त ही दिया जाना चाहिए एवं जब न्यायालय पूर्ण रूप से संतुष्ट है कि यह न्यायालय अंतरिम रूप से पारित किया जाना अत्यंत आवश्यक है तभी ऐसा आदेश पारित होना चाहिए।
- माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णयों को दृष्टिगत करते हुए यह पीठ इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि परिवाद के अंगीकरण के अवसर पर बिना दूसरे पक्ष को सुनवाई का अवसर दिये हुए आज्ञापक निषेधाज्ञा, जिसमे उस पक्ष से, जिसको सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया है, के कब्जे से वाहन दूसरे पक्ष को दिलवा दिया जाना ऐसा निष्कर्ष है जिसे विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा बिना सुनवाई का अवसर दिये पारित किया जाना उचित नहीं था। ऐसा करने में विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा क्षेत्राधिकार का दुरूपयोग किया गया है। अत: प्रश्नगत आदेश अपास्त होने योग्य है किन्तु यह दृष्टिगत करते हुए कि प्रश्नगत सम्पत्ति एक वाहन है, जिसका प्रयोग होते रहना चाहिए और उसके खडे़-खड़े खराब होने की संभावना भी है। अत: यह उचित होगा कि दोनों पक्षों को अगली तिथि पर सुनते हुए विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम अस्थायी निषेधाज्ञा का आदेश अंतर्गत धारा 13 (3B) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित करने एवं यथाशीघ्र परिवाद का निस्तारण शीघ्र करें, जिससे प्रश्नगत वाहन के खड़े-खड़े खराब रहने की संभावना न रहे। तदनुसार निगरानी स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत निगरानी स्वीकार की जाती है।
विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग को आदेशित किया जाता है कि उभय पक्ष को सुनते हुए अस्थायी निषेधाज्ञा का आदेश अंतर्गत धारा 13 (3B) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित करते हुए एवं यथाशीघ्र परिवाद का निस्तारण करें। दोनों पक्षों को स्थगन अत्यंत गंभीर परिस्थितियों में ही दिया जाये।
उभय पक्ष दिनांक 10.11.2022 को विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष उपस्थित हों।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना)(राजेन्द्र सिंह)
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उदघोषित किया गया।
(विकास सक्सेना) (राजेन्द्र सिंह)
संदीप आशु0 कोर्ट नं0 2